हरतालिका तीज 2019 : महत्व ,व्रत नियम, पूजन- सामग्री ,पूजा विधि,मंत्र एवं सम्पूर्ण-कथा | Hartalika Teej 2019: Importance, Fasting Rules, Worship - Material, Method of Worship,Mantra and Whole Story




हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। विधवा महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

हरतालिका तीज का महत्‍व | Hartalika Teej Importance:-

सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्‍व है। हरतालिका दो शब्‍दों से मिलकर बना है - हरत और आलिका। हरत का मतलब है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'। प्राचीन मान्‍यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्‍हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्‍णु से उनका विवाह न करा पाएं। सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्‍था है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्‍य का वरदान देते हैं। वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्‍त‍ि होती है।

हरतालिका तीज  कब मनाई जाती है और मुहूर्त क्या है? Hartalika Teej Date and Muhurat:-


हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है। इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है। यह इस वर्ष 2 सितम्बर 2019, दिन सोमवार को मनाई जाएगी।
हालांकि महिलाओं को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर किस दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा जाना चाहिए. कुछ लोग 1 सितंबर की तारीख बता रहे हैं तो कुछ 2 सितंबर की तारीख को सही बता रहे हैं। लेकिन हरतालिका तीज 2 सितंबर को ही क्यों मनाई जानी चाहिए और इसके पीछे क्या कारण है निचे दिया गया हैं ।

प्रातः काल हरितालिका पूजा मुहूर्त  8 बजकर 58 मिनट तक 

02 सितंबर की तारीख सौभाग्य वृद्धि के लिए उत्तम:-


इस वर्ष सौभाग्य रक्षा का व्रत हरतालिका तीज 02 सितंबर दिन सोमवार को ही मान्य है। ज्योतिषीय गणना की मान्यता के अनुसार, चतुर्थी युक्त तृतीया का सौभाग्य वृद्धि में विशिष्ट महत्व है।

02 सितंबर सोमवार को तृतीया का पूर्ण मान, हस्त नक्षत्र का उदयातिथि योग तथा सायंकाल चतुर्थी तिथि की पूर्णता तीज पर्व की महत्ता को बढ़ाती है। इसका प्रमाण ‘पर्व मुहूर्त निर्णय ग्रन्थ’ में इस प्रकार प्राप्त है-

“चतुर्थी हस्त नक्षत्र सहिताया तु सा तृतीया फलप्रदा।”

हस्त नक्षत्र में तीज का पारण वर्जित:-


इतना ही नहीं, प्रमाण यह भी मिलता है कि हस्त नक्षत्र में तीज का पारण वर्जित है, जबकि रविवार 01 सितंबर को व्रती महिलाओं को 02 सितंबर दिन सोमवार के भोर में पारण हस्त नक्षत्र में ही करना पड़ेगा, जो शास्त्रों के अनुसार उचित नहीं है।

चित्रा नक्षत्र का पारण सौभाग्य-वृद्धि में सहायक:-


यदि 02 सितंबर को व्रत रखेंगे तो 03 सितंबर दिन मंगलवार के भोर में चित्रा नक्षत्र का पारण सौभाग्य-वृद्धि में सहायक माना गया है। अतः सर्वसिद्ध हरितालिका तीज व्रत चतुर्थी युक्त तृतीया एवं हस्त नक्षत्र के कारण 02 सितंबर सोमवार को ही मान्य है।

हरतालिका तीज का व्रत कैसे करें? हरतालिका तीज व्रत के नियम ।(Hartalika Teej Rules) :

●  हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
●  हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
●  हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
●  हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
● पूजा के एक दिन पहले नहायेखाये करते हैं ।नहाये खाये वाले दिन नहा -धोकर पूजा करते हैं और उस दिन बिना लहसुन प्याज़ का भोजन करते हैं ।
●  व्रत के दिन सुबह-सवेरे स्‍नान करने के बाद "उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये" मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लिया जाता है।

