Vat Savitri vrat 2020: वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा
वट सावित्री व्रत कब है?
वट सावित्री व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त | Vat Savitri Vrat Tithi and Subha Muhurat:-
क्या है वट सावित्री व्रत का महत्व :-
वट / बरगद वृक्ष का महत्व :-
वटवृक्ष की अन्य विशेषताए :-
सावित्री का महत्त्व :-
वट सावित्रि व्रत पूजा विधि | Vat Savitri Vrat Pooja Vidhi:-
- इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्त्रियां केशों सहित स्नान करें।
- वट सावित्री व्रत में सभी स्त्रियां सौलह सिंगार करती हैं।
- तत्पश्चात पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
- तत्पश्चात एक बांस की टोकरी में सप्त धान्य या रेत भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
- ब्रह्मा के वाम-पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
- इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियाँ स्थापित करके दोनों टोकरियाँ वट वृक्ष के नीचे रखनी चाहिए।
- सर्वप्रथम ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करना चाहिए।
- अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें : –
- तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करें तथा वट के वृक्ष को पानी दें ।
- इसके बाद निम्न श्लोक से वट वृक्ष की प्रार्थना करें –
- जल, फूल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, गुड़ तथा धूप-दीप से वट वृक्ष की पूजा की जाती है ।
- वट वृक्ष को जल चढ़ा कर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें ।
- वट के पत्तों के गहने पहन कर वट – सावित्री की कथा सुननी चाहिए।
- भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास को दें तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
- यदि सास दूर हो तो बायना बनाकर वहां भेज दें।
- वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुंमकुंम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।
- पूजा के समाप्त होने पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिए।
- यदि आपके आस-पास कोई वट वृक्ष नहीं हो तो दीवार पर वट वृक्ष की तस्वीर लगा कर श्रद्धा और आस्था से पूजा करें।
- अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें : –
- इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करें अथवा औरों को सुनाएं।
- स्त्रियाँ ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती और व्रत तोड़ती हैं।
वट सावित्री व्रत कथा :-
सावित्री सत्यवान कथा :-
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राजा अश्वपति अपनी बेटी सावित्री को अपने लिए एक पति का चयन करने के लिए कहते हैं। (सौजन्य: गीता प्रेस द्वारा हिंदी में महाभारत) |
सावित्री जब विवाह योग्य हुई तो राजा ने उसे स्वयं अपना वर चुनने को कहा और अपने पति को तलाशने के लिए भेज दिया ।एक दिन महर्षि नारद जी राजा अश्वपतिके यहाँ आये हुए थे तभी सावित्री अपने वर का चयन करके लौटी। उसने आदरपूर्वक नारद जी को प्रणाम किया। नारद जी के पूछने पर सावित्री ने कहा – ” राजा द्युमत्सेन, जिनका राज्य हर लिया गया है, जो अंधे होकर अपनी पत्नी के साथ वनों में भटक रहे हैं, उन्हीं के इकलौते आज्ञाकारी पुत्र सत्यवान को मैंने अपने पतिरूप में वरण किया हैं।”
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सावित्री ने सत्यवान से अपने पिता से शादी करने का अपना फैसला सुनाया और ऋषि नारद ने इसे एक भयानक अप-शगुन घोषित कर दिया। (सौजन्य: गीता प्रेस द्वारा महाभारत) |
तब नारद जी ने सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहों की गणना करके उसके भूत, वर्तमान तथा भविष्य को देख कर राजा से कहा -” राजन ! तुम्हारी कन्या ने निःसन्देह बहुत योग्य वर का चुनाव किया हैं। सत्यवान गुनी तथा धर्मत्मा हैं। वह सावित्री के लिए सब प्रकार से योग्य है परन्तु एक भारी दोष है । वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद अर्थात जब सावित्री बारह वर्ष की हो जाएगी उसकी मृत्यु हो जाएगी।
नारद जी की ऐसी भविष्यवाणी सुनकर राजा से अपनी पुत्री को अन्य वर खोजने के लिए कहा। इस पर सावित्री ने कहा -” पिताजी ! आर्य कन्याएं जीवन में एक ही बार अपने पति का चयन करती है । मैंने भी सत्यवान को मन से अपना पति स्वीकार कर लिया है, अब चाहे वो अल्पायु हो या दीर्घायु, मैं किसी अन्य को हृदय में स्थान नहीं दे सकती।”
सावित्री ने आगे कहा – ” पिताजी, आर्य कन्याएं अपना पति एक बार चुनती है।राजा एक बार ही आज्ञा देते है, पण्डित एक बार प्रतिज्ञा करते है तथा कन्यादान भी एक बार किया जाता है।अब चाहे जो हो सत्यवान ही मेरा पति होगा।”
सावित्री के ऐसे दृढ वचन सुनकर राजा अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया।सावित्री ने नारद जी से अपने पति की मृत्यु का समय ज्ञात कर लिया था। सावित्री अपने पति और सास – ससुर की सेवा करती हुई वन में रहने लगी ।
