पौराणिक और ऐतिहासिक बक्सर : जिसने राम को दी सिद्धि और बुद्ध को दी बुद्धि



बक्सर जिला एक ऐतिहासिक और पौराणिक शहर के रूप में मशहूर रहा है।बक्सर का नाम पहले बक्सर नहीं था, इसे अब बक्सर के नाम से जानते हैं। बक्सर पटना से लगभग 130 किमी पश्चिम और मुगलसराय से 60 मील पूरब में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है।यह महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र भी है। बता दें कि कार्तिक पूर्णिमा को यहां बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों लोग इकट्ठे होते हैं।यूंही बक्सर को ज्ञान विज्ञान का तपोवन नहीं कहा गया है। महर्षि विश्वामित्र के तप-बल का ही प्रभाव था कि मर्यादा पुरूषोत्तम रामअनुज लक्ष्मण ने, उनसे वीरोचित शिक्षा ग्रहण करके राक्षसी वृत्तियों का संहार किया था। धार्मिक पुस्तकों में बक्सर को महर्षि विश्वामित्र की जन्मस्थली तो नहीं बताया गया है, परंतु इस स्थल को उनका तपोभूमि कहा गया है। बक्सर अपने ज्ञान, अध्यात्म और कर्मभूमि के लिए बिहार के कोने-कोने में अपनी खास पहचान रखता है। सतयुग में बक्सर का नाम सिद्धाश्रम था, त्रेतायुग में बामनाश्रम, द्वापरयुग में वेदगर्भा और कलियुग में व्याघ्रसर से इसका नाम बक्सर हो गया।

किंवदंतियों के अनुसार कभी बक्सर का इलाका जंगल हुआ करता था। जंगल के बीचोबीच एक सर (तालाब ) था, जहां बाघ पानी पीने आया करते थे। बाघ को संस्कृत में व्याघ्र कहते हैं। इसलिए इस जगह को व्याघ्रसर कहा जाने लगा ।यही व्याघ्रसर कालांतर में अपभ्रंशित हो बघसर या बगसर हो गया ।आम बोलचाल की भाषा में आज भी पुराने लोग इसे बगसर कहते हैं।शास्त्रों में राजा गाधि के पुत्र महर्षि विश्वामित्र का जन्म कार्तिक शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि में वर्णित है। खास बात यह है कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होते हुए भी राज्य-काज, संपदा व ऐश्वर्य से बढ़कर उन्होंने तप-बल को महत्व दिया। उन्होंने बताया कि धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि राज ऋषि होते हुए भी गुरूवर वशिष्ठ ने इन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि दी। बक्सर इनका कार्य स्थल रहा है और यहीं वे जप-तप, यज्ञ, योग आदि किया करते थे इसलिए बक्सर को विश्वामित्र नगरी के नाम से भी जाना जाता है।


रामरेखा घाट ,बक्सर

रामरेखा घाट

महान भारतीय महाकाव्य, रामायण में उल्लेख किया गया है कि राम ने अपने धनुष से गंगा नदी पर एक रेखा खींची, ताकि राक्षस उस क्षेत्र में न जा सकें। राम रेखा (शाब्दिक रूप से राम की पंक्ति) घाट को वह पवित्र स्थल माना जाता है। लोककथाओं के अनुसार, राम, लक्ष्मण (उनके छोटे भाई) और संत विश्वामित्र ने सीता के स्वयंवर (एक ऐसा समारोह जिसमें महिला उस पुरुष को चुनती है जिससे वह शादी करना चाहती है) के लिए जनकपुर जाते समय इस स्थान पर गंगा को पार किया था। नदी के किनारे पर एक निशान है, जो माना जाता है कि राम के पैरों की छाप है। मकर संक्रांति (14 जनवरी) के त्योहार के दौरान, लोग पवित्र नदी में डुबकी लगाने के लिए घाट पर जाते हैं, जिसके बाद वे खिचड़ी (दाल और चावल से बने पकवान) खाते हैं। इसलिए, इसे खिचरी पर्व (त्योहार) के रूप में भी जाना जाता है। घाट पर छठ पर्व के दौरान भी भक्तों की भीड़ देखी जाती है।



