[ads id="ads1"]
नारद जयंती सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो सैकड़ों हजारों हिंदू भक्तों द्वारा मनाया जाता है। भगवान के दूत 'नारद' के जन्म दिवस के उपलक्ष में नारद जयंती मनाई जाती है। नारद शब्द का अर्थ है - नार का अर्थ होता है जल और द का मतलब दान। वैदिक पुराणों के अनुसार देवऋषि नारद मुनि को देवताओं का दिव्य दूत और संचार का अग्रणी माना जाता है।
ऋषि नारद या देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल का समावेश होता था ताकि देवताओं का देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके और माना जाता है कि यह पृथ्वी पर पहले पत्रकार हैं। नारद मुनि सूचनाओं को फैलाने के लिए ब्रह्मांड में भ्रमण करते रहते हैं। हालाँकि, उनकी जानकारी अधिकांश समय परेशानी पैदा करती है, लेकिन यह ब्रह्मांड की बेहतरी के लिए है। उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया। ऋषि नारद भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्तों में से एक हैं।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।
नारद मुनि का स्वरूप :-
नारद मुनि का नाम सुनते ही आपके मन में उनकी छवि आ जाती होगी। नारद मुनि जहां कहीं भी जाते हैं वे नारायण-नारायण कहकर अपने संवाद की शुरुआत करते थे। भगवान विष्णु उनके आराध्य देव हैं और एक मुनि की तरह उनका वेश है। उनके एक हाथ में वीणा है और दूसरे हाथ में भी वाद्य यंत्र है।नारद मुनि का सवारी बादल (मायावी बादल जो बोल सुन सकता है) हैं।इनका निवास स्थान ब्रह्मलोक हैं।
नारद मुनि का व्यक्तित्व:-
नारद श्रुति - स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में पारंगत थे। नारद आत्मज्ञानी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, त्रिकाल ज्ञानी, वीणा द्वारा निरंतर प्रभु भक्ति के प्रचारक, दक्ष, मेधावी, निर्भय, विनयशील, जितेन्द्रिय, सत्यवादी, स्थितप्रज्ञ, तपस्वी, चारों पुरुषार्थ के ज्ञाता, परमयोगी, सूर्य के समान, त्रिलोकी पर्यटक, वायु के समान सभी युगों, समाजों और लोकों में विचरण करने वाले, वश में किये हुए मन वाले नीतिज्ञ, अप्रमादी, आनंदरत, कवि, प्राणियों पर नि:स्वार्थ प्रीति रखने वाले, देव, मनुष्य, राक्षस सभी लोकों में सम्मान पाने वाले देवता तथापि ऋषित्व प्राप्त देवर्षि थे।
एक बार नारद को कामदेव पर विजय प्राप्त करने का गर्व हुआ। उनके इस गर्व का खण्डन करने के लिए भगवान ने उनका मुँह बन्दर जैसा बना दिया। नारद का स्वभाव 'कलहप्रिय' कहा गया है। व्यवहार में खटपटी व्यक्ति को, एक दूसरे के बीच झगड़ा लगाने वाले व्यक्ति को हम नारद कहते हैं। परंतु नारद कलहप्रिय नहीं वरन् वृतांतों का वहन करने वाले एक विचारक थे।
नारद जयंती का महत्व | Importance of Naarad Jayanti :-
देवर्षि नारद को सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु का अनन्य उपासक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वह हर वक्त "नारायण-नारायण" का जाप करते रहते हैं। नारद मुनि न सिर्फ देवओं बलकि असुरों के लिए भी आदरणीय हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार वह ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उन्होंने अत्यंत कठोर तपस्या कर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया था। नारद का जिक्र लगभग सभी पुराणों में मिलता है। मान्यताओं के अनुसार एक हाथ में वीणा धारण करने वाले नारद तीनों युगों में अवतरित हुए हैं। नारद जयंती के दिन लोग उपवास रख उनकी आराधना करते हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पुण्य प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
[ads id="ads2"]
नारद जयंती कैसे मनाया जाता हैं ? | How is Naarad Jayanti celebrated?:-
भक्त नारद जयंती को अत्यंत समर्पण और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस विशेष दिन पर, मुख्य रूप से उत्तर भारत के क्षेत्रों में कई शैक्षणिक सत्र और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।कर्नाटक में नारद मुनि के कुछ मंदिर भी हैं जो अत्यधिक लोकप्रिय हैं। इन मंदिरों में महान उत्सव आयोजित किए जाते हैं।हालांकि लॉकडाउन के चलते मंदिरों में नारद जयंती से जुड़े सभी कार्यक्रमों को पहले ही रद्द किया जा चुका है। ऐसे में आप इस बार घर पर रहकर ही नारद जी की पूजा करें और सुरक्षित रहें।
नारद जयंती कब है? When is Naarad Jayanti?:-
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, नारद जयंती वैशाख महीने में कृष्ण पक्ष और पहले दिन (प्रतिपदा तिथि) को आती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन जून या मई के महीने में मनाया जाता है।इस वर्ष यह तिथि 8 मई को पड़ रही हैं इसलिए नारद जयंती 8 मई को मनाई जाएगी।
नारद जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त | Naarad Jayanti Date and Auspicious Time:-
नारद जयंती की तिथि:- 8 मई 2020
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ:- 7 मई 2020 को शाम 4 बजकर 15 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्त:- 8 मई 2020 को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट तक
नारद जयंती की पूजा विधि या अनुष्ठान क्या हैं? What is the worship method or ritual of Naarad Jayanti?
