Sawan 2020: छह जुलाई से शुरू हो रहा है सावन का पवित्र महीना, जाने भगवान शिव के पूजा की सम्पूर्ण जानकारी...



सावन माह का नाम आते ही हमारे मन में भी बादल घुमड़ने लगते हैं, ठंडी हवाओं के झौंके सुकून देने लगते हैं, तपती ज्येष्ठ और आषाढ़ में गरमी से बेहाल जी सावन में झूमने लगता है। लेकिन सावन का माह का महत्व हमारे जीवन में इतना भर नहीं है सावन माह भगवान शिव की उपासना का माह भी माना जाता है और इस माह में सबसे पवित्र माना जाता है सोमवार का दिन। वैसे तो प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की उपासना के लिये उपयुक्त माना जाता है लेकिन सावन के सोमवार की अपनी महत्ता है।ज्योतिषियों के अनुसार सावन के सोमवार को सोम या चंद्रवार भी कहते हैं। यह दिन भगवान शिव को अतिप्रिय है। इस बार पांच सावन सोमवार के अलावा कई दिन शुभ योग भी बनेगा। जिसमें 11 सर्वार्थ सिद्धि योग, 10 सिद्धि योग, 12 अमृत योग और 3 अमृत सिद्धि योग होंगे।सावन में श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव का गहरा संबंध है। भगवान शिव ने स्वयं सनत्कुमार से कहा है मुझे बारह महीनों में सावन (श्रावण) विशेष प्रिय है। इसी काल में वे श्रीहरि के साथ मिलकर लीला करते हैं। इस मास की विशेषता है कि इसका कोई दिन व्रत शून्य नहीं देखा जाता है।सावन में मंगलवार को मंगलागौरी व्रत, बुधवार को बुध गणपति व्रत, बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत, शनिवार को बजरंग बली व नृसिंह व्रत और रविवार को सूर्य व्रत होता है।इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरूद्र का पाठ और पुरुष सूक्त का पाठ एवं पंचाक्षर, षडाक्षर आदि शिव मंत्रों व नामों का जप विशेष फल देने वाला होता है। श्रावण मास का माहात्म्य सुनने अर्थात श्रवण हो जाने के कारण इसका नाम श्रावण हुआ। पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र से योग होने से भी इस मास का नाम श्रावण कहलाया है। यह सुनने मात्र से सिद्धि देने वाला है। श्रावण मास व श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्र और चंद्र के स्वामी भगवान शिव, सावन मास के अधिष्ठाता देवाधिदेव शिव ही हैं। आइये जानते हैं श्रावण मास के सोमवार व्रत का महत्व व पूजा विधि के बारे में।



ऐसे समझें सावन का व्रत


भगवान शिव के प्रिय माह सावन में भक्तों के द्वारा तीन प्रकार के व्रत रखे जाते हैं :-

  • सावन सोमवार व्रत : श्रावण मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भी भगवान शिव को समर्पित है।

  • सोलह सोमवार व्रत : सावन को पवित्र माह माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ करने के लिए यह बेहद ही शुभ समय माना जाता है।

  • प्रदोष व्रत : सावन में भगवान शिव और मां पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत प्रदोष काल तक रखा जाता है।

सावन प्रवेश की तिथि


हिंदी पंचाग के अनुसार सावन महीने की शुरुआत 5 जुलाई 2020 प्रातःकाल 10 बजकर 15 मिनट से होगी। जबकि यह तिथि अगले दिन 6 जुलाई को 9 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि, 5 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा है। अतः सावन प्रतिपदा सोमवार को माना जाएगा।


2020 में श्रावण माह व श्रावण सोमवार की तारीखें:-

सावन 2020 में इस बार सोमवार का अद्भुत संयोग बन रहा है। छह जुलाई से हो रही सावन की शुरुआत के पहले दिन ही सोमवार है, वहीं इस बार सावन में पांच सोमवार पड़ेंगे। यह माह 06 जुलाई से शुरू होकर 03 अगस्त तक चलेग, वहीं सावन माह के आखिरी दिन यानि 03 अगस्त को भी सोमवार का दिन रहेगा। यानि इस बार सावन की शुरुआत सोमवार से होकर इसका समापन भी सोमवार को ही होगा।तीन अगस्त को यानि सावन के समापन के दिन ही पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार भी मनाया जाएगा।इस बार सावन में तीन सोमवार कृष्ण पक्षदो सोमवार शुक्ल पक्ष में होंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान यानि श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा, महामृत्युंजय मंत्र जाप व अभिषेक आदि करने से प्राणी सभी प्रकार के बाधा व रोग से मुक्त हो जाते हैं।

