हमने पिछले पोस्ट में बताया था की आयुर्वेद के अनुसार किसी व्यक्ति में होने वाले सभी रोगों का प्रमुख कारण वात, पित्त और कफ होता है तथा इनमें से सबसे मुख्य और बड़ा कारण “वात” को माना गया है अर्थात वायु | इस लेख में हम वात असंतुलित होने पर क्या लक्षण उभरते है , वात प्रधान व्यक्तियों की सेहत कैसी होती है तथा वात को संतुलित करने के क्या उपाय हैं यह जानेगें।
त्रिदोषों की प्रमुखता किसी व्यक्ति की प्रकृति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है जैसे – लाल ऑंखें पित्त के कारण होती है, आँखों की सफेदी कफ के कारण और सूखापन वात के कारण। इन लक्षणों में से किसी एक की मौजूदगी के आधार पर यह निर्धारित किया जाता है की व्यक्ति किस दोष के ज्यादा प्रभाव में है।
वात प्रकृति वाले व्यक्ति के कारण, लक्षण और पहचान :-
अब हम उन कारणों के बारे में जानेंगे जिनसे वात-विकार उत्पन्न होता है, ताकि वातग्रस्त लोग उनसे बच सकें।
वात विकार उत्पन्न होने के कारण :-
- उपवास, देर से भोजन करना और भूखे रहना वात दोष के कार्यों में बाधक है।
- रात्रि में देर तक जागना, ठंडी हवा में रहना, जरूरत से ज्यादा पका हुआ सूखा आहार, बासी भोजन, आनुवंशिक गड़बड़ी, यूरिक एसिड के लवणों का कम उत्सर्जन शामिल हैं।
- वर्षा ऋतु, रात्रि का अन्तिम प्रहर, वृद्धावस्था, जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों की जलवायु भी वातवर्द्धक हैं।
- चोट और रक्तस्राव से और सख्त बिस्तर पर सोने से भी वात कुपित होता है।
- अतिव्यस्त जीवन-शैली, अपराध-भावना, भय और दुख जैसी भावनाएं वात को कुपित करते हैं।
वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण :-
वात दोष का मुख्य गुण "सूखापन" है।
आम तौर पर संतुलित वात प्रकृति वाले लोगों में पाए जाने वाले शारीरिक लक्षण और मानसिक लक्षण इस प्रकार हैं:-
शारीरिक लक्षण |Physical symptoms
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व्यवहारिक लक्षण| Behavioural symptoms
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पतला शरीर और हड्डियां
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अस्थिर व्यवहार
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मोटी बनावट के साथ गहरे रंग के बाल
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उत्साह
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सूखे बाल और त्वचा
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अक्सर चीजों को खोना और गलत जगह पर रखना
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टेढ़ा चेहरा
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रचनात्मकता और कलात्मक प्रकृति
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कम सहनशक्ति
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संवेदनशीलता और शर्मीलापन
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अजीब पदार्थों से लगाव
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त्वरित सोच और सनकपन
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समस्याओं और चुनौतियों से अच्छी तरह निपटना
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यह साफ है कि वात प्रधान व्यक्ति वातवर्द्धक दोष से आसानी से प्रभावित होगा। इसलिए सबसे पहले, हमें वात के लक्षणों के बारे में जानना चाहिए | वात अवस्था जीवन का अंतिम एक तिहाई भाग (इकसठ वर्ष की उम्र से जीवन के अंत तक) है। वात प्रकृति वाले व्यक्ति का सीना चपटा होता है, वह शारीरिक रूप से दुबला और अत्यंत सक्रिय होता है। उसकी मांसपेशियाँ स्नायु और नसें बाहर से दिखती हैं। ऐसे व्यक्ति का रंग भूरा या नीला होता है। उसकी त्वचा रूखी, ठंडी, सूखी और फटी हुई होती है। उसके बाल काले और धुंघराले होते हैं तथा मांसपेशियाँ कमजोर होती हैं। आँखें छोटी, सूखी और धंसी हुई होती हैं तथा उसका नेत्र श्लेष्म (कंजक्टिवा) कोचयुक्त तथा सूखा होता है।
किस आधार पर व्यक्ति की प्रकृति को निर्धारित किया जा सकता हैं ?