बक्सर के ऐतिहासिक होने का साक्ष्य वराह्पुराण, ब्रह्म्व्यवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, नारद पुराण, श्रीमद भागवत पुराण, गरुण पुराण, भविष्य पुराण, बाल्मीकि पुराण (महाभारत) आदि में मिलता है। पुराणों में लिखा है कि ‘सिद्धाश्रमसमं तीर्थं न भूतं न भविष्यति।’ मतलब पूरी पृथ्वी पर सिद्धाश्रम के समान न तीर्थ हुआ है और न होगा। जहां ऋषि तो ऋषि खुद ब्रह्मा और भगवान ने खुद को सिद्ध किया।

तपोस्थली के कारण नाम पड़ा सिद्धाश्रम

स्थान : बक्सर स्टेशन।

किंवदंतियों के अनुसार 88 हजार ऋषियों-मुनियों की तपोस्थली होने के कारण ही पूर्वकाल में बक्सर का नाम सिद्धाश्रम पड़ा। बक्सर ही वह पुण्य भूमि है, जहां विश्व के प्रथम तत्वदर्शी, वैज्ञानिक, मंत्रद्रष्टा व सृष्टि के संस्थापक महर्षि विश्वामित्र ने अपना आश्रम बनाया था। महर्षि विश्वामित्र भारत की प्रचलित व्यवस्था के विरूद्ध क्रांतिकारी कदम उठाने वाले प्रथम व्यक्ति तो थे ही, उनके द्वारा स्थापित सिद्धाश्रम विश्व का पहला शैक्षणिक संस्थान भी था। उन्हीं के तपबल के प्रभाव से प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण को शस्त्रनीति, धर्मनीति, कर्मनीति व राजनीति शास्त्र का विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ। जहां दोनों भाइयों ने मिलकर प्रसिद्ध ताड़का राक्षसी, सुबाहु आदि राक्षसों का संहार करते हुए मानवीय आदर्शों के कीर्तिमान के रूप में रामराज्य की स्थापना की थी।इस स्थान को गंगा, सरयू संगम के निकट बताया गया है-

‘तौ प्रयान्तौ महावीयौ दिव्यां विपथगां नदीम्, दद्दशास्ते ततस्तत्र सरय्वाः संगमे शुभे, तत्रा श्रमं पुण्यमृषीणां भावितात्मनाम्।’

यहाँ संगम के निकट गंगा को पार करने के पश्चात् राम तथा लक्ष्मण ने भयानक वन देखा था, जहाँ राक्षसी ताड़का का निवास था। वह वन मलद और कारुष जनपदों के निकट था। 

26 जून, सन 1539, चौसा युद्ध - 481 साल पुराना ईतिहास।

बक्सर के युद्ध (1764) के परिणामस्वरूप निचले बंगाल का अंतिम रूप से ब्रिटिश अधिग्रहण हो गया।इसी नाम का एक जिला शाहबाद (बिहार में) का अनुमंडल है।मान्यता है कि एक महान पवित्र स्थल के रूप में पहले इसका मूल नाम ‘वेदगर्भ’ था। कहा जाता है कि वैदिक मंत्रों के बहुत से रचयिता इस नगर में रहते थे। इसका संबंध भगवान राम के प्रारंभिक जीवन से भी जोड़ा जाता है।राज्य में बक्सर ही एक ऐसा जिला है जो त्रेतायुग से लेकर आज तक की स्मृतियों को अपने दामन में समेटे हैं। भगवान श्रीराम की पाठशाला माने जाने वाले बक्सर को मिनी / छोटा  काशी भी कहा जाता है।


