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माँ का प्रथमरूप 'शैलपुत्री'
त्रिशूल और कमलधारिणी
पूर्व जन्म में जो थी सती
वही बनी माँ वृषभवाहिनी
विध्वंश किया था स्वयं को
सह न सकी प्रभु शिव अपमान
वही सती हैं देवी हिमपुत्री
माँ मैना और पिता हिमवान।
दूसरे रूप में 'माँ ब्रह्मचारिणी'
परम तपस्विनी माँ अपर्णा
शिव पति रूप में मिल जाए
स्वीकर किया वन में तप करना
जप माला कमंडलु से शोभित
है ज्योतिर्मय इनका दिव्य रूप
तप त्याग वैराग्य सदाचार सब
बढ़ाए मन में माँ का ये स्वरूप।
तीसरी शक्ति नाम 'चंद्रघंटा'
शांतिदायक कल्याणकारी
माथे पे अर्द्धचंद्र की शोभा
घंटे की ध्वनि है विघ्नहारी
दस भुजा खड्ग आदि भरे
अत्याचारी माँ से काँपे डरे
अपने उपासकों के भीतर
माँ निर्भयता का संचार करे।
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चौथा शरीर माँ का 'कूष्मांडा'
देवी आदिस्वरूपा आदिशक्ति
रोग शोक नाश यश बल वर्धन
करे उपासकों में माँ की भक्ति
कमंडलु धनुष बाण कमल
कलश चक्र गदा जप माला
अष्ट भुजाओं में सुशोभित है
माँ का मुख साक्षात उजाला
गोद में बिठाए निज पुत्र स्कन्द।
पाँचवा रूप माँ का स्कन्दमाता
तेज़ कांति मोक्ष भी मिल जाए
जो भी माँ को हृदय से ध्याता
पद्मासना सिंहवाहिनी चतुर्भुजा
बुद्धिदायिनी नवचेतना संचारिनी
अलौकिक अद्भूत तेज़ से युक्त
शुभदा स्वरूप भवसागर तारिनी।
'कात्यायिनी' छठा स्वरूप माँ का
कात्यायन ऋषि की हुई थी सुता
महिषासुरमर्दिनी समस्त पापनाशिनी
अमोघ फलदायिनी कृपालु माता
सिंह सवारिनी व्रजमंडल की देवी
कृष्ण प्रिया गोपियों द्वारा पूजित
स्वर्ण स्वरूप उज्जल रूप माँ का
चारों भुजायीं कमलादि से शोभित।
सातवाँ रूप है माँ का 'कालरात्रि'
महाकाली चण्डी नाम से विख्यात
काला रंग बिखरे बाल रूप भयंकर
दुष्टों के हृदय में भय रूप से व्याप्त
विद्युत सी चमकती है माला इनकी
खड्ग संग गर्दभ पे माँ करे सवारी
ब्रह्मांड सदृश है तीन विशाल नेत्र
भक्तों के लिए शुभंकरी शुभकारी।
आठवीं शक्ति का नाम 'महागौरी'
ग़ौर वर्ण औ श्वेत वस्त्र आभूषण
अष्ट वर्ष आयु और है शांत मुद्रा
करे भक्तों में कल्याण का पोषण
गंगाजल से स्वयं शिव ने है धोया
तप से काली हुई इनकी काया को
प्रसन्न हो स्वीकार किया शिव ने
साक्षात चतुर्भुजा देवी महामाया को।
नौवाँ रूप माँ का है 'सिद्धिदात्रि'
कृपा से शिव हुए अर्धनारीश्वर
इस देवी से तो लेते हैं सिद्धियाँ
कैलशपती शिव शम्भु महेश्वर
चतुर्भुजा सिंहवाहिनी कमलासना
अष्ट सिद्धियों की दात्री माता
निष्ठा से जो करे उपासना वो
हर कल्मश से मुक्त हो जाता।
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