वैशाख मास की पूर्णिमा को गौतम बुद्ध की जयंती के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। कहते है इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। जहां विश्वभर में बौध धर्म के करोड़ों अनुयायी और प्रचारक है वहीँ उत्तर भारत के हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बुद्ध को विष्णुजी का नौवा अवतार माना कहा गया है।
शांति की खोज में कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे। भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ काशी के समीप सारनाथ पहुंचे जहाँ उन्होंने धर्म परिवर्तन किया। यहाँ उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचें कठोर तप किया। कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह महान सन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को ज्योतिमान किया।
वर्ष 2020 में बुद्ध पूर्णिमा या भगवान बुद्ध जयंती 7 मई को है। इस दिन गौतम बुद्ध की 2582 वीं जयंती मनाई जाएगी।
बुद्ध पूर्णिमा के शुभावसर पर मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सभी बुद्ध की प्रतिमा का जलाभिषेक करते है और फल, फूल, धुप इत्यादि चढाते हैं। बौध श्रद्धालु इस दिन ज़रुरतमंदों की सहायता करते हैं और कुछ श्रद्धालु इस दिन जानवरों-पक्षियों को भी पिंजरों से मुक्त करते है और विश्वभर में स्वतंत्रता का सन्देश फैलाते हैं।
बौद्ध धर्म के अनुयायी एक चमत्कारी मंत्र में बड़ा विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि इस मंत्र का जाप करने से संकटों का भार खुद-ब-खुद कम होने लगता है। यह एक निम्न षडाक्षरीय मंत्र है। इस मंत्र का उल्लेख अवलोकितेश्वरा में भी किया गया है।
बौद्ध धर्म के लोगो मानते हैं कि 'ॐ मणि पदमे हूम्' मंत्र का जाप करने से इंसान की मुश्किलें कम हो सकती हैं। इस मंत्र का जाप बौद्ध धर्म की महायान शाखा में प्रमुख रूप से किया जाता है।प्रार्थना चक्र, स्तूपों की दीवार, धार्मिक स्थलों पर मौजूद पत्थरों, मणि आदि पर इस मंत्र को देखा जा सकता है। जिस प्रार्थना चक्र पर यह मंत्र छपा होता है उसे एक बार घुमाने पर यह समझा जाता है कि इस मंत्र का जाप 10 लाख बार किया गया है।
बुद्ध पूर्णिमा तिथि व मुहूर्त 2020 | Buddha Purnima Tithi and Muhurat 2020 :-
बुद्ध पूर्णिमा तिथि :- 7 मई 2020
पूर्णिमा तिथि आरंभ :- सांय 9:44 (6 मई 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त :- सांय 16:14 (7 मई 2020)
गौतम बुद्ध जीवन परिचय | Gautama Buddha Biography in Hindi :-
गौतम बुद्ध से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ:-
- गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में पिता राजा शुद्धोधन और माता मायादेवी के घर हुआ था।
- उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। लेकिन “गौतम” गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था।
- गौतम के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था। उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी (सौतेली माँ) और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया।
- जब गौतम बुद्ध के जन्म समारोह को आयोजित किया गया, तब उस समय के प्रसिद्ध साधु दृष्टा आसित ने एक भविष्यवाणी की, कि यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या एक महान पथ प्रदर्शक।
- उन्होंने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद् की शिक्षा प्राप्त की। यही-नहीं वेदों की शिक्षा के अलावा उन्होंने कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान जैसी कला को एक क्षत्रिय की भांति सीखा।
- कम उम्र में शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में कोली वंश की कन्या यशोधरा से हुआ था।
- उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था। उनके लिए तीन ऋतुओं के आधार पर अलग-अलग तीन महल बनवा दिए गए थे। जहां नाच-गाना और मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था थी। इसके साथ-साथ हर समय दास दासी सेवा करने में होते रहते थे। परन्तु, ये सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोह-माया में बांध नहीं सकी।
- एक बार जब वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ, वह सड़क पर चल रहा था। जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तब उनकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। जिसकी साँसे तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार जब सिद्धार्थ को सैर करते हुए एक अर्थी दिखाई दी। जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे बहुत से लोग रो रहे थे, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन सभी दृश्यों को देख कर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है ऐसी जवानी का जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है ऐसे स्वास्थ्य का जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है ऐसे जीवन का जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर लेता है। और मन ही मन विचार करने लगे क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी ? उसके बाद जब सिद्धार्थ चौथी बार बगीचे की सैर को निकले, तब उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिया। जो संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त होकर प्रसन्नचित्त प्रतीत हो रहा था। जिससे गौतम बुद्ध काफी प्रोत्साहित हुए और एक सन्यासी बनने का निर्णय किया।
