शारदीय नवरात्रि / दुर्गा पूजा २०१९- महत्व ,व्रत नियम ,पूजा विधि, मंत्र एवं कथा | Shardiya Navratri / Durga Pooja 2019- Importance, Fasting Rules, Rituals of Worship, Mantras and Stories
नवरात्रि / दुर्गा पूजा एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें‘। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।दुर्गा का मतलब “जीवन के दुख को हटाने वाली” होता है।
नवरात्रि पूजा का महत्त्व | Importance of Navratri Puja:-
इस पर्व का बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक महत्व है | नवरात्र / दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला पर्व है | नवरात्र में प्रायः वातावरण में ऐसी क्रियाएं होती हैं – यदि इस समय पर शक्ति की साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं।नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है क्रमशः चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। लेकिन ज्यादातर इन्हें चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है। उसका प्रमुख व्यवहारिक कारण जन सामान्य के लिए आर्थिक, भौतिक दृष्टि से इतने बड़े पर्व ज्यादा दिन तक जल्दी-जल्दी कर पाना सम्भव नहीं है। चारों नवरात्र की साधना प्रायः गुप्त साधक ही किया करते हैं जो जप, ध्यान से माता के आशीर्वाद से अपनी साधना को सिद्धि में बदलना चाहते हैं। दुर्गा पूजा को स्थान, परंपरा, लोगों की क्षमता और लोगों के विश्वास के अनुसार मनाया जाता है| कुछ लोग इसे पाँच, सात या पूरे नौ दिनों तक मनाते हैं| लोग माँ भगवती दुर्गा देवी की मूर्ति पूजा “षष्ठि” से शुरु करते हैं, जो “दशमी” के दिन समाप्त होती है| समाज या समुदाय में कुछ लोग पास के क्षेत्र में पंडाल को सजा कर मनाते हैं| इन दिनों में, आस-पास के सभी मंदिरों में दुर्गा पाठ, जगराता और माता की चौकी का आयोजन किया जाता है| कुछ लोग घरों में ही सभी व्यवस्थाओं के साथ पूजा करते हैं और अंतिम दिन होम व विधिवत पूजा कर मूर्ति का विसर्जन जलाशय, कुंड, नदी या समुद्र में करते हैं|
क्यों मनाई जाती है नवरात्रि ? | Why is Navratri celebrated?
नवरात्र को मनाने का एक और कारण है जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है। वर्ष के दोनों प्रमुख नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में अर्थात् दो ऋतुओं के सम्मिलिन में मनाए जाते हैं। जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्रायः शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया।
दुर्गा पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2019 | Durga Puja Festival Date and Muhurat 2019
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 16 मिनट से लेकर 7 बजकर 40 मिनट तक रहने वाला है। इसके अलावा जो भक्त सुबह कलश स्थापना न कर पा रहे हो उनके लिए दिन में 11 बजकर 48 मिनट से लेकर 12 बजकर 35 मिनट तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ रहने वाला है।
दुर्गा पूजा का शुभ मुहूर्त-
अष्टमी तिथि – रविवार, 6 अक्टूबर 2019
अष्टमी तिथि प्रारंभ – 5 अक्टूबर 2019 से 09:50 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – 6 अक्टूबर 2019 से 10:54 बजे तक
दशहरे का शुभ संयोग-
रावण-दहन का मुहूर्त –
गोधूली बेला में 4.30 से 6.00 बजे, शाम 7.30 से 9.00, रात 10.10 से 11.13 बजे तक रावण-दहन का शुभ मुहूर्त है।(रावण-दहन से पूर्व मां अंबे भवानी और बजरंग बली की आराधना की जानी चाहिए। भगवान श्रीराम की अर्चना की जानी चाहिए। तत्पश्चात श्रीराम के जयघोष के साथ रावण-दहन का कार्य संपन्न करना चाहिए।)
आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि 2019 की प्रमुख तिथियां | Key dates of Shradiya Navratri 2019 of Ashwin month :-
नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है, एवं पूजा जाता है, जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।आइए जानें कब से है नवरात्रि पर्व और कब मनेगा दशहरा पर्व एक नजर में :-
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।
ग्रह: केतु
नवरात्रि पूजन विधि | Navratri Puja Vidhi
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (29 सितंबर 2019) को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
- घर के ही किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं।
- वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं।
- वेदी पर या समीप के ही पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर वहां सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें।इसके बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें।इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें।इसके बाद ‘ॐ भूम्यै नमः’ कहते हुए कलश को 7 अनाज के साथ रेत के ऊपर स्थापित कर दें। कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलते रहें।
- कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें। इसके बाद वेदी के किनारे पर देवी की पीतल, स्वर्ण, चांदी, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति विधि-विधान से विराजमान करें।
- तत्पश्चात मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्ध, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें।
- इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गास्तुति करें।
- पाठ स्तुति के बाद देवी दुर्गा मां की आरती कर प्रसाद वितरित करें।
- इसके बाद कन्या भोजन कराएं, फिर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
- प्रतिपदा के दिन घर के ही जवारे बोने का भी विधान है।
- नवमी के दिन इन्हीं जवारों का किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए। अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं।
- इन दोनों दिनों पारायण के बाद हवन करें फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
दुर्गा पूजा से जुड़ी मान्यताएं | Beliefs related to durga puja
दुर्गा पूजा के दौरान उत्तर भारत में नवरात्र के साथ ही दशमी के दिन रावण पर भगवान श्री राम की विजय का उत्सव विजयदशमी मनाया जाता है| उत्तर भारत में इन दिनों में रामलीला के मंचन किये जाते हैं| तो वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का दृश्य अलग होता है| दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में ही मनाया जाता है| मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है| जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जो कुछ इस प्रकार है-
हिन्दू पुराणों के अनुसार – एक समय में राक्षस राज महिषासुर हुआ करता था, जो बहुत ही शक्तिशाली था| स्वर्ग पर आधिपत्य ज़माने के लिए उसने ब्रह्म देव की घोर तपस्या की | जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और महिषासुर से वर मांगने को कहा | राक्षस राज ने अमरता का वर माँगा परंतु ब्रह्मा ने इसे देने से इंकार कर इसके बदले महिषासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्ति का वरदान दिया | महिषासुर प्रसन्न होकर सोचा मुझ जैसे बलशाली को भला कोई साधारण स्त्री कैसे मार पायेगी?, अब मैं अमर हो गया हूँ | कुछ समय बाद वह स्वर्ग पर आक्रमण कर देता है | देवलोक में हाहाकार मच उठता है |सभी देव त्रिदेव के पास पहुंचते हैं और इस विपत्ति से बाहर निकालने का आग्रह करते हैं | तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया | यह शक्ति एक स्त्री रूप में प्रकट हुई | जिन्हें दुर्गा कहा गया| महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया | तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है|
एक दूसरी कथा के अनुसार, भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था | श्री राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण का संहार किया, तब से उस दिन को विजयादशमी कहा जाने लगा|
इस पर्व से जुड़ी एक और मान्यता है कि, कहा जाता है कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर दैत्यों ने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और वर मांगा कि उन्हें कोई पुरुष, जानवर और उनके शस्त्र न मार सकें।वरदान मिलते ही असुर अत्याचार करने लगे, तब देवताओं की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने वरदान का भेद बताते हुए बताया कि असुरों का नाश अब स्त्री शक्ति ही कर सकती है। ब्रह्माजी के निर्देश पर देवों ने 9 दिनों तक मां पार्वती को प्रसन्न किया और उनसे असुरों के संहार का वचन लिया। असुरों के संहार के लिए देवी ने रौद्र रूप धारण किया था इसीलिए शारदीय नवरात्र शक्ति-पर्व के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि में क्या करें, क्या न करें ? What to do or not to do during Navratri?
