सार
देश पर जब भी संकट छाया है बिहारियों ने बढ़-चढ़कर उसका मुकाबला किया है। युद्ध की घड़ी में शहादत देने का अवसर हो या दुश्मनों को मौत की नींद सुलाना, इस मिट्टी के वीर सपूतों को हमेशा याद किया जाएगा। चीन के विस्तारवादी सोच के सामने जब भारतीय फौज चट्टान की तरह लद्दाख में खड़ी है तो बिहार रेजिमेंट के जवान अग्रिम मोर्चे पर सीना ताने सरहदों की रक्षा कर रहे हैं।
15 जून की रात को उत्तरी लद्दाख के गलवां घाटी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुई भारतीय और चीनी सैनिकों की भिड़ंत में भारतीय सेना की बिहार रेजिमेंट ने गजब का साहस दिखाया था। बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने अपने फर्ज का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को यह अहसास दिया दिया कि हम किसी भी स्थिति में पीछे हटने वाले नहीं हैं। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि झड़प के दौरान लगभग आधे भारतीय सैनिक मारे गए लेकिन, उन्होंने अंतिम समय तक वीरता से लड़ाई लड़ी।
विस्तार
बिहार रेजिमेंट सेंटर की टुकड़ी 26 जनवरी, 2017 को नई दिल्ली में 68 वें गणतंत्र दिवस परेड 2017 के अवसर पर राजपथ से गुजरती हुई । |
चीनी सैनिकों से शांति से बात करने गए भारतीय कमांडिंग अधिकारी पर उन्होंने जब हमला किया, तो चीनियों को लगा कि अब भारतीय सैनिक अपने अधिकारी को गिरता देख डर के मारे वहां से भाग जाएंगे। लेकिन चीनियों की यह सोच महज गलतफहमी साबित हुई। इसके बदले उन्हें भारतीय सैनिकों के गुस्से और प्रतिकार का सामना करना पड़ा। भारतीय सैनिकों ने चीनियों की ज्यादा संख्या होने के बावजूद उन्हें करारा जवाब दिया।
हथियार होने के बावजूद नियमों का ध्यान रखते हुए बिहार रेजीमेंट के जवानों ने खाली हाथ चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। घंटों चली इस झड़प में दोनों पक्षों की ओर से कई सैनिकों की जान गई। अमेरिकी इंटेलीजेंस की रिपोर्ट के मुताबिक इस झड़प में चीन के 30 सैनिक और एक कमांडिंग अधिकारी भी मारा गया। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को स्पष्ट क्या कि इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से चीनियों को जवाब दिया और अंत तक डटे रहे।
शहीद हुए 20 जवानों में बिहार रेजीमेंट के 12 सैनिक
सेना की ओर से जारी शहीदों की सूची के मुताबिक 20 में से 12 सैनिक बिहार रेजीमेंट के थे। इस झड़प में बिहार रेजीमेंट के वीर कमांडिंग अधिकारी कर्नल बी संतोष बाबू और वीर जूनियर कमांडिंग अधिकारी कुंदन कुमार झा शहीद हो गए।इनके अलावा वीर सिपाही अमन कुमार, चंदन कुमार, दीपक कुमार, गणेश कुंजाम, गणेश राम, केके ओझा, राजेश ओरांव, सीके प्रधान, नायब सूबेदार नंदूराम और हवलदार सुनील कुमार ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
क्यों दुर्गम घाटियों में तैनात है बिहार रेजिमेंट?
