नवरात्रि पूजा का महत्त्व | Importance of Navratri Puja:-
इस पर्व का बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक महत्व है | नवरात्र / दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला पर्व है | नवरात्र में प्रायः वातावरण में ऐसी क्रियाएं होती हैं - यदि इस समय पर शक्ति की साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं।नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है क्रमशः चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। लेकिन ज्यादातर इन्हें चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है। उसका प्रमुख व्यवहारिक कारण जन सामान्य के लिए आर्थिक, भौतिक दृष्टि से इतने बड़े पर्व ज्यादा दिन तक जल्दी-जल्दी कर पाना सम्भव नहीं है। चारों नवरात्र की साधना प्रायः गुप्त साधक ही किया करते हैं जो जप, ध्यान से माता के आशीर्वाद से अपनी साधना को सिद्धि में बदलना चाहते हैं। दुर्गा पूजा को स्थान, परंपरा, लोगों की क्षमता और लोगों के विश्वास के अनुसार मनाया जाता है| कुछ लोग इसे पाँच, सात या पूरे नौ दिनों तक मनाते हैं| लोग माँ भगवती दुर्गा देवी की मूर्ति पूजा “षष्ठि” से शुरु करते हैं, जो “दशमी” के दिन समाप्त होती है| समाज या समुदाय में कुछ लोग पास के क्षेत्र में पंडाल को सजा कर मनाते हैं| इन दिनों में, आस-पास के सभी मंदिरों में दुर्गा पाठ, जगराता और माता की चौकी का आयोजन किया जाता है| कुछ लोग घरों में ही सभी व्यवस्थाओं के साथ पूजा करते हैं और अंतिम दिन होम व विधिवत पूजा कर मूर्ति का विसर्जन जलाशय, कुंड, नदी या समुद्र में करते हैं|
क्यों मनाई जाती है नवरात्रि ? | Why is Navratri celebrated?
नवरात्र को मनाने का एक और कारण है जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है। वर्ष के दोनों प्रमुख नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में अर्थात् दो ऋतुओं के सम्मिलिन में मनाए जाते हैं। जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्रायः शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया।
दुर्गा पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2022 | Durga Puja Festival Date and Muhurat 2022
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
शारदीय नवरात्रों का आरंभ 26 सितंबर, दिन सोमवार 2022, अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगी। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है।वर्ष 2022 में शारदीय (आश्विन) नवरात्र व्रत 26 सितंबर, दिन सोमवार से शुरु होंगे व 05 अक्टूबर, दिन बुधवार को दशमी तिथि यानी की दशहरा के साथ समाप्त हो रही है। नवरात्र में सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लेना चाहिये। क्योंकि लोग अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या पूरे नौ के नौ दिन उपवास रखते हैं। इसलिये संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जिस प्रकार आपको उपवास रखना है। इसके पश्चात ही घट स्थापना की प्रक्रिया आरंभ की जाती है।शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ: 26 सितंबर 2022, दिन सोमवार ।
घट स्थापना या कलश स्थापना: 26 सितंबर को।
घट स्थापना या कलश स्थापना मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 11 मिनट से सुबह 07 बजकर 51 मिनट पर
अवधि - 1 घंटा 40 मिनट्स
चैघड़िया का अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 11 मिनट से सुबह 07 बजकर 42 मिनट तक
वहीं अगर आप इस मुहूर्त में किसी कारण से कलश स्थापना न कर पाएं तो दूसरा शुभ मुहूर्त अभिजीत होगा।अभिजीत मुहूर्त कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक
अवधि: 48 मिनट
अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा प्रारंभ : 26 सितंबर 2022, प्रातः 3 बजकर 24 मिनट से
अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि समापन : 27 सितंबर 2022, प्रातः 03 बजकर 08 मिनट तक
दुर्गा महाअष्टमी तिथि व पूजा मुहूर्त
इस बार महाअष्टमी तिथि 03 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार को पड़ रही है। इस दिन महगौरी माता का पूजन किया जाएगा।
अष्टमी तिथि प्रारंभ : 02 अक्टूबर 2022 को रात 06 बजकर 47 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त : 03 अक्टूबर 2022 को शाम 04 बजकर 37 मिनट तक
दुर्गा महानवमी तिथि व पूजा मुहूर्त
वर्ष 2022 में दुर्गा महा नवमी पूजा 4 अक्टूबर, मंगलवार के दिन की जाएगी।
नवमी तिथि आरम्भ: 03 अक्टूबर 2022 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से
नवमी तिथि समाप्त: 04 अक्टूबर 2022 को दिन 02 बजकर 22 मिनट तक
दशहरा 2022 की तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि मंगलवार 4 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी बुधवार, 05, अक्टूबर को दोपहर 12 बजे तक रहेगी। इसलिए उदयातिथि को आधार मानकर दशहरा 05 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। वहीं इस दिन विजय, अमृत काल और दुर्हुमूर्त जैसे शुभ योग भी बन रहे हैं। जिनका ज्योतिष में विशेष महत्व बताया गया है। इन योगों में उपाय सिद्ध हो जाता है।
विजयदशमी (दशहरा)- 5 अक्टूबर 2022, बुधवार
दशहरा विजय मुहूर्त : 5 अक्टूबर दोपहर 02 बजकर 13 मिनट से लेकर 2 बजकर 54 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: 5 अक्टूबर दोपहर 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक (नया व्यापार, नया निवेश शुरू करने का विशेष मुहुर्त)
अमृत काल: 5 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 33 से लेकर दोपहर 1 बजकर 2 मिनट तक
