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नरसिंह जयंती भगवान नरसिंह जी का जन्मोत्सव है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, भगवान नरसिंह जी का अवतरण वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन हुआ था। इस वर्ष यह तिथि 6 मई को पड़ रही है। इसलिए नरसिंह जयंती 6 मई को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान नरसिंह जगत के पालनहार विष्णु जी के चौथे अवतार हैं।पुराणों( विष्णु पुराण, श्रीमद भागवत पुराण,पद्म पुराण तथा अग्नि पुराण आदि) में उनके चमत्कारो का जिक्र है। कहा जाता है की उनका सर सिंह का था और शरीर मानव का था इसलिए उनका नाम नरसिंह था। नरसिंह शब्द का अर्थ है "मानव सिंह"। यह भी कहा जाता है की सर के साथ साथ उनके पंजे भी सिंह के थे।भगवान नरसिंह को भारत में और खासकर दक्षिणी भारत में पूजा जाता है जो की उनकी हर विपत्ति में उनकी मदद करते है। आइए जानते हैं इस दिन का विशेष मुहूर्त, पूजा विधि और उनके जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
भगवान नरसिंह की पूजा का महत्व | Importance of worshiping Lord Narasimha:-
पद्म पुराण और अन्य धर्म ग्रंथों के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह की पूजा करने से हर तरह की इच्छा पूरी होती है। इसके साथ ही बीमारियां खत्म होती है और दुश्मनों पर जीत मिलती है।क्योंकि जिस प्रकार उन्होंने भक्त प्रहलाद की हमेशा रक्षा की, ठीक उसी प्रकार भगवान नरसिंह किसी पर भी कष्ट नहीं आने देते।पुरणों के अनुसार इस पर्व पर व्रत, दान और पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।नरसिंह जी के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में आई किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या समाप्त हो जाती है।इस पर्व पर वैदिक मंत्रों के साथ मिट्टी, गोबर, आंवला और तिल मिलाकर नहाने से सभी पाप खत्म हो जाते हैं ।
नरसिंह जयन्ती तिथि व पूजा मुहूर्त | Narasimha Jayanti date and Puja Muhurta:-
नरसिंह जयंती :- 06 मई 2020
नरसिंह जयन्ती मध्याह्न संकल्प का समय :- सुबह 10:58 से दोपहर 01:38 तक
नरसिंह जयन्ती सायंकाल पूजा का समय:- दोपहर 04:19 से सांय 07:00 तक
अवधि :- 02 घण्टे 41 मिनट्स
पारण समय :- प्रातः 05:35 बजे, 07 मई 2020
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ :- मई 05, 2020 को रात्रि 11:21 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्त :- मई 06, 2020 को सांय 07:44 बजे तक
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नरसिंह जयन्ती व्रत व पूजा विधि | Narasimha Jayanti fast and method of worship:-
- सबसे पहले प्रातःकाल सुबह उठकर नित्यकर्म करके स्नान करे।( इस दिन सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान किया जाता है। अभी ये संभव नहीं है, इसलिए घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहा लेना चाहिए।)
- स्नान करने के बाद भगवान नरसिंह की मूर्ती के सामने जाकर यह कहे:-
‘भगवन ! आज मैं आपका व्रत करूँगा। इसे निर्विघ्नता पूर्वक पूर्ण कराइये।’
- इसके बाद पूरे दिन उनके नाम सा स्मरण करते हुए बिताए।
- इसके बाद मध्याह्नकाल के समय किसी भी तालाब, नदी, जलाशय में जाकर या घर पर ही वैदिक मंत्रों के साथ मिट्टी, गोबर, आँवले का फल और तिल लेकर उनसे सब पापों की शांति के लिए विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
- इसके बाद पूजा के स्थान को गोबर के लीप से शुद्ध कर ले और पूरे घर में गंगाजल या गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए।
- फलो तथा अन्य सामग्री जैसे -भगवान नृसिंह की मूर्ति अथवा चित्र माँ लक्ष्मी के साथ (सोने अथवा किसी अन्य धातु या मिट्टी), हारीत और लीलावती की मूर्ति अथवा चित्र, ताँबे का कलश, कलश ढ़कने के लिये पात्र (ताँबे का), पंचरत्न (सोना, चांदी, मोती, मूंगा और लाजवर्त), धूप, दीप, अक्षत, चंदन, घी। नैवेद्य, ऋतुफल, कर्पूर, रूई की बाती, गंगाजल ,लोटा ,आचमनी, कच्चा दूध, दही, शर्करा, मधु(शहद), घी, पान का पत्ता (डंडी सहित), सुपारी, लौंग, इलायची, गुड़, सिक्के, पुष्प और पुष्पमाला के साथ मंडप तैयार करे।
