[ads id="ads1"]
“न क्षयति इति अक्षय” अर्थात जिसका कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं ।वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया को "स्वयंसिद्ध" मुहूर्त या "अक्षय तृतीया" के रूप में मनाया जाता है।शुक्ल पक्ष अर्थात अमावस्या के बाद के पंद्रह दिन जिनमें चंद्रमा बढ़ता है। इसे अखाती तीज भी कहते हैं।वर्तमान श्री श्वेतवाराहकल्प में वैवस्वत मन्वन्तर के मध्य 'सत्ययुग' के आरम्भ की इस पुण्यदाई तृतीया तिथि को माता पार्वती ने मानव कल्याण हेतु अमोघ फल देने वाली बनाया है। फलित ज्योतिष में इस तिथि को विजया तिथि में नाम से जाना जाता है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो और भी पूज्य हो जाती है। माँ शक्ति के आशीर्वाद प्रभावस्वरूप इस तिथि के मध्य किया गया कोई भी कार्य कभी भी निष्फल नहीं होता। इस दिन सभी मांगलिक कार्य, व्यापार आरम्भ, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, जप-तप, पूजा-पाठ, दान-पुण्य अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता। इस दिन किये जाने वाले अनाचार, अत्याचार, दुराचार, धूर्तता आदि के परिणाम से होने वाला पापकर्म फल भी अक्षुण रहता है इसलिए शास्त्र कहते हैं कि जीवात्माओं के लिए यह दिन बहुत सावधानी बरतने का है।अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसलिए ऐसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता।
अक्षय तृतीया कब हैं? । When is Akshaya Tritiya? :-
अक्षय तृतीया इस साल 26 अप्रैल को पड़ रही है। इसे मां लक्ष्मी का दिन भी कहा जाता है। मान्यता है इस विशेष पर्व पर सोना खरीदने से मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। इस दिन दान का भी काफी महत्व बताया जाता है। अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा होती है।
मांगलिक कार्यों के लिये इस तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है। एक ओर जहाँ मांगलिक कार्यों को करने के लिये अक्षर शुभ घड़ी व शुभ मुहूर्त जानने के लिये पंडित जी से सलाह लेनी पड़ती है वहीं अक्षय तृतीया एक ऐसी सर्वसिद्धि देने वाली तिथि मानी जाती है जिसमें किसी भी मुहूर्त को दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस तिथि को अबूझ मुहूर्तों में शामिल किया जाता है।
अक्षय तृतीया :- 26 अप्रैल, रविवार
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त :- 05:48 से 12:19 तक
अवधि :- 06 घंटे 27 मिनट
सोना खरीदने का शुभ समय :- 05:48 से 13:22 तक
तृतीया तिथि प्रारंभ :- 11:51 (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समाप्ति :- 13:22 (26 अप्रैल 2020)
वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न (प्रथमार्ध) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है।यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है, हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे।अक्षय तृतीया दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक माना जाता है।यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है।
[ads id="ads2"]
अक्षय तृतीया की पूजन विधि | Akshaya Tritiya Pooja Vidhi :-
- अक्षय तृतीया के दिन सुबह घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद श्री विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।इसके बाद श्री विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए।
- इस मंत्र से संकल्प करें -
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
- संकल्प करके लक्ष्मी नारायण को पंचामृत से स्नान कराएं।
- लक्ष्मी नारायण को सफेद कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब या पीले गुलाब पुष्पमाला,धूप-अगरबत्ती और चन्दन इत्यादि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥
अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।
- नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहूं या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि अर्पण करें।
- इसके बाद षोडशोपचार विधि-विधान से पूजा करें।
- अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
- अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करें।
- ब्राह्मणों को भोजन करवाने की भी परंपरा है।
- अक्षय तृतीया के दिन दान जरूर करें।ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।मदनरत्न के अनुसार:
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥
- ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।
इस दिन सुख, शांति, सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु शिव-पार्वती और नर-नारायण के पूजन का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रखकर जो प्राणी गंगा-जमुनादि तीर्थों में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार देवस्थल व घर में ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं , उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
तृतीया तिथि मां गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धिवर्धक मानी गई है अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन मां गौरी व संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है।पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूं का सत्तू, कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं।
