हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों में अक्सर उन्हें उनकी सवारी के साथ दर्शाया जाता है। भगवान के हर स्वरूप और उनकी सवारी का अपना महत्व और जुड़ाव है जिसके पीछे शास्त्रों में कई कथाओं का भी वर्णन किया गया हैं। कुछ ही दिनों में शारदीय नवरात्रि का आरंभ होने वाला है और इन दिनों मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।
मां दुर्गा की मूर्तिशक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के प्राकट्य से लेकर महिषासुर मर्दन तक अनेक पौराणिक कथाएं हैं। मां दुर्गा तेज, शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक हैं और उनकी सवारी शेर है। शेर प्रतीक है आक्रामकता और शौर्य का। यह तीनों विशेषताएं मां दुर्गा के आचरण में भी देखने को मिलती है। महिषासुर को मारने के लिये सभी देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र उन्हें दिये थे, ये तो सभी जानते हैं, लेकिन मां दुर्गा की सवारी शेर कैसे बना, इसके पीछे एक रोचक कथा है।
आईए जानें पौराणिक कथा:-
सती, पार्वती, शक्ति जैसे न जाने कितने ही स्वरूप मां दुर्गा में समाहित हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां भगवती ने हर जन्म में भगवान शिव को अपना पति बनाने का संकल्प लिया। जब मां भगवती देवी पार्वती के स्वरूप में जन्मीं तो वह भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए जतन करने लगीं। शिव को पति रूप में हासिल करने के लिए मां पार्वती को कठोर तप करना पड़ा। वह कई वर्षों तक हिमालय की कंदराओं में तपस्या में लीन रहीं। देवी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा पूरी होने का वरदान दिया। इसके बाद देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ। इस विवाह में देवी-देवता, मुनि और साधुओं ने भी हिस्सा लिया।
प्रचलित कथाओं के मुताबिक विवाह के कुछ समय बाद कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव ने विहार के दौरान विनोद में हंसी-ठिठोली करते हुए मां पार्वती को काली कह दिया। दरअसल, पति स्वरूप में भगवान शिव को हासिल करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या करने के कारण देवी पार्वती का रंग श्याम हो गया था। भगवान शिव के इस मजाक से मां पार्वती नाराज हो गईं और वह अपने रंग को गोरा करने के लिए फिर से तप करने के लिए हिमालय की ओर बढ़ गईं।
इस दौरान एक भूखा शेर मां पार्वती को अपना शिकार बनाने के लिए घात लगाकर बैठ गया। कंदरा में मां पार्वती ने ध्यान लगाया और तपस्या में लीन हो गईं। इस दौरान भूखा शेर देवी के उठने के इंतजार में उनके सामने वहीं बैठ गया।
मां पार्वती कई वर्ष तक अपनी तपस्या में डूबी रहीं। इस दौरान वह शेर भी वहीं देवी के उठने के इंतजार में बैठा रहा। जब कई वर्ष गुजर गए तो भगवान भोलेनाथ मां पार्वती के तप से प्रसन्न हो गए और उन्होंने पार्वती को गौर वर्ण पाने का वरदान दिया। कथाओं के मुताबिक इसके बाद मां पार्वती सरोवर (गंगा नदी) में स्नान करने के लिए कहा गया। जब मां पार्वती सरोवर से स्नान करके लौटीं तो अचानक उनके भीतर से एक और देवी प्रकट हुईं। उनका रंग बेहद काला था।उस काली देवी के माता पार्वती के भीतर से निकलते ही देवी का खुद का श्याम रंग गोरे रंग में बदल गया। इसी कथा के अनुसार माता के भीतर से निकली देवी का नाम ‘कौशिकी’ पड़ा और गोरी हो चुकी माता सम्पूर्ण जगत में ‘माता गौरी’ कहलाईं।
स्नान के बाद देवी पार्वती ने देखा कि एक शेर लगातार उन्हें देख रहा है। देवी को पता चला कि वह शेर उन्हें खाने के लिये सालों से इंतजार कर रहा है।देवी शेर के धैर्य से काफी प्रसन्न हुईं। उन्होंने शेर के इस इंतजार को कठिन तप मानते हुए उसकी भूख को शांत किया और उस शेर को वरदान देते हुए उसे अपना वाहन बनाया।तब से लेकर आज तक मां दुर्गा के रूपों को पहचानने की सबसे बड़ी पहचान यही शेर हैं। शेर पर सवार मां को ही ‘शेरावाली’ नाम से भी जाना जाने लगा।
दूसरी कथा के अनुसार
दूसरी कथा अनुसार संस्कृत भाषा में लिखे गए 'स्कंद पुराण' के तमिल संस्करण 'कांडा पुराणम' में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था। अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक बाघ में बदल दिया और अपना माता पार्वती के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
एक मान्यता भी है कि एक युद्ध में मां पार्वती ने राक्षसों के राजा का दमन किया था। जिसकी वजह से उनके पिता हिमावत ने उन्हें एक सफेद शेर भेंट में दिया था।
शास्त्रों में शेर को शक्ति, भव्यता, विजय का प्रतीक माना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि जो भी भक्त माता की शरण में जाता है, माँ दुर्गा भवानी उसकी सदैव रक्षा करती है और मनोकामना पूरी कर देती है।
यूं तो सिंह को माँ भगवती का प्रमुख वाहन माना जाता है परन्तु माँ के अनेक रूप हैं और उनमें वाहन भी अलग-अलग हैं आइये यहाँ उनके बारे में भी जानते हैं ...
- देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती बाघ पर। देवी दुर्गा के दो वाहन हैं। उन्हें कुछ मूर्तियों और चित्रों में शेर पर तो कुछ-कुछ तस्वीरों में उन्हें बाघ पर विराजमान बताया गया है। महिषासुर वध का वध करते समय वह सिंह पर सवार थीं। इसके अलावा अन्य दैत्यों का वध करते समय वे बाघ पर सवार थीं।
- पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें शेर पर सवार दिखाया गया है।
- कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है।
- देवी कुष्मांडा शेर पर सवार है।
- माता चंद्रघंटा भी शेर पर सवार है।
- जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है।
- माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है।
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