आज यानी 2 जून 2020 को ज्येष्ठ गायत्री जंयती हैं । हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में गायत्री मंत्र का विशेष महत्व होता है। समस्त वेदों की उत्पति माता गायत्री के द्वारा मानी जाती है। इसी कारण से इन्हें वेदमाता भी कहा जाता है। वेदमाता के अतिरिक्ति गायत्री माता को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। माना जाता है कि देवी गायत्री ब्राह्मण की सभी अभूतपूर्व विशेषताओं का प्रकटीकरण है।उन्हें हिंदू त्रिमूर्ति की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। देवी गायत्री को देवी सरस्वती, देवी पार्वती और देवी लक्ष्मी के अवतार के रूप में माना जाता है।हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पर मां गायत्री का जन्म हुआ था। हालांकि गायत्री जयंती की तिथि को लेकर कई तरह के मत है। कई जगहों पर ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा की तिथि पर गायत्री जयंती मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग गंगा दशहरा के अगले दिन यानी एकादशी की तिथि पर भी मनाते हैं। कुछ स्थानों पर श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भी गायत्री जयंती मनाने की परंपरा होती है। मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इसी तिथि पर पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था, जिसके बाद ज्येष्ठ माह की पवित्र एकादशी को गायत्री जयंती के रूप में जाना जाने लगा।
ज्येष्ठ गायत्री जयन्ती पूजा शुभ मुहूर्त:-
ज्येष्ठ गायत्री जयन्ती :- मंगलवार, जून 2, 2020 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ :- जून 01, 2020 को 2:57 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त :- जून 02, 2020 को 12:04 पी एम बजे
आज शुभ मुहूर्त निर्जला एकादशी की तिथि के अनुसार है। व्रती आज दोपहर में 12 बजकर 04 मिनट तक माता गायत्री की पूजा-उपासना कर सकते हैं।
गायत्री जयंती पूजा विधि:-
इस दिन गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य दें। गायत्री मंत्र का कम से कम 5 बार जरूर जाप करें। इसके बाद माता गायत्री को साक्षी मानकर उनकी प्रतिमा अथवा तस्वीर की पूजा फल, फूल, धूप-दीप, अक्षत चन्दन, जल आदि से करें। संभव हो तो व्रत उपवास करें।
गायत्री मंत्र:-
इसका अर्थ होता है- समस्त दुखों को नाश करने वाले, तेजोमय जीवन देने वाले, पापों को नाश करने वाले, बल, बुद्धि और विद्या देने वाले, मानव स्वरूप देने वाले, प्राण देने वाले परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में स्थान दें। वह ईश्वर हमें चेतना दें और सत्य मार्ग पर चलने के लिए मार्ग प्रशस्त करें।
गायत्री जयंती महत्व:-
रोजाना गायत्री मंत्र के जाप से अध्यात्म चेतना का सृजन होता है। इससे व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। साथ ही व्यक्ति को यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है। पवित्र ग्रन्थ गीता में श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि व्यक्ति को परमात्मा को पाने के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। धार्मिक मान्यता यह भी है कि गायत्री मंत्र के जाप से तीनों वेदों के अध्ययन समतुल्य फल प्राप्त होता है।
कौन हैं मां गायत्री?
चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है। शास्त्रों अनुसार मां गायत्री वेद माता के नाम से जानी जाती हैं। वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायंत्री मंत्र में ही चारों वेदों का सार है। इसलिए गायत्री जयंती के दिन गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करें।
- अथर्ववेद में बताया गया है कि मां गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस मिलता है। विधि और नियमों से की गई गायत्री उपासना रक्षा कवच बनाती है। जिससे परेशानियों के समय उसकी रक्षा होती है। देवी गायत्री की उपासना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं - गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाए तो यह कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।
- हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है। जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्मांड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है। इसीलिए गायत्री उपासना जरूर करनी चाहिए।
मां गायत्री का अवतरण :-
शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी। आरम्भ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर मां की महिमा अर्थात् गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया था।
देवी गायत्री का विवाह :-
शास्त्रों में देवी गायत्री के विवाह के संबंध में प्रसंग है। एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया। परंपरा के अनुसार किसी भी पूजा या अनुष्ठान में पति संग पत्नी का होना अनिवार्य माना जाता है। ऐसे में यज्ञ के समय ब्रह्माजी को पत्नी सहित ही बैठना था, लेकिन किसी कारणवश ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री को आने में देर हो गई। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था, इसलिए ब्रह्मा जी ने वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।
गायत्री मंत्र का जाप करते समय इन बातों का ध्यान रखें:-
- गायत्री मंत्र जाप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
- गायत्री मंत्र जाप के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ होता है, किंतु यह शाम को भी किया जा सकता है।
- गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें, किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से शरीर पोंछ लें।
- साफ और सूती वस्त्र पहनें।
- कुश या चटाई का आसन बिछाएं। पशु की खाल का आसन निषेध है।
- तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें।
- ब्रह्ममुहूर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जाप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जाप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें।
- इस मंत्र का मानसिक जाप किसी भी समय किया जा सकता है।
- शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जाप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जाप करें। बाकी मंत्र जाप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही एक से अधिक माला कर जाप बाधा दोष का शमन करें।
- गायत्री मंत्र जाप करने वाले का खान-पान शुद्ध होना चाहिए। किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जाप कर सकते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के असर से ऐसा व्यक्ति भी शुद्ध और सद्गुणी बन जाता है।
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