सूर्य नमस्कार या सूर्य अभिवादन योगासनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इसे सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है। केवल इसका ही नियमित रूप से अभ्यास व्यक्ति को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।
सूर्य नमस्कार कब करें ? | When to do Surya Namaskar?
समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्य नमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये।इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।सूर्य नमस्कार के प्रत्येक दौर में दो सेट होते हैं और प्रत्येक सेट 12 योग आसान से बना होता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने के तरीके पर आपको कई संस्करण मिल सकते हैं।
योग करने के लिए आप Yoga Mat का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
सूर्य नमस्कार क्यों करें ? क्या हैं सूर्य नमस्कार के फायदे?। Health Benefits of Surya Namaskar
सूर्य-नमस्कार के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति की वृद्धि के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति भी तीव्र होती है। इसके अन्य कई लाभ हैं जो निम्नलिखित हैं :
- सभी महत्त्वपूर्ण अवयवों में रक्तसंचार बढ़ता है।
- सूर्य नमस्कार से विटामिन-डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
- आँखों की रोशनी बढ़ती है।
- शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।
- सूर्य नमस्कार का असर दिमाग पर पड़ता है और दिमाग ठंडा रहता है।
- पेट के पास की वसा (चर्बी) घटकर भार मात्रा (वजन) कम होती है जिससे मोटे लोगों के वजन को कम करने में यह बहुत ही मददगार होता है।
- बालों को सफेद होने झड़ने व रूसी से बचाता है।
- मानसिक तनाव, अवसाद, एंग्जायटी आदि के निदान के साथ क्रोध, चिड़चिड़ापन तथा भय का भी निवारण करता है।
- कमर लचीली होती है और रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
- त्वचा रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
- हृदय व फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
- बाहें व कमर के स्नायु बलवान हो जाते हैं ।
- पाचन क्रिया में सुधार होता है।
- मनकी एकाग्रता बढ़ती है।
- यह शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है।
- इसके अभ्यास से शरीर की लोच शक्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। प्रौढ़ तथा बूढे़ लोग भी इसका नियमित अभ्यास करते हैं तो उनके शरीर की लोच बच्चों जैसी हो जाती है।
- शरीर की सभी महत्वपूर्ण ग्रंथियों, जैसे पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका (Pituitary Gland), थायरॉइड, पैराथायरॉइड, एड्रिनल, लीवर, पैंक्रियाज, ओवरी आदि ग्रंथियों के स्रव को संतुलित करने में मदद करता है।
- शरीर के सभी संस्थान, रक्त संचरण, श्वास, पाचन, उत्सर्जन, नाड़ी तथा ग्रंथियों को क्रियाशील एवं सशक्त करता है।
- पाचन सम्बन्धी समस्याओं, अपच, कब्ज, बदहजमी(अपच ), गैस, अफारे तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत ही उपयोगी भूमिका निभाता है।
- वात, पित्त तथा कफ को संतुलित करने में मदद करता है। त्रिदोष निवारण में मदद करता है।
- इसके अभ्यास से रक्त संचालन तीव्र होता है तथा चयापचय की गति बढ़ जाती है, जिससे शरीर के सभी अंग सशक्त तथा क्रियाशील होते हैं।
- इसका नियमित अभ्यास करने वाले व्यक्ति को हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, कब्ज जैसी समस्याओं के होने की आशंका बेहद कम हो जाती है।
- रीढ़ की सभी वर्टिब्रा को लचीला, स्वस्थ एवं पुष्ट करता है।
- पैरों एवं भुजाओं की मांसपेशियों को सशक्त करता है। सीने को विकसित करता है।
- स्मरणशक्ति तथा आत्मशक्ति में वृद्धि करता है।
सूर्य नमस्कार मंत्र | Surya Namaskar Mantras
सूर्य नमस्कार प्रार्थना करते समय आप सूर्य मंत्र का उच्चारण भी कर सकते है ।
सूर्य नमस्कार के आसन कौन कौन से हैं ? | What are the postures of Surya Namaskar?
- प्रणामासन
- हस्त उत्तानासन
- उत्तानासन
- अश्व संचालनासन
- चतुरंग दंडासन
- अष्टांग नमस्कार
- भुजंगासन
- अधोमुक्त श्वानासन/पर्वतासन
- अश्व संचालनासन
- उत्तानासन
- हस्त उत्तानासन
- प्रणामासन
सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-
(१) कम्बल / चटाई पर खड़े हो जाये, अपने पैरों को एक साथ रखें और अपने वजन को दोनों पैरों पर संतुलित करें।अपनी छाती का फैलाए और अपने कंधों को आराम दे ।दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
(8) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(9) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(10) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(11) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(12) यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।
यह सूर्य नमस्कार का एक सेट है, चरणों को दोहराकर करें।
सूर्य नमस्कार कौन न करे ?
- हर्निया और उच्च रक्ताचाप के मरीजों को सूर्य नमस्कार नहीं करने की सलाह दी जाती है ।
- पीठ दर्द की समस्या से ग्रस्त लोग सूर्य नमस्कार शुरू करने से पहले उचित सलाह जरूर लें।
- गर्भवती महिला तीसरे महीने के गर्भ के बाद से इसे करना बंद कर दें।
- महिलाएं पीरियड के दौरान सूर्य नमस्कार और अन्य आसन न करें।
स्वामी सत्यानंद सरस्वती योग गुरु द्वारा लिखत पुस्तक सूर्य नमस्कार : सूर्य से शक्ति प्राप्त करने की विधि अवश्य पढ़े।
हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। योग के नियमित अभ्यास से जीवन में सुधार होता है। अगर आप किसी विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो हमें आपके सवालों के जवाब देने में खुशी होगी आप हमें अपने सवाल कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।
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