नोट: अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा, केला, पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं।
माँ लक्ष्मी विशेष पूजन विधि 1 :-
अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विशेष प्रयोग किए जा सकते हैं। इसके तहत लक्ष्मी यंत्र या श्रीयंत्र को चावल की ढेरी पर स्थापित कर उत्तराभिमुख हो कमल गट्टे की माला, गुलाबी आसन तथा नैवेद्य खीर का तथा गुलाब का इत्र, कमल या गुलाब पुष्प से पूजन कर निम्न मंत्र का यथाशक्ति जप करें। पश्चात सभी सामग्री यंत्र को छोड़कर पोटली बनाकर गल्ले-तिजोरी में रख दें।
मां लक्ष्मी का अचूक मंत्र:-
'ॐ श्रीं श्रियै नम:।।'
'ॐ कमल वासिन्यै श्रीं श्रियै नम:।।'
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं श्रियै नम:।।'
अक्षय तृतीया का दिन मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत महत्व रखता है। इस दिन मां लक्ष्मीजी का पूजन करना शुभ फलदायी माना जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि इससे साल भर आर्थिक स्थिति अच्छी बनी रहती है।
माँ लक्ष्मी विशेष पूजन विधि 2 :-
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया यानी अखातीज को सर्वसिद्घ मुहूर्त माना गया है। अत: इस दिन मां लक्ष्मीजी की उपासना शाम के समय उत्तरमुखी होकर लाल आसान पर बैठकर की जाती है।
मां लक्ष्मी का अचूक मंत्र:-
'ॐ अमृत लक्ष्म्यै नम:।।'
ॐ पहिनी पक्षनेत्री पक्षमना लक्ष्मी दाहिनी वाच्छा भूत-प्रेत सर्वशत्रु हारिणी दर्जन मोहिनी रिद्धि सिद्धि कुरु-कुरु-स्वाहा ।।'
ॐ विद्या लक्ष्म्यै नम:।।'
ॐ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:।।'
इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन दान को श्रेष्ठ माना गया है। चूंकि वैशाख मास में सूर्य की तेज धूप और गर्मी चारों ओर रहती है और यह आकुलता को बढ़ाती है तो इस तिथि पर शीतल जल, कलश, चावल, चना, दूध, दही आदि खाद्य पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी होता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार पूजन विधि :-
मत्स्य पुराण के अनुसार इस व्रत को करने के लिए मनुष्य को अक्षत से स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु का अक्षत से अभिषेक करना चाहिए। साथ में जगतगुरु भगवान नारायण की लक्ष्मी सहित गंध, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप नैवैद्य आदि से पूजा भी करनी चाहिए। अगर भगवान विष्णु को गंगा जल और अक्षत से स्नान कराए, तो मनुष्य को राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है और प्राणी सब पापों से मुक्त हो जाता है। पीपल, आम, पाकड़, गूलर, बरगद, आंवला, बेल, जामुन अथवा अन्य फलदार वृक्ष लगाने से प्राणी सभी कष्टों से मुक्त होकर ऐश्वर्य भोगता है। जिस प्रकार 'अक्षयतृतीया' को लगाये गये वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित- पुष्पित होते हैं उसी प्रकार इसदिन वृक्षारोपण करने वाला प्राणी भी प्रगतिपथ की और अग्रसर होता है।
अक्षय तृतीया का महत्व | Akshaya Tritiya Importance or significance :-
यह दिन सभी शुभ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अक्षय तृतीया के दिन विवाह होना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। जिस प्रकार इस दिन पर दिये गए दान का पुण्य कभी खत्म नहीं होता, उसी प्रकार इस दिन होने वाले विवाह में भी पति –पत्नी के बीच प्रेम कभी खत्म नहीं होता। इस दिन विवाह करने वाले जन्मों जन्मों तक साथ निभाते हैं।
विवाह के अलावा सभी मांगलिक कार्य जैसे, उपनयन संस्कार, घर आदि का उद्घाटन, नया व्यापार डालना, नए प्रोजेक्ट शुरू करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन कई लोग सोना तथा गहने खरीदना भी शुभ मानते हैं। इस दिन व्यापार आदि शुरू करने से मनुष्य को हमेशा तरक्की मिलती है, तथ उसके भाग्य में दिनों दिन शुभ फल की बढ़ोत्तरी होती है।
अक्षय तृतीया तिथि का महत्व समझाते हुए माता पार्वती कहती है कि यदि कोई भी स्त्री सब प्रकार का सुख चाहती है तो उसे यह व्रत करते हुए किसी भी प्रकार का सेंधा आदि व्रती नमक भी नहीं खाना चाहिए। स्वयं माता ने धर्मराज को समझाते हुए कहा है, कि यही व्रत करके मै भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूं। कन्याओं को भी उत्तम पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए।
जिनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो वे भी इस व्रत को करके संतान सुख ले सकती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से प्राणियों की संताने अक्षय रहती है और उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती।
देवी इंद्राणी ने यही व्रत करके जयंत नामक पुत्र प्राप्त किया। देवी अरुंधती ने यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ट के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकी थीं। महाराज दक्ष की पुत्री रोहिणी ने यही व्रत करके अपने पति चन्द्र की सबसे प्रिय रहीं, उन्होंने बिना नमक खाए यह व्रत किया था। इस दिन किया गया पाप भी कभी भी नष्ट नहीं होता और हर जन्म में जीव का पीछा करता रहता है।
