रामनवमी पूरे भारत में मनाई जाती है। यह बहुत पवित्र दिन है।भारतीय भूमि हमेशा से ही एक पवित्र भूमि रही है, इतिहास के अनुसार यहाँ कई देवी देवताओं ने अवतार लिए है।संसार के पालनहार भगवान श्री विष्णु जी ने धर्म की स्थापना और अधर्म के समूल नाश के लिए त्रेतायुग में धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। भगवान विष्णु के अनेक अवतारों में से एक अवतार त्रेता युग में सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी में सूर्यवंश कुल के राजा दशरथ की महारानी कौशल्या के गर्भ से चैत्र मास की नवमी तिथि अभिजीत मुहूर्त में राम जी ने जन्म लिया था। तब से लेकर आज तक युगों-युगों से चैत्र मास की नवमी तिथि को रामनवमी पर्व मनाया जाता है।
राम नवमी का महत्व | Importance of Ram Navami :-
हर हिन्दू त्योहार का अपना एक अलग महत्व होता है, उसी तरह से राम नवमी का यह त्यौहार धरती पर से बुरी शक्तियों के पतन और यहाँ साधारण मनुष्यों को अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने के लिए भगवान के स्वयं आगमन का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन धरती पर से असुरों के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं धरती पर अवतार लिया था। राम नवमी सभी हिंदुओं के लिए एक खास उत्सव है, जिसे वह पूरे उत्साह से मनाता है। इस दिन जन्में श्री राम ने धरती पर से रावण के अत्याचार को समाप्त कर यहाँ राम राज्य की स्थापना की थी और दैवीय शक्ति के महत्व को समझाया था।
इस दिन ही नवरात्रि का अंतिम दिन भी होता है, इसलिए दो प्रमुख हिन्दू त्योहारों का एक साथ होना, इस त्यौहार के महत्व को और अधिक बढ़ा देता है। कहा जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस राम चरित मानस की रचना की थी, उसका आरंभ भी उन्होंने इसी दिन से किया था।
राम नवमी 2021 में कब है? | When is Ram Navami in 2021?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ 20 अप्रैल दिन मंगलवार को देर रात 12 बजकर 43 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 21 अप्रैल दिन बुधवार को देर रात 12 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में राम नवमी का पर्व या भगवान राम को जन्मोत्सव 21 अप्रैल को मनाया जाएगा।
राम नवमी मुहूर्त | Ram Navami Muhurat:-
राम नवमी :- 21 अप्रैल 2021, बुधवार
राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त :- 11:02 AM से 01:38 PM
अवधि :- 02 घण्टे 36 मिनट्स
राम नवमी मध्याह्न का क्षण :- 12:20 PM
नवमी तिथि प्रारम्भ :- अप्रैल 21, 2021 को 12:43 AM बजे
नवमी तिथि समाप्त :- अप्रैल 22, 2021 को 12:35 AM बजे
इस बार राम नवमी है विशेष:-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष रामनवमी के अवसर पर इस बार पांच ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है। इससे पहले ऐसा संयोग 2013 में बना था इस हिसाब से यह दुर्लभ संयोग पूरे नौ वर्षों के बाद बन रहा है।
राम नवमी 21 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 59 मिनट तक पुष्य नक्षत्र रहेगा, इसके बाद अश्लेषा नक्षत्र आरंभ होगा जो सुबह 08 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। इस दिन चंद्रमा पूरे दिन और रात स्वयं की राशि कर्क में संचार करेगा, सप्तम भाव में सप्तम भाव में स्वग्रही शनि, दशम भाव में सूर्य, बुध और शुक्र है। तो वहीं इस दिन बुधवार रहेगा। ग्रहों की इस स्थिति के कारण इस बार की रामनवमी बेहद शुभ रहेगी।
भगवान राम का जन्म कर्क लग्न और कर्क राशि में ही हुआ था। इस बार रामनवमी पर लग्न में स्वग्रही चंद्रमा का होना सुख शांति प्रदान करेगा। प्रातः पुष्य नक्षत्र और इसके बाद अश्लेषा नक्षत्र होने से इस दिन की शुभता और भी बढ़ जाएगी। इस दिन पूजा पाठ और खरीददारी करना बेहद शुभफलदाई रहेगा।
