आश्विन अधिकमास की पूर्णिमा 1 अक्टूबर 2020 को आ रही है। अधिकमास, पुरुषोत्तम मास या मलमास की पूर्णिमा अत्यंत विशेष होती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा, दान-पुण्य व पवित्र नदी में स्नान का विधान है। पूर्णिमा के दिन चांद अपनी पूरी आकृति में होता है।इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करना भी काफी शुभ माना जाता हैं। अधिक मास / मलमास की पू्र्णिमा के दिन पवित्र नदी या कुंड में स्नान और दान-पुण्य का महत्व है। पूर्णिमा के दिन या एक दिन पूर्व लोग श्रीसत्यनारायण व्रत करते हैं तथा उनकी कथा का श्रवण करते हैं। इस बार कोरोना महामारी के कारण लोग नदी या सरोवर में स्नान नहीं करेंगे। ऐसे में आप घर पर ही स्नान, दान आदि करें। फिर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा विधिपूर्वक करें।
लक्ष्मी नारायण व्रत का महत्व | Laxmi Narayan Vrat Importance:-
शास्त्रीय मान्यता है कि यह व्रत करने से समस्त सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। धन, संपत्ति, सुख, वैभव में वृद्धि की जा सकती है। इस व्रत के प्रभाव को यदि कुंवारी कन्याएं करें तो उन्हें सुयोग्य वर प्राप्त होता है और यदि युवक करें तो उन्हें सुशील पत्नी प्राप्त होती है। यह ऐसा व्रत है जिसे करने से धनवान बनने से आपको कोई नहीं रोक सकता। इस बार अधिकमास की पूर्णिमा के दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। 1 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि अर्धरात्रि के बाद तक रहेगी। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में वृद्धि योग और सर्वार्थसिद्धि योग और गुरुवार के संयोग ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया है। इस पूर्णिमा पर स्नान करने से न व्यक्ति अपने जीवन के कई लाभों को प्राप्त कर सकता है. इसके अलावा अधिक मास में यदि कोई भी धार्मिक कार्य किया जाता है तो उसके कई गुना फल प्राप्त होते हैं, तो आइए जानते हैं कि अधिक मास की पूर्णिमा का मुहूर्त क्या हैं .....
अधिक मास पूर्णिमा मुहूर्त | Adhik Maas Purnima subh muhurat :-
आश्विन, शुक्ल पूर्णिमा
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ :- 30 सितंबर दिन बुधवार को देर रात में 12 बजकर 25 मिनट।
पूर्णिमा तिथि समाप्त :- 01 अक्टूबर गुरुवार को देर रात 02 बजकर 34 मिनट तक।
पूजन मुहूर्त:-
लक्ष्मीनारायण व्रत का पूजन अभिजित मुहूर्त में करना सबसे शुभ होगा। यह मुहूर्त 1 अक्टूबर को प्रातः 11.52 से 12.40 बजे तक रहेगा।
इस तिथि को सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। राहुकाल दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से दोपहर 03 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। उस दिन पंचक पूरे दिन रहेगा।
अधिक मास पूर्णिमा व्रत विधि। Adhik Maas Purnima Vrat puja vidhi:-
श्रीलक्ष्मीनारायण व्रत विधि:-
लक्ष्मी नारायण व्रत के विषय में पौराणिक ग्रंथों में विस्तार रुप से कथा एवं महत्व प्राप्त होता है। इस व्रत के बारे में नारद जी ने शौनक ऋषि से पूछा, तो इसके विषय में बताते हुए वह उनसे कहते हैं - हे महर्षि नारद पूर्णिमा तिथि के दिन शुद्ध सात्विक आचरण का नियम रखते हुए इस व्रत का आरंभ करना चाहिए।
- प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध साफ सफेदवस्त्र धारण करने चाहिए।
- पूजा स्थल की साफ-सफाई करनी चाहिए। पूजा के लिए एक चौकी पर आधा लाल और आधा पीला कपड़े का आसन बिछाना चाहिए।
- लक्ष्मी नारायण पूजा विधि में इसके बाद लाल कपड़े पर देवी लक्ष्मी और पीले कपड़े पर भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र को स्थापित करना चाहिए।
- लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा को जल एवं पंचामृत से स्नान कराना चाहिए।
- श्री लक्ष्मी और नारायण भगवान को वस्त्र एवं आभूषण पहनाने चाहिए। सुगंधित पीले और लाल पुष्पों से बनी माला पहनानी चाहिए। सुगंधित इत्र चढा़ना चाहिए।
- देवी लक्ष्मी को कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए और श्री विष्णु भगवान को चंदन का तिलक लगाना चाहिए।
- मां लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करना चाहिए और सुहाग की समस्त सामग्री भेंट करनी चाहिए।
- लक्ष्मी नारायण के सम्मुख घी का दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। धूप, फूल से पूजा करनी चाहिए।
- लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा सुननी चाहिए।
- लक्ष्मी नारायण की आरती करनी चाहिए। आरती के बाद भगवान को भोग अर्पित करना चाहिए। (मखाने की खीर और शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का भोग लगाएं।)
- लक्ष्मी-नारायण पूजन समय ‘‘ऊँ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः ’’ मंत्र का जाप भी करना चाहिए।
- लक्ष्मी नारायण व्रत एवं पूजा करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत का प्रभाव व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति कराने वाला होता है।
- व्रत एवं पूजन में रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व होता है।
- व्रत के अगले दिन सुबह के समय ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए एवं दक्षिणा इत्यादि देकर इस व्रत का संकल्प पूरा करना चाहिए।
- इस व्रत में तिल के दान का भी अत्यंत महत्व बताया गया है। तिल से होम करना भी शुभ होता है। इस प्रकार सामर्थ्य अनुसार लक्ष्मी नारायण व्रत पूजन करना चाहिए।
लक्ष्मी नारायण पूजा में क्या नहीं करना चाहिए ?