- कमल पर पञ्चरत्न सहित ताँबे का कलश स्थापित करे। कलश के ऊपर चावलों से भरा हुआ पात्र रखे और पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने/तांबे/पीतल की लक्ष्मीजी सहित नृसिंहजी (या विष्णुजी) की प्रतिमा स्थापित करे।
- तत्पश्चात् उसे पञ्चामृत से स्नान कराये।
- इसके बाद शास्त्रज्ञ और लोभहीन ब्राह्मण को बुलाकर अथवा स्वयं पूजन करे।
- फिर उस ऋतु में सुलभ होने वाले फूलों से और षोडशोपचाऱ सामग्रियों से विधिपूर्वक नृसिंहजी का पूजन करे।
- पूजा में नियमपूर्वक रहकर नृसिंहजी से सम्बन्ध रखने वाले पौराणिक मंत्रों एवं स्तोत्रादि का 'पाठ करें।
- जो चन्दन, कपूर, रोली, सामयिक पुष्प तथा तुलसीदल नृसिंहजी को अर्पण करता है, वह निश्चय ही मुक्त हो जाता है।
- समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिये जगद्गुरु श्रीहरि को सदा कृष्णागरु का बना हुआ धूप निवेदन करना चाहिये; क्योंकि वह उन्हें बहुत प्रिय है।
- एक बड़ा दीप जलाकर रखना चाहिये, जो अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करने वाला है।
- फिर घण्टे की आवाज के साथ आरती उतारनी चाहिये।
- तदनन्तर नैवेद्य निवेदन करे, जिसका मन्त्र इस प्रकार है-
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकान्त सर्वपापक्षयं कुरु॥-पद्मपुराण
अर्थात् - हे लक्ष्मीकान्त! मैं आपके लिये भक्ष्य-भोज्यसहित नैवेद्य तथा शर्करा निवेदन करता हूँ। आप मेरे सब पापों का नाश कीजिये।
- इसके बाद यह प्राथना करे:-
'हे नृसिंह! अच्युत! देवेश्वर ! आपके शुभ जन्मदिन को मैं सब भोगों का परित्याग करके उपवास करूँगा। स्वामिन्! आप इससे प्रसन्न हों तथा मेरे पाप और जन्म के बन्धन को दूर करें।' यों कहकर व्रत का पालन करे।
- रात में गीत और वाद्यों के साथ जागरण करना चाहिये। भगवान् नृसिंहजी की कथा से सम्बन्ध रखने वाले पौराणिक प्रसंगों का पाठ भी करना उचित है। भक्त इस दिन रात्रिकाल होने पर स्नान के अनन्तर विधि से यत्नपूर्वक नृसिंहजी की पूजा करे।
- उसके बाद स्वस्थचित्त होकर भी संभव हो तो नृसिंहजी के समक्ष वैष्णव श्राद्ध करे।
- तदनन्तर इस लोक और परलोक दोनों पर विजय पाने की इच्छा से सुपात्र ब्राह्मणों को गौ, भूमि, तिल, सुवर्ण, ओढ़ने-बिछौने आदि के सहित चारपाई, सप्तधान्य तथा अन्यान्य वस्तुएँ भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करनी चाहिये । शास्त्रोक्त फल पाने की इच्छा हो तो धन की कृपणता नहीं करनी चाहिये ।
- अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराये और उन्हें उत्तम दक्षिणा दे। धनहीन व्यक्तिओं को भी चाहिये कि वे इस व्रत का अनुष्ठान करें और अपनी शक्ति के अनुसार कुछ न कुछ दान दें। नृसिंहजी के व्रत में सभी वर्ण के मनुष्योंका अधिकार है। नृसिंहजी की शरण में आये हुए भक्तों को विशेष रूपसे इसका अनुष्ठान करना चाहिये ।
- इसके बाद व्रत करने वाले को इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये- 'विशाल रूप धारण करनेवाले भगवान् नृसिंह! करोड़ों कालों के लिये भी आपको परास्त करना कठिन है। बालरूपधारी प्रभो! आपको नमस्कार है। बालावस्था तथा बालकरूप धारण करने वाले श्रीनृसिंहभगवान् को नमस्कार है। जो सर्वत्र व्यापक, सबको आनन्दित करने वाले, स्वत: प्रकट होने वाले, सर्वजीवस्वरूप, विश्व के स्वामी, देवस्वरूप और सूर्यमण्डल में स्थित रहने वाले हैं, उन भगवान् को प्रणाम है। दयासिन्धो! आपको नमस्कार है। आप तेईस तत्वों के साक्षी चौबीसवें, तत्त्वरूप हैं । काल, रुद्र और अग्नि आपके ही स्वरूप हैं। यह जगत् भी आपसे भिन्न नहीं है। नर और सिंह का रूप धारण करने वाले आप भगवान् को नमस्कार है।देवेश! मेरे वंश में जो मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं और जो उत्पन्न होने वाले हैं, उन सबका दुःखदायी भवसागर से उद्धार कीजिये। जगत्पते! मैं पातक के समुद्र में डूबा हुआ हूँ। नाना प्रकार की व्याधियाँ ही इस समुद्र की जलराशि हैं। इसमें रहने वाले जीव मेरा तिरस्कार करते हैं । इस कारण मैं महान दुःख में पड़ गया हूँ। शेषशायी देवेश्वर! मुझे अपने हाथों का सहारा दीजिये और इस व्रत से प्रसन्न हो मुझे भोग-मोक्ष प्रदान कीजिये।'