सोमवार, 06 जुलाई 2020 पहला सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 13 जुलाई 2020 दूसरा सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 20 जुलाई 2020 तीसरा सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 27 जुलाई 2020 चौथा सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 03 अगस्त 2020 पांचवां सावन सोमवार व्रत ( श्रावण मास का अंतिम दिन )

श्रावण सोमवार व्रत पूजा विधि :-



  • सावन के माह में देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है।

  • ब्रह्म मुहूर्त में  स्नान करके ताजे विल्बपत्र लाएं। पांच या सात साबुत विल्बपत्र साफ पानी से धोएं और फिर उनमें चंदन छिड़कें या चंदन से ॐ नमः शिवाय लिखें। इसके बाद तांबे के लोटे (पानी का पात्र) में जल या गंगाजल भरें और उसमें कुछ साबुत और साफ चावल डालें और अंत में लोटे के ऊपर विल्बपत्र और पुष्पादि रखें। विल्बपत्र और जल से भरा लोटा लेकर पास के शिव मंदिर में जाएं और वहां शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक के दौरान 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप या भगवान शिव को कोई अन्य मंत्र का जाप करें। रुद्राभिषेक के बाद समय हो तो मंदिर परिसर में ही शिवचालीसा, रुद्राष्टक और तांडव स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं। मंदिर में पूजा करने बाद घर में पूजा-पाठ करें।घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। 

  • पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें -
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये'


  • इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें -
'ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥


  • ध्यान के पश्चात 'ॐ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा  'ॐ शिवाय नमः' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। 

  • पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें।

  • उसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।

  • इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
कई भक्तगण सावन के पूरे माह ही व्रत करते हैं तो कई केवल सावन सोमवार का व्रत करते हैं। ऐसे में अगर आप किसी कारण व्रत नहीं कर पा रहे तो व्रत की कथा जरूर पढ़े या किसी से सुने।


सावन की पौराणिक कथा व महत्व :-



भगवान शिव की पूजा के दिन यानि सोमवार का हिंदू धर्मानुयायियों विशेषकर शिव भक्तों के लिये बहुत अधिक महत्व होता है। सोमवार में भी श्रावण मास के सोमवार बहुत ही सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रावण माह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय होता है।

स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार सनत कुमार भगवान शिव से पूछते हैं कि आपको सावन माह क्यों प्रिय है? तब भोलेनाथ बताते हैं कि देवी सती ने हर जन्म में भगवान शिव को पति रूप में पाने का प्रण लिया था पिता के खिलाफ होकर उन्होंने शिव से विवाह किया लेकिन अपने पिता द्वारा शिव को अपमानित करने पर उसने शरीर त्याग दिया। उसके पश्चात हिमालय व नैना पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी शिव से विवाह हेतु इन्होंने श्रावण माह में निराहार रहते हुए कठोर व्रत से भगवान शिवशंकर को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसलिये श्रावण माह से ही भगवान शिव की कृपा के लिये सोलह सोमवार के उपवास आरंभ किये जाते हैं।

वैसे सावन की महत्ता को दर्शाने के लिए और भी अन्य कई कहानी बताई गयी हैं जैसे कि मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी।