बक्सर में ही गंगा पार कर कपिलवस्तु से बोधगया गए थे गौतम बुद्ध

बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि भगवान बुद्ध को बुद्धि इसी मिट्टी ने दी। यह बात बौद्ध धर्मदर्शन के अध्ययन से पता चलती है। इस ग्रंथ के अनुसार ‘आराद कालाम’ और ‘उद्दक रामपुत्र’ के सांख्य दर्शन का सिद्धांत इसी बिहार प्रदेश में प्रचलित था। सिद्धार्थ गौतम ने जब सन्यास ग्रहण किया तब प्रथम में इन्ही विद्वानों के सम्प्रदाय में उन्होंने सांख्यदर्शन तथा समाधि की शिक्षा ली थी। आराद कालाम के मत के ही एक अनुयायी ‘भरण्डु कालाम’ सिद्धार्थ गौतम के गांव कपिलवस्तु में रहते थे। अपने गृहस्थ जीवन में सिद्धार्थ ने इसी भरण्डु आश्रम में संन्यास धर्म की महिमा जानी और समाधि की दीक्षा ली। संन्यास ग्रहण करने की प्रेरणा भी यहीं से मिली।वर्तमान में भी केसठ गांव में एक विद्यालय स्थापित है जिसका नाम गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के नाम पर है। हालांकि विद्यालय की वहीं गांव में हजारों वर्ष पुरानी मठिया भी मौजूद है।



विभिन्न समुदाय और सत्संग के मठ-मंदिर, श्रीराम से जुड़े स्थल, ब्रह्मपुर का बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर, चैसा का मैदान, बक्सर युद्ध का गवाह कथकौली मैदान, खूबसूरतगोकुल जलाशय के आसपास हिरणों का अघोषित अभयारण्य, चैसा के पास उत्तरायण से करवट लेती गंगा की मनमोहिनी चाल, चैसा का च्यवनमुनि का आश्रम और भी बहुत कुछ है।


बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर, ब्रह्मपुर।

सृष्टि के रचयिता ने बनवाया ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर, ब्रह्मपुर

ऐसी मान्यता हैं की इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान ब्रह्मा ने किया था। वैसे नाम से भी काफी हद तक ये मालूम भी चल रहा है की ब्रह्मपुर का मतलब ब्रह्मा की नगरी। ऐसा कहा जाता है की एक बार मुस्लिम शासक गजनवी इस मंदीर को तोड़ने के लिया आया। यहाँ लोग ने उसे ऐसा करने से मना किया और चेतावनी दी की अगर ऐसा करोगे तो भगवान शिव की तीसरी आँख खुल सकती है और वो तुम्हे नाश कर देंगे क्यों की ये मंदिर कोई व्यक्ति विशेष द्वारा निर्मित नहीं है बल्कि इस मंदिर का शिवलिंग जमीन से खुद निकला है और ऐसा चमत्कार है की ये हमेशा बढ़ते रहता है। इस पर गजनवी ने कहा की मुझे ऐसे भगवांन पर विश्वास नहीं है अगर वो सच में दुनिया में है तो रात भर में मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम की तरफ हो जाये (जैसा की हरेक शिव मंदिर का द्वार पूरब की तरफ ही होता है ) फिर मैं भी मान लूँगा और फिर कभी हम लोग दुबारा नहीं लौटेंगे। ऐसा कहा जाता है अगले सुबह में जब गजनवी मंदिर तोड़ने आया तो देखा की इस मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम में हो गया था और गजनवी देख के हतप्रभ रह गया था। आज भी इस मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ ही है और प्रमाण है की इस मंदिर के शिवलिंग का आकार समय समय पर बड़ा ही होते जा रहा है। इस मंदिर को लोग बड़ा ही पवित्र मानते है और अलग जगह के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु जरुर आते है।



बक्सर का किला
बक्सर का किला


बक्सर का किला

1954 में राजा रुद्र देव द्वारा निर्मित बक्सर किला गंगा के किनारे एक कृत्रिम टीले पर स्थित है।नदी तट के किनारे 1926-1927 के दौरान हुई खुदाई के दौरान उन्होंने ब्राह्मी लिपि में शिलालेखों के साथ दो मुहरों का पता लगाया, जो तीसरी शताब्दी और चौथी शताब्दी के पहले की हैं, यह दर्शाता है कि टीला काफी प्राचीन है। 1812 में, फ्रांसिस बुकानन ने किले का दौरा किया। उन्होंने कहा कि किले के केवल दक्षिणी भाग और गढ़ों में खड़ा है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि किले में एक भूमिगत मार्ग था जो प्राचीन चित्रों को रखता था और उस स्थान को पातालगंगा के नाम से जाना जाता था।  1871-1872 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने किले का दौरा किया, उन्होंने कहा कि उन्हें वहां कोई ऐतिहासिक कलाकृतियां नहीं मिलीं और यह भी कहा कि यह "विशुद्ध रूप से ब्राह्मणवादी स्थल" था और इसमें "पुरातात्विक हितों का कुछ भी नहीं था"। 


