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बिहार का नाम आते ही सामने आ जाता है विविधताओं से भरा राज्य।बिहार की संस्कृति बहुत रोचक है, विविधताओं से भरे हमारे बिहार का हर रंग निराला है। यहाँ की संस्कृति दुनिया की तमाम संस्कृतियों में सबसे ज्यादा उन्नत है। यहाँ की हर एक बात निराली है। यहाँ की संस्कृति, यहाँ के सभी धर्मं, खान-पान, रहन-सहन, लेकिन जो सबसे ज्यादा अलग है, वो है बिहार में मनाये जाने वाले त्यौहार उत्सव या पर्व और इन उत्सवों और त्योहारों पर किये जाने वाले बिहार के लोक नृत्य, जो बिहार की संस्कृति को और अधिक रोचक बनाते है।
महात्मा बुद्ध का स्वागत करती हुई आम्रपाली |
बिहार में नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है।प्राचीन बिहार में महात्मा बुद्ध के काल से राजगीर एवं वैशाली जैसे नगरों में गायिकाओं तथा नर्तकियों की उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं । इन्हें " नगर शोबिनी " भी कहा जाता था । वैशाली की राजनर्तकी आम्रपाली द्वारा महात्मा बुद्ध से दीक्षा लेने का प्रमाण स्रोतों से मिलता है ।
बिहार के जनमानस में लोकनृत्य का एक अपना ही महत्व है। यहाँ लोक संगीत एवं नृत्य के अनेक रूप प्रचलित हैं जिनका सम्बन्ध दैनिक जीवन के विभिन्न क्रिया कलाप से है विवाहोत्सव हो अथवा अन्य मांगलिक अवसर या मनोरंजन लोकनृत्यों का आकर्षण देखते ही बनता है ।
बिहार के लोकनृत्यों में उत्तरी बिहार के विदेह क्षेत्र में रामलीला नाच, भगत नाच, कृतनिया नाच आदि लोकनृत्य उल्लेखनीय है, जो महत्वपूर्ण काव्य रचनाओं पर आधारित धार्मिक महत्व के हैं ।पारिवारिक उत्सवों पर डोमकक्ष नृत्य किया जाता है, जिसमे गायन और नृत्य का साथ साथ प्रयोग होता है ।
लोकनृत्यों से आपसी सौहार्द और एकता का भाव भी जागृत होता है।तो आइये जानते हैं बिहार राज्य के लोकनृत्य के बारे में :-
छऊ नृत्य :-
यह लोकनृत्य युद्ध भूमि से संबंधित है, जिसमें नृत्य शारीरिक भाव भंगिमाओं, ओजस्वी स्वरों तथा पगों का धीमी-तीव्र गति द्वारा संचालन होता है। इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं – प्रथम ‘हतियार श्रेणी’ जिसमें वीर रस की प्रधानता है और दूसरी ‘कालाभंग श्रेणी’ जिसमें श्रृंगार रस को प्रमुखता दी जाती है।यह नृत्य बिहार तथा झारखंड दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं। इस लोकनृत्य में मुख्यतः पुरुष नृत्यक ही भाग लेते हैं।
कठघोड़वा नृत्य :-
यह बिहार तथा झारखंड दोनों में समान रूप से प्रसिद्ध है। इस नृत्य में लकड़ी तथा बांस की खपच्चियों द्वारा निर्मित तथा रंग-बिरंगे वस्त्रों के द्वारा सुसज्जित घोड़े के साथ नर्तक लोक वाद्यों के साथ नृत्य करता है।
करमा नृत्य :-
यह बिहार राज्य के जनजातियों द्वारा फसलों की कटाई-बुवाई के समय ‘कर्म देवता’ के समक्ष किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। इसमें पुरुष एवं महिला एक-दुसरे की कमर में हाथ डालकर श्रापूर्वक नृत्य करते हैं।
झिझिया नृत्य:-