सामान्यत: व्यक्ति से पूछताछ के आधार पर उसकी प्रकृति निर्धारित की जाती है, साथ ही यह शारीरिक जाँच पर भी निर्भर करती है। पूछताछ -भाग (अ) में बताई गई है। नंबर सभी प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करते हैं। शारीरिक जाँच का जिक्र भाग (ब) में है। इसके लिए भी नंबर को उसी तरीके से किया जाता है।
वात प्रकृति के व्यक्तियों की आदतें अक्सर ये होती है :-
भाग अ :-
- काम को कैसे करते हैं?- बहुत जल्दी
- उत्तेजित हो जाते हैं- बहुत जल्दी
- नई चीजों को सीखने की शक्ति- तेज
- याददाश्त- कम
- भूख, पाचन- अनियमित
- भोजन की मात्रा, जो आप ग्रहण करते हैं- कभी अधिक, कभी कम
- कैसा स्वाद पसंद करते हैं- मीठा, खट्टा, नमकीन
- प्यास कितनी लगती है- बहुत कम
- किस प्रकार का भोजन पसंद करते हैं- हल्का गरम
- किस प्रकार का पेय पसंद करते हैं- गरम
- मलत्याग नियमित है या अनियमित- अनियमित
- कब्ज की क्या स्थिति है- सख्त कब्ज वाला मल
- किस प्रकार का पसीना आता है- अधिक और दुर्गंधयुक्त
- यौन इच्छा— कम
- कितने बच्चे— एक या दो, छोटा परिवार
- क्या अच्छी नींद आती है- बाधित नींद, पाँच-छह घंटे
- क्या रोज सपने देखते हैं- हाँ।
- उड़ने, उड़ाने, कूदने, भागने के डरावने सपने बोलने की समस्याएँ- परेशानी के साथ, अनियंत्रित मस्तिष्क के साथ, आत्मनियंत्रण नहीं
- बातचीत का तरीका- बहुत तेज, परंतु शब्दों को छोड़ते हुए
- चलने का तरीका- तेज, हाथ-पाँव तेज हिलाते हुए कार्य के दौरान पैरों, हाथों, भौंहों की हरकतें साथ-साथ
वात प्रकृति के व्यक्तियों की सेहत अक्सर ये होती है :-
भाग ब :-
- सीने की दृश्य पसलियाँ- छोटी, लंबी पसलियाँ, अदृश्य
- पेट- पतला
- आँखों की पुतली का रंग- नीला या काला
- जीभ- गहरे रंग की
- दाँत- बड़े या छोटे, चटके हुए, चौड़े, अनियमित और असंगत
- होंठ- सूखे और काले
- शारीरिक संरचना- दुबला/नाटा
- शरीर का भार- हलका, औसत से कम
- शारीरिक बल-कमजोर
- शारीरिक प्रवृत्ति– रूखा, शुष्क, कमजोर, दुबला
- शरीर पर बाल- कम
- शरीर की गंध- गंधहीन या अप्रिय
- त्वचा का रंग- नीला या गहरा काला
- त्वचा की प्रकृति- फटी हुई, सख्त, रूखी
- त्वचा का तापमान- कम, ठंडे हाथ-पैर, ठंडा सीना
- जोड़- ढीले, कठोर, अस्थिर
- स्नायु- अस्थिर, दृढ़
- पैरों के निशान – अनिश्चित
- हाथ- शुष्क, रूखे, कड़े, कालापन लिये हुए
- नाड़ी- अनियमित, तेज
- आँखें- सोने के समय खुली रहती हैं
ऊपर वात प्रधान व्यक्तियों के कुछ लक्षण दिए गए थे अगर आपको इन लक्षणों में कुछ उलझन महसूस हो रही है और आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहे है तो कोई बात नहीं इसके तीन कारण हो सकते है, एक तो ये लक्षण वात के असंतुलन के बाद ज्यादा उभर कर आते है दूसरा आप में अनुभव की कमी है और तीसरा ये की आपकी प्रक्रति पित्त और कफ प्रधान की हो सकती है | आइये इससे सम्बंधित कुछ और जानकारियां लेते है |
वात के असंतुलन और वात प्रधान व्यक्ति के बीच का फर्क समझना भी जरुरी है | यदि वात असंतुलित हो जाये तो कोई भी व्यक्ति उससे सम्बन्धित रोगों का शिकार हो जाता है और जो व्यक्ति जन्म से ही वात प्रधान वाले होते है उनमे कफ और पित्त प्रधान व्यक्ति की अपेक्षा वात बिगड़ने की संभावना ज्यादा होती है |
