Nag Panchami 2019: आज है नागपंचमी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व


आज हैं नाग पंचमी 



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हिन्‍दू धर्म में देवी-देवताओं के साथ ही उनके प्रतीकों और वाहनों की पूजा-अर्चना करने की भी परंपरा है। देवी-देवताओ के ये प्रतीक और वाहन किसी करिश्‍माई लोक से नहीं बल्‍कि प्रकृति का अभिन्‍न हिस्‍सा हैं, जिनमें जानवर, पक्षी, सरीसृप, फूल और वृक्ष शामिल हैं।"नाग पंचमी "(Nag Panchami) भी ऐसा ही एक पर्व है जिसमें सांप या नाग को देवता (Nag Devta) मानकर उसकी पूजा की जाती है।स्कन्द पुराण के अनुसार इस दिन नागों की पूजा करने से भगवान शिव सारी मनोकामनाएं  पूर्ण करते हैं।नाग पंचमी के दिन लोग दिन भर व्रत करते हैं और सांपों को दूध भी पिलाते हैं। नाग पंचमी के व्रत को अत्‍यंत फलदायी और शुभ माना गया है।

इस दिन अष्टनागों की पूजा की जाती है।-

वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण – ३२-२-७)

(अर्थ: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं।)

नाग पंचमी का महत्‍व :-


हिन्‍दुओं में नाग को देवता की संज्ञा दी जाती है और उनकी पूजा का विधान है। दरअसल, हिन्‍दू धर्म में नाग को आदि देव भगवान शिव शंकर के गले का हार और सृष्टि के पालनकर्ता श्री हरि विष्‍णु की शैय्या माना जाता है। इसके अलावा नागों का लोगों के जीवन से भी गहरा नाता है। सावन के महीने में जमकर वर्षा होती है, जिस वजह से नाग जमीन के अंदर से निकलकर बाहर आ जाते हैं। ऐसे में माना जाता है कि अगर नाग देवता को दूध पिलाया जाए और उनकी पूजा-अर्चना की जाए तो वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। यही नहीं कुंडली दोष को दूर करने के लिए भी नागपंचमी का विशेष महत्‍व है। ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार कुंडली में अगर काल सर्प दोष हो तो नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा और रुद्राभिषेक करना चाहिए। मान्‍यता है कि ऐसा करने से इस दोष से मुक्ति मिल जाती है।




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नाग पंचमी २०१९ कब है?

हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण यानी कि सावन मास के शुक्‍ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्‍योहार मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक नागपंचमी हर साल जुलाई या अगस्‍त महीने में आती है। इस बार नाग पंचमी 05 अगस्‍त यानी आज है। खास बात यह है कि इस बार नाग पंचमी के दिन सोमवार है।दरअसल, सोमवार को भगवान शिव शंकर का दिन माना गया है। यही वजह है कि सोमवार के दिन पड़ने से इस बार की नाग पंचमी का महत्‍व और बढ़ गया है।इस नाग पंचमी पर लगभग सवा 100 साल पुराना दुर्लभ संयोग बन रहा है तथा हस्त नक्षत्र भी हैं।इसी कारण नाग पंचमी पर पूजा-अर्चना करने से नौकरी व्यापार स्वास्थ्य आदि की समस्याएं दूर हो जाएंगी।


नाग पंचमी की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त :-

नाग पंचमी की तिथि: 05 अगस्‍त 2019 

नाग पंचमी तिथि प्रारंभ: 04 अगस्त 2019 की रात 12 बजकर 19 मिनट से। 

नाग पंचमी तिथि समाप्‍त: 05 अगस्‍त 2019 को रात  09 बजकर 25 मिनट तक।

नाग पंचमी की पूजा का मुहूर्त: 05 अगस्‍त 2019 को सुबह 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 08 बजकर 41 मिनट तक।