- अन्य हिंदू त्योहारों के समान, इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करने को काफी शुभ माना जाता है।
- स्नान करने के बाद भक्त को साफ-सुथरे पूजा के वस्त्र पहनने चाहिए ।
- फिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने के बाद ही नारद मुनि की पूजा की जाती है, क्योंकि नारद मुनि स्वयं भगवान विष्णु के दृढ़ भक्त थे। ऐसा करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है।
- फिर भक्तों को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई अर्पित करना चाहिए।
- नारद जयंती के दिन व्रत का पालन करना चाहिए क्योंकि इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
- जो भक्त उपवास करते हैं, वे दाल या अनाज का सेवन करने से खुद को बचाना चाहिए और केवल दूध उत्पादों और फलों का सेवन करना चाहिए।
- प्रेक्षकों को रात के समय सोने की अनुमति नहीं होती है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अपना पूरा समय मंत्रों को पढ़ने में लगाना चाहिए। गीता और दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए।
- 'विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
- मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेंट करने से मनोकामना पूरी होती है।
- एक बार सभी अनुष्ठान समाप्त हो जाने के बाद, भक्त भगवान विष्णु की आरती करें।
- भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों को काशी विश्वनाथ के दर्शन करने चाहिए।
- नारद जयंती की पूर्व संध्या पर दान पुण्य करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है। पर्यवेक्षक को ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करने चाहिए।
नारद मुनि के जन्म की कथा :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि भगवान ब्रम्हा की गोद से पैदा हुए थे। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पिछले जन्मों में कड़ी तपस्या से गुजरना पड़ा था। कहते हैं पूर्व जन्म में नारद मुनि गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और उनका नाम 'उपबर्हण' था। पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। एक बार कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा की उपासना कर रहे थे। तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आया। ये देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस उपबर्हण को श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि' में जन्म लेगा।
ब्रह्मा जी के श्राप से उपबर्हण का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। पांच वर्ष की आयु में उसकी मां की मृत्यु हो गई। मां की मृत्यु के बाद उस बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन जब वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठा था तब अचानक उसे भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई।
इस घटना ने नन्हें बालक के मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा जाग गई। निरंतर तपस्या करने के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा।
अपने अगले जन्म में यही बालक ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहलाए और पूरे ब्रम्हांड में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
देवर्षि नारद के कार्य :-
देवर्षि नारद के अगणित कार्य हैं:-
- भृगु कन्या लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ करवाया।
- इन्द्र को समझा बुझाकर उर्वशी का पुरुरवा के साथ परिणय सूत्र कराया।
- महादेव द्वारा जलंधर का विनाश करवाया।
- कंस को आकाशवाणी का अर्थ समझाया ।
- बाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी।
- व्यास जी से भागवत की रचना करवायी।
- प्रह्लाद और ध्रुव को उपदेश देकर महान् भक्त बनाया।
- बृहस्पति और शुकदेव जैसों को उपदेश दिया और उनकी शंकाओं का समाधान किया।
- इन्द्र, चन्द्र, विष्णु, शंकर, युधिष्ठिर, राम, कृष्ण आदि को उपदेश देकर कर्तव्याभिमुख किया।
- भक्ति का प्रसार करते हुए वे अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों का सहयोग करते रहते हैं।
- ये भगवान के विशेष कृपापात्र और लीला-सहचर हैं। जब-जब भगवान का आविर्भाव होता है, ये उनकी लीला के लिए भूमिका तैयार करते हैं। लीलापयोगी उपकरणों का संग्रह करते हैं और अन्य प्रकार की सहायता करते हैं इनका जीवन मंगल के लिए ही है।
देवर्षि नारद के ग्रंथ:-
- नारद पांचरात्र
- नारद के भक्तिसूत्र
- नारद महापुराण
- बृहन्नारदीय उपपुराण-संहिता-(स्मृतिग्रंथ)
- नारद-परिव्राज कोपनिषद
- नारदीय-शिक्षा के साथ ही अनेक स्तोत्र भी उपलब्ध होते हैं।
- देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ है - सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। अर्थात् सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।
नोट :- आमतौर पर नारद जयंती बुद्ध पूर्णिमा के अगले दिन आती है। यदि प्रतिपदा तीथ क्षय हो जाए तो बुद्ध पूर्णिमा और नारद जयंती एक ही दिन पड़ सकते हैं।
Post a Comment