वात प्रकृति वाले लोग दुबले तथा आकर्षक होते हैं और दूसरों द्वारा आसानी से आकर्षित हो जाने वाले होते हैं। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति मजबूत शरीर के, नाटे तथा मधुमेह के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वात प्रकृति वाले व्यक्तियों में स्नायु-विकार (Neurosis) होने की अधिक संभावना होती है।
वात दोष का असंतुलन:-
वात का असंतुलन तब होता है जब प्राण (जीवन देने वाली शक्ति) वात को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते हैं।
वात प्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति में वात असंतुलन की संभावना अधिक रहती है।उन्हें इन लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए :-
आम तौर पर असंतुलित वात वाले लोगों के शारीरिक लक्षण और मानसिक लक्षणों में निम्नलिखित परिवर्तन देखा जाता है:-
वात प्रकृति का व्यक्ति स्वभाव से खुशमिजाज और जोश से भरपूर होता है। जब यह असंतुलित अवस्था में होता है तो बचपन से वृद्धावस्था तक व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के दर्द का शिकार बनना पड़ता है। अकसर उच्च वर्ग के लोग इसके असंतुलन के शिकार होते हैं। वे नींद की गोलियाँ दर्द की दवाएँ तथा ट्रैक्वलाइजर लेने लगते हैं। ये दवाएँ शरीर में साइड इफेक्ट तथा मस्तिष्क में परिवर्तन उत्पन्न करती हैं। अधिकतर रोग इसके असंतुलन के कारण ही पैदा होते हैं।
वात की संतुलित करते ही पीठ दर्द, मासिकपूर्व दर्द तथा अवसाद समाप्त हो जाता है। यह ज्यादातर वृद्धावस्था में उभरता है। त्वचा सिकुड़ जाती है, मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, फलस्वरूप व्यक्ति जल्दी थक जाता है और जीवन दु:खमय बन जाता है। ये सब परेशानियाँ इसके कारण होती हैं।
वात प्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति में वात असंतुलन की संभावना अधिक रहती है।उन्हें इन लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए :-
- भावनात्मक दुःख, आघात, भय,
- सूखा मौसम तथा ठंडा जलवायु ,
- खाली पेट,
- अनियमित पेय,
- असंतुलित भोजन,
- असमय भोजन,
- ठंडा, शुष्क, तीखा, कड़वा तथा सख्त भोजन,
- कम नींद
- अधिक कार्य की वजह से बेचैनी तथा तनाव,
- शारीरिक थकावट,
- शराब, सिगरेट की लत और
- स्थान तथा आहार में अचानक परिवर्तन।
आम तौर पर असंतुलित वात वाले लोगों के शारीरिक लक्षण और मानसिक लक्षणों में निम्नलिखित परिवर्तन देखा जाता है:-
शारीरिक लक्षण |Physical symptoms
|
व्यवहारिक लक्षण| Behavioural symptoms
|
मांसपेशियों में थकान
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साइकोसिस (मनोविकृति)
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जोड़ों का दर्द
|
घबराहट
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जकड़न
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भय
