गंगा से अलग होकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा सहस्त्रों वर्षों से अविरल प्रवाहित, भारतीय संस्कृति को युगों से गढ़ती, सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को रूप देती, दुःखों एवं सुखों की साक्षी रही है। हमारी श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था ने अपने तट पर वासित अध्यात्म एवं योग के अन्वेषियों को आत्म एवं जगत के रहस्यों की , ब्रहमज्ञान की अनुभूति कराई है। इसी से यह मोक्षदायिनी संज्ञा से विभूषित हुई है। दूषित मन, अपराधी मन, विक्षोभित मन इसके सान्निध्य मात्र से पावन, निर्मल और शुद्ध हुए हैं और इसी से इसे पतित पावनी की पदवी मिली। युगों-युगों से प्रवाहित गंगा, भारतीय संस्कृति की धुरी तथा भारतीयों की आस्था का केन्द्र बनी हुई है। गंगा आराधना को समर्पित भावभरी पंक्तियां हैं। इसकी रचना आद्य शंकराचार्य ने की थी। यह स्तोत्र बहुत ही मधुर और लययुक्त है। भक्तिभावपूर्वक इसका पाठ करने से सभी तरह के शाप, ताप नष्ट हो जाते हैं, बुद्धि विमल हो जाती है और व्यक्ति जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है ।
॥ श्रीमच्छनकराचार्य रचित गंगा स्तोत्र ॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरल तरंगे।
शंकर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥ १ ॥
भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २ ॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३ ॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४ ॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५ ॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥ ६ ॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥ ७ ॥
पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८ ॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९ ॥
अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ १० ॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११ ॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२ ॥
येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥ १३ ॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः त्व ॥ १४ ॥
॥ इति श्रीमच्छनकराचार्य विरचितं गङ्गास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Ganga Stotram In English
(1)
Devi Suresvari Bhagavati Gange, Tribhuvana-tarini Tarala Tarange.
Sankara-mauli-viharini Vimale, Mama Matir Astam Tava Pada-kamale.
(2)
Bhagirathi Sukha-dayini Matas , Tava Jala-mahima Nigame Khyatah.
Naham Jane Tava Mahimanam, Pahi Krpamayi Mam Ajnanam.
(3)
Hari-pada-padya-tarangini Gange, Hima-vidhu-mukta-dhavala-tarange.
Durikuru Mama Duskrti-bharam, Kuru Krpaya Bhava-sagara-param.
(4)
Tava Jalam Amalam Yena Nipitam, Parama-padam Khalu Tena Grhitam.
Matar Gange Tvayi Yo Bhaktah, Kila Tam Drastum Na Yamah Saktah.
(5)
Patitoddharini Jahnavi Gange, Khandita-giri-vara-mandita-bhange.
Bhisma Janani He Muni-vara-kanye, Patita-nivarini Tribhuvana-dhanye.
(6)
Kalpa-latam Iva Phaladam Loke, Pranamati Yas Tvam Na Patati Soke.
Paravara-viharini Gange, Vimukha-vanita-krta-taralapange.
(7)
Tava Cen Matah Srotah-snatah, Punar Api Jathare So’pi Na Jatah.
Naraka-nivarini Jahnavi Gange, Kalusa-vinasini Mahimottunge.
(8)
Punar Asad-ange Punya-tarange, Jaya Jaya Jahnavi Karunapange.
Indra-mukuta-mani-rajita-carane, Sukhade Subhade Bhrtya-saranye.
(9)
Rogam Sokam Tapam Papam, Hara Me Bhagavati Kumati-kalapam.
Tribhuvana-sare Vasudhahare, Tvam Asi Gatir Mama Khalu Samsare.
(10)
Alakanande Paramanande, Kuru Karunamayi Katara-vandye.
Tava Tata-nikate Yasya Nivasah, Khalu Vaikunthe Tasya Nivasah.
(11)
Varam Iha Nire Kamatho Minah, Kim Va Tire Saratah Ksinah.
Athava Svapaco Malino Dinah, Tava Na Hi Dure Nrpatih Kulinah.
(12)
Bho Bhuvanesvari Punye Dhanye, Devi Dravamayi Muni-vara-kanye.
Ganga-stavam Imam Amalam Nityam, Pathati Naro Yah Sa Jayati Satyam.
(13)
Yesam Hrdaye Ganga Bhaktis, Tesam Bhavati Sada Sukha-muktih.
Madhura-manohara-pajjhatikabhih, Paramananda-kalita-lalitabhih.
(14)
Ganga-stotram Idam Bhava-saram, Vashchitaphaladam Vimalam Saram.
Sankara-sevaka-sankara-racitam, Pathati Ca Vinayidam Iti Samaptam.
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