धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रों का समय बहुत ही भाग्यशाली बताया गया है। नवरात्र वह समय है, जब दोनों ऋतुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं, प्रकृति में हर ओर नये जीवन का, एक नई उम्मीद का बीज अंकुरित होने लगता है। जनमानस में भी एक नई उर्जा का संचार हो रहा होता है। लहलहाती फसलों से उम्मीदें जुड़ी होती हैं। ऐसे समय में मां भगवती की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करना बहुत शुभ माना गया है। क्योंकि बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है इसलिये इन्हें "वासंती नवरात्र" भी कहा जाता है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता है।
यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 13 अप्रैल से प्रारंभ है और समापन 21 अप्रैल को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है वहीं चैत्र नवरात्रों के दौरान मां की पूजा के साथ-साथ अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विधान भी है जिससे ये नवरात्र विशेष हो जाते हैं। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
हिंदू पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी, रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारणवश चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। यह हिंदू त्यौहार बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र और कोंकण में यह "गुड़ी पड़वा" के साथ शुरू होती है और इसे संवतसारा या संवत भी कहा जाता है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव "उगादी" से शुरू होता है।
हिंदू नववर्ष का प्रारंभ : चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है और पंचांग की गणना की जाती है। पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रि से पहले मां दुर्गा अवतरित हुई थीं। ब्रह्म पुराण के अनुसार, देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि निर्माण करने के लिए कहा। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।
ज्योतिष की दृष्टि से भी है अहम : ज्योतिषीय दृष्टि से से भी चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्यूंकि इसके दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। कहा जाता है कि नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा से पूरे साल ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहती है। पंडितों का मानना है कि चैत्र नवरात्र के दिनों में मां स्वयं धरती पर आती हैं, इसलिए मां की पूजा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है एवं पूजा जाता है, जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।आज हम इस लेख में जानते हैं कि चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ कब से होने वाला है? महाष्टमी कब है? राम नवमी कब है और चैत्र नवरात्रि का पारण कब होगा?
चैत्र नवरात्रि 2021 की तिथि | Chaitra Navratri 2021 Dates
चैत्र घट स्थापना मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को
घट स्थापना मुहूर्त – प्रात:काल 05 बजकर 58 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट तक।
अवधि – 04 घण्टे 16 मिनट्स
घट स्थापना अभिजित मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक।
अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर हैं।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 12, 2021 को सुबह 08 बजकर 00 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 13, 2021 को सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक।
अश्व पर सवार होकर आएंगी माता रानी
इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं और जबकि प्रस्थान नर वाहन यानि मानव कंधे पर होगा। चैत्र नवरात्रि के दिन हिंदू नववर्ष 2078 भी शुरू हो रहा है। वहीं कलश स्थापना के दिन ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है। नवरात्रि के प्रथम दिन सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक करण बव योग रहेगा। फिर दोपहर बाद 03 बजकर 16 मिनट तक विष्कुंभ योग रहेगा। इसके बाद प्रीति योग शुरू हो जाएगी और रात्रि 11 बजकर 31 मिनट तक बालव योग रहेगा।
माँ दुर्गा के ९ रूप :-
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चन्द्रघंटा
- कूष्माण्डा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है,और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है।असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है। नवरात्रि पर्व की नौ ९ रातें देवी माँ के नौ विभिन्न रूपों को को समर्पित हैं जिसे नव दुर्गा भी कहा जाता है।
। । या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।
13 अप्रैल (पहला दिन)-
चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 13 अप्रैल दिन मंगलवार से हो रहा है। नवरात्रि के पहले दिन को प्रतिपदा कहते हैं और इस दिन नवरात्रि की "घटत्पन" यानि कलश स्थापना या घट स्थापना होती है। शुभ मुहूर्त में घटस्थापना के साथ ही "चंद्र दर्शन" और "मां शैलपुत्री" की पूजा विधि विधान से की जाती है।
14 अप्रैल (दूसरा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन यानी चैत्र नवरात्रि की द्वितीया 14 अप्रैल दिन बुधवार को है। इस दिन "सिंधारा दौज" और "माता ब्रह्राचारिणी पूजा" की जाती है।
15 अप्रैल (तीसरा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन यानी चैत्र नवरात्रि की तृतीया 15 अप्रैल दिन गुरुवार को है। इस दिन "गौरी तेज" या "सौजन्य तीज" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "चन्द्रघंटा की पूजा"की जाती है।