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सिर दर्द
|
अधीरता
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विभिन्न प्रकार के दर्द- नसों में दर्द, पीठ दर्द, मासिकपूर्व दर्द
|
चिंता
|
वजन कम होना
|
अवसाद
|
पेशियों में दर्द-मरोड़
| व्यग्रता |
ऐठन | मानसिक अस्थिरता |
कंपकपी | आलस्य |
कमजोरी | कुछ भी करने की इच्छा न होना |
सर्दी | |
कब्ज | |
गैस के कारण परेशानी | |
पेट फूलना | |
पेट दर्द | |
शुष्क त्वचा | |
फटे होंठ | |
फटी त्वचा | |
उच्च रक्तचाप | |
मन भटकाव | |
ऑत-प्रदाह (इरीटेबल कोलोन सिंड्रोम) | |
पाचक अग्नि मंद | |
फेफड़ों में संकुचन | |
साइनस में संकुचन | |
द्रव जमा होने के कारण शरीर में सूजन |
वात दोष वाले लोग अकसर कब्ज के शिकार रहते हैं। यह अन्य दोनों दोषों के कारण भी हो सकता है। जब ये दोष कुपित हो जाते हैं तो व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक विकारों से ग्रस्त हो जाता है।
वात को संतुलित करने का उपाय है :-
- तिल के तेल की मालिश।
- गरम पानी से स्नान करना पर सिर के लिए हलके गरम पानी का प्रयोग।
- भोजन में पोषक आहार लेना।
- शारीरिक तथा मानसिक विश्राम।
- रात में दस बजे तक अवश्य सो जाना।
- सुबह तथा शाम छह बजे पाँच-दस मिनट ध्यान करना।
- अपने शरीर को गरम रखें। यह वात के लिए अच्छा है, क्योंकि उसका मूल स्वभाव ठंडा है। ठंड में न निकलें और ठंडा भोजन न करें।
- तनाव तथा दबाव से दूर रहना।
- शांत तथा मौन रहना और अपनी आदतों को नियंत्रित करना।
वात को शांत करने वाले उपाय है :-
- नियमित रूप से तथा समय पर गरम भोजन करना चाहिए।
- नियमित भोजन में दो बार भोजन तथा एक बार अल्पाहार लेना चाहिए।
- दोपहर के भोजन से पहले सूखा या गीला अदरक तथा भोजन के बाद सौंफ चबाना अच्छा रहता है, जो भोजन में रुचि जगाता है और पाचन को दुरुस्त करता है।
- वात के उपचार के लिए केवल गरम तरल पदार्थ लें, क्योंकि वे वात प्रकृति के लोगों के लिए लाभकारी होते हैं।
- तड़क-भड़कवाले संगीत तथा शोर से परहेज करें।
- अपने घर को प्रकाश से परिपूर्ण, साफ तथा स्वच्छ रखें।
- वात प्रकृति के लोगों के लिए धूप अच्छी होती है, इसलिए दरवाजे-खिड़कियाँ खुली रखें।लंबी अवधि तक बाहर न रहें। अपने आपको खुशनुमा किताबों या अन्य कामों में व्यस्त रखें।
- मादक पदार्थों से दूर रहें :- शराब, चाय, कॉफी तथा धूम्रपान से दूर रहना चाहिए।
- नेजल ड्रॉप (नसया) :- सिर, गला, आँख, कान तथा नाक की सभी बीमारियों के लिए नसया उत्तम चिकित्सा है। ठंडी जलवायु में नाक शुष्क हो जाती है, इसलिए तिल के तेल की पाँच बूंदें नाक में डालनी चाहिए। इसके बाद नाक की हलकी मालिश करें। ऐसा साइनसाइटिस के मामले में नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसमें पहले से ही रूकावट रहती है। तेल कफ को गाढ़ा कर देता है, इस कारण अत्यधिक पीड़ा तथा सिरदर्द होता है।
- यह उपचार दिन में तीन से चार बार या इससे अधिक बार किया जा सकता है। साइनस के मरीजों को यह उपचार नहीं अपनाना चाहिए। अन्य सभी प्रकार के लोगों के लिए यह उपचार उपयोगी होता है। यह दिमाग की शांत रखता है।