गंगा तट पर अवस्थित पौराणिक रामरेखा घाट के पश्चिम के ओर एक ऊंचा स्थान है जिसे बक्सर का किला कहते हैं।इस किले के आसपास चारों तरफ लम्बी गहरी खाईयां आज भी मौजूद है। किले के तीन कोणों पर बुर्ज बने हुए हैं जिस पर किले की सुरक्षा के लिए तोप रखे जाते थे।मौजूदा स्थिति में बुर्ज तो मौजूद है। लेकिन तोप और तोपखानों का कोई पता नही है। इस किले की एक मान्यता और भी है कि ये दुनिया का सबसे छोटा किला है। फिलहाल ये किला जिला अतिथि गृह, के रूप में जिला प्रशासन के अधीन है। किले को हिंदी कैलेंडर के अनुसार सम्वत 1111 में राजा रुद्रशाह ने बनवाया था। आगे चलकर भोजपुर (पुराना जिला) के राजा भोजदेव हुए और उन्होंने बक्सर के किले को अपना गढ़ बनाया और किले की मरम्मत कराई।तब से ये किला परमार वंश के राजाओं के अधीन रहा।

राजा रुद्रप्रताप नारायण सिंह ने 1633 ईस्वी में नवरत्न गढ़ (जिसे भोजपुर किला या राजा भोज किला भी कहा जाता है) का निर्माण किया। कहा जाता है कि किले में 52 गलियाँ और 56 दरवाजे थे।

परमार वंश राजा भोजदेव के ही वंशज थे। जौनपुर के नवाब ख्वाजा और भोजपुर के राजा हरराज प्रसाद में किसी कारणवश लड़ाई शुरू हो गयी जो की लगभग 95 सालों तक चली।

इसी बक्सर के किले में राजा हरराज लड़ते हुए शहीद हो गये थे। 1456 ई० में नवाब ख्वाजा मर गया और उसके बाद गजराज ने गद्दी पर कब्जा कर लिया।

बिहारी जी मंदिर, डुमराँव।मंदिर का निर्माण 1825 में डुमरांव के महाराजा जयप्रकाश सिंह के आदेश पर किया गया था।


बाबा नाथ मंदिर


नौलखा मंदिर,बक्सर


1956 में देशभर में अव्वल था लेख


वर्ष 1956 ई. में बुद्ध परिनिर्वाण की 1500वीं जयंती के उपलक्ष्य में शिक्षा विभाग ने ‘बौद्ध धर्म के विकास में बिहार की देन’ शीर्षक पर निबंध लिखवाने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता कराई थी। प्रतियोगिता में ‘बौद्ध धर्म और बिहार’ का 75 पृष्ठों वाला प्रारूप सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित होकर प्रथम पुरस्कार से सम्मानित हुआ था। तब परिषद से प्रकाशित कराने का सुझाव दिया गया। बाद में निबंध के लेखक हवलदार त्रिपाठी सहृदय ने बड़े ही परिश्रम से उसका विस्तार कर सर्वांग पूर्ण पांडुलिपि तैयार कर दी।

संत : जो जीते जी पूजे गए भगवान की तरह

परमपूज्य श्रीत्रिदंडी स्वामी जी

परमपूज्य श्रीत्रिदंडी स्वामी जी राजपुर के सिसराढ़ गांव में अवतरित हुए थे। ये एक ऐसे संत हुए जो प्रातः स्मरणीय बन गए। उन्हें ऋषि परम्परा का ध्वजवाहक माना जाता है। श्री सम्प्रदाय के देशभर में उन्होंने प्रसिद्धि पायी। जिले में संस्कृत विद्यालय, कॉलेज व वैदिक परम्परा के गुरुकुल की स्थापना की। 

