हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जाग्रत होते हैं। मान्यता है कि इस दिन तुलसी विवाह के माध्यम से उनका आह्वाहन कर उन्हें जगाया जाता है।इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के पौधे का विवाह हिन्दू रीति-रिवाज से संपन्न किया जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन करना अत्यंत मंगलकारी और शुभ माना जाता है। कहते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने और शालीग्राम के साथ तुलसी विवाह कराने से सभी कष्टों का निवारण होता है और भक्त को श्री हरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है।हिन्दु धर्म में तुलसी को बड़ा पवित्र स्थान दिया गया है। यह लक्ष्मी व नारायण दोनों को समान रूप से प्रिय है। इसे 'हरिप्रिया' भी कहा गया है। इसी के चलते बिना तुलसी के यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना व उपासना पूरे नहीं होते। यहां तक कि श्राद्ध, तर्पण, दान, संकल्प के साथ ही चरणामृत, प्रसाद व भगवान के भोग में भी तुलसी का होना अनिवार्य माना गया है।
तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी विवाह कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। कई जगह इसके अगले दिन यानी कि द्वादशी को भी तुलसी विवाह किया जाता है। जो लोग एकादशी को तुलसी विवाह करवाते हैं वे इस बार 25 नवंबर 2020 को इसका आयोजन करेंगे। वहीं, द्वादशी तिथि को मानने वाले 26 नवंबर 2020 को तुलसी विवाह करेंगे।
तुलसी विवाह की तिथि और शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के दिन किया जाता है, लेकिन कई जगहों पर इस विवाह को द्वादशी तिथि को भी करते हैं।
- देवउठनी एकादशी की तिथि: 25 नवंबर 2020
- एकादशी तिथि प्रारंभ- 25 नवंबर, बुधवार, सुबह 2:42 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त- 26 नवंबर, गुरुवार, सुबह 5:10 बजे तक
- द्वादशी तिथि: 26 नवंबर 2020
- द्वादशी तिथि प्रारंभ- 26 नवंबर, गुरुवार, सुबह 05 बजकर 10 मिनट से
- द्वादशी तिथि समाप्त- 27 नवंबर, शुक्रवार, सुबह 07 बजकर 46 मिनट तक
तुलसी विवाह की पूरी विधि
- परिवार के सभी सदस्य और विवाह में शामिल होने वाले सभी अतिथि नहा-धोकर व अच्छे कपड़े पहनकर तैयार हो जाएं।
- जो लोग तुलसी विवाह में कन्यादान कर रहे हैं उन्हें व्रत रखना जरूरी है।
- शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में पटले पर रखें। आप चाहे तो छत या मंदिर स्थान पर भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।
- अब एक अन्य चौकी पर शालिग्राम रखें। साथ ही चौकी पर अष्टदल कमल बनाएं।
- अब उसके ऊपर कलश स्थापित करें। इसके लिए कलश में जल भरकर उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं और आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें। अब एक लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रखें।
- तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं। साथ ही गमले के पास जमीन पर गेरू से रंगोली भी बनाएं।
- अब तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर स्थापित करें।
- अब तुलसी के आगे घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद गंगाजल में फूल डुबोकर “ऊं तुलसाय नम:” मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल का छिड़काव तुलसी पर करें।
- फिर गंगाजल का छिड़काव शालिग्राम पर करें।
- अब तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं।
- तुलसी के गमले की मिट्टी में ही गन्ने से मंडप बनाएं और उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ाएं।
- इसके साथ ही गमले को साड़ी को लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
- अब शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं।
- तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें। इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं।
- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं।
- हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक अवश्य करें।
- ऐसे पढ़ें मंगलाष्ट मंत्र- एक कटोरी में थोड़े से चावल को हल्दी में पीले कर लें। पहले देवी तुलसी जी एवं भगवान शालिग्राम जी का विधिवत पूजन करने के बाद इन सभी 8 मंत्रों का उच्चारण करें। एक-एक मंत्र का जा उच्चारण होने के बाद तुलसी-शालिग्राम जी पर सभी अमंगल दूर होने के भाव से अर्पित करें।याद रखें शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
।। अथ मंगलाष्टक मंत्र ।।
1- ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः। प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
2- गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः। गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
3- नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्। गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
4- बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः। मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
5- गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती। स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
6- गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका। शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
7- लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः। अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
8- ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः। विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
।। इति मंगलाष्टक समाप्त ।।
- देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है।अत: अब पूजन करते हुए इस मौसम आने वाले फल जैसे बेर, सेब और सब्जी जैसे मूली़ व् गाजर एवं आंवला आदि सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं और चढ़ाएं।
- अब शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं। घर के किसी पुरुष सदस्य को ही शालिग्राम की चौकी हाथ में लेकर परिक्रमा करनी चाहिए।
- इसके बाद तुलसी को शालिग्राम के बाईं ओर स्थापित करें।
- आरती उतारने के बाद विवाह संपन्न होने की घोषणा करें और वहां मौजूद सभी लोगों में प्रसाद वितरण करें।पूजा समापन के बाद जब भोजन करे तो भोजन से पहले पूजा के भोग का प्रसाद ग्रहण करें।
- तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूरी का भोग लगाया जाता है।
- पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान इस मंत्र का उच्चारण करते हुए करें।
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
तुलसी नामाष्टक:
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
तुलसी स्तुति मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै:
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी पूजन मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीहरिप्रिया।।
- मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
- तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी गाएं।
यह जरूर पढ़े : देव उठनी एकादशी 2020 : देव जगाने का गीत
श्रीहरि और तुलसी विवाह कथा
यह कथा पौराणिक काल से है। हिन्दू पुराणों के अनुसार जिसे हम तुसली नाम से जानते हैं। वे एक राक्षस कन्या थीं| जिनका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी वृंदा श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा के वयस्क होते ही उनका विवाह जलंधर नामक पराक्रमी असुर से करा दिया गया। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त होने के साथ ही एक पतिव्रता स्त्री थीं। जिसके चलते जलंधर अजेय हो गया। जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया। इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना करने लगे। परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था।
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। जिसके कारण जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो, उन्होंने भगवान विष्णु से कहा हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की, आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य कैसे किया? इस प्रश्न का कोई उत्तर श्रीहरि के पास नहीं था। वे शांत खड़े सुनते रहें। जब वृंदा को अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण की तरह व्यवहार किया मैं आपको शाप देती हूँ कि आप पाषाण बन जाएँ। शाप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए| सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना शाप वापस ले लें। देवों की प्रार्थना को स्वीकार कर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया। परन्तु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया जो शालिग्राम कहलाया।
भगवान विष्णु को शाप मुक्त करने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा की राख से एक पौधा निकला। जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूँगा। मेरे शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर में लोग इस तिथि को तुलसी विवाह के रूप में मनाएंगे। देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।
Post a Comment