राम जन्म अवतार कथा और इतिहास | Ram Janam Avtar Katha and History :-
कथाओं के अनुसार त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थी, परंतु फिर भी वे संतान सुख से वंचित थे। महाराज दशरथ ने अपनी एक मात्र पुत्री शांता को गोद दे दिया था, जिसके बाद उन्हें कई वर्षो तक कोई संतान नहीं हुई।उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की योजना बनाई। यज्ञ प्रारंभ के समय उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ श्यामकर्ण नामक घोड़ा छोड़ दिया। अब उनका यज्ञ प्रारंभ हुआ। उनके यज्ञ में सभी ऋषि-मुनि, तपस्वी, विद्वान, राजा-महाराजा, मित्र और उनके गुरु वशिष्ठ जी भी शामिल हुए। सभी लोगों की उपस्थिति में यज्ञ प्रारंभ हो गया।
मंत्रोच्चार से चारों दिशाएं गूंज उठीं और यज्ञ की आहुति से महकने लगीं। यज्ञ के लिए विशेष खीर बनाया गया। यज्ञ के समापन के समय महाराज दशरथ ने अपने सभी अतिथियों, ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान देकर सकुशल विदा किया। यज्ञ के समापन के बाद दशरथ जी ने यज्ञ के समय बने खीर को अपनी तीनों रानियों को प्रसाद सवरूप खिलाया। उसके प्रभाव से उनकी तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया। वह शिशु बेहद आकर्षक, तेजस्वी और नील वर्ण वाला था। वह और कोई नहीं, साक्षात् श्रीहरि विष्णु के स्वरुप राम थे। इसके पश्चात रानी कैकेयी ने एक और रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। चार पुत्रों को पाकर महाराज दशरथ अत्यंत प्रसन्न हुए, पूरे राज्य में उत्सव मनाया गया। प्रजा, दरबारियों, मंत्रियों आदि को उपहार दिए गए। ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान दक्षिणा दिया गया।
कुछ समय पश्चात उन चारों शिशुओं का नामकरण संस्कार किया गया। महर्षि वशिष्ठ ने दशरथ जी के बड़े पुत्र का नाम राम, दूसरे का भरत, तीसरे का लक्ष्मण और सबसे छोटे पुत्र का नाम शत्रुघ्न रखा। चारों बालकों की किलकारियों से पूरा महल गूंज उठता था। महाराज दशरथ अपनी तीनों रानियों के साथ अपने बालकों पर पूरा स्नेह लुटाते थे। पूरी अयोध्या में आनंद से सराबोर थी। समय के साथ जब चारों भाई बड़े हुए तो उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई।
राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है। ‘रा’ का अर्थ है आभा (कांति) और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। राम का अर्थ है मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।
कौशल्या का अर्थ है, कुशलता और दशरथ का मतलब है, जिसके पास दस रथ हो। हमारे शरीर में १० अंग हैं, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (पाँच इन्द्रियों के लिए) और पाँच कर्मेन्द्रिया (जो की दो हाथ, दो पैर, जननेन्द्रिय, उत्सर्जन अंग और मुँह )।
सुमित्रा का अर्थ है, जो सब के साथ मैत्रीय भाव रखे और कैकयी का अर्थ है, जो बिना के स्वार्थ के सब को देती रहे।
भगवान राम स्वयं का प्रकाश हैं, लक्ष्मण (भगवन राम के छोटे भ्राता) का अर्थ है, सजगता, शत्रुघ्न का अर्थ हैं, जिसका कोई शत्रु ना हो या जिसका कोई विरोधी ना हो। भरत का अर्थ है योग्य।
अयोध्या (जहाँ राम का जन्म हुआ है) का अर्थ है, वह स्थान जिसे नष्ट ना किया जा सके।
राम के गुरु :-
ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ भगवान राम के गुरु थे, जिन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान के साथ- साथ शस्त्र अस्त्र में निपूर्ण किया। ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र ने भी राम को शस्त्र विद्या दी और इन्हीं के मार्गदर्शन में राम ने तड़का वध एवं अहिल्या उद्धार किया और सीता स्वंवर में हिस्सा लिया और सीता से विवाह किया।