यह नृत्य दुर्गापूजा के अवसर पर स्त्रियों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में स्त्रियाँ गोल घेरे में खड़ी होकर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करती हैं तथा मुख्य नर्तकी के सिर पर एक घड़ा होता है, जिसके ढक्कन पर एक दीप जल रहा होता है। यह नृत्य राजा चित्रसेन तथा उनकी रानी की कथा-प्रसंगों पर आधारित हैं।
विद्यापत नृत्य:-
पूर्णिया क्षेत्र के इस प्रमुख लोकनृत्य में मिथिला के महान कवि विद्यापति के पदों को गाते हुए तथा पदों में वर्णित भावों को प्रस्तुत करते हुए नर्तकों द्वारा सामूहिक रूप से नृत्य किया जाता है।
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धोबिया नृत्य :-
धोबिया नृत्य बिहार के भोजपुर क्षेत्र के धोबी समाज का जातिगत नृत्य हैं, जो कि उनके द्वारा विवाह तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर सामूहिक रूप से किया जाता है।
पंवडिया नृत्य:-
यह नृत्य जन्मोत्सव आदि के अवसर पर पुरुषों द्वारा स्त्रियों की वेशभूषा में किया जाता हैं। जिसमें पुरुष स्त्रियों की घाघरा-चोली पहनकर और श्रृंगार करके हाथों में ढोल-झाँझ, मॅजीरे और खेलौना गीत गाते हुए आकर्षक नृत्य करते हैं।
जोगीड़ा नृत्य :-
यह नृत्य होली के पर्व पर किया जाता है। जिसमें ग्रामीण युवक-युवतियों एक-दूसरे को रंग ,अबीर-गुलाल लगाकर होली के गीत (फाग) को गाते हुए नृत्य करते हैं।
झरनी नृत्य:-
यह नृत्य बिहार के मुस्लिम समाज द्वारा मुहर्रम के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता हैं। जिसमें शोकगीतों के साथ नृत्य द्वारा अपने दु:ख को व्यक्त किया जाता है।
करिया झूमर नृत्य :-
यह एक महिला प्रधान नृत्य है जो, त्योहारों और मांगलिक अवसरों पर सामूहिक रूप से किया जाता हैं।इस नृत्य में महिलाएं हाथों में हाथ डालकर घूम-घूमकर नाचती गाती हैं।
खोलडिन नृत्य :-
यह एक आतिथ्य नृत्य हैं , जो विवाह अथवा अन्य मांगलिक अवसरों पर आमंत्रित अतिथियों के समक्ष मात्र उनके मनोरंजन हेतु व्यावसायिक महिलाओं द्वारा किया जाता है।
बगुलो नृत्य :-
उत्तर बिहार में बगुलो नृत्य बड़ा ही प्रचलित है। इसमें ससुराल से रूठकर जानेवाली एक स्त्री का राह चलते एक दूसरी स्त्री के साथ नोंक-झोंक का बड़ा ही सजीव चित्रण किया जाता है।
गंगिया नृत्य:-
गंगा बिहार की प्रमुख ही नहीं, अपितु पतित पावनी भी कहलाती है। इसके स्नान से मानवों का समस्त पाप धुल जाता है। गंगा स्तुति महिलाओं के द्वारा नृत्य के माध्यम से की जाती है जिसे गंगिया नृत्य की संज्ञा दी गयी है।
मांझी नृत्य :-
नदियों में नाविकों द्वारा यह गीत नृत्य मुद्रा में गाया जाता है।
घो-घो रानी नृत्य :-
छोटे-छोटे बच्चों का खेल, जिसे लोक शैली में घो-घो रानी कहा जाता है। इस नृत्य में एक लड़की बीच में रहती है तथा चारों तरफ से बाकी लड़कियां गोल घेरा बनाकर गीत गाती हैं और घूमती हैं।
गोंडिन नृत्य:-
इसमें मछली बेचने वाली तथा ग्राहकों का स्वांग किया जाता है।
लौढ़ियारी नृत्य:-
इसमें नायक, जो एक किसान होता है, अपने बथान (गाय-भैंस बांधने की जगह) पर भाव-भंगिमाओं के साथ गाता और नाचता है।