हरतालिका तीज की पूजन सामग्री |Hartalika Teej Puja Samgri List

हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लें :-

क्रहरतालिका पूजन सामग्री
1मंडप और पूजा की चौकी विशेष प्रकार से फूलों तथा केले के पत्तों से सजा हुआ ।
2गौरी जी ,शिवजी, गणेश जी के प्रतिमा बनाने के लिए गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत अथवा हल्दी
3कलश या लोटा 
4केले का पत्ता, आम का पल्लव ,पान का पत्ता 
5कसैली(सुपारी ),लौंग,इलाइची 
6 फूल ,फूल-माला 
7सामा का सत्तू ,केराव या चना 
8पांच(5) बांस  का  टोकरी,पांच(5) मिट्टी का कटहरी
9सभी प्रकार के मौसमी फल या कम से कम पांच प्रकार के [ सरीफा(श्रीफल ),मकई के बाल ,सेब ,नारंगी ,केला( यथासंभव) हर टोकरी के लिए ]
10मिष्ठान-पिरकिया(गुजिया), खजूर, पापड़(मैदे से बना हुआ) इत्यादि ।
11बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी ।
12माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमें चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहंदी ,सुहाग पिटारी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं । इसके अलावा बाजारों में सुहाग पुड़ा मिलता हैं जिसमें  सभी सामग्री होती हैं ।  
13शिव जी के लिए वस्त्र धोती और अंगोछा इच्छानुसार ।
14घी, तेल, दीपक,कपूर,बत्ती ,माचिस, कुमकुम, सिंदूर,रोली, अबीर, चन्दन,अक्षत, जनैव,पंचमेवा,श्री फल(नारियल),गंगाजल  ।
15पञ्चअमृत- घी, गाये के दूध का दही, शक्कर, गाये का दूध, शहद ।
16दान का सामान -चावल ,दाल,सब्जी ,नमक ,हल्दी ,रुपया इच्छानुसार ।
17पिठार(चावल का आटा तथा हल्दी मिला कर घोल तैयार करे।)

नोट - 1.केराव या चना को एक दिन पहले रात में पानी में रख कर फूलने रख दे ।
         2.मिट्टी का कटहरी में दही जमने के लिए रख दे ।
         3.पिरकिया(गुजिया), खजूर, पापड़ (मैदे से बना हुआ) इत्यादि बना कर एक दिन पहले रख लें।

हरतालिका तीज पूजन विधि (Hartalika Teej Pujan Vidhi)

  • हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं । प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय ।
  • स्‍नान कर साफ और सुंदर वस्‍त्र धारण करें। इस दिन सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं।
  • उसके बाद बांस के टोकरियों में पिठार लगा कर सिन्दूर लगा लें ।अक्षत,केराव या चना ,पान ,कसैली(सुपारी ),लौंग,इलाइची ,फूल दाल दें ।फिर  फल ,दही से भरी मिटटी की कटहरी ,पिरकिया(गुजिया), खजूर, पापड़,सामा का सत्तू  इत्यादि रख लकर टोकरियों को भर लें ।
  • पूजा की चौकी के बगल में पिठार से चौक लिख कर सिन्दूर लगा कर उसके ऊपर टोकरियों को रखें। 
  • हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं ।
  • मंडप बनाकर उसे सजाया जाता हैं ।उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं । चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं । उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं ।
  • तीनों प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं ।
  • सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमें एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं । उसमें जल भर कर रखते हैं , फिर उसमें आम का पल्लव डालते हैं ।घड़े पर सातिया बनाकर उसपर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं।उसके ऊपर श्रीफल(नारियल) रखते हैं । अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं । घड़े के मुंह पर लाल धागा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं । 
  • कलश का पूजन किया जाता हैं । सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, लाल धागा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं । कुमकुम, हल्दी ,चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प और प्रसाद चढ़ाते हैं ।
  • कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं ।
  • उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं । 
  • उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं । उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं ।
  • इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं ।
  • फिर सभी लोग मिलकर आरती करते हैं जिसमें सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं ।
  • पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं ।
  • रात भर जागकर पांच या सात पूजा एवं आरती की जाती हैं ।
  • सुबह (प्रातकाल सूर्योदय के पूर्व )आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं । उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं 
  • केला ,दही  एवं सामा का सत्तू  का भोग लगाया जाता हैं । उसी भोग को खाकर उपवास तोड़ा जाता हैं ।
  • गौरी को चढ़ाया गया प्रसाद खोइछा में लेते हैं ।फिर गौरी माँ को प्रणाम कर कलश में विसर्जित करते हैं।
  • अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं । 
  • पूजा समाप्त होने पर सास तथा घर के बड़ों को चरण स्पर्श करने के बाद भगवान (शिवजी एवं पार्वती)को चढ़ाये गए वस्त्र ,श्रृंगार का सामान,एक भरी हुई टोकरी तथा दान का सामान दक्षिणा सहित ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

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