माघ के महीने को हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत पवित्र माना जाता है। इस मास के हर दिन को स्नान-दान आदि के लिये बहुत ही शुभ माना जाता है। लेकिन माघ मास के ठीक मध्य में अमावस्या के दिन का तो बहुत विशेष महत्व माना जाता है। दरअसल मान्यता यह है कि इस दिन पवित्र नदी और मां का दर्जा रखने वाली गंगा मैया का जल अमृत बन जाता है। इसलिये माघ स्नान के लिये माघी अमावस्या यानि मौनी अमावस्या को बहुत ही खास बताया है। क्योंकि इस दिन व्रती को मौन धारण करते हुए दिन भर मुनियों सा आचरण करना पड़ता है इसी कारण यह अमावस्या मौनी अमावस्या कहलाती है। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार वर्ष 2022 में मौनी अमावस्या का यह त्यौहार 01 फरवरी को मंगलवार के दिन है।
ऐसी मान्यता है कि अगर इस अमावस्या पर मौन रहें तो इससे अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। वहीं वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा मन का कारक है, और इस दिन चंद्र देव के ना दिखने के कारण मन व्यथित रहता है, इसलिए मन को शांत रखने के लिए मौन व्रत किया जाता है। ग्रह दोष दूर करने के लिए भी ये अमावस्या खास मानी गई है।
मान्यता के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन ऋषियों की तरह चुप रहने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इस दिन मुंह से कटु शब्द कहने से भी बचना चाहिए। इस अमावस्या के दिन भगवान विष्णु-शिव दोनों की पूजा करने का विधान है इससे धन और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
महाभारत के एक दृष्टांत में इस बात का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि माघ मास के दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है, वहीं पद्म पुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान श्रीहरि विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं।
यही वजह है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व का माना गया है। यह अमावस्या स्नान, दान और पुण्य के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए कई हजार गुणा फलदायी मानी गई है। इस दिन हिन्दू धर्मावलंबी न केवल मौन व्रत रखते है बल्कि भगवान की पूजा-अर्चना भी करते है।
मौनी अमावस्या का महत्व
साधु, संत, ऋषि, महात्मा सभी प्राचीन समय से प्रवचन सुनाते रहे हैं कि मन पर नियंत्रण रखना चाहिये। मन बहुत तेज गति से दौड़ता है, यदि मन के अनुसार चलते रहें तो यह हानिकारक भी हो सकता है। इसलिये अपने मन रूपी घोड़े की लगाम को हमेशा कस कर रखना चाहिये। मौनी अमावस्या का भी यही संदेश है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने की यौगिक क्रिया भी है।
मान्यता यह भी है कि यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने देने, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है। सच्चे मन से भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा भी इस दिन करनी चाहिये। शास्त्रों में इस दिन दान-पुण्य करने के महत्व को बहुत ही अधिक फलदायी बताया है। तीर्थराज प्रयाग में स्नान किया जाये तो कहने ही क्या अन्यथा गंगा मैया का जल जहां भी हो वह तीर्थ के समान ही हो जाता है। पहले मन में धर कर गंगा मैया का ध्यान, स्वच्छ जल में गंगाजल के कुछ छींटे देकर फिर करें स्नान।
एक कथा के अनुसार मौनी अमावस्या यानी भगवान ब्रह्मा के स्वयंभू पुत्र ऋषि मनु। इन्होंने आजीवन मौन रहकर तपस्या की थी इसीलिए इस तिथि को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है। इस दिन त्रिवेणी स्थल यानी 3 नदियों का संगम स्थान पर स्नान करने से तन की शुद्धि, मौन रहने से मन की शुद्धि और दान देने से धन की शुद्धि और वृद्धि होती है।
मौनी अमावस्या 2022 तिथि व मुहूर्त
मौनी अमावस्या मंगलवार, 01 फरवरी 2022
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 31 जनवरी 2022 को दोपहर 14 बजकर 18 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त - 01 फरवरी 2022 को सुबह 11 बजकर 15 मिनट तक
उदय कालिक महत्त्व के कारण स्नान दान एवं मौनी अमावस्या का पर्व 1 फरवरी दिन मंगलवार को होगा। मंगलवार के दिन अमावस्या पड़ने के कारण इसे भौमवती अमावस्या भी कहा जा सकता है। भौमवती अमावस्या का मणि-कांचन योग गंगा स्नान के महत्त्व को कई गुना बढ़ाने वाला होगा।इस दिन प्रयागराज के पावन संगम अर्थात त्रिवेणी एवं काशी के चंद्रावती बलुआ के पश्चिम वाहिनी गंगा में मौन रहकर स्नान, दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। स्नान के साथ ही पुराणों में त्रिवेणी तट पर दान की अपार महिमा वर्णित है।
त्रिवेणी माघवं सोमं भरद्वाजंच वासुकिमः।
वन्देक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम।।
प्रयाग तीर्थो का राजा है, यहां गंगा, यमुना एंव अदृश्य सरस्वती का संगम स्थान पवित्र त्रिवेणी, वेणीमाधव, सोमनाथ, भरद्वाज मुनि का आश्रम, वासुकि नाथ, अक्षयवट एंव शेषनाथ- ये सभी पवित्र स्थान है।
मौनी अमावस्या पर क्यों रखें मौन
मौनी अमावस्या के दिन मौन धारण करने का प्रचलन सनातन काल से चला आ रहा है। यह काल, एक दिन, एक मास, एक वर्ष या आजीवन भी हो सकता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन धारण करने से विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या पर गंगा नदी में स्नान करने से दैहिक (शारीरिक), भौतिक (अनजाने में किया गया पाप), दैविक (ग्रहों, गोचरों का दुर्योग) तीनों प्रकार के मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं। इस दिन स्वर्ग लोक के सारे देवी-देवता गंगा में वास करते हैं, जो पापों से मुक्ति देते हैं। यह चंद्र तथा राहु प्रधान होती है इसलिए जिस व्यक्ति की पत्रिका में इन ग्रहों से संबंधित परेशानियां हों, इस दिन उपाय करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र माना गया है। ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि इसी दिन से द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। यह अमावस्या दुख-दारिद्र्य दूर करने तथा और सभी को सफलता दिलाने वाली मानी गई है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान से विशेष पुण्यलाभ प्राप्त होता है।