धन-कटनी नृत्य :-
फसल कट जाने के बाद किसान सपरिवार खुशियां मनाता हुआ गाता और नृत्य करता है। जो धनकटनी नाच के नाम से प्रसिद्ध हो गया है।
बोलबै नृत्य :-
यह नृत्य बिहार के भागलपुर तथा उसके आस-पास के इलाकों में प्रचलित रहा है, जिसमे महिलायें पति के परदेश जाते समय का चित्रण करती हैं।
घांटो नृत्य :-
अतिथि देवता होता है, परंतु जब घर में कुछ खाने का न हो तब अतिथि क्या होता है ? यह तो शायद सभी जानते हैं। इस नृत्य में ससुराल में रह रही गरीब बहन को जब भाई के आने की सूचना मिलती है तो वह काफी खुश हो जाती है लेकिन खाने का आभाव उसे परेशान कर देता है। सत्कार कि चिंता में विरह गीत गाया जाता है तथा बेचैनी भरा थोड़ा नृत्य भी होता है।
इन्नी-विन्नी नृत्य :-
यह अंगिका का प्रमुख नृत्य है। इसमें पति-पत्नी प्रसंग पर महिलाएं नृत्य करती हैं।
देवहर नृत्य:-
देवहर देवी-देवता का प्रतिनिधित्व करता हुआ गीत एवं नृत्य है। यह संपूर्ण बिहार तथा झारखंड में प्रचलित हैं। कहीं-कहीं यह नृत्य "भगता नाच" के नाम से भी प्रसिद्ध है।
कजरी नृत्य :-
कजरी सावन के महीने में गाई और खेली जाने वाली नृत्य नाटिका है।। जो सावन के सुहावने मौसम को और भी सुहावना बना देता है।
बसंती नृत्य :-
यह पतझड़ के बाद बसंत ऋतु के आगमन पर प्रायः महिलाओं द्वारा गीत के साथ किया जाने वाला नृत्य है।
होरी नृत्य:-
बसंत के आगमन पर गाया जाता है होरी। यह गीत और नृत्य होली के दिन अपने चरम पर होता है।
सामा-चकेबा नृत्य:-
यह नृत्य मिथिला का एक प्रमुख नृत्य है। इसमें औरतें एवं लड़कियां अपने भाइयों के हित के लिए इसे कार्तिक मास में करता हैं।
जाट-जतिन नृत्य:-
मिथिला और कोशी क्षेत्र में जाट-जतिन उत्तर बिहार का सबसे लोकप्रिय लोक नृत्य है, जिसे युगल नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य कई सामाजिक रूप से संबंधित विषयों जैसे गरीबी, प्रेम, दुःख, तर्क आदि को प्रस्तुत करता है। इस नृत्य का मूल विषय जाट और जतिन की प्रेम कहानी से उत्पन्न हुआ है।
लौंडा नृत्य :-
भोजपुर क्षेत्र में अधिक प्रचलित इस नृत्य में लड़का रंग-बिरंगे वस्त्रों एवं श्रृंगार के माध्यम से लड़की का रूप धारण कर नृत्य करता है।
पाइका नृत्य :-
पाइका नृत्य बिहार का एक प्रसिद्ध नृत्य है। नृत्य प्रदर्शन का मूल उद्देश्य नृत्य करने वाले योद्धाओं की शारीरिक उत्तेजना और साहसी गतिविधियों का विकास था। यह नृत्य ढाल और तलवार के साथ किया जाता है।
डोमकक्ष नृत्य :-
बिहार में शादी-ब्याह के अवसर पर महिलाएं डोमकक्ष का नृत्य करती हैं। जब बारात दुल्हन के घर की तरफ रवाना हो चुकी होती है और घर पर सिर्फ महिलाएं हीं रह जाती हैं तो वे लोग पुरुषों का वेश बनाकर नृत्य नाटिका करती हैं।
नारदी नृत्य :-
यह एक कीर्तनिया नाच है। इसमें परंपरागत साज मृदंग एवं झाल का प्रयोग किया जाता है। कीर्तनकार इस नृत्य के दौरान विभिन्न प्रकार के स्वांग किया करते हैं।
इसके अलावा बिहार की लोक-संस्कृति में लगुई नृत्य शैली भी अभिन्न रूप से जुडी हुई है।
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