वात नाशक भोज्य पदार्थ जो वात दोष का निवारण करते हैं :-
आयुर्वेद में फलों, सब्जियों और मसालों का उपयोग वात नाशक की तरह प्रयोग करने का बहुत पुराने समय से होता आया है। जो कि वायु को बाहर निकालते हैं और पेट की तकलीफ से राहत दिलाते हैं। इसके लिए पौधों में उपस्थित तेल सबसे उपयोगी माना जाता है। यह वात नाशक तेल कोमल मांसपेशियों को राहत देता है जिससे गैस बाहर निकलती है। कुछ मामलों में गैस आहार नाली और आमाशय के बीच स्थित स्फिन्क्टर पेशी के द्वारा ऊपर को धकेली जाती है जिसे डकार कहा जाता है। वात नाशक पदार्थ आंतों की मांसपेशियों को भी तनाव रहित करते हैं।
सभी भोज्य पदार्थ जो वात नाशक है उनकी सूची निम्नलिखित हैं : –
1. छाछ (मट्ठा):-
पतली छाछ पेट की गैस से राहत पाने के लिए बड़ा ही आसान उपाय है। इस चौथाई चम्मच काली मिर्च के साथ मिलाकर पीना चाहिए। अच्छे परिणाम के लिए इसमें चौथाई चम्मच पिसा जीरा भी मिलाया जा सकता है। पेट की गैस के उपचार के लिए छाछ का एनीमा देना भी लाभदायक होता है।
2. बड़ी सौंफ:-
इस मसाले में वात नाशक गुण होते हैं। यह पेट से गैस को बाहर निकालने के लिए बढ़िया दवा है। इसे अन्य पाचक पदार्थों जैसे अदरक, जीरा और काली मिर्च के साथ मिलाकर काढ़े के रूप में भी लिया जा सकता है। इस काढ़े को बनाने का आसान तरीका यह है कि एक चम्मच सौंफ को एक कप उबलते पानी में मिलाकर इस मिश्रण को रात भर रखा रहने दिया जाए। सुबह इसे छानकर पानी को शहद मिलाकर लिया जाए। यह पेट साफ करने में मदद करता है और पेट की वायु और बिना पचे पदार्थों को शरीर से निकालने में सहायक होता है।एक चम्मच सौंफ को 100 मिली पानी में आधा घंटे तक उबालकर काढ़ा तैयार किया जाता है। यह काढ़ा अपच, बादी और उल्टी के लिए बढ़िया दवा है।
3. अजवायन:-
अजवायन का प्रयोग पुराने समय से अजीर्ण, पेट का बढ़ना आदि पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज में किया जाता रहा है। वायु को पेट से निकालने के लिए इसके बीजों को पान के साथ खाया जा सकता है। अजवायन का एक चम्मच सेंधा नमक से साथ मिलाकर लेना अपच के लिए कारगर घरेलु दवा है। अजवायन का तेल भी अपच और गैस की स्थिति में लाभकारी होता है। इसे 1 या 3 बूंदों की मात्रा में दिया जाता है। अजवायन का पानी जो बीजों को भिगोकर उन्हें छानकर तैयार किया जाता है, पेट फूलने, अपच और वात नाशक के रूप बढ़िया दवा है। पेट फूलने की स्थिति में अजवायन के बीजों और सूखे अदरक को ढाई गुना नींबू के रस में भिगोकर रखा जाता है। इस मिश्रण को सुखाया जाता है और काले नमक के साथ पीसा जाता है। पेट के फूलने की बीमारी में इस चूर्ण की दो ग्राम मात्रा को गरम पानी के साथ लेना चाहिए।
4. हींग:-
हींग से तो आप अच्छी तरह परिचित होंगे ही, यह एक गोंद जैसा पदार्थ होता है जो बारहमासी पौधे से मिलता है। इस पौधे की जड़े पीली और गाजर के समान होती हैं। हींग का रंग गहरा पीला सा होता है और इसमें तीखी गंध होती है। इसे मसालों में महक देने वाले मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हींग भी वात नाशक भोजन है। यह पेट की कई बीमारियों की आदर्श दवा है। यह पेट की गैस के लिए रामबाण दवा है। इसके चलते लगभग सभी पाचक दवाओं में इसका उपयोग किया जाता है। बदहजमी और पेट फूलने की स्थिति में हींग को गरम पानी में घोलकर उसमें कपड़ा भिगोकर उससे पेट को सेंकने से लाभ होता है।