- राज्य का मोह छोड़कर सिद्धार्थ तपस्या के लिए राजगृह पहुँचे। जहां उन्होंने भिक्षा मांगनी शुरू की और घूमते-घूमते आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास जा पहुँचे। जिससे उन्होंने योग-साधना सीखी, समाधि लगाना सीखा। लेकिन सिद्धार्थ को उससे भी संतोष नहीं हुआ। जिसके बाद वह उरुवेला पहुँचे और वहाँ पर अलग तरह से तपस्या करने लगे।
तपस्या से क्षीण हुआ बुद्ध का शरीर (लाहौर संग्रहालय) |
- शुरुआत में, गौतम बुद्ध ने केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, उसके बाद कुछ भी खाए बिना तपस्या शुरू की।
- छः साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई।
- एक दिन बुद्ध के मध्यम मार्ग से होकर कुछ स्त्रियाँ गुजरती हैं, जहाँ गौतम बुद्ध तपस्या कर रहे थे। उन स्त्रियों का एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना भी मत कसो कि वे टूट जाएँ।’ यह बात सिद्धार्थ को जँच गई और मान गए कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है।
बोध गया के महाबोधि मंदिर के पास बोधि वृक्ष |
- बैसाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वट वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे और उसी गाँव की एक स्त्री सुजाता ने एक पुत्र को जन्म दिया। क्योंकि उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मन्नत मांगी थी। मन्नत पूरी होने पर वह स्त्री सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर वटवृक्ष के पास जा पहुँची। जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। उस स्त्री को ऐसा लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा कर रहे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो।’ इतना कहकर सुजाता वहां से चली गई और उसी रात तपस्या करते हुए सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई। उस समय सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान का बोध हुआ था। तभी से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाए। जिस वट वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध हुआ, वर्तमान में वह स्थान बोधिवृक्ष कहलाया और बोधगया के नाम से लोकप्रिय हुआ।
- 80 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने धर्म का संस्कृत की जगह उस समय की सरल भाषा “पाली” में प्रचार किया।
- कुछ समय के बाद वह काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। जहाँ उन्होंने सबसे पहले धर्मोपदेश दिया।
बुद्ध परिनिर्वाण में प्रवेश करते हुए |
- पाली सिद्धांत के अनुसार 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वह जल्द ही परिनिर्वाण के लिए रवाना होंगे। जहां गौतम बुद्ध ने एक लोहार के घर अपना आखिरी भोजन ग्रहण किया, जिससे उनकी तबीयत ख़राब हो गई थी। तभी बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहा कि वह कुन्डा (लोहार) को कहे कि उनसे कोई गलती नहीं हुई है और उनका भोजन भी ठीक है।
- उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया और अहिंसा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की। बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है – अग्निहोत्र तथा गायत्री मन्त्र का प्रचार, ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि, मध्यमार्ग का अनुसरण, चार आर्य सत्य, अष्टांग मार्ग, इत्यादि।
- गौतम बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजना शुरू किया। इसके अलावा अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम भूमिका निभाई। मौर्यकाल तक आते-आते भारत के अतिरिक्त बौद्ध धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में फैल गया था। इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है।
- हिन्दू धर्म के अनुसार, गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
बुद्ध के उपदेश:-
बुद्ध ने पाली भाषा में अपना उपदेश दिया था जो इस प्रकार से है-
- जन्म, मृत्यु, रोग, इच्छा सभी दुख देते हैं।
- इंसान की इच्छा सभी दुःखों का कारण है।
- इंसान को तृष्णाओं पर नियंत्रण करना चाहिए ताकि दुख से बच सकें।
- सांसारिक दुखों को दूर करने के आठ मार्ग हैं इन्हें आष्टांगिक मार्ग कहा गया है जो इस प्रकार है इच्छा और हिंसा के विचारों को त्यागना, सत्य और विनम्र वाणी बोलना, सही और अच्छे कार्य करना, जीवन चलने हेतु सही तरीके से धन कमाना, बुरी भावनाओं से दूर रहना, अच्छी बातों तथा आचरण का प्रयोग करना, किसी विषय पर एकाग्रचित होकर विचार करना आदि।
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