समय बीतता गया और सावित्री बारह वर्ष की हो गयी। नारद जी के वचन उसको दिन-प्रतिदिन परेशान करते रहे। आखिर जब नारदजी के कथनानुसार उसके पति के जीवन के तीन दिन बचें, तभी से वह उपवास करने लगी। नारद जी द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। प्रतिदिन की भाटी उस दिन भी सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए चला तो सास-ससुर से आज्ञा लेकर वह भी उसके साथ वन में चल दी ।
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सावित्री अपने पति सत्यवान से कहती है कि वह उसके साथ जंगल जाए। (सौजन्य: गीता प्रेस द्वारा हिंदी में महाभारत) |
वन में सत्यवान ने सावित्री को मीठे-मीठे फल लेकर दिये और स्वयं एक वृक्ष पर लकड़ियां काटने के लिए चढ़ गया । वृक्ष पर चढ़ते ही सत्यवान के सर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह वृक्ष से निचे उतर आया। सावित्री ने उसे पास के बड़ के वृक्ष के नीचे लिटाकर सर अपनी गोद में रख लिया।सावित्री का हृदय काँप रहा था।
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यम सत्यवान की आत्मा को लेने आता है और सावित्री उसका पीछा करती है। (सौजन्य: गीता प्रेस द्वारा महाभारत) |
तभी उसने दक्षिण दिशा से यमराज को आते देखा।यमराज और उनके दूत धर्मराज सत्यवान के जीव को लेकर चल दिये तो सावित्री भी उनके पीछे चल पड़ी। पीछा करती सावित्री को यमराज ने समझकर वापस लौट जाने को कहा । परन्तु सावित्री ने कहा – ” हे यमराज ! पत्नी के पत्नीत्व की सार्थकता इसी में है कि वह पति का छाया के सामान अनुसरण करे। पति के पीछे जाने जाना ही स्त्री धर्म है । पतिव्रत के प्रभाव से और आपकी कृपा से कोई मेरी गति नहीं रोक सकता यह मेरी मर्यादा है ।इसके विरुद्ध कुछ भी बोलना आपके लिए शोभनीय नहीं है ।”
सावित्री के धर्मयुक्त वचनों से प्रसन्न होकर यमराज ने उससे उसके पति के प्राणों के अतिरिक्त कोई वरदान मांगने को कहा । सावित्री ने यमराज से अपने सास-ससुर की आँखों की खोई हुई ज्योति तथा दीर्घायु मांग ली ।यमराज “तथास्तु ” कहकर आगे बढ़ गए। फिर भी सावित्री ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा ।यमराज ने उसे फिर वापस जाने को कहा।इसपर सावित्री ने कहा –” हे धर्मराज !मुझे अपने पति के पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है।पति के बिना नारी जीवन को कोई सार्थकता नहीं है ।हम पति-पत्नी भिन्न-भिन्न मार्ग कैसे जा सकते है ।पति का अनुगमन मेरा कर्तत्व है।”
यमराज ने सावित्री के पतिव्रत धर्म की निष्ठा देख कर पुनः वर मांगने को कहा। सावित्री ने अपने सास-ससुर के खोये हुए राज्य की प्राप्ति तथा सौ भाइयों की बहन होने का वर माँगा । यमराज पुनः “तथास्तु ” कहकर आगे बढ़ गए। परन्तु सावित्री अब भी यमराज का पीछा किये जा रही थी। यमराज ने फिर से उसे वापस लौट जाने को कहा, परन्तु सावित्री अपने प्रण पर अड़िग रही।
तब यमराज ने कहा –” हे देवी ! यदि तुम्हारे मन में अब भी कोई कामना है तो कहो। जो माँगोगी वही मिलेगा। ” इस पर सावित्री ने कहा- “यदि आप सच में मुझ पर प्रसन्न है और सच्चे हृदय से वरदान देना चाहते है तो मुझे सौ पुत्रों की माँ बनने का वरदान दें।” यमराज “तथास्तु ” कहकर आगे बढ़ गए।
यमराज ने पीछे मुड़कर देखा और सावित्री से कहा- ” अब आगे मत बढ़ो। तुम्हे मुंहमांगा वर दें चूका हूँ, फिर भी मेरा पीछा क्यों कर रही हो?
सावित्री बोली – “धर्मराज ! अपने मुझे सौ पुत्रों की माँ होने का वरदान तो दें दिया, पर क्या मैं पति के बिना संतान को जन्म दें सकती हूँ? मुझे मेरा पति वापस मिलना ही चाहिए, तभी मैं आपका वरदान पूरा कर सकूँगी। “
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यम सत्यवान की आत्मा को मुक्त करता है और सावित्री अपने पति के साथ लौटती है। (सौजन्य: गीता प्रेस द्वारा महाभारत) |
सावित्री की धर्मनिष्ठा, पतिभक्ति और शक्तिपूर्ण वचनों की सुनकर यमराज नें सत्यवान के जीव को मुक्त कर दिया । सावित्री को वर देकर यमराज अंर्तध्यान हो गए । सावित्री उसी वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहाँ सत्यवान का शरीर पड़ा था। सावित्री ने प्रणाम करके जैसे ही वट वृक्ष की परिक्रमा पूर्ण की वैसे ही सत्यवान के मृत शरीर जीवित हो उठा। दोनों हर्षातुर से घर की ओर चल पड़े।
प्रसन्नचित सावित्री अपने पति सहित सास-ससुर के पास गई।उनकी नेत्र ज्योति वापस लौट आई थी ।उनके मंत्री उन्हें खोज चुके थे ।राजा द्युमत्सेन ने पुनः अपना राज सिंहासन संभाल लिया था।
उधर महाराज अश्वसेन सौ पुत्रों के पिता हुए और सावित्री सौ भाइयों की बहन। यमराज के वरदान से सावित्री सौ पुत्रों की माँ बनी। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रत का पालन करते हुए अपने पति के कुल एवं पितृकुल दोनों का कल्याण कर दिया। सत्यवान और सावित्री चिरकाल तक राज सुख भोगते रहे और चारों दिशाओं में सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति गूंज उठी ।