पौराणिक ग्रंथों में एक कथा और मिलती है जो कुछ इस प्रकार है:- बहुत समय पहले की बात है कि एक क्षिप्रा किनारे बसे एक नगर में भगवान शिव की अर्चना हेतु बहुत सारे साधु सन्यासी एकत्रित हुए। समस्त ऋषिगण क्षिप्रा में स्नान कर सामुहिक रूप से तपस्या आरंभ करने लगे। उसी नगरी में एक गणिका भी रहती थी जिसे अपनी सुंदरता पर बहुत अधिक गुमान था। वह किसी को भी अपने रूप सौंदर्य से वश में कर लेती थी। जब उसने साधुओं द्वारा पूजा कड़ा तप किये जाने की खबर सुनी तो उसने उनकी तपस्या को भंग करने की सोची। इन्हीं उम्मीदों को लेकर वह साधुओं के पास जा पंहुची। लेकिन यह क्या ऋषियों के तपोबल के आगे उसका रूप सौंदर्य फिका पड़ गया। इतना ही नहीं उसके मन में धार्मिक विचार उत्पन्न होने लगे। उसे अपनी सोच पर पश्चाताप होने लगा। वह ऋषियों के चरणों में गिर गई और अपने पापों के प्रायश्चित का उपाय पूछने लगी तब ऋषियों ने उसे काशी में रहकर सोलह सोमवार व्रत रखने का सुझाव दिया। उसने ऋषियों द्वारा बतायी विधिनुसार सोलह सोमवार तक व्रत किये और शिवलोक में अपना स्थान सुनिश्चित किया।कुल मिलाकर श्रावण माह के सोमवार धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं और सोलह सोमवार के व्रत के पिछे मान्यता है कि इस व्रत से भगवान शिव की कृपा से अविवाहित जातकों का विवाह अपनी पसंद के साथी से होता है।

कुछ कथाओं में वर्णन आता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था तब समुद्र से विष का घड़ा निकला। लेकिन इस विष के घड़े को न ही देवता और न ही असुर लेने को तैयार हो रहे थे। तब विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए और समस्त लोकों की रक्षा करते हुए भगवान शंकर ने इस विष का पान किया था। विष के प्रभाव से भगवान शिव का ताप बढ़ता जा रहा था तब सभी देवताओं ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शंकर पर जल चढ़ाना शुरू कर दिया था। तभी से सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है।

किन्तु कहानी चाहे जो भी हो, बस सावन महीना पूरी तरह से भगवान शिव जी की आराधना का महीना माना जाता है। यदि एक व्यक्ति पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करता है, तो यह सभी प्रकार के दुखों और चिंताओं से मुक्ति प्राप्त करता है।

सावन सोमवार व्रत कथा



कथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था और वह बहुत बड़ा शिव भक्त था। लेकिन वह बहुत दुखी रहता था, क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी और उसकी पत्नी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। उनकी भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।



भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसके बावजूद पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।




उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई। भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। लेकिन उस बालक की कम उम्र का रहस्य किसी ओर को पता नहीं था।



जब उसका पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने उसके मामा को बुलाया और कहा कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए इसे वाराणसी छोड़ आओ। रास्ते में जहां भी रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाएं। लंबी यात्रा के बाद वे लोग एक नगर में पहुंचे तो वहां उस नगर के राजा की कन्या का विवाह था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दें। इससे उसकी बदनामी होगी।



वर के पिता ने उस अमर बालक को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।



उस बालक ने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया। राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है। जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।

मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें। भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।




पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया, हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा। शिक्षा समाप्त करके वह बालक अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी बालक ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।



मामा ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। कहते हैं कि जो कोई भी इस कथा को पढ़ता है या सुनता है भोलेनाथ उसकी हर मनोकामना को जल्दी पूरा करते हैं।


सावन सोमवार व्रत के लाभ:-



श्रावण में एक मास तक शिवालय में स्थापित, प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग अथवा नर्मदेश्वर शिव का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक करना चाहिए, यह शिव को अत्यंत प्रिय हैं। कुशोदक से व्याधि शांति, जल से वर्षा, दधि से पशुधर्न, इंख के रस से लक्ष्मी, मधु से धन, दूध से एवं एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से पुत्र एवं वंश वृद्धि होती है।