अक्षय तृतीया क्यूँ मनाई जाती है? | Akshaya Tritiya meaning or why we celebrated ?:-
अक्षय तृतीया एक बहुत ही लोकप्रिय त्योहार है जिसे हिंदू और जैन हर साल मनाते हैं। इसे हिंदू समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है ।इसके पीछे कुछ मान्यताएँ हैं जिसे हम नीचे बताने जा रहे हैं :-
हिन्दू धर्म में अक्षय-तृतीया की मान्यताएँ | Beliefs of Akshaya-Tritiya in Hinduism :-
अखाती तीज के पीछे कई हिन्दू मान्यताएँ हैं। कुछ इसे भगवान विष्णु के जन्म से जोड़ती हैं, तो कुछ इसे भगवान कृष्ण की लीला से। सभी मान्यताएँ आस्था से जुड़ी होने के साथ-साथ बहुत रोचक भी हैं।
1. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार यह दिन भगवान श्री विष्णुजी को समर्पित है।इस दिन भगवान विष्णु श्री परशुराम के रूप में धरती पर छटवीं बार अवतरित हुए थे , इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।विष्णुजी त्रेतायुग एवं द्वापरयुग तक पृथ्वी पर चिरंजीवी (अमर) रहे। परशुराम सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदगनी तथा रेणुका के पुत्र थे। यह ब्राह्मण कुल में जन्मे और इसीलिए अक्षय तृतीया तथा परशुराम जयंती को सभी हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
2. दूसरी मान्यता के अनुसार त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई। गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे। इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है। इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।इस बार जहां तक स्नान की बात है तो आप अपने घर पर ही पानी में गंगा जल या स्वर्णजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
- अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर तांबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर भगवान सूर्य को पूर्व की ओर मुख करके चढ़ाएं और इस मंत्र का जप करें- ॐ भास्कराय विग्रहे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्
- अक्षय तृतीया से प्रत्येक दिन इस प्रक्रिया को दोहराएं।मान्यता है कि ऐसा करने से आपका भाग्य चमक उठेगा। यदि यह उपाय सूर्योदय के एक घंटे के भीतर 7 बार किया जाए तो और भी शीघ्र फल देता है।
3. यह दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है। अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।
4. दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है। उनके अनुसार इस दिन भगवान कुबेर (भगवान के दरबार का खजांची) ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था। कुबेरजी की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेरजी से वर मांगने को कहा। कुबेरजी ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा। तभी भगवान शंकर ने कुबेरजी को माता लक्ष्मी के पूजन करने की सलाह दी। इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं, इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ – साथ कुबेर का भी चित्र रहता है।
5. अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ किया था । इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था। इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे। इसी मान्यता के आधार पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है, अर्थात इस दिन मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता। यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढ़ाता है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18 वें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
6. महाभारत में अक्षय तृतीया की एक और कथा प्रचलित है। इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था।
7. अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है। जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे। सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये। परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होंने मित्र सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उन्हें सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया। तब से अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व बढ़ गया।
8. भारत के उड़ीसा में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन से ही यहाँ के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं। इस दिन उड़ीसा के जगन्नाथपूरी से रथयात्रा भी निकाली जाती है।
9. अलग अलग प्रांत में इस दिन का अपना अलग ही महत्व है। बंगाल में इस दिन गणेशजी तथा लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी द्वारा अपनी लेखा जोखा (ऑडिट बूक) की किताब शुरू करने की प्रथा है। इसे यहाँ “हलखता” कहते हैं।
10. पंजाब में भी इस दिन का बहुत महत्व है। इस दिन को नए मौसम के आगाज का सूचक माना जाता है। इस अक्षय तृतीया के दिन जाट परिवार का पुरुष सदस्य ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाते हैं। उस रास्ते में जितने अधिक जानवर एवं पक्षी मिलते हैं, उतना ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन माना जाता है।