राम वनवास कथा | Ram Vanvas Story :-
महाराज दशरथ अपने जेष्ठ पुत्र राम को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी अन्य पत्नी कैकई की मंशा थी, कि उनका पुत्र भरत सिंहासन पर बैठे, इसलिए उन्होंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान (यह वे वरदान थे, जिनका वचन राजा दशरथ ने तब दिया था, जब युद्ध के दौरान रानी कैकई ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी) मांगे, जिसमे उन्होंने भरत का राज्य अभिषेक और राम के लिए वनवास माँगा और इस तरह भगवान राम को चौदह वर्षो का वनवास मिला। इस वनवास में सीता एवम भाई लक्ष्मण ने भी अपने भाई के साथ जाना स्वीकार किया। साथ ही भरत ने भी भातृप्रेम को सर्वोपरि रखा और एक वनवासी की तरह ही चौदह वर्षो तक अयोध्या को एक अमानत के रूप में स्वीकार किया।
वनवास काल :-
इस वनवास में भगवान राम ने कई असुरों का संहार किया। शायद कैकई के वचन केवल आधार थे, क्यूंकि नियति कुछ इस प्रकार थी। भगवान राम ने अपने वनवास काल में हनुमान जैसे सेवक, सुग्रीव जैसे मित्र को पाया। नियति ने सीता अपहरण को निम्मित बनाकर रावण का संहार किया। सीता जन्म का उद्देश्य ही रावण संहार था, जिसे श्री राम ने पूरा कर मनुष्य जाति का उद्धार किया।
राम राज्य :-
श्री ने वनवास काल पूर्ण किया और भरत ने अपने बड़े भ्राता को अयोध्या का राज पाठ सौंपा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एक ऐसे राम राज्य की स्थापना की। जिसे सदैव आदर्श के रूप में देखा गया। राम ने प्रजा हित के सीता का परित्याग किया। अपने कर्तव्यों के लिए उन्होंने स्वहित को द्वीतीय स्थान दिया और इस तरह राम राज्य की स्थापना की।
राम के लव कुश :-
सीता ने प्रजाहित के लिए परित्याग स्वीकार किया और अपना जीवन वाल्मीकि आश्रम में बिताया और उस समय सीता ने दो पुत्रो को जन्म दिया, जिनका नाम लव कुश था। यह दोनों ही पिता के समान तेजस्वी थे। इन्ही के हाथो राम ने अपने राज्य को सौंपा और स्वयं ने अपने विष्णु अवतार को धारण कर अपने मानव जीवन को छोड़ा।
राम नवमी क्यों मनाते है ? | Why We Celebrate Ram Navami? :-
त्रेता युग में रावण नामक राक्षस के अत्याचार बहुत बढ़ गए थे और लोग परेशान हो गए थे। रावण महाज्ञानी था और महापराक्रमी भी, वह भगवान शिव का महाभक्त भी था। उसे वरदान भी प्राप्त थे, उसका खात्मा किसी साधारण मनुष्य के वश में नहीं था। तब लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं धरती पर अवतार लिया। उनका जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन रानी कौशल्या की कोख से हुआ था। इसलिए यह दिन सभी भारत वासियों के लिए खास है, जिसे विशेष उत्साह के साथ पूरे देश मे मनाया जाता है।
परंतु रावण का वध करना श्री राम के पूजन का कारण नहीं है, बल्कि श्री राम का पूरा जीवन ही एक उदाहरण है। अपने जीवन चरित्र के चलते श्री राम मर्यादा पुरषोत्तम कहलाए। इन्होंने अपने पिता के एक आदेश मात्र पर, महल के सुख त्यागकर वन जीवन को स्वीकार किया था। इस प्रकार इनके जीवन को एक आदर्श जीवन के रूप मे प्रस्तुत करना और आने वाली पीढ़ियों तक यह संदेश पंहुचाना भी इस दिन को मनाने का एक उद्देश्य है।
राम नवमी कैसे मनाई जाती है? | How to Celebrate Ram Navami?:-
राम नवमी हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है, जिसे भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह त्योहार नवमी तिथि के दिन पड़ता है और इसका माह चैत्र है। चैत्र माह में माँ दुर्गा की भी पूजा की जाती है और नवरात्रि मनाई जाती है। इसी दौरान नवरात्रि के नौवे दिन राम नवमी होती है। हिन्दू धर्म में इस दिन विभिन्न धार्मिक ग्रंथो का पाठ, हवन पूजन, भजन आदि किया जाता है। इस दिन कई लोग शिशु रूप में भगवान राम की मूर्ति पूजा भी करते है।
