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नरक चतुर्दशी दीपावली के पांच दिनों में से दुसरे दिन मनाया जाता है, यह त्यौहार महापर्व दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता हैं। इसे नरक से मुक्ति पाने वाला त्यौहार कहते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसी कारण इसे नरक चतुर्दशी कहा जाता हैं। इसे रूप चौदस एवं छोटी दिवाली भी कहते हैं।
नरक चतुर्दशी रूप चौदस कब मनाया जाता हैं? (Narak Chaturdashi or Roop Chaudas 2018 Date Muhurat) :-
यह पर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन मनाया जाता हैं। इसे नरक मुक्ति का त्यौहार माना जाता हैं। इस वर्ष 2019 में यह पर्व 26 अक्टूबर शनिवार के दिन मनाया जायेगा।
यम दीप कब है, तिथि और शुभ मुहूर्त:-
यम दीप की तिथि: | 26 अक्टूबर 2019 |
प्रदोष काल: | शाम 05 बजकर 38 से शाम 08 बजकर 13 मिनट से |
वृषभ काल: | शाम 06 बजकर 50 मिनट से रात 08 बजकर 45 मिनट तक |
नरक चतुदर्शी कब है, तिथि और शुभ मुहूर्त:-
नरक चतुदर्शी की तिथि: | 27 अक्टूबर 2019 |
चतुदर्शी तिथि प्रारंभ: | 26 अक्टूबर 2019 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट से |
चतुदर्शी तिथि समाप्त: | 27 अक्टूबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक |
अभ्यंगा स्नान मुहूर्त: | 27 अक्टूबर 2019 को सुबह 05 बजकर 16 मिनट से सुबह 06 बजकर 33 मिनट तक |
कुल अवधि: | 01 घंटे 17 मिनट |
नरक चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम | The scriptural rule of Narak Chaturdashi :-
दो विभिन्न परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।
- कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।
- यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।
- नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।
नरक चतुर्दशी पूजन विधि (Narak chaturdashi puja vidhi /worship method):-
- कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि के अंत में जिस दिन चंद्रोदय के समय चतुर्दशी हो, उस दिन सुबह दातुन आदि करके निम्नलिखित श्लोक का जाप करें-‘यमलोकदर्शनाभवकामोअहमभ्यंकस्नानं करिष्ये’-कह कर संकल्प करें।
- नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) और हल से उखाड़ी मिट्टी का ढेला को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाकर शुद्ध स्नान करें। वैसे तो कार्तिक स्नान करने वालों के लिए- ‘तैलाभ्यंग तथा शययां परन्ने कांस्यभोजनम्। कार्तिके वर्जयेद् यस्तु परिपूर्णव्रती भवेत’ के अनुसार वर्जित है, निषेध है, लेकिन - ‘नरकस्य चतुर्दश्यां तैलाभ्यगं च कारयेत्। अन्यत्र कार्तिकस्नायी तैलाभ्यगं विवर्जयेत्॥’ के अनुसार नरक चतुर्दशी में तेल लगाना अति आवश्यक है।
- नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
- सूर्योदय से पूर्व नहाना आयुर्वेद की दृष्टि से अति उत्तम है। जो ऐसा हर दिन नहीं कर पाते, उन्हें कम से कम आज के दिन तो सूर्योदय के पूर्व अवश्य ही नहा लेना चाहिए। वरुण देवता को स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए। नहाने के जल में हल्दी और कुमकुम अवश्य डालना चाहिए। संभव हो तो नए वस्त्र पहनने चाहिए।
- स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
- इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
- नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
- नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
- इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।
नरक चतुर्दशी का महत्व और पौराणिक कथाएं | Importance and mythology of Narak Chaturdashi:-
धार्मिक और पौराणिक महत्व की वजह से हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का बड़ा महत्व है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है। दीपावली से दो दिन पूर्व धन तेरस, नरक चतुर्दशी या छोटी दीवापली और फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पर यमराज के निमित्त दीपदान और प्रार्थना करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा हैं जो इस प्रकार हैं :-
दया के मूर्तिमान स्वरूप महाराज रन्तिदेव |
एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम रन्ति देव था। स्वभाव से बहुत ही शांत एवम पुण्य आत्मा, इन्होने कभी भी गलती से भी किसी का अहित नहीं किया। इनकी मृत्यु का समय आया, यम दूत इनके पास आये। तब इन्हें पता चला कि इन्हें मोक्ष नहीं बल्कि नरक मिला हैं। तब उन्होंने पूछा कि जब मैंने कोई पाप नहीं किया तो मुझे नरक क्यूँ भोगना पड़ रहा हैं। उन्होंने यमदूतों से इसका कारण पूछा तब उन्होंने बताया एक बार अज्ञानवश आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा चला गया था। उसी के कारण आपका नरक योग हैं। तब राजा रन्ति से हाथ जोड़कर यमराज से कुछ समय देने को कहा ताकि वे अपनी करनी सुधार सके। उनके अच्छे आचरण के कारण उन्हें यह मौका दिया गया। तब राजा रन्ति ने अपने गुरु से सारी बात कही और उपाय बताने का आग्रह किया। तब गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे हजार ब्राह्मणों को भोज कराये और उनसे क्षमा मांगे। रन्ति देव ने यही किया। उनके कार्य से सभी ब्राह्मण प्रसन्न हुए और उनके आशीर्वाद के फल से रन्ति देव को मोक्ष मिला। वह दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का था, इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन दीये जलाने के संदर्भ में कई पौराणिक और लौकिक मान्यताएं हैं जो इस प्रकार हैं :-