5. दालचीनी :-
दालचीनी पाचन क्रिया को तेज करती है तथा वात को संतुलित करती है । यह पेट की गैस को बाहर निकालती है। दालचीनी के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर इसमें एक चुटकी काली मिर्च और थोड़ा शहद मिलाकर पीने से पेट के दर्द और बादी से राहत मिलती है। इस पेय को एक चम्मच मात्रा में को खाना खाने के आधा घंटे के बाद लेना चाहिए।
6. शाहजीरा :-
शाहजीरा भी प्रचलित मसाला और सुगंधीकारक वात नाशक पदार्थ है। इसके बीज भूरे रंग के, कड़े और छूने पर नुकीले लगनेवाले होते हैं। ये सुगन्धित होते हैं, स्वाद तीखा होता है। और इसको खाने के बाद मुंह में गरमाहट सी महसूस होती है। शाहजीरा भी गैस ठीक करने में सहायता करता है। साथ ही यह दवा के बुरे असर को भी रोकता है। इसके बीजों की अपेक्षा उनके तेल का इस्तेमाल बीमारी के इलाज में अधिक किया जाता है। पेट की बादी के लिए शाहजीरे की चाय पीना लाभ देता है। इसके लिए एक चम्मच शाहजीरे को डेढ़ से दो लीटर पानी में उबालकर उसे धीमी आंच पर अगले पंद्रह मिनिट तक रखा जाता है। फिर उसे छानकर घूँट-घूटकर पीया जाता है।
7. लौंग :-
लौंग एक प्रसिद्ध मसाला है जो वात नाशक के रूप में भी उपयोगी है। यह पेट फूलने और अपच की समस्याओं में बहुत उपयोगी है। छह लौंग को तीस मिलीग्राम पानी में उबालकर इस काढ़े को दिन में तीन बार खाना खाने के बाद लेने से इन बीमारियों में लाभ मिलता है।
8. हरीतकी (हरड) :-
हरीतकी भी एक वात नाशक पदार्थ है। यह भी पेट की गैस के उपचार में मदद करता है। इसका रस एसिडिटी और सीने की जलन के लिए उपयोगी होता है। यदि इसे दिन के भोजन के बाद लिया जाए तो यह पेट की अम्लीयता को खत्म कर देता है। अच्छे परिणामों के लिए इस रस को आंवले के रस के साथ मिलाकर लिया जाना चाहिए। हरड के एक टुकड़े को रोज चबाने से भी सीने की जलन में राहत मिलती है।
9. खट्टे फल :-
खट्टे फलों की श्रेणी में संतरा, नींबू, अंगूर, मौसंबी, हरा नींबू और माल्टा शामिल है। ये फल विटामिन सी के अच्छे स्रोत होने के साथ ही ये सुगंध और स्वाद के लिए भी जाने जाते है । खट्टे फलों में उपस्थित विटामिन सी, केल्शियम, एलिगो तत्व, आसानी से पचाने वाली शर्करा, सिट्रिक अम्ल और साइट्रेट के कारण वात नाशक फलों के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है। हालाँकि ये फल स्वाद में थोड़े खट्टे होते हैं पर इनका अम्ल शरीर में एसिड की मात्रा को नहीं बढाता बल्कि इसके उलट प्रभाव पैदा करता है। कार्बनिक अम्लों के अम्लीय लवण जैसे पोटेशियम साइट्रेट आक्सीकरण की क्रिया द्वारा अपनी अम्लीयता को खो देते हैं। इसलिए अंत में केवल क्षारीय पदार्थ बाकी रह जाते हैं। इसके कारण सभी खट्टे फल गैस से राहत देते हैं और अम्लीयता, अपच और