इस दिन राम लला के मंदिर आकर्षण का केंद्र होते है, साथ ही यहाँ का प्रसाद वितरण भी खास होता है। कुछ लोग इस समय नवरात्रि में पूरे नौ दिन का उपवास रखते है और अंतिम दिन भगवान राम की पूजा के बाद उपवास खोलते है और आशीर्वाद प्राप्त करते है। जैसा की हम जानते है, भारत में बहुत ही विभिन्नताएँ है, इसलिए यहाँ प्रचलित कुछ मानताओं में भी कुछ विभिन्नता देखने के लिए मिलती है। दक्षिण भारत के लोग इस त्योहार को भगवान राम और देवी सीता की शादी की सालगिरह के रूप में मानते है, परंतु रामायण के अनुसार अयोध्यावासी पंचमी के दिन इनका विवाहोत्सव मनाते है।
अलग अलग क्षेत्रों में इस त्यौहार को मनाने का तरीका भी अलग है। जहां अयोध्या और बनारस में इस दिन गंगा और सरयू में स्नान के बाद डुबकी लगाई जाती है और भगवान राम, सीता और हनुमान की रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है, वही अयोध्या, सितामणि, बिहार, रामेश्वरम आदि जगहो पर चैत्र पक्ष की नवमी पर भव्य आयोजन किए जाते है। यह दिन सभी हिंदुओं के लिए खास होता है, बस सबके मनाने का तरीका अलग होता है।
कई जगहों पर इस दिन पंडालों में भगवान राम की मूर्ति कि स्थापना भी कि जाती है। यह दिन भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या में विशेष रूप से मनाया जाता है, परंतु यहाँ अब भी भगवान राम का मंदिर बनना बाकी है।
राम का जन्म अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को हुआ था, कई जगहों पर इस दिन सभी भक्तजन अपना चैत्र नव रात्री का उपवास दोपहर 12 बजे पूरा करते हैं। घरो में खीर पुड़ी और हलवे का भोग बनाया जाता हैं। कई जगहों पर राम स्त्रोत, राम बाण, अखंड रामायण आदि का पाठ होता हैं, रथ यात्रा निकाली जाती हैं, मेला सजाया जाता हैं।इस दिन भगवान के भक्तों के लिए भी प्रसादी स्वरूप भंडारो का आयोजन होता है।
पूजा सामाग्री और पूजन विधि | Poojan Samagri and Poojan Vidhi:-
पूजा सामाग्री :-
पूजा घर में रामजी की तस्वीर या मूर्ति रखें, रामजी के लिए वस्त्र या दुपट्टा, राम नाम की किताब, चंदन, एक नारियल, रोली, मोली, चावल, सुपारी, कलश में साधारण पानी या गंगा जल, ताजी और धुली हुई आम की पत्तियां, तुलसी पत्ते, कमल के फूल, ताजा हरी घास, पान के पत्ते, लौंग, इलायची, कुमकुम ( सिंदूर ), गुलाल अगरबत्ती, दीप-धूप और माचिस, पेड़ा या लड्डू, एक आसन।
पूजा-विधि:-
भारतीय मान्यता के अनुसार भगवान राम सूर्य के वंशज थे इसलिये यह दिन सूर्योदय के साथ ही सूर्य को जल अर्पण कर शुरू किया जाता है।रामनवमी के दिन सुबह उठकर, घर की साफ-सफाई कर शुद्ध करना चाहिए। स्नान करके पवित्र होकर पूजास्थल पर पूजन सामग्री के साथ बैठें। फिर पूजा स्थल पर प्रभु श्री राम की प्रतिमा, मूर्ति या फिर तस्वीर को स्थापित करें। राम जी के बाल्यकाल की मूर्ति या तस्वीर हो तो बहुत उत्तम होगा।इसके बाद राम नवमी की पूजा करने के लिए श्रीराम के लिए अखंड ज्योत जलाएं। फिर धूप-दीप को देवताओं के बाएं तरफ और अगरबत्ती को दाएं तरफ रखें। पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल अवश्य रखें। साथ ही कलश और नारियल भी पूजा घर में रखें।
खीर और फल-फूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें। सभी लोगों के माथे पर तिलक लगाए, आसन बिछाकर कमर सीधी कर भगवान के आगे बैठें। घंटी और शंखनाद करें। राम पूजन शुरू करने से पहले भगवान श्रीराम की आरती करें इसके बाद पुष्पांजलि अर्पित करके क्षमा प्रार्थना करे।इसके साथ ही राम दरबार यानी भगवान श्रीराम के सहित लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी की पूजा , उसके बाद श्रीराम नवमी की पूजा षोडशोपचार करें।अब रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ करें। रामनवमी की व्रत कथा सुनें और घर के प्रांगण में तुलसी मंडप के समक्ष ध्वजा, पताका, तोरण आदि स्थापित करें।पूजा दौरान उनकी प्रतिमा को पालने में कुछ देर के लिए झुलाएं।पूजा समापन के बाद प्रसाद लोगों में वितरित कर दें। ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें। व्रत रखने वाले लोग दिनभर फलाहार करें।शुभ मुहूर्त में भगवान राम की रथ यात्रा, झांकियां आदि निकालें। फिर शाम को भगवान राम का भजन-कीर्तन करें। फिर दशमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान राम की पूजा करें और पारण कर व्रत पूरा करें।
