राम नवमी 2020 : रामायण से जुड़े रहस्य जिनसे ज्यादातर लोग हैं अनजान !




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हिंदू धर्म में भगवान राम(shri ram) को सबसे बड़े भगवान के रूप में माना जाता है।मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के प्रभावशाली चरित्र पर कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे गए हैं। लेकिन मुख्यतः दो ग्रंथ प्रमुख हैं। जिनमें पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा 'रामायण' (valmiki ramayana), इस पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड, तथा 7 कांड है।तो दूसरा है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा 'श्री रामचरित मानस' (ramcharitmanas ramayan)। इनमें महर्षि वाल्मीकि की रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।इन ग्रंथों में बहुत सी बातें लिखी गई हैं।लेकिन श्रीराम के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं जिनका विवरण श्रीरामचरितमानस या अन्य रामायण में नहीं है। इनका विस्तृत विवरण केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है।आज हम आपको रामायण(ramayana facts) से जुड़ी ऐसी बातें बताएंगे जो बहुत कम लोग जानते हैं(facts about ramayana):-



1. रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है।गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं। रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है। यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है। गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लिखित किया गया है।

2. रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3. राम और उनके भाइयों के अलावा राजा दशरथ एक पुत्री के भी पिता थे:-


श्रीराम के माता-पिता एवं भाइयों के बारे में तो प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम “शांता” था । वे आयु में चारों भाईयों से काफी बड़ी थीं। उनकी माता कौशल्या थीं। ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए। उनको कोई संतान नहीं थी। बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं अपनी बेटी शांता आपको संतान के रूप में दूंगा। यह सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुए। उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए।

एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे, उसी समय द्वार पर एक ब्राह्मण आए और उन्होंने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में राज दरबार की ओर से मदद प्रदान करें । राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वे पुत्री के साथ बातचीत करते रहे। द्वार पर आए नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वे राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए। वह ब्राह्मण इन्द्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इन्द्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की। इससे खेतों में खड़ी फसलें मुरझाने लगी।



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इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद ऋष्यशृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि वे इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए। इसके बाद ऋष्यशृंग ऋषि का विवाह शांता से हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे। बाद में ऋष्यशृंग ने ही दशरथ की पुत्र कामना के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाया था, वह अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में था और वहाँ आज भी उनका आश्रम है और उनकी तथा उनकी पत्नी की समाधियाँ हैं ।



4. रामायण में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है। वहीं भरत और शत्रुघ्न को भगवान विष्णु के सुदर्शन-चक्र और शंख-शैल का अवतार माना जाता हैl

5. हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।


6. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे, तब विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।वहीं रामचरित मानस में सीता के स्वंयवर के बारे में विस्तार से बताया गया है।स्वंयवर के दौरान भगवान शिव के धनुष का इस्तेमाल किया गया था, जिस पर सभी राजकुमारों को प्रत्यंचा चढ़ाना थाl उस धनुष का नाम “पिनाक” था ।


7. लक्ष्मण को “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता है:-

ऐसा माना जाता है कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान अपने भाई और भाभी की रक्षा करने के उद्देश्य से लक्ष्मण कभी सोते नहीं थे। इसके कारण उन्हें “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता है। वनवास की पहली रात को जब राम और सीता सो रहे थे तो निद्रा देवी लक्ष्मण के सामने प्रकट हुईं।उस समय लक्ष्मण ने निद्रा देवी से अनुरोध किया कि उन्हें ऐसा वरदान दें कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान उन्हें नींद ना आए और वह अपने प्रिय भाई और भाभी की रक्षा कर सके। निद्रा देवी इस बात पर प्रसन्न होकर बोली कि अगर कोई तुम्हारे बदले 14 वर्षों तक सोए तो तुम्हें यह वरदान प्राप्त हो सकता है। इसके बाद लक्ष्मण की सलाह पर निद्रा देवी लक्ष्मण की पत्नी और सीता की बहन “उर्मिला” के पास पहुंची। उर्मिला ने लक्ष्मण के बदले सोना स्वीकार कर लिया और पूरे 14 वर्षों तक सोती रही

8. विश्वविजय के दरम्यान जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। रावण ने उसे पकड़ लिया। तब रंभा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।



9. जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह तक कह दिया था कि हे राम तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।राम, सीता और लक्ष्मण ने दंडकारण्य नाम के वन अपना वनवास बिताया था। यह वन लगभग 35,600 वर्ग मील में फैला हुआ था।जिसमें वर्तमान छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे।उस समय यह वन सबसे भयंकर राक्षसों का घर माना जाता था।इसलिए इसका नाम दंडकारण्य था जहाँ “दंड” का अर्थ “सजा देना” और “अरण्य” का अर्थ “वन” है।

10. प्रभु राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का शाप दिया था। दरअसल शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को शाप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

11. जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।



12. सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

13. जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का प्रभु राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक शाप के कारण राक्षस बन गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि में समर्पित किया तो वह शाप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

14. रामायण में बताया गया है कि रावण को मारने लंका जाते समय रास्‍ते में आए समुद्र को पार करने के लिए भगवान राम ने एकादशी का व्रत किया था।



15. जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

16. इन्द्र के ईर्ष्यालु होने के कारण “कुम्भकर्ण” को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था :-

रामायण में एक दिलचस्प कहानी हमेशा सोने वाले “कुम्भकर्ण” की है। कुम्भकर्ण, रावण का छोटा भाई था, जिसका शरीर बहुत ही विकराल था। इसके अलावा वह पेटू (बहुत अधिक खाने वाला) भी था। रामायण में वर्णित है कि कुम्भकर्ण लगातार छह महीनों तक सोता रहता था और फिर सिर्फ एक दिन खाने के लिए उठता था और पुनः छह महीनों तक सोता रहता था।

लेकिन क्या आपको पता है कि कुम्भकर्ण को सोने की आदत कैसे लगी थील।एक बार एक यज्ञ की समाप्ति पर प्रजापति ब्रह्मा कुन्भकर्ण के सामने प्रकट हुए और उन्होंने कुम्भकर्ण से वरदान मांगने को कहा। इन्द्र को इस बात से डर लगा कि कहीं कुम्भकर्ण वरदान में इन्द्रासन न मांग ले, अतः उन्होंने देवी सरस्वती से अनुरोध किया कि वह कुम्भकर्ण की जिह्वा पर बैठ जाएं जिससे वह “इन्द्रासन” के बदले “निद्रासन” मांग ले।इस प्रकार इन्द्र की ईर्ष्या की वजह से कुम्भकर्ण को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था।

17. आखिर क्यों राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया:-

रामायण में वर्णित है कि श्री राम ने न चाहते हुए भी जान से प्यारे अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था। आखिर क्यों भगवान राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था? यह घटना उस वक्त की है जब श्री राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट आये थे और अयोध्या के राजा बन गए थे। एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने के लिए श्री राम के पास आते हैं। चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व उन्होंने भगवान राम से कहा की आप मुझे वचन दें कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप होगी हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसे आप मृत्युदंड देंगें। इसके बाद राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते हैं कि जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा वह उसे मृत्युदंड दे देंगे।

लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते हैं। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतने के बाद वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है।जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही।लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगरवासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें और उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।

अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था। इस दुविधा की स्थिति में श्री राम ने अपने गुरू वशिष्ठ का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरूदेव ने कहा कि अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो। लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है की मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली।



18. राम ने सरयू नदी में डूबकी लगाकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था :-

ऐसा माना जाता है कि जब सीता ने पृथ्वी के अन्दर समाहित होकर अपने शरीर का परित्याग कर दिया तो उसके बाद राम ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था।



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