बिहार रेजिमेंट का शौर्य ऐतिहासिक है। यह रेजिमेंट भारतीय सेना के एक मजबूत अंग है। सर्जिकल स्ट्राइक में हिस्सा लेना हो या कारगिर युद्ध में विजय की कहानी लिखनी हो, बिहार रेजिमेंट की ऐसी सभी लड़ाइयों में खासी भागीदारी रही है।ऐसा नहीं है कि बिहार नाम होने से इसमें सिर्फ बिहार के लोग ही चुने जाते हैं, इस रेजिमेंट का नाम 'बिहार रेजिमेंट' है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से इसकी शुरूआत बिहार के जिलों से हुई थी। इस रेजिमेंट ने इतिहास में दर्ज किए जाने वाले काम किए हैं, इसी वजह से बिहार रेजिमेंट को भारतीय सेना का एक मजबूत अंग माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि बिहार रेजिमेंट के जवान बहादुर होते हैं और वो किसी भी स्थिति में रह पाने के लायक होते हैं इस वजह से दुर्गम और जटिल परिस्थितियों में इनको तैनात किया जाता है।इसीलिए गलवन और इस तरह की कुछ अन्य दुर्गम घाटी वाले इलाके में इस रेजीमेंट के जवान तैनात हैं।
यहां जानना चाहिए कि 1941 में स्थापित हुई बिहार रेजिमेंट के नाम भारत की आज़ादी से पहले ही 5 मिलिट्री क्रॉस और 9 मिलिट्री मेडल थे जबकि आज़ादी के बाद से अब तक इस रेजिमेंट के खाते में 7 अशोक चक्र, 9 महावीर चक्र और 21 कीर्ति चक्र, 70 शौर्य पदक सहित सेना के कई पुरस्कार और मेडल शामिल हैं। यदि हाल के दिनों की बात करें तो इस रेजिमेंट ने सन् 1999 के कारगिल युद्ध तथा 2016 में पाकिस्तानी आतंकियों से जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लिया था।
प्राणों की आहूति देकर करते हैं मातृभूमि की रक्षा
शहीद हुए बिहार रेजीमेंट के जवानों का पार्थिव शरीर ले जाते जवान |
'करम ही धरम' इस रेजिमेंट का मोटो रहा है और इसके मुताबिक मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को ही रेजिमेंट के जवान अपना कर्म और धर्म मानते हैं। ‘जय बजरंगबली’ और ‘बिरसा मुंडा की जय’ वॉर क्राय यानी हुंकार इस रेजिमेंट का वाक्य है। इस वाक्य को कहते हुए इस रेजिमेंट के जवान अपने में जोश भरते हैं और दुश्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा करने का बिहार रेजिमेंट सेंटर का इतिहास रहा है। इस रेजिमेंट ने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था।
बिहार रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजिमेंट में से एक है। बिहार रेजिमेंट का गठन 1941 में 11 वीं (टेरिटोरियल) बटालियन, 19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट को नियमित करके और नई बटालियनों का गठन करके किया गया था।
उरी में रेजिमेंट के 15 जांबाजों ने दी शहादत
बीते 18 सितंबर 2016 को जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी सीमा से आए घुसपैठिए आतंकियों से लोहा लेते हुए इस रेजिमेंट के 15 जांबाजों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। उरी सेक्टर स्थित भारतीय सेना के कैंप पर हुए हमले में कुल 17 जवानों ने अपनी शहादत दी थी, जिनमें सर्वाधिक 15 बिहार रेजिमेंट के थे। इन 15 जांबाजों में 6 मूलत: बिहार के थे।
कारगिल युद्ध में लिखा इतिहास
कारगिल युद्ध में विजय कहानी लिखने में भी बिहार रेजिमेंट के जवानों का अमूल्य योगदान रहा। जुलाई 1999 में बटालिक सेक्टर के पॉइंट 4268 और जुबर रिज पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा करने की कोशिश की। बिहार रेजिमेंट के जवानों ने उन्हें भी खदेड़ दिया था।
पटना कारगिल चौक |
कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को मरणोपरांत महावीर चक्र से तो मेजर मरियप्पन सरावनन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। पटना के गांधी मैदान के पास कारगिल चौक पर कारगिल युद्ध में शहीद 18 जांबाजों की शहादत की याद में स्मारक बनाया गया है।
मुंबई हमले में मेजर उन्नीकृष्णन शहीद
साल 2008 में जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ था, तब एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ऑपरेशन ब्लैक टॉरनैडो में शहीद हुए थे।असल में, मेजर उन्नीकृष्णन बिहार रेजिमेंट के थे, जिन्हें प्रतिनियुक्ति पर एनएसजी में भेजा गया था। मुंबई में आतंकी हमले से जूझने से पहले कारगिल युद्ध में बिहार रेजिमेंट ने इतिहास रचा था।
दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर
इससे पहले साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना से संघर्ष के दौरान बिहार रेजिमेंट के किस्से मशहूर हैं। कहा जाता है कि गोलियां कम पड़ने पर इस रेजिमेंट के सैनिकों ने दुश्मन को संगीनों से ही मार दिया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने बिहार रेजिमेंट के जांबाजों के सामने ही सरेंडर (आत्मसमर्पण) किया था, वह विश्व में लड़े गए अब तक के सभी युद्धों में एक रिकॉर्ड है।
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