वात असंतुलन संबंधी बीमारियों को दूर करते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण फल नींबू और हरा नींबू है। नींबू का रस अपनी अम्लीयता के माध्यम से पेट में जाकर जीवाणुओं से लड़ता है। हरे नींबू का रस भी यही काम करता है। एक चम्मच नींबू के रस को शहद की समान मात्रा के साथ मिलाकर चाटने से उल्टी, अपच, सीने की जलन और अधिक लार आने की दिक्कतों से राहत मिलती है। एक चम्मच हरे नींबू के रस को पानी में मिलाकर उसमें एक चुटकी मीठा सोडा मिलाने से पेट की अम्लीयता से आराम मिलता है। यह अपच की स्थिति को भी दूर करता है । खट्टे फल शरीर की वायु या वात विकार या बादी हटाने की दवा की तरह से भी काम करते है ।
10. नारियल :-
नारियल का पानी वात नाशक होता है। यह सीने की जलन और अपच की रामबाण दवा है। इसे पीने से पेट को आराम मिलता है और जरुरी विटामिन और लवण भी प्राप्त होते हैं। यदि एक दिन बिना कुछ खाए पिए केवल नारियल का पानी ही पीया जाए तो पेट जल्दी ही अपनी सामान्य अवस्था में आ जाता है। पका हुआ, सूखा नारियल भी अम्लीयता की स्थिति में लाभ देता है। नारियल में उपस्थित तेल पेट में एसिड के स्त्राव को नियंत्रित करता है और रोगी को राहत देता है।
11. ककड़ी:-
ककड़ी गैस और एसिडिटी को दूर करता हैं । ककड़ी का रस पेट के छालों और वात नाशक पदार्थ के रूप में अचूक दवा है। यह पेट की जलन से तुरंत राहत दिलाता है। इस रस को हर दो घंटे में 120 से 180 मिली ग्राम की मात्रा में लेना चाहिए। ककड़ी में 96 प्रतिशत पानी होता है अत: इसमें रस की पर्याप्त मात्रा प्राप्त हो सकती है।
12. सुआ:-
सुआ भी वात नाशक भोजन है। इसके बीजों से निकाला गया तेल पेट की बादी और अति अम्लीयता के लिए बढ़िया दवा है। सुआ के तेल की एक बूंद को अरंडी के तेल के साथ मिलाकर लेने से पेट की मरोड़ और दर्द से राहत मिलती है और पेट साफ होता है जिससे आंतों को आराम मिलता है।
13. पुदीना:-
पुदीना प्रचलित मसाला है, जिसे भारत में खाना पकाने में बहुतायत से उपयोग में लाया जाता है। इसमें कई विटामिन होते हैं और लवणों की मात्रा भी भरपूर होती है। यह एक वात नाशक के रूप में और बादी को कम करनेवाली दवा के रूप में महत्वपूर्ण है। यह पेट की प्रक्रियाओं को चुस्त दुरुस्त बनाता है, पाचन को ताकत देता है और जीवाणुओं के संक्रमण को खत्म करता है। पुदीना में वात नाशक गुण होते हैं। इसकी पत्तियों का रस भूख बढ़ाने वाला होता है। इसमें समान मात्रा में नींबू का रस और शहद मिलाने से इसका प्रभाव बढ़ जाता है ।
14. लहसुन:-
लहसुन को प्राचीन औषधि शास्त्र में वात नाशक (वातहर ) के रूप में बड़ा महत्व दिया जाता रहा है। गैस पैदा करने वाले पदार्थों को लहसुन डालकर पकाने से उनकी गैस उत्पन्न करने वाले सभी कारण खत्म हो जाते है।
15. अदरक:-
आयुर्वेद में अदरक का उपयोग वात नाशक और गैस ठीक करने वाली औषधि के रूप में लंबे समय से करते आए हैं। इसका सेवन करना पेट की बीमारियों में आराम दिलाता है। यह पेट की बादी के लिए बढ़िया दवा है। खाने के बाद अदरक का एक टुकड़ा चूसने से इन सभी बीमारियों से निश्चित रूप से बचा जा सकता है। इसका सक्रिय प्रभाव लार, एंजायम और तेलों के अत्यधिक स्त्राव को रोकता है। अदरक या इसके चूर्ण की चाय बनाकर पीना भी पेट की तकलीफ में आराम देता है। इसे हमेशा खाने के बाद पूंट-घूट करके पीना चाहिए।