जैन धर्म में अक्षय-तृतीया की मान्यताएँ | Beliefs of Akshaya-Tritiya in Jainism:-
अक्षय-तृतीया जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया। सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को “पूर्व-भाव-स्मरण” (पिछले जन्म के विचार जानने की शक्ति) से पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया।
भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग ४०० दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से संबोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन १३ मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है।
भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुँच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्त्वपूर्ण है, वहीं आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है।
संस्कृति में अक्षय तृतीया | Akshaya Tritiya in Culture:-
इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है।
कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं।
विभिन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया | Akshaya Tritiya in different provinces:-
- बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं।
- अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है।
- मालवा में नए घड़े के ऊपर खरबूज और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है।
क्या दान देना चाहिए / अक्षय तृतीया के उपाय | Akshaya Tritiya Upay:-
वैसे तो अच्छी नियत से दी गयी हर वस्तु के दान का पुण्य लगता है।परन्तु अक्षय तृतीया के दिन यह 14 दान सबसे महत्वपूर्ण है :
1. गौ, 2. भूमि, 3 . तिल, 4. स्वर्ण, 5 . घी, 6. वस्त्र, 7. धान्य, 8. गुड़, 9. चांदी, 10. नमक, 11. शहद, 12. मटकी, 13 खरबूजा और 14. कन्या
अगली तृतीया तक इस दान के चमत्कार को आप स्वयं महसूस करेंगे। सुख, खुशी, प्रसन्नता, वैभव, शांति, स्नेह, पराक्रम, यश, सौभाग्य में आश्चर्यजनक श्रीवृद्धि होगी।
इस दिन छोटे से छोटे दान का भी बहुत महत्व है। एक दिलचस्प मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान देने का भी महत्व है। इस दिन कई लोग पंखे, कूलर आदि का दान करते हैं। दरअसल इसके पीछे यह धारणा है की यह पर्व गर्मी के दिनों में आता है, और इसलिए गर्मी से बचने के उपकरण दान में देने से लोगों का भला होगा और दान देने वालों को पुण्य मिलेगा।
नोट :- इस बार कोरोना के चलते शायद घर से निकलना मुश्किल हो ऐसे में आप दान की वस्तुएं चाहें तो किसी के नाम पर निकाल कर घर में ही रख सकते हैं। और जब कोरोना के लॉकडाउन को हटाया जाए तब उनका दान कर सकते हैं, लेकिन इसमें एक बात का खास ध्यान रखें आपने जो भी चीज दान के लिए निकाली है, उसका किसी भी स्थिति में न तो स्वयं उपयोग करें, न ही इसे किसी अन्य कार्य में लगाएं। यानि उसे दान के लिए ही संभाल कर रखें।
विष्णुपद मंदिर , का १८९५ की दुर्लभ छवि ! |
गया बिहार के महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में से एक है। यह शहर खासकर हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए काफी मशहूर है। यहाँ का 'विष्णुपद मंदिर' पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। दंतकथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। हिन्दू धर्म में इस मंदिर को अहम स्थान प्राप्त है। गया पितृदान के लिए भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहाँ फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। आधुनिक काल में भी सभी धार्मिक हिन्दुओं की दृष्टि में गया का विलक्षण महत्त्व है। इसके इतिहास प्राचीनता, पुरातत्त्व-सम्बन्धी अवशेषों, इसके चतुर्दिक पवित्र स्थलों, इसमें किये जाने वाले श्राद्ध-कर्मों तथा गया वालों के विषय में बहुत-से मतों का उद्घोष किया गया है। गया के विषय में सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है 'गयामाहात्मय'। विद्वानों ने गयामाहात्मय के अध्यायों की प्राचीनता पर सन्देह प्रकट किया है। विष्णुधर्मसूत्र ने श्राद्ध योग्य जिन 55 तीर्थों के नाम दिये हैं, उनमें गया-सम्बन्धी तीर्थ हैं- गयाशीर्ष, अक्षयवट, फल्गु, उत्तर मानस, मतंग-वापी, विष्णुपद। गया में व्यक्ति जो कुछ दान करता है उससे अक्षय फल मिलता है। अत्रि-स्मृति (55-58) में पितरों के लिए गया जाना, फल्गु-स्नान करना पितृतर्पण करना, गया में गदाधर (विष्णु) एवं गयाशीर्ष का दर्शन करना वर्णित है। शंख ने भी गयातीर्थ में किये गये श्राद्ध से उत्पन्न अक्षय फल का उल्लेख किया है।
अक्षय तृतीया की कथा एवं उसको सुनने का महत्व | Akshaya tritiya katha or Story:-
अक्षय तृतीया का महत्व युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था। तब श्रीकृष्ण बोले, 'राजन! यह तिथि परम पुण्यमयी है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।जो भी इस कथा को सुनता है, विधि से पूजन एवं दान आदि करता है, उसे सभी प्रकार के सुख, संपत्ति, धन, यश, वैभव की प्राप्ति होती है।इसी धन एवं यश की प्राप्ति के लिए वैश्य समाज के धर्मदास नामक व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का महत्त्व जाना। इस पर्व से जुड़ी प्रचलित कथा इस प्रकार है−