16 अप्रैल (चौथा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन यानी चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी 16 अप्रैल दिन शुक्रवार को है।"वरद विनायक चौथ" के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कूष्मांडा की पूजा" की जाती है।
17 अप्रैल (पांचवा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन यानी चैत्र नवरात्रि की पंचमी 17 अप्रैल दिन शनिवार को है। पंचमी के दिन "नाग पूजा" और "मां स्कन्दमाता" की पूजा होती है। भगवान कार्तिकेय को "स्कन्दकुमार" भी कहा जाता है। इसे "लक्ष्मी पंचमी" के नाम से भी जाना जाता है।
18 अप्रैल (छटा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का छठा दिन यानी चैत्र नवरात्रि की षष्ठी 18 अप्रैल दिन रविवार को है। इसे "यमुना छत" या "स्कंद सस्थी" के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कात्यायनी की पूजा" की जाती है।
19 अप्रैल (सातवां दिन)-
चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन यानी चैत्र नवरात्रि की सप्तमी 19 अप्रैल दिन सोमवार को है। सप्तमी को "महा सप्तमी" के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए "कालरात्रि की पूजा" की जाती है।
20 अप्रैल (आठवां दिन)-
चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन यानी चैत्र नवरात्रि की "महाष्टमी" या "दुर्गा अष्टमी" 20 अप्रैल दिन मंगलवार को है।इसे "अन्नपूर्णा अष्टमी" भी कहा जाता है। इस दिन "महागौरी की पूजा" और "संधि पूजा" की जाती है।
21 अप्रैल (नौंवा दिन)-
चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन 21 अप्रैल दिन बुधवार को है। "नवमी" नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन "राम नवमी" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन "सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय" की जाती है। इस दिन त्रेतायुग में श्रीराम अयोध्या में राजा दशरथ के घर जन्मे थे। इस वजह से इस दिन को राम नवमी कहा जाता है। राम नवमी के दिन व्रत रखते हुए श्री राम की पूजा की जाती है।
22 अप्रैल (दसवां दिन):-
चैत्र नवरात्रि का पारण इस वर्ष 22 अप्रैल दिन गुरुवार को किया जाएगा। इस दिन वे लोग पारण करते हैं, जो नवरात्रि के 9 दिनों तक व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा करते हैं।
चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान
बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।
पूजा विधि
घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन सबसे आवश्यक है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसे पवित्र स्थान पर रखा जाता है, घर की शुद्धि और खुशहाली के लिए।
१. अखण्ड ज्योति
नवरात्रि ज्योति घर और परिवार में शांति का प्रतीक है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले देसी घी का दीपक जलाते हैं। यह आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में मदद करता है और भक्तों में मानसिक संतोष बढ़ाता है।
२. जौ की बुवाई
नवरात्रि में घर में जौ की बुवाई करते है। ऐसी मान्यता है की जौ इस सृष्टी की पहली फसल थी इसीलिए इसे हवन में भी चढ़ाया जाता है। वसंत ऋतू में आने वाली पहली फसल भी जौ ही है जिसे देवी माँ को चैत्र नवरात्रि के दौरान अर्पण करते है।
३. नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद)
प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
- 1 दिन: केले
- 2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
- 3 दिन: नमकीन मक्खन
- 4 दिन: मिश्री
- 5 दिन: खीर या दूध
- 6 दिन: मालपुआ
- 7 दिन: शहद
- 8 दिन: गुड़ या नारियल
- 9 दिन: धान का हलवा
४. दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।
५. नौ दिनों के लिए नौ रंग
शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
- 1 दिन: हरा
- 2 दिन: नीला
- 3 दिन: लाल
- 4 दिन: नारंगी
- 5 दिन: पीला
- 6 दिन: नीला
- 7 दिन: बैंगनी रंग
- 8 दिन: गुलाबी
- 9 दिन: सुनहरा रंग
६. कन्या पूजन
कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।
७ . नवग्रहों की शांति
नवरात्रि में नवग्रहों को शांत किया जाता है। मां दुर्गा के प्रत्येक स्वरूप का किसी न किसी ग्रह से संबंध बताया गया है-
शैलपुत्री- सूर्य
ब्रह्मचारिणी- राहु
चंद्रघंटा- केतु
कुष्मांडा- चंद्रमा
स्कंदमाता- मंगल
कात्यानी- बुध
कालरात्रि- शनि
महागौरी- गुरू
सिद्धिदात्री- शुक्र
मनुष्य के जीवन पर ग्रहों का विशेष प्रभाव रहता है। जन्म के समय कुंडली में बैठे ग्रहों का शुभ-अशुभ फल जीवन में प्राप्त होता है। ग्रह जब अशुभ होते हैं तो व्यक्ति का जीवन परेशानियों से भर जाता है। ऐसे में नवरात्रि की पूजा ग्रहों की अशुभता को भी दूर करने में सहायक मानी गई है।
अनुष्ठान के कुछ विशेष नियम
बहुत सारे भक्त निचे दिए गए अनुष्ठानों का पालन करते हैं:-
- प्रार्थना और उपवास चैत्र नवरात्रि समारोह का प्रतीक है। त्योहार के आरंभ होने से पहले, अपने घर में देवी का स्वागत करने के लिए घर की साफ सफाई करते हैं।
- सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। भूमि शयन करते हैं। सात्त्विक आहार करते हैं।
- उपवास करते वक्त सात्विक भोजन जैसे कि आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल, आदि खाते हैं।
- नवरात्रि के दौरान, भोजन में सख्त समय का अनुशासन बनाए रखते हैं और अपने व्यवहार की निगरानी भी करते हैं, जैसे की
- अस्वास्थ्यकर खाना नहीं खाते।
- सत्संग करते हैं।
- ज्ञान सूत्र से जुड़ते हैं।
- ध्यान करते हैं।
- चमड़े का प्रयोग नहीं करते हैं।
- क्रोध से बचे रहते हैं।
- कम से कम 2 घंटे का मौन रहते हैं।
- अनुष्ठान समापन पर क्षमा प्रार्थना का विधान है तथा विसर्जन करते हैं।
चैत्र नवरात्री का महत्व
यह माना जाता है कि यदि भक्त बिना किसी इच्छा की पूर्ति के लिए महादुर्गा की पूजा करते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
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