- लक्ष्मी नारायण पूजा में कुछ बातों का मुख्य रुप से ध्यान रखना चाहिए। इस व्रत का अथवा पूजन का संकल्पन करने पर किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन एवं मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- किसी भी प्रकार के नशे के सेवन से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
- ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए।
- अपने आचरण में छल-कपट, लड़ाई-झगड़े और झूट इत्यादि जैसी बुरी आदतों से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
लक्ष्मी नारायण कथा :-
लक्ष्मी नारायण कथा अनुसार एक बार जब दोनों की महत्ता में से कौन अधिक महत्वपूर्ण है, इस पर बहस बढ़ जाती है। तब नारायण भगवान इस तथ्य को समझाने के लिए एक परीक्षा का आयोजन करते हैं। भगवान नारायण ब्राह्मण का भेष बना कर एक गाँव में जाते हैं, और वहां के मुखिया से कहते हैं की वह उस स्थान पर श्री नारायण का पूजन करना चाहते हैं। गांव के मुखिया उनकी बात मान कर उन्हें एक निवास स्थान देते हैं। उनके लिए कथा के स्थान का बंदोबस्त भी करते हैं।
गांव के सभी लोग उस कथा मे प्रतिदिन शामिल होने लगते हैं, ऐसे में लक्ष्मी जी अपनी स्थिति को नजरअंदाज होते देखती हैं तो वह भी भेष बदल कर एक वृद्ध स्त्री के रुप में वहां पहुंच जाती है। एक स्त्री जो कथा में जाने के लिए घर से निकल रही होती है उससे पानी मांगती हैं। ऐसे में स्त्री उन्हें पानी पीने को देती है, पर जैसे ही वृद्ध स्त्री उसे उसका बर्तन वापिस करती हैं तो वह स्वर्ण धातु का हो जाता है।
इस चमत्कार को देख कर वह गांव के सभी लोगों को इस बात के बारे में बताती है, सभी लोग कथा से उठ कर उस चमत्कार को देखने के लिए वहां चले जाते हैं। धन के लोभ का स्वरुप के कारण नारायण उस स्थान से चले जाने के लिए प्रस्थान करते हैं, तो लक्ष्मी वहां आकर उन्हें अपनी महत्ता को स्वीकार करने की बात कहती हैं। श्री नारायण मान जाते हैं की लक्ष्मी उनसे अधिक महत्व रखती हैं और वहां से चले जाते हैं।
ऐसे में लक्ष्मी जी उनके जाने से दुखी होकर जाने लगती हैं तो गांव के लोग उन्हें रोकने लगते हैं। इस प्रकार वह उन्हें कहती हैं की जहां नारायण कथा पूजन का वास नहीं होता है, वहां लक्ष्मी का भी कोई स्थान नही हो सकता है। जिस स्थान पर लक्ष्मी और नारायण दोनों का पूजन होगा वहीं मैं स्थापित हो सकती हूं। इस प्रकार लक्ष्मी जी नारायण जी के समक्ष इस बात को कहती हैं की आप के बिना मैं कुछ नहीं और मेरे बिना आप।हम दोनों एक दूसरे का स्वरुप ही हैं। ऎसे में जो भी भक्त लक्ष्मी नारायण रुप का एक साथ पूजन करते हैं उन्हें सदैव प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अधिक मास पूर्णिमा की कथा | Adhik Maas Purnima Vrat Ki Katha:-
पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राहाण निवास करता था उसकी कोई संतान नही थी। वह ब्राह्मण दान मांगकर अपना गुजारा करता था। एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी नगर में दान मांगने के लिए गई। लेकिन उसे नगर में उस दिन किसी ने भी दान नहीं दिया क्योंकि वह नि:संतान थी। वहीं दान मांगने पर उस ब्राह्मण की पत्नी को एक व्यक्ति ने सलाह दी कि वो मां काली की आराधना करे। उसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया और सोलह दिनों तक मां काली की आराधना की।
जिसके बाद मां काली स्वंय प्रकट हुईं मां ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार तुम आटे की दीप हर पूर्णिमा को जलाना और हर पूर्णिमा को एक- एक दीपक बढ़ा देना। तुम्हें कर्क पूर्णिमा तक पूरे 22 दीए अवश्य ही जलाने हैं। देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को पूजा के लिए दे दिया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई। देवी के आर्शीवाद से उस ब्राह्मण के यहां एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम देवदास रखा गया।