मां दुर्गा के 9 दिवसीय नवरात्रि व्रत संयम और अनुशासन की मांग करते हैं।
कलश स्थापना से जुड़े खास नियम :-
- कलश की स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करें।
- कभी भी कलश का मुंह खुला न रखें। अगर आप कलश को किसी ढक्कन से ढक रहे हैं, तो उस ढक्कन को भी चावलों से भर दें। इसके बाद उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें।
- पूजा करने के बाद मां को दोनों समय लौंग और बताशे का भोग लगाएं।
- मां को लाल फूल बेहद प्रिय है। लेकिन भूलकर भी माता रानी को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं।
व्रत से जुड़े खास नियम:-
क्या करें:-
- व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। नारियल, नींबू, अनार, केला, मौसमी और कटहल आदि फल तथा अन्न का भोग लगाना चाहिए। व्रती को संकल्प लेना चाहिए कि वह हमेशा क्षमा, दया व उदारता का भाव रखेगा।
- नौ दिन मातारानी का ध्यान अवश्य करना चाहिए !
- अपने प्रतिकूल ग्रह वाले दिन, उपवास अवश्य करना चाहिए!
- मंदिर में माता के अथवा मंदिर के बाहर ध्वज के दर्शन अवश्य करना चाहिए!
- आसन पर बैठकर ही पूजा करें।जूट या ऊन का आसन होना चाहिए।
क्या न करें:-
- इन दिनों व्रती को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। देवी का आह्वान, पूजन, विसर्जन, पाठ आदि सब प्रात:काल में शुभ होते हैं, अत: इन्हें इसी दौरान पूरा करना चाहिए। यदि घटस्थापना करने के बाद सूतक हो जाए, तो कोई दोष नहीं होता, लेकिन अगर पहले हो जाए, तो पूजा आदि न करें।
- नवरात्रि में देवी मां को तुलसी पत्ती न चढ़ाएं।
- नवरात्रि में माता रानी की तस्वीर या मूर्ति में शेर दहाड़ता हुआ नहीं होना चाहिए।
- देवी पर दूर्वा नहीं चढ़ाएं।
- नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने वालों को दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाने चाहिए। इस दौरान बच्चों का मुंडन करवाना शुभ होता है।
- नौ दिनों तक नाखून नहीं काटने चाहिए।
- अगर आप नवरात्रि में कलश स्थापना कर रहे हैं, माता की चौकी का आयोजन कर रहे हैं या अखंड ज्योति जला रहे हैं तो इन दिनों घर खाली छोड़कर नहीं जाएं।
- नौ दिन का व्रत रखने वालों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।नौ दिन का व्रत रखने वालों को गंदे और बिना धुले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
- व्रत रखने वाले लोगों को बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग जैसी चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- व्रत रखने वालों को नौ दिन तक नींबू नहीं काटना चाहिए।
- खाने में प्याज, लहसुन और नॉन वेज न खाएं।
- व्रत में नौ दिनों तक खाने में अनाज और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। खाने में कुट्टू का आटा, समारी के चावल, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली खा सकते हैं।
- फलाहार एक ही जगह पर बैठकर ग्रहण करें।
- विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है।आप भजन करें या माता के गाने सुने।
- चालीसा, मंत्र या सप्तशती पढ़ रहे हैं तो पढ़ते हुए बीच में दूसरी बात बोलने या उठने की गलती कतई ना करें। इससे पाठ का फल नकारात्मक शक्तियां ले जाती हैं।
- कई लोग भूख मिटाने के लिए तम्बाकू चबाते हैं यह गलती व्रत के दौरान बिलकुल ना करें। व्यसन से व्रत खंडित होता है।
- (नोट- इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
नवग्रह की समस्या से मिलती है मुक्ति | Liberation meets the problem of Navagraha
ज्योषिय आधार पर ऐसा माना जाता है कि यदि व्यक्ति नौ देवियों की नौ दिन तक साधना करता है तो उससे उस साधक के नौ ग्रह शांत होते हैं। ये सब मां शक्ति की कृपा स्वरूप होता है। यही नहीं काल सर्प दोष, कुमारी, दोष, मंगल दोष आदि में मां की कृपा से मुक्त हुआ जा सकता है। भारतीय ऋषियों के वैदिक ज्ञान के विश्लेषण और विश्व के व्यवहारिक पहलू का विश्लेषण से ऐसा कहना तर्क संगत है कि शक्ति (नारी) की पूजा बिना हम और हमारे कर्मकांड अधूरे हैं।
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