श्रीराम नवमी व्रत की कथा:-
एक बार राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर जंगल में घूम रहे थे। तीनों घूमते-घूमते काफी थक गए। भगवान राम ने थोड़ा विश्राम करने का विचार किया। वहीं पास में उन्हें एक बुढ़िया की कुटिया दिखाई थी। राम, सीता और लक्ष्मण उस बुढ़िया के पास पंहुच गये। बुढ़िया उस समय सूत कात रही थी।बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और उन्हें स्नान ध्यान करने के बाद भोजन करने का आग्रह किया इस पर भगवान राम ने कहा माई मेरा हंस भी भूखा है, पहले इसके लिये दो मोती दे दो। ताकि इसके बाद मैं मैं भी भोजन कर सकूं। इस बात को सुनकर बुढ़िया मुश्किल में पड़ गई। इसके बाद वह बुढ़िया वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और उनसे उधार में मोती देने की बात कही लेकिन राजा को मालूम था कि बुढ़िया की हैसियत नहीं है कि वह दो मोती वापस लौटा सके लेकिन राजा ने बढ़िया पर तरस खाकर मोती दे दिए। बुढ़िया ने हंस को मोती खिला दिया, जिसके बाद भगवान राम ने भोजन किया।
कुटिया से जाते समय भगवान राम ने बुढ़िया के आंगन में एक मोतियों का पेड़ लगा गए। कुछ समय बाद पेड़ बड़ा हुआ और मोती लगने लगे लेकिन बुढ़िया को इसकी सुध नहीं थी। जो भी मोती गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते। एक दिन बुढिया पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी की पेड़ से मोती गिरने लगे बुढ़िया उन्हें समेटकर राजा के पास ले गई। राजा हैरान कि बुढ़िया के पास इतने मोती कहां से आये बुढ़िया ने बता दिया की उसके आंगन में पेड़ है, जिसके बाद राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया लेकिन भगवान की माया उस पेड़ पर कांटे उगने लगे। एक दिन उस पेड़ का एक कांटा रानी के पैर में चुभा गया, जिसके बाद राजा ने दोबारा वह पेड़ बुढ़िया के आंगन में लगवा दिया और पेड़ पर पहले की तरह मोती लगने लगे जिन्हें बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।
इन मंत्रों का कर सकते हैं जाप:-
- ‘ऊं रामभद्राय नम:’ मंत्र का जाप करने से आपके जीवन में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं।
- ‘ऊं नमो भगवते रामचन्द्राय’ मंत्र का जाप करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- ‘ऊं जानकी वल्लभाय स्वाहा’ मंत्र के जाप से मान-सम्मान में वृद्धि होगी।
भगवान राम का पूरा जीवन ही एक उदाहरण है उनका जीवन त्याग, तप सम्मान और शांति का प्रतीक है। इनका जीवन पारिवारिक प्रेम का भी उदाहरण हैं इनके मन मे अपने भाइयो के प्रति अपार प्रेम था जो माता कैकई के भेदभाव के बाद भी कम नहीं हुआ। इसी के साथ कैकई के गलत निर्णय के बाद भी इनके मन मे अपनी माँ कैकई के लिए भी समान सम्मान और प्यार था। इसके अलावा उनका जीवन यह बात भी दर्शाता है कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे और पाप का घड़ा पुण्य से ज्यादा ऊंचा होगा तो आम जनता को उनसे बचाने वाले का भी अवतरण होगा। वैसे तो संपूर्ण भारतीय इतिहास ही इस बात का उदाहरण है तभी तो यहाँ कृष्ण, राम और अन्य कई भगवान के अवतरण के प्रतीक आज भी देखने के लिए मिलते है।
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