- इस प्रकार प्रार्थना करके विधिपूर्वक देवताओं का विसर्जन करे। उपहार आदि की सभी वस्तुएँ दक्षिणा से ब्राह्मणों को संतुष्ट करके विदा करे । फिर भगवान का चिन्तन करते हुए परिवार के साथ भोजन करे। जो मध्याह्नकाल में यथाशक्ति इस व्रत का अनुष्ठान करता है और लीलावतीदेवी के साथ हारीतमुनि एवं भगवान नृसिंहजी का पूजन करता है, वह श्रीनृसिंहजी के प्रसाद से सदा मनोवाञ्छित वस्तुओँ को प्राप्त करता रहता है । इतना ही नहीं, उसे सनातन मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान नृसिंह के सिद्ध मंत्र:-
एकाक्षर नृसिंह मंत्र : ''क्ष्रौं''
त्र्यक्षरी नृसिंह मंत्र : ''ॐ क्ष्रौं ॐ''
षडक्षर नृसिंह मंत्र : ''आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं हुं फट्''
नृसिंह गायत्री -1 : ''ॐ उग्र नृसिंहाय विद्महे, वज्र-नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।''
नृसिंह गायत्री -2 : ''ॐ वज्र-नखाय विद्महे, तीक्ष्ण-द्रंष्टाय धीमहि। तन्नो नारसिंह: प्रचोदयात्।।''
नृसिंह जयंती की व्रत कथा | Narsingh Jayanti Vrat Katha :-
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के इस अवतरण की कथा इस प्रकार है-
प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।
भक्त प्रह्लाद का जन्म:-
अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'प्रह्लाद' रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था। वह अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था।
हिरण्यकशिपु का वध:-
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।"
क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
भगवान नरसिंह से जुड़ी खास बातें:-
- भगवान विष्णु का ये अवतार बताता है कि जब पाप बढ़ जाता है तो उसको खत्म करने के लिए शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग भी जरूर हो जाता है। इसलिए ज्ञान और शक्ति पाने के लिए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही उन्हें ठंडक और पवित्रता के लिए चंदन चढ़ाया जाता है।
- भगवान नरसिंह की विशेष पूजा संध्या के समय की जानी चाहिए। यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले जो समय होता है उसे संध्याकाल कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इसी काल में भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे।
- भगवान नरसिंह की पूजा में खासतौर से चंदन चढ़ाया जाता है और अभिषेक किया जाता है। ये भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है। इसलिए इनका गुस्सा शांत करने के लिए चंदन चढ़ाया जाता है। जो कि शीतलता देता है। दूध, पंचामृत और पानी से किया गया अभिषेक भी इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए किया जाता है।
- पूजा के बाद भगवान नरसिंह को ठंडी चीजों का नैवेद्य लगाया जाता है। इनके भोग में ऐसी चीजें ज्यादा होती हैं जो शरीर को ठंडक पहुंचाती हैं। जैसे दही, मक्खन, तरबूज, सत्तू और ग्रीष्म ऋतुफल चढ़ाने से इनको ठंडक मिलती है और इनका गुस्सा शांत रहता है।
- वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह के प्रकट होने से इस दिन जल और अन्न का दान दिया जाता है। जो भी दान दिया जाता है वो, चांदी या मिट्टी के बर्तन में रखकर ही दिया जाता है। क्योंकि मिट्टी में शीतलता का गुण रहता है।
- नरसिंह देव के नाम- नरसिंह, नरहरि, उग्र विर माहा विष्णु, हिरण्यकश्यप अरी।
- नरसिंह विग्रह के दस (१०) प्रकार- उग्र नरसिंह, क्रोध नरसिंह, मलोल नरसिंह, ज्वल नरसिंह, वराह नरसिंह, भार्गव नरसिंह,करन्ज नरसिंह, योग नरसिंह, लक्ष्मी नरसिंह, छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह।
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