1. राक्षस नरकासुर का वध :
पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी।
पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी।
नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
2. दैत्यराज बलि की कथा :
एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें।
एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें।
राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।
नरक चौदस को रूप चतुर्दशी क्यूँ कहा जाता हैं ? | Why Narak Chaturdashi Called Roop Chaudas :-
एक हिरण्यगभ नामक एक राजा थे। उन्होंने राज पाठ छोड़कर तप में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया। उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की, लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए। उनका शरीर मानों सड़ गया। हिरण्यगभ को इस बात से बहुत दुःख तब उन्होंने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही। तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप योग साधना के दौरान शरीर की स्थिती सही नहीं रखते, इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया। तब हिरण्यगभ ने इसका निवारण पूछा। तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे, साथ ही रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे, इससे आपको पुन : अपना सौन्दर्य प्राप्त होगा। इन्होने वही किया अपने शरीर को स्वस्थ किया। इस प्रकार इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं।
इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता हैं | It is also called Chhoti Diwali :-
यह दिन दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता हैं। इस दिन संध्या के समय दीये की रोशनी से अंधकार को प्रकाश पुंज से दूर कर दिया जाता है। इसी वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे उतनी ही धूमधाम और खुशियों के साथ घर के सभी सदस्यों के साथ त्यौहार मनाया जाता हैं।
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नरक चतुर्दशी के दिन ये 6 पूजा लाएंगी खुशहाली! These 6 poojas will bring prosperity on Narak Chaturdashi! :-
सनातन धर्म अनुसार नरक चौदस के दिन 6 देवों की पूजा भी की जाती है। ये 6 देव होते हैं जिसकी पूजा की जाती है:-
1. वामन पूजा : -
पौराणिक मान्यता अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान वामन ने राजा बलि को न केवल पाताल लोक का राजा बनाया था बल्कि उसे चिरंजीवी होने के वरदान के साथ ही यह वरदान भी दिया था कि राजा बलि के राज्य में जो यम को दीपदान देगा उसके पितरों यानि पूर्वजों को कभी भी नरक की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए इस दिन लोग शाम के वक़्त अपने-अपने घरों में दीप जलाते व दीपदान भी।
2. हनुमान जयंती :-
एक मान्यता हैं कि इस दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था। इस प्रकार इस दिन दुखों एवम कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति की जाती हैं, जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक जैसे पाठ करते हैं। कहते हैं कि आज के दिन हनुमान जयंती होती हैं। यह उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं। इस प्रकार देश में दो बार हनुमान जयंती का अवसर मनाया जाता हैं। एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन।
3. नरक चतुर्दशी :-
चूंकि इस दिन श्रीकृष्ण के रूप में भगवान विष्णु ने नरकासुर नाक के राक्षस का वध कर उसे मोक्ष दिलाया था, इसलिए भी इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। यही कारण है कि इस दिन विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उनकी पत्नी सत्यभामा के साथ पूरे श्रद्धा- भाव से की जाती है।
जैसा हमने आपको पहले ही बताया कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा आराधना की जाती है, इसलिए इस दिन को यम के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि इस दिन शाम होने के बाद घर में और घर के चारों ओर दिए जलाए जाते है। साथ ही यमराज से आकाल मृत्यु से मुक्ति प्राप्ति के लिए और बेहतर एवं स्वस्थ्य जीवन की कामना करने हेतु प्रार्थना की जाती है।
5. शिव चतुर्दशी :-
नरक चतुर्दशी का दिन भगवान शिव का दिन भी माना जाता है इसलिए इसे कई जगह पर शिव चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिवजी और माता पारवती की पूजा आराधना की पूजा भी की जाती है।
6. काली चौदस :-
नरक चतुर्दशी को काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल बंगाल राज्य में परंपरा अनुसार इस दिन को मां काली के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिसके कारण इसका नाम वहां काली चौदस है। इस दिन मां काली की आराधना का विशेष महत्व होता है।
त्यौहारों का हैं यह राजा
पाँच दिनों तक मनाया जाता
आज हैं हमारी छोटी दिवाली
कहती नरक चौदस की कहानी
नरकासुर था एक राक्षस
था वो शक्तिशाली भक्षक
बनाया सोलह हजार स्त्रियों को बंधक
चारों तरफ था उसका आतंक
जब जब संकट आता हैं
ईश्वर हमें बचाता हैं
कृष्ण की लीला चली इस बार
किया उन्होंने नरकासुर का संहार
तबसे ही यह दिन हैं मनाया जाता
जो आज तक नरक चौदस कहलाता !!!
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