नाग पंचमी की पूजा विधि :-

  • नाग पंचमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाएं। 
  • मन में व्रत का सकंल्‍प लें।
  • नाग देवता का आह्वान कर उन्‍हें बैठने के लिए आसन दें। 
  • फिर जल, पुष्प और चंदन का अर्घ्‍य दें। 
  • दूध, दही, घी, शहद और चीनी का पंचामृत बनाकर नाग प्रतिमा को स्नान कराएं।
  • इसके बाद प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढ़ाना चाहिए।
  • फ‍िर खीर ,लड्डू और मालपुए का भोग लगाएं। 
  • फिर सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप-दीप, ऋतु फल और पान का पत्ता चढ़ाने के बाद आरती करें ।
  • माना जाता है कि नाग देवता को सुगंध अति प्रिय है। इस दिन नाग देव की पूजा सुगंधित पुष्प और चंदन से करनी चाहिए।
  • नाग पंचमी की पूजा का मंत्र इस प्रकार है: "ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा"!!
  •  शाम के समय नाग देवता की फोटो या प्रतिमा की पूजा कर व्रत तोड़ें और फलाहार ग्रहण करें। 

नागपंचमी की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा



हिन्दू धर्म की पुरानी मान्यताओं के बीच सांप को सामान्य जीव नहीं बल्कि चमत्कारिक दैवीय जीव माना गया है। पुराने समय से सांप को देवता के तौर पर पूजा जाता है। सांपों के लिए हिन्दू धर्म में खास त्योहार नाग पंचमी मनाया जाता है। शेषनाग पर लेटे भगवान विष्णु हों या फिर कंठ में सर्परूपी माला धारण करने वाले भगवान शिव। माता पार्वती के कई मंदिरों में नागों की विशेष पूजा की जाती है। नांग पंचमी मनाए जाने के बीच कई धार्मिक मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं उन कहानियों के बारे में जो लोक कथाओं में प्रचलित हैं।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के अंश से ही मनसा देवी की उत्पत्ति हुई थी। उन्हें नाग समुदाय की माता वासुकि की भी बहन माना जाता है। नागपंचमी के दिन सांपों को दूध और लावा अर्पित करके लोग मनचाही वरदान मांगते हैं। भारत के अलावा नेपाल में भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। कुछ जगहों पर चतुर्थी के दिन भी सांपों की पूजा-अर्चना की जाती है।


नाग पंचमी मनाने के पीछे समुद्र मंथन से जुड़ी एक और कथा लोकप्रिय है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को जब भगवान शिव पी रहे थे इस दौरान कुछ बूंद गिरकर सांपों के मुख में समा घीं। तब से सांप विषैले हो गए। इसलिए अपने परिवार को नागदंश से बचाने के लिए नागपंचमी के दिन भक्त सर्प देवता की पूजा करते हैं।



पुराणों के मुताबिक यह मान्यता है कि भगवान कृष्णा ने इसी दिन गोकुलवासियों को कालिया नामक नाग के आतंक से बचाया था। कथा के अनुसार, एक दिन बालकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना तट पर खेल रहे थे। तभी उनकी गेंद नदी में जा गिरी। गेंद बाहर निकालने के प्रयास में कृष्ण नदी में जा गिरे। उसी समय कालिया ने उनपर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस बात से अंजान कि श्री कृष्ण साधारण बालक नहीं है, कालिया ने उनसे क्षमा याचना मांगी। कृष्ण ने कालिया से पहले यह प्रतिज्ञा ली कि वह कभी भी गाँव वालों को परेशान नहीं करेगा, तत्पश्चात उन्होंने कालिया को छोड़ दिया। प्रचंड नाग कालिया पर कृष्णा की विजय के बाद इस दिन को नाग पंचमी के रूप में श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है।उस दिन सावन की पंचम तिथि थी। इसके बदले में भगवान कृष्ण ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि जो भी पंचमी के दिन सर्प देवता को दूध पिलाएगा तो उसके जीवन के सारे दुख-दर्द दूर हो जाएंगे। उसी दिन से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

नाग पंचमी की कथा :-

प्रथम कथा :-


प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।'

यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।

उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।


सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।

छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।

यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

द्वितीय कथा

एक समय लीलाधर नाम का एक किसान था जिसके तीन पुत्र तथा एक पुत्री थी। एक दिन सुबह जब वह अपने खेत में हल चला रहा था, उसके हल से सांप के बच्चों की मौत हो गई। अपने बच्चों की मौत को देखकर नाग माता को काफी क्रोध आया और नागिन अपने बच्चों की मौत का बदला लेने किसान के घर गई।
रात को जब किसान और उसका परिवार सो रहा था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके बेटों को डस लिया और सभी की मौत हो गई। किसान की पुत्री को नागिन ने नहीं डसा था जिससे वह जिंदा बच गई। 
दूसरे दिन सुबह नागिन फिर से किसान के घर में किसान की बेटी को डसने के इरादे से गई। उसने नाग माता को प्रसन्न करने के लिए कटोरा भरकर दूध रख दिया तथा हाथ जोड़कर प्रार्थना की और माफी मांगी। उसने नागिन से उसके माता-पिता को माफ कर देने की प्रार्थना की।
नाग माता प्रसन्न हुई तथा सबको जीवनदान दे दिया। इसके अलावा नाग माता ने यह आशीर्वाद भी दिया कि श्रावण शुक्ल पंचमी को जो महिला सांप की पूजा करेगी उसकी कई पीढ़ियां सुरक्षित रहेंगी, तब से नाग पंचमी पर सांप को पूजा जाता है। 

नाग पंचमी के दिन कथाओं में वर्णित पांच प्रमुख नागों की पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं कौन से हैं ये पांच नाग-

1. शेषनाग - भगवान विष्णु के सेवक और सम्पूर्ण पृथ्वी के भार को वहन करते हैं। मान्यता है कि शेषनाग के हजार फन हैं और इनका कोई अंत नहीं है। इनका दूसरा नाम अनंत भी है। शेषनाग कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू के पुत्रों सबसे पराक्रमी शेषनाग ही हैं। लक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार ही माना जाता है।

2.वासुकि नाग - इन्हें भगवान शिव का सेवक माना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान देवता और दानवों ने मिलकी इन्हीं को मंदराचल पर्वत से बांधा था। वासुदेव जब यमुना नदी को पार कर रहे थे तो इन्होंने ही बारिश से भगवान कृष्ण की रक्षा की थी।

3.तक्षक नाग - श्रीमदभागवत पुराण में वर्णित राजा परीक्षित की मृत्यु इन्हीं के डसने से हुई थी। इसका बदला लेने के लिए परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था।

4.कर्कोटक नाग -
कर्कोटक को भी नागों का एक राजा मानते हैं। कहा जाता है कि कर्कोटक ने नारद को धोखा दिया था तो नारद जी ने इन्हें एक कदम भी न चल पाने का श्राप दे दिया था।

5.पिंगल नाग - कुछ कथाओं में उल्लेख मिलता है कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक पिंगल नाग ही हैं।


भोजन से जुड़े रिवाज :- 


  • इस दिन सेंवई और चावल बनाने का रिवाज है। 
  • कई जगहों पर नागपंचमी के दिन बासी भोजन लेने का रिवाज है। इसके लिए नागपंचमी से पहली रात को ही खाना बना कर रख लिया जाता है, जिसे नागपंचमी के दिन खाया जाता है।  
  • बिहार में आज के दिन खीर पूरी बनाने का रिवाज हैं। 

क्या न करें नाग पंचमी पर :- 

  • नाग पंचमी पर नाग को दूध न पिलाएं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि नाग को दूध पिलाने से उनकी मौत हो जाती है और मृत्यु का दोष लगकर हम शापित हो जाते हैं। 
  • इन दिनों मिट्टी की खुदाई पूरी तरह से प्रतिबंधित रहती है।
  • माना गया है कि नाग का फन तवे के समान होता है। नाग पंचमी के दिन तवे को चूल्हे पर चढ़ाने से नाग के फन को आग पर रखने जैसा होता है इसलिए इस दिन कई स्थानों पर तवा नहीं रखा जाता।

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  1. नागपंचमी और सावन के तृतीय सोमवार की शुभकामनायें।

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