क्यों करें पवित्र नदी में स्नान
शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि दिन नर्मदा, गंगा, सिंधु, कावेरी सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान, दान, जप, अनुष्ठान करने से कई दोषों का निवारण होता है। इस दिन ब्रह्मदेव और गायत्री का भी पूजन विशेष फलदायी होता है। इस दिन गंगा स्नान के साथ ही मौन व्रत धारण करने और बताए गए मंत्रों के जप से विशेष लाभ एवं विशेष उपलब्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही स्नान दान का पूरा पुण्यफल भी मिलता है।
मौनी अमावस्या पर दान क्या करें :-
मौनी अमावस्या के दिन तेल, तिल, सूखी लकड़ी, कंबल, गरम वस्त्र, काले कपड़े, जूते दान करने का विशेष महत्व है। वहीं जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा नीच का है उन्हें दूध, चावल, खीर, मिश्री, बताशा दान करने में विशेष फल की प्राप्ति होगी।
मौनी अमावस्या पर ऐसे करें व्रत और उपाय :-
- व्रत उपवास के लिये सबसे पहली और अहम जरूरत होती है तन मन का स्वच्छ होना, अपने तन मन की बाह्य और आंतरिक स्वच्छता, निर्मलता के लिये ही इस दिन मौन व्रत रखा जाता है व दिन भर प्रभु का नाम मन ही मन सुमिरन किया जाता है।
- माघ मास की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली मौनी अमावस्या के उपाय बात करें तो गंगा-स्नान-दान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मौन रहने से आत्मबल में वृद्धि होती है।इस मंत्र का जाप भी करना चाहिए। गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।
- मौनी अमावस्या पर के दिन मौन रहकर प्रयाग कुंभ संगम में स्नान करना चाहिए। सात बार भगवान श्रीहरी विष्णु जी का नाम लेते हुए पवित्र सरोवर-नदी में डुबकी लगनी चाहिए एवं स्नान करने के बाद स्वच्छ पीले कपड़े पहनने चाहिए और अक्षत यानी चावल और गंगाजल हाथ में लेकर संकल्प लेना चाहिए, संकल्प लेने के बाद घर में भगवान विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करना चाहिए। भगवान विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र पर पीले फूल की माला चढ़ाएं और विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु का पाठ करना चाहिए उसके उपरान्त ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन में आहुति देनी चाहिए।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि पीपल के तने में भगवान शिव, जड़ में भगवान विष्णु तथा अग्रभाग में ब्रह्मा जी का वास होता है। ऐसे में पीपल के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति को ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव तीनों की ही कृपा बानी रहती हैं।
- इस दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें।
- किसी भी अमावस्या के दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और वे सुख, समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीष देते हैं।
- कोई भी रोग होने पर गुड़ व आटा दान करें।
- इस दिन पितृसूक्त तथा पितृस्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- विद्या की प्राप्ति हेतु रेवड़ी को मीठे जल में प्रवाह करें।
- अमावस्या के दिन सूर्यदेव को तांबे के लोटे में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य देना फलदायी माना जाता है।
- 'ॐ पितृभ्य: नम:' मंत्र का 108 बार अथवा जितना भी हो सके ज्यादा से ज्यादा जाप करना शुभ फल प्रदान करता है।
- अमावस्या को दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए।
- कर्ज बढ़ जाने ऋणमोचक मंगल स्रोत का पाठ स्वयं करें या किसी युवा ब्राह्मण सन्यासी से कराएं।
- मौनी अमावस्या के दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए। जल्दी उठकर पूजा पाठ करना चाहिए। अमावस्या की रात श्मशान घाट या उसके आस-पास नहीं घूमना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठें और मौन रहते हुए पानी में काले तिल डालकर स्नान करें। यह शुभ होता है।
मौनी अमावस्या व्रत कथा
पुराणों के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा।
उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और बताया - सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी।
तब उस ब्राह्मण ने पंडित से पूछा- पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?
पंडित ने कहा- सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया - वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो।
तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया।
वह अपनी मां से बोले- नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली - मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है।
इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूँ। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे।
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा - हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है?
सबने कहा - हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा?
किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब-कुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी।
सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी।
चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा - मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई।
दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई।
सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।
निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है।
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