जोगीरा होते क्या हैं ?
इसके बारे में सही-सही नहीं कहा जा सकता। शायद इसकी उत्पत्ति योगियों की हठ-साधना, वैराग्य और उलटबाँसियों का मजाक उड़ाने के लिए हुई हो। मूलतः यह समूह गान है। प्रश्नोत्तर शैली में एक समूह सवाल पूछता है तो दूसरा उसका जवाब देता है जो प्रायः चौंकाऊ होता है। प्रश्न और उत्तर शैली में निरगुन को समझाने के लिए गूढ़ अर्थयुक्त उलटबाँसियों का सहारा लेने वाले काव्य की प्रतिक्रिया में इन्हें रोजमर्रा की घटनाओं से जोड़कर रचा गया है।
परम्परागत जोगीरा काम-कुंठा का विरेचन है। एक तरह से उसमें काम-अंगों, काम-प्रतीकों की भरमार है। सम्भ्रान्त और प्रभु वर्ग को जोगीरा के बहाने गरियाने और उनपर अपना गुस्सा निकालने का यह अपना ही तरीका है।
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वास्तव में होली खुलकर और खिलकर कहने की परंपरा है। यही कारण है कि जोगीरे की तान में आपको सामाजिक विडम्बनाओं और विद्रूपताओं का तंज दिखता है। होली की मस्ती के साथ वह आसपास के समाज पर चोट करता हुआ नज़र आता है।
- काहे खातिर राजा रूसे काहे खातिर रानी।काहे खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर....राज खातिर राजा रूसे सेज खातिर रानी।मछरी खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर....
[ads id="ads2"]केकरे हाथे ढोलक सोहै, केकरे हाथ मंजीरा।केकरे हाथ कनक पिचकारी, केकरे हाथ अबीरा॥राम के हाथे ढोलक सोहै, लछिमन हाथ मंजीरा।भरत के हाथ कनक पिचकारी, शत्रुघन हाथ अबीरा॥**************
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