परमपूज्य मामाजी महाराज

परमपूज्य मामाजी महाराज, का जन्म पांडेयपट्टी गांव में एक चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार में 1933 में हुआ। सीताजी को अपनी बहन मानने के नाते प्रभु श्रीराम को अपना बहनोई मानने लगे। इसी रिश्ते के कारण “मामाजी” महाराज के नाम से विश्वविख्यात हुए। मामाजी महाराज ने अनेक नाटक, पुस्तक, दोहे व कविताएं लिखीं।


वे सपूत जिन्होंने गाढ़ी बक्सर की सूरत 


भाषा व साहित्य के धरोहर, साहित्य के शिव : आचार्य शिवपूजन सहाय


साहित्य के शिव कहे जाने वाले आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म इटाढ़ी प्रखंड के उनवांस गांव में हुआ। उन्होंने हिंदी साहित्य में आंचलिक विधा का सृजन किया। अपनी रचनाधर्मिता से साहित्य जगत में इस जिले को उन्होंने बखूबी स्थापित किया।


भोजपुरी भाषा के गर्व और गुमान माने जाते हैं विश्वनाथ प्रसाद शैदा


‘धन्य भोजपुर ई हमार आ धन्य इहां के माटी, कवनो गुन में एसे ना केहू आंटल ना आंटी’ भोजपुर जनपद के इतिहास, भूगोल के वर्णन और गर्व-गुमान से भरे इस कविता ‘भोजपुरी के माटी’ के रचयिता विश्वनाथ प्रसाद शैदा डुमरांव के रहने वाले थे।

भोजपुरी में पहला कहानी संग्रह अवध बिहारी सुमन का आया था


वर्ष 1947 में भोजपुरी भाषा में पहला कहानी संग्रह ‘जेहलि के सनद’ समेत सैकड़ों कविताओं के रचनाकार अवध बिहारी सुमन राजपुर प्रखंड के मंगरांव गांव निवासी थे। बाद में वे दंडी स्वामी विमलानंद सरस्वती के नाम से मशहूर हुए।

आधुनिक बिहार के निर्माता डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा भी यहीं के पैदाइश


भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म चौगाईं प्रखण्ड के मुरार गांव में हुआ। इस सपूत ने आधुनिक बिहार का निर्माण किया। किताबों से मोहब्बत करने वाले सच्चिदा बाबू के नाम से पटना में लाइब्रेरी हर बक्सरवासी को गौरव बोध कराती है।

चौगाईं से सीएम हाउस तक का सरदार हरिहर सिंह ने किया सफर


निर्विवाद और धवल चरित्र के स्वामी सरदार हरिहर सिंह का जन्म चौगाई प्रखंड के मुरार में हुआ था। बचपन से ही समाजसेवा के लिए तत्पर रहने वाले हरिहर बाबू ने निःस्वार्थ भाव से इसे अपने आचरण में शामिल रखा। नतीजतन वे बिहार के मुख्यमंत्री बने।अवधि -26 फरवरी 1969 - 22 जून १९६९ ,117 दिन । 


अदम्य साहस व जीवटता के हमेशा पर्याय माने गए धावक शिवनाथ सिंह


मझरियां निवासी शिवनाथ सिंह अदम्य साहस के पर्याय थे। मैराथन में 2 घंटे 16 मिनट में 42 किलोमीटर दौड़ने वाले शिवनाथ सिंह के रिकॉर्ड को एशिया का कोई धावक नहीं तोड़ सका है। एक जूता के लिए तरसने वाले शिवनाथ ने तीन एशियाड व दो ओलंपिक में हिस्सा लिया था।

सांस्कृतिक सरजमीं के सितारें


शहनाई के शहंशाह : भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां


उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म डुमरांव में हुआ। सुरों के बेताज बादशाह शहनाई के शहंशाह उस्ताद को देश की आजादी के पहले समारोह में लालकिले के प्राचीर से शहनाई वादन का सौभाग्य मिला था।


प्रतिरोध के महानायक माने गए चाईं ओझा


ब्रह्मपुर के देवकुली गांव में जन्में चाईं ओझा ने अपनी कला, नृत्य-संगीत के लिए जिस विपरीत परिस्थिति में भी खुद को अडिग रखे। वह उन्हें सामान्य गायकों से बहुत ऊपर स्थापित करती है। वे परंपरा तोड़ने वाले अद्भुत कलाकार थे।