  • सावन के सोमवार को व्रत रखने दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाता है। सावन के महीने में पड़ने वाले सभी सोमवार को व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करने से घर की कलह का नाश होता है। रोगों से मुक्ति मिलती है और पति और पत्नी के संबंधों में मधुरता बढ़ती है। 
  • अगर विवाह में अड़चनें आ रही हों तो संकल्प लेकर सावन के सोमवार का व्रत किया जाना चाहिए।
  • आयु या स्वास्थ्य बाधा हो तब भी सावन के सोमवार का व्रत श्रेष्ठ परिणाम देता है।सोमवार का व्रत करने से चंद्रग्रह मजबूत होता है, जिससे फेफड़े का रोग, दमा और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।साथ ही चंद्रग्रह के मजबूत होने से व्यवसाय व नौकरी से संबंधित समस्या दूर होती है। 
  • जिन लोगों की जन्म कुंडली में राहु- केतु के संयोग से कालसर्प दोष का निर्माण होता है वे यदि सावन के प्रत्येक सोमवार व्रत रखकर भगवान भोेलेनाथ की पूजा और अभिषेक करते हैं तो यह दोष दूर होता है। कालसर्प के कारण व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । हर कार्य में बाधा आती है। व्यापार, नौकरी और शिक्षा में अड़चन बनी रहती है। 
  • पुराणों में बताया गया है कि जो भी भक्त सच्चे मन से सावन सोमवार में शिवजी की पूजा करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। शिवजी आपके सभी संकटों को दूर करके जीवन में आनंद भर देते हैं।
 

सावन के महीने में बरतें सावधानियां :-


  • शास्त्रों और पुराणों में सावन के महीने में शिव आराधना पर कई तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए।
  • सावन सोमवार के दिन जो व्रत ना भी रखता हो वो किसी भी अनैतिक कार्य करने से बचें, बुरे विचार मन में ना लाएं साथ ही ब्रहमचर्य का पालन करें।
  • सावन के महीने में व्रत रखने वाल साधकों का दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। सावन में दूध से भोले शंकर का अभिषेक किया जाता है, इसलिए इसका सेवन वर्जित होता है।
  • सावन के महीने में शिव भक्तों को कभी बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। बैंगन को अशुद्ध माना गया है।
  • सावन में मांस-मदिरा से दूर रहना चाहिए। इससे ना सिर्फ आप पर जीवहत्या का पाप लगता है बल्कि आपका मन भी अशुद्ध होता है।
  • सावन के महीने और आम दिनों में भगवान शिव की पूजा करते समय पूजा के सामान में कभी तुलसी के पत्तों और केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 
  • शिवलिंग पर  हल्दी और कुमकुम नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा शिवलिंग पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाना चाहिए। 
  • जलाभिषेक करते समय तांबे, कांस्य और पीतल के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए।
  • सावन में बड़े और असहाय लोगों का अपमान  नहीं करना चाहिए। 
  • सावन हरियाली का मौसम है। यही हरियाली शिवजी को अत्यंत पसंद आती है इसलिए पेड़-पौधों को काटने से बचना चाहिए।

सावन में हर तिथियों के देवता

सावन में हर तिथियों के देवता हैं- श्रावण प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के गौरी, चतुर्थी के गणनायक, पंचमी के नाग, षष्ठी के नाग, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के स्वामी विश्वदेव, द्वादशी के भगवान श्रीहरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के भगवान शिव, अमावास्या के पितर और पूर्णिमा के स्वामी चंद्रमा हैं।

सावन के त्योहार

प्रतिपदा को अशून्यन व्रत, द्वितीया को औदुंबर व्रत, तृतीया को गौरी व्रत, चतुर्थी को दूर्वा गणपति व्रत, पंचमी को उत्तम नाग पंचमी व्रत, षष्ठी को स्पंदन व्रत, सप्तमी को शीतला देवी व्रत, अष्टमी और चतुर्दशी को देवो व्रत, नवमी को नक्त व्रत, दशमी को आशा व्रत, एकादशी को भगवान श्रीहरि व्रत, द्वादशी को श्रीधर व्रत, त्रयोदशी को प्रदोष व्रत, अमावास्या को पिठोरा व्रत, कुशोत्पाटन और वृषभों का अर्चन करें तथा पूर्णिमा को उत्सर्जन, उपाकर्म, सभा द्वीप, रक्षाबंधन, श्रावणी कर्म, सर्प बलि तथा हयग्रीव नामक ये सात व्रत श्रावणी पूर्णिमा को होते हैं।

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