16. अंकुरित अल्फा-अल्फा (रिजका) :-
अल्फा-अल्फा (रिजका) के बीज स्वास्थ्य रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका नियमित उपयोग शरीर में पाचन तंत्र की बीमारियों से बचाव रहता है। इसे जब चाय के रूप में लिया जाता है तो इससे एसिडिटी, खट्टी डकारे, गैस और शरीर की अम्लता खत्म होती है । यह शरीर में स्त्रावित होने वाले हायड्रोक्लोरिक अम्ल और पेप्सिन एंजायम की मात्रा को भी नियंत्रित करता है। इस चाय में पुदीना मिलाकर पीने से गरिष्ठ भोजन करने से हुई बदहजमी भी ठीक हो जाती है ।
17. आजमोद :-
आजमोद पाचन क्रिया को दुरुस्त करके पेट की गैस से राहत दिलाता है। यह अपच और पेट की बादी के लिए प्रचलित दवाओं में से एक है। इसकी ताज़ा पत्तियों की कुछ मात्रा को एक चौथाई चम्मच सूखी हुई सब्जी को पानी के साथ लेने से इन बीमारियों में आराम मिलता है। ताज़ा प्राजमोड़ा थोड़ा कड़ा होता है। इसलिए इसे अच्छी तरह से मसलकर ही खाना चाहिए।
18. कद्दू :-
कददू एक क्षारीय भोज्य पदार्थ है और रेचक गुण रखता है। यह आसानी से पचता है और गैस नहीं बनाता साथ ही यह बेहतरीन वात नाशक सब्जी भी हैं । यदि पेट में अम्ल बढ़ने के कारण तकलीफ हो रही हो तो इसका सेवन लाभ देता है। अत्यधिक अपच, अम्लीयता और पेट में दर्द की स्थिति में 120 मिली रस को पतला करके पीना चाहिए। इस रस को कद्दू को पानी के साथ पीसकर और इसे कपड़े से छानकर बनाया जा सकता है। पीने से पहले इसमें शहद और नींबू का रस मिलाया जा सकता है।
वात प्रधान प्रकृति का व्यक्ति निम्नलिखित चीजों से उत्तेजित हो सकता है :-
- तीखा तथा मसालेदार भोजन करने से, रात को देर से सोना, ठंडा भोजन, ठंडी जलवायु, शुष्क भोजन, भय, कम मात्रा में खाना तथा गलत समय पर भोजन।
- इनसे वात और असंतुलित हो सकता है। गलत समय पर भोजन या बिलकुल भोजन न करना अप्राकृतिक है।
- उचित समय पर न सोना भी प्रकृति के विरुद्ध है। रात्रि दस बजे तक जरुर सो जाना चाहिए। दस बजे के बाद पित्त का समय शुरू हो जाता है, जिससे नींद आने में कठिनाई होती है। ये सभी चीजें शरीर तथा दिमाग को असंतुलित बना देती हैं। इन अनियमितताओं की वजह से वह अपना आत्मविश्वास और याददाश्त खो सकता तथा नींद की बीमारी का शिकार भी हो सकता है।
- वात प्रकृति का व्यक्ति अधिक लोगों के साथ नहीं रहना चाहता और शोरगुल पसंद नहीं करता। आधुनिक युग में तनाव और दबाव असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं। आरंभिक चरणों में शरीर असंतुलित अवस्था को अस्वीकार करके उसे संतुलित करने का प्रयास करता है। वात को संतुलित करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति शांत रहे, सही समय पर सोए, समय पर तथा सही मात्रा में भोजन करे। यह प्रकृति के अनुकूल है।
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