जीते जी बन गए संस्था : सीताराम उपाध्याय


सोहनीपट्टी मोहल्ले में पैदा हुए सीताराम उपाध्याय ने इतिहास का आईना बनाया। जहां लोग वर्तमान में जीते हुए भविष्य सोचते हैं वहीं सीताराम ने पूरी जिंदगी बीते हुए कल को सहेजने में लगा दी। वे जीते जी संस्था बन गए। हजारों साल पुराने मृदभांड और मृद मूर्तियों को जुटा संग्रहालय का रूप दिया।

बक्सर में लगने वाला मेला 


  • पंचकोशी परिक्रमा 

पंचकोशी मेला 

आज बक्सर पंच कुण्ड, पंचाश्रम व पंच शिवलिंग के कारण एक तीर्थ स्थल बन गया है । माघ की पंचमी से बक्सर में पंचकोसी मेला लगता है, जो गौतम आश्रम (अहिरौली) से शुरू होकर नारद आश्रम (नदांव), भार्गवाश्रम (भभुवर) , उदालाकाश्रम ( नुआँव) होते हुए विश्वामित्राश्रम ( चारित्रवन) में खत्म होता है , जहां लिट्टी चोखा का भोग लगता है , जिसे उस दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है ।

  • सीता राम विवाह महोत्सव



सीता राम विवाह महोत्सव (सिया पिया मिलन के रूप में लोकप्रिय) नवंबर माह में आयोजित एक विवाह उत्सव है। इस अवसर पर देश भर से हजारों संत और तीर्थयात्री बक्सर के नया बाजार इलाके में स्थित सीता राम विग्रह आश्रम पर उतरते हैं।


पर्यटन मानचित्र पर उपेक्षित


महर्षि विश्वामित्रभगवान श्रीराम से जुड़े होने के बावजूद बक्सर को पर्यटन मानचित्र पर अबतक नहीं लाया जा सका है।जबकि धार्मिक टूरिज्म के बल पर ही हरिद्वार, वाराणसी और मथुरा-अयोध्या शहरों का पूरे देश में नाम है। हालांकि, रामायण काल से जुड़े तथ्यों के आधार पर यहां कई परंपराओं का निर्वहन आज भी आस्था पूर्वक होता है। इनमें पंचकोश परिक्रमा व सिय-पिय मिलन समारोह आदि ऐसे भव्य धार्मिक आयोजन हैं, जिसमें देशभर के लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। परंतु, पर्यटन के मुताबिक सुविधाएं नहीं मिलने के कारण यहां केवल परंपरा निभा तुरंत वापस चले जाते हैं।

कृतपुरा पिकनिक स्पॉट, बक्सर।

कैसे करें प्रवेश ?


बक्सर बिहार राज्य का एक प्रसिद्ध जिला है, जहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। 

कब जाएं: अक्टूबर-मार्च

एयर द्वारा बक्सर तक पहुंचने के लिए

निकटतम घरेलू हवाई अड्डा लोक नायक जयप्रकाश हवाई अड्डा, पटना, बक्सर से 119 किलोमीटर दूर स्थित है। पटना में बैंगलोर, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, हैदराबाद, मुंबई, रांची, भोपाल, अहमदाबाद, गोवा और विशाखापत्तनम जैसे कई शहरों की दैनिक उड़ानें हैं।

रेल द्वारा बक्सर पहुंचने के लिए

यह रेलवे द्वारा उत्तर भारत के विभिन्न प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कई रेलगाड़ियां हैं जो बक्सर को हावड़ा, मुंबई, अहमदाबाद और नई दिल्ली जैसे कई महत्वपूर्ण स्थानों से जोड़ती हैं।

रोड द्वारा बक्सर पहुंचने के लिए

बक्सर बहुत अच्छी तरह से सड़क से विभिन्न प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यह गाजीपुर से 52 किलोमीटर, वाराणसी से 132 किलोमीटर, पटना से 119 किलोमीटर, लखनऊ से 409 किलोमीटर, कानपुर से 462 किलोमीटर, कोलकाता से 633 किलोमीटर और दिल्ली से 952 किलोमीटर दूर है।


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