बहुत पुरानी बात है, धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण– पोषण के लिए चिंतित रहता था। उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था। एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने का सोचा। अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर उसने गंगा में स्नान किया। फिर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना एवं आरती की। इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की। यह सब दान देख कर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की । उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन –पोषण कैसे होगा। फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया। उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया। बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी।
इस जन्म के पुण्य प्रभाव से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। कुशावती राजा बहुत ही प्रतापी थे। उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख, धन, सोना, हीरे, जवाहरात, संपत्ति की किसी भी प्रकार से कमी नहीं थी। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभाव से राजा को वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई, लेकिन वे कभी लालच के वश नहीं हुए एवं अपने सत्कर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए। उन्हें उनके अक्षय तृतीया का पुण्य सदा मिलता रहा।
जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया के दिन पितरों का तर्पण करें :-
इस तिथि को सूर्य और बुध का मेल होता है। कहा जाता है कि इस दिन सभी ग्रह ठीक स्थिति में रहते हैं। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष की स्थिति बनी हुई है उनके लिए इस दिन पिन्डदान करना फलदायी माना गया है। इस दिन पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।पुराणों में लिखा है कि अक्षय तृतीया के दिन पितरों का तर्पण तथा पिन्डदान के साथ दान, अक्षय फल प्रदान करना शुभ होता है। इस दिन गंगा स्नान करने से भगवत पूजन से समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस दिन किया गया तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। ये तिथि रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल भी अधिक बढ़ जाता है।
जाने-अनजाने अपराधों के लिए इस दिन ईश्वर से क्षमा मांगे:-
इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगने की परंपरा भी है।
अक्षय तृतीया की खास बातें संक्षिप्त में :-
- भविष्य पुराण के अनुसार, इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है; चार युगों की शुरुआत अक्षय तृतीया से मानी गई है। इसी दिन से सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ बताया जाता है।
- देश के पवित्र तीर्थस्थल बद्रीनाथ के कपाट भी अक्षय तृतीया वाली तिथि से ही खोले जाते हैं।
- अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम की जन्मतिथि माना गया है।परशुराम का जन्म होनेके कारण इसे “परशुराम तीज” भी कहा जाता है।
- अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण हुआ था।
- वेद व्यास और श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ के लेखन का प्रारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही माना जाता है।
- अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।
- अक्षय तृतीया के दिन ही द्वापर युग का समापन माना गया है।
- मां गंगा का पृथ्वी पर आगमन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
- ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव अर्थार्त उदीयमान भी अक्षय तृतीया से ही जुड़ा है।
- वृंदावन के श्री बांकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढंके रहते हैं।
- अक्षय तृतीया के दिन 41 घटी 21 पल होती है।
- धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए।
अक्षय तृतीया : ये उपाय आपको हर संकट से बचाएंगे | Akshaya Tritiya: These measures will protect you from every crisis
- अक्षय तृतीया के दिन सोने चांदी की चीजें खरीदी जाती हैं। इससे बरकत आती है। अगर आप भी बरकत चाहते हैं इस दिन सोने या चांदी के लक्ष्मी की चरण पादुका लाकर घर में रखें और इसकी नियमित पूजा करें। क्योंकि जहां लक्ष्मी के चरण पड़ते हैं वहां अभाव नहीं रहता है।
- अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखे इसमें देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने की क्षमता होती है। इनका प्रयोग तंत्र मंत्र में भी होता है। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां समुद्र से उत्पन्न हुई हैं।
- अक्षय तृतीया के दिन केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियों में लाभ मिलता है।
- अक्षय तृतीया के दिन घर में पूजा स्थान में एकाक्षी नारियल स्थापित करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
- इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए जल कलश, पंखा, खड़ाऊं, छाता, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा आदि फल, शक्कर, घी आदि ब्राह्मण को दान करने चाहिए इससे पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फल देने वाला बताया गया है।
Post a Comment