जब वह बड़ा हुआ तो वह पढ़ने के लिए काशी गया ।देवदास के साथ उसका मामा भी गया। दोनों के साथ रास्ते में एक घटना घटी। जिसके बाद देवदास का प्रचंशवश विवाह हो गया। जबकि देवदास ने पहले से ही बता दिया था कि वह अल्पायु है । लेकिन फिर भी उसका विवाह जबरदस्ती कर दिया गया कुछ समय के बाद उसे मारने के लिए काल आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति के पूर्णिमा व्रत के कारण काल उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया।
लक्ष्मी नारायण व्रत के लाभ
1. वैभव और धन संपदा की प्राप्ति:-
लक्ष्मी नारायण व्रत एवं पूजन करने से घर में हर प्रकार की समृद्धि बढ़ती हैं। यदि कोई व्यक्ति कर्ज इत्यादि से पीड़ित है तो उसे इस व्रत को जरुर करना चाहिए। इस व्रत को करने से संयुक्त पूजन से सुख-संपत्ति, धन, वैभव और समृद्धि का वरदान मिलता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केमद्रूम योग बनता है तो उनके लिए ये पूजा बहुत ही शुभ फल देने वाली बनती है।
2. नौकरी और कारोबार में लाभ मिलता है:-
लक्ष्मी नारायण व्रत को करने से व्यापार में लाभ मिलता है। व्यापारियों के लिए इस व्रत को करने से उन्हें देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और उनके व्यवसाय में वृद्धि भी होती है। जो लोग नौकरी में स्थायित्व चाहते हैं और अपने काम में प्रमोशन की इच्छा रखते हैं उनके लिए भी इस व्रत को करने से लाभ मिलता है।
3. सौभाग्य की प्राप्ति जीवनसाथी का सुख:-
लक्ष्मी नारायण व्रत करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। स्त्रियों के मांगल्य सुख में वृद्धि होती है।अगर विवाह होने में कोई परेशानी हो रही हो तो इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। यह वैवाहिक सुख को देने वाला होता है। लंबी उम्र, अच्छी सेहत और आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद भी मिलता है। अगर आपकी कोई विशेष कामना है तो उसी को ध्यान में रखकर पूजन का संकल्प लें। संकल्प लेकर सही विधि से पूजन और उसका समापन करें, कामना पूरी होगी।
अधिक मास पूर्णिमा पर स्नान का महत्व :-
अधिक मास पूर्णिमा पर स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पूर्णिमा पर स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति अधिक मास पूर्णिमा में स्नान न कर सके तो वह अपने नहाने के पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकता है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने से उसे पूरे अधिक मास के स्नान के फलों की प्राप्ति हो जाती है और उसके सभी पाप धूल जाते हैं। उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति भी होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि कोण से भी अधिक मास की पूर्णिमा पर स्नान करने का महत्व दिया जाता है। इस समय में ऋतु का परिवर्तन होता है और ठंड का आरंभ होता है। इसलिए किसी पवित्र नदी में स्नान करने से शरीर मजबूत होता है, जो आने वाली ऋतु के प्रभाव को मजबूती से झेल सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी अधिक मास की पूर्णिमा पर स्नान करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि सूर्य और चंद्रमा खराब हो तो वह भी इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करके अपने सूर्य और चंद्रमा की पूजा करें तो शांति मिलेगी।
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