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पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार होता है, एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। त्रोयदशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिव को माता पार्वती की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव प्रदोषकाल में कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। इस पावन तिथि पर भोलेनाथ की उपासना करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है। मंगलवार के दिन किए जाने वाले व्रत को मंगल प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन व्रत करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है क्योंकि यह भौम प्रदोष व्रत है और भौम प्रदोष में हनुमान जी की भी पूजा भी जरूर करनी चाहिए ।
भौम प्रदोष व्रत कब हैं ?When is Pradosh Vrat? :-
प्रदोष व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। पंचांग के अनुसार इस समय बैशाख मास चल रहा है और शुक्ल पक्ष है। त्रयोदशी की तिथि 5 मई 2020 को पड़ रही है। दिन के अनुसार इन प्रदोष व्रत का महत्च बताया गया है। जैसे सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत, सोम प्रदोष कहलाता है। इसी तरह से मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष, व्रत भौम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। सोमवार और मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को अत्यंत शुभ माना गया है। इस बार 5 मई को मंगलवार है।
प्रदोष काल किसे कहते हैं ? What is Pradosh Kaal?
इस व्रत में प्रदोषकाल का बहुत महत्व बताया गया है। इस काल में ही भगवान शिव की पूजा का विधान है। प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वान इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मानते हैं। लेकिन अधिकतर प्रामाणिक शास्त्र में प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक ही माना गया है।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ आज तड़के 02 बजकर 53 मिनट पर हुआ है, जो आज रात 11 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। आज प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के लिए 02 घण्टे 07 मिनट की मुहूर्त है। आपको शाम 06 बजकर 59 मिनट से रात 09 बजकर 06 मिनट के मध्य देवों के देव महादेव की पूजा विधि विधान से कर लेनी चाहिए।
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भौम प्रदोष मुहूर्त । Bhaum Pradosh Muhurta :-
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ आज तड़के 02 बजकर 53 मिनट पर हुआ है, जो आज रात 11 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। आज प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के लिए 02 घण्टे 07 मिनट की मुहूर्त है। आपको शाम 06 बजकर 59 मिनट से रात 09 बजकर 06 मिनट के मध्य देवों के देव महादेव की पूजा विधि विधान से कर लेनी चाहिए।
- नित्य कार्यों से निर्वित होकर स्नान करें।
- स्नान करने के बाद भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प करना चाहिए।
- ध्यान का स्वरूप– करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किये हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिव जी हमारे सारे कष्टों को दूर कर सुख समृद्धि प्रदान करें।
- इस दिन स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के समय उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए।
- भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें और उन्हें पुष्प अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, धूप आदि अर्पित करें।
- इस बार लॅाकडाउन की वजह से घर से बाहर जाने की मनाही है, इसलिए अगर आपके घर में शिवलिंग है तो, घर में ही शिवलिंग का अभिषेक करें।
- घर में शिवलिंग नहीं है तो भगवान शिव का ध्यान करें।
- इस दिन ओम नम: शिवाय का जप करें।
- प्रदोष व्रत के दिन शिव चालीसा और आरती भी करनी चाहिए।
- इन दो आरती को करने से मिलता है प्रदोष व्रत का लाभ
- भगवान शिव को अपनी इच्छानुसार भोग लगाएं। घर में सात्विक भोजन बना कर भोले शंकर को भोग लगाएं।
- अंत में महादेव के समक्ष अपनी मनोकामना प्रकट कर दें।
- प्रसाद वितरण के बाद रात्रि जागरण करें और चतुर्दशी को सुबह पारण कर व्रत को पूर्ण करें।
- भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन कर लें।
धार्मिक भौम प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha:-
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र मांगलिया को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।
एक और कथा अनुसार -
एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी।उस दिन ना तो अपना घर लिपती थी और ना ही मिट्टी खोदती थी। बुढ़िया को व्रत करते हुए बहुत समय बीत गया । एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।
हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?
पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।
हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।
वृद्धा दुविधा में पड़ गई।अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।
यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।
वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।
इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।
लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी।
हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।
अब हवन के लिए सवा किलो (1.25 किलोग्राम) आम की लकड़ी को हवन कुंड में सजायें। हवन के लिये गाय के दूध में खीर बनायें। हवन कुंड का पूजन करें । दोनों हाथ जोड़कर हवन कुण्ड को प्रणाम करें इसके बाद अग्नि प्रज्वलित करें। तदंतर शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार आहुति दें।
हवन पूर्ण होने के पश्चात् शिव जी की आरती करें । ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार दान दें एवं भोजन करायें। आप अपने इच्छानुसार एक या दो या पाँच ब्राह्मणों को भोजन एवं दान करा सकते हैं। यदि भोजन कराना सम्भव ना हो तो किसी मंदिर में यथाशक्ति दान करें। इसके बाद बंधु बांधवों सहित प्रसाद ग्रहण करें एवं भोजन करें।
इस प्रकार उद्यापन करने से जातक पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ होता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर शिवधाम को प्राप्त करता है।
भौम प्रदोष व्रत के लाभ | Benefits of Bhaum Pradosha vrat:-
- प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव खुश होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
- भगवान शिव की कृपा से तमाम तरह के कष्टों और दुखों से छुटकारा मिल जाता है।
- इस व्रत-पूजन से मंगल ग्रह की शांति भी हो जाती है। (मंगल ग्रह की शांति के लिए इस दिन व्रत रखकर शाम के समय हनुमान और भोलेनाथ की पूजा की जाती है।इस दिन हनुमान मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ करके बजरंग बली को बूंदी के लड्डू अर्पित करके उसके बाद व्रतधारी को भोजन करना चाहिए।)
- कर्ज से मुक्ति के लिए इस दिन शाम के समय किया गया हनुमान चालीसा का पाठ लाभदायी सिद्ध होता है।
- ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है और संतान दीर्घायु होती है।
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