जानिए महामृत्युंजय मंत्र की कथा, किस कार्य के लिए कितनी बार जपें महामृत्युंजय मंत्र और मंत्र जप के दौरान बरतने वाली सावधानियां
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का सबसे बड़ा और प्रिय मंत्र माना जाता है। सनातन धर्म में महामृत्युंजय मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है। पूराणों के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र से भगवान शिव जल्दि प्रसन्न होते है और मन्त्र जाप करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। श्रावन मास में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सौ गुणा ज्यादा फल मिलता है।
महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही शिव धाम को प्राप्त करता है। महामृत्युंजय मंत्र ऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था। यह मंत्र व्यक्ति को ना ही केवल मृत्यु भय से मुक्ति दिलाता है, बल्कि उसकी मृत्यु को भी टाल सकता है। महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख बार निरन्तर जाप करने से भयंकर बीमारी और घातक ग्रहों के दुष्प्रभाव को खत्म किया जा सकता है।
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से आत्मा के कर्म शुद्ध हो जाते हैं आयु, यश की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही यह महामृत्युंजय मंत्र मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, लेकिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप में कुछ सावधानियां रखना भी जरूरी है क्योंकि महामृत्युंजय मंत्र का संपूर्ण लाभ प्राप्त तभी मिलेगा जब इसका सही प्रकार से उच्चारण हो सके।
महामृत्युंजय मंत्र की कथा :-
पौराणिक काल में शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ने सोचा कि भगवन शिव तो संसार के सारे विधान बदल सकते हैं। इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्न कर यह विधान बदलवाया जाए। ऋषि मृकण्ड ने भोलेनाथ की बड़ी घोर तपस्या की। भोलेनाथ ऋषि मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने मृकण्ड को शीघ्र दर्शन नहीं दिया, लेकिन भक्त ऋषि मृकण्ड की भक्ति के आगे आखिरकार भोलेनाथ झुक ही जाते हैं।
भगवान शिव प्रसन्न होकर ऋषि मृकण्ड को दर्शन देते है। भोलेनाथ ने ऋषि मृकण्ड को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे रहा हूं, लेकिन इस वरदान के हर्ष के साथ एक विषाद भी होगा। भोलेनाथ के वरदान से ऋषि मृकण्ड को पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने मार्कण्डेय रखा। ज्योतिषियों ने ऋषि मृकण्ड को बताया कि आपका पुत्र(मार्कण्डेय) अल्पायु है। इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है।
मृकण्ड ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को यह दुखी समाचार सुनाया। तब मृकण्ड ऋषि और उनकी पत्नी ने सोचा की “जिस ईश्वर की कृपा से हमे संतान की प्राप्ति हुई है वही भोलेनाथ इसकी रक्षा करेंगे"। भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है। मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी। उन्होंने एक दिन अपने पुत्र मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए वह उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया है। बारह वर्ष पूरे होने को आए थे। मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे।
समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते है, विश्व में सुरभि फ़ैलाने वाले भगवान् शिव मृत्यु न की मोक्ष से हमे मुक्ति दिलाएं।
समय पूरा होने पर यमदूत मार्कण्डेय को लेने आए। यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था।यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए। उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए।
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गए। यमराज ने बालक मार्कण्डेय को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं। शिवलिंग से स्वयं भगवान महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है। भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते। यमराज ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले जीव को त्रास नहीं करूँगा।
महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित ‘महामृत्युंजय मंत्र’ काल को भी परास्त करता है। सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करने से शिवजी की कृपा होती है और कई असाध्य रोगों, मानसिक वेदना से राहत मिलती है!
महामृत्युंजय मंत्र:-
इसका सामान्य मंत्र निम्नलिखित है, किंतु साधक को बीजमंत्र का ही जप करना चाहिए।
“ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ॥”
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या
शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग संख्याओं में मंत्र के जप का विधान है। इसमें किस कार्य के लिए कितनी संख्या में जप करना चाहिए इसका उल्लेख किया गया है।
- अगर आपको किसी भय या डर से छुटाकारा पाना है तो इसके लिए महामृत्युंजय मंत्र का 1100 बार जप करना चाहिए।
- लंबे समय से पीड़ित रोगी को रोग से मुक्ति दिलाने के लिए 11000 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
- पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए और अन्य सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए सवा लाख की संख्या में इस मंत्र का जप करना अनिवार्य है।
गौरतलब है कि इन मंत्रों के जप से कही ज्यादा जरूरी है इस मंत्र की शक्ति पर विश्वास करना। अगर इंसान पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस मंत्र का जप करता है तो उसे निश्चित रुप से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र जप के दौरान बरते ये सावधानियां:-
- महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय तन यानी शरीर और मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। यानी किसी तरह की गलत भावना मन में नहीं होनी चाहिए।
- महाम़ृत्युंजय मंत्र का उच्चारण सही तरीके से और शुद्धता के साथ करें। इस मंत्र के जप में एक शब्द की भी गलती भारी पड़ सकती है।
- इस मंत्र के जप के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित करें। आप धीरे-धीरे जप की संख्या को बढ़ा सकते हैं लेकिन इसे कम न करें।
- इस मंत्र का जप धीमे स्वर में करना चाहिए। जप करते समय इसका उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए।
- इस बात का विशेष ध्यान रखें कि महामृत्युंजय जप के दौरान धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
- इस मंत्र का जप केवल रुद्राक्ष की माला से ही करें।माला को गौमुखी में रखकर उससे जप करें और जप पूरा हो जाने के बाद माला गौमुखी से बाहर निकालें।बिना आसन के मंत्र जाप न करें।
- इस मंत्र का जप उसी जगह पर करें जहां पर भगवान शिव की मूर्ति, प्रतिमा या महामृत्युमंजय यंत्र रखा हो।
- इस मंत्र का जप हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करें ।निर्धारित स्थान पर ही रोज मंत्र जाप करें और जितने भी दिन का यह जप हो उतने दिन तक मांसाहार का सेवन न करें।
कितनी संख्या में शिव के इस महामंत्र को बोलने या जप करने जीवन में क्या-क्या घट जाता है:-
- महामृत्युंजय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर पवित्र हो जाता है।
- मंत्र के दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद आ जाती हैं।
- मंत्र के तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है।
- चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं और,
- पांच लाख महामृत्युंजय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रगट हो जाते हैं।
हर हर महादेव।🙏
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