दुर्मुहूर्त: 5 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 51 मिनट से लेकर 12 बजकर 38 मिनट तक।
दशमी तिथि प्रारम्भ : 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से
दशमी तिथि समाप्त : 5 अक्टूबर 2022 दोपहर 12 बजे तक
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ : 4 अक्टूबर 2022 को रात 10 बजकर 51 मिनट से
श्रवण नक्षत्र समाप्त : 5 अक्टूबर 2022 को रात 09 बजकर 15 मिनट तक
नोट : स्थानीय पंचांग के अनुसार तिथियों और मुहूर्त के समय में थोड़ी-बहुत घट-बढ़ होती है।
रावण-दहन का मुहूर्त -
दशहरा 05 अक्टूबर 2022 को है, रावण दहन का शुभ मुहूर्त 05 अक्टूबर 2022 को रात्रि 7 बजकर 40 से रात्रि 12:00 बजे तक है। यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक रावण दहन (दशहरा उत्सव) के लिए 4 घंटे 20 मिनट का समय है।(रावण-दहन से पूर्व मां अंबे भवानी और बजरंग बली की आराधना की जानी चाहिए। भगवान श्रीराम की अर्चना की जानी चाहिए। तत्पश्चात श्रीराम के जयघोष के साथ रावण-दहन का कार्य संपन्न करना चाहिए।)आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि 2022 की प्रमुख तिथियां | Key dates of Shradiya Navratri 2022 of Ashwin month :-
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।
सवारी: वृष, सवारी वृष होने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किए हुए हैं।
मुद्रा: माँ का यह रूप सुखद मुस्कान और आनंदित दिखाई पड़ता है।
ग्रह: चंद्रमा - माँ का यह देवी शैलपुत्री रूप सभी भाग्य का प्रदाता है, चंद्रमा के पड़ने वाले किसी भी बुरे प्रभाव को नियंत्रित करती हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं ।ब्रह्म का अर्थ हैं तपस्या और चारिणी यानि आचरण करने वाली ।इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ 'तप का आचरण करने वाली देवी'।माता ने इस रूप में फल-फूल के आहार से 1000 साल व्यतीत किए और धरती पर सोते समय पत्तेदार सब्जियों के आहार में अगले 100 साल और बिताए। जब माँ ने भगवान शिव की उपासना की तब उन्होने 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार किया। अपनी तपस्या को और कठिन करते हुए, माँ ने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और बिना किसी भोजन और जल के अपनी तपस्या जारी रखी, माता के इस रूप को अपर्णा के नाम से जाना गया।
सवारी: नंगे पैर चलते हुए।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- माँ दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं।
ग्रह: मंगल - सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है। भगवान शिव से शादी करने के बाद देवी महागौरी ने अर्ध चंद्र से अपने माथे को सजाना प्रारंभ कर दिया और जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। वह अपने माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा धारण किए हुए हैं। उनके माथे पर यह अर्ध चाँद घंटा के समान प्रतीत होता है, अतः माता के इस रूप को माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
सवारी: बाघिन
अत्र-शस्त्र: दस हाथ - चार दाहिने हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल तथा वरण मुद्रा में पाँचवां दाहिना हाथ। चार बाएं हाथों में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला तथा पांचवें बाएं हाथ अभय मुद्रा में।
मुद्रा: शांतिपूर्ण और अपने भक्तों के कल्याण हेतु।
ग्रह: शुक्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
देवी कूष्माण्डा, सूर्य के अंदर रहने की शक्ति और क्षमता रखती हैं। उसके शरीर की चमक सूर्य के समान चमकदार है। माँ के इस रूप को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
सवारी: शेरनी
अत्र-शस्त्र: आठ हाथ - उसके दाहिने हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल है और बाएं हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र है।
मुद्रा: कम मुस्कुराहट के साथ।
ग्रह: सूर्य - सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदाता।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जब देवी पार्वती भगवान स्कंद की माता बनीं, तब माता पार्वती को देवी स्कंदमाता के रूप में जाना गया। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं, और इसी वजह से स्कंदमाता को देवी पद्मासना के नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता का रंग शुभ्र है, जो उनके श्वेत रंग का वर्णन करता है। जो भक्त देवी के इस रूप की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करने का लाभ भी मिलता है। भगवान स्कंद को कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है।
सवारी: उग्र शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ - माँ अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती हैं है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बाल मुरुगन को और अभय मुद्रा में है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाना जाता है।
मुद्रा: मातृत्व रूप
ग्रह: बुद्ध
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
माँ पार्वती ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप है, इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती का जन्म ऋषि कात्या के घर पर हुआ था और जिसके कारण देवी पार्वती के इस रूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।
सवारी: शोभायमान शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ - बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण किए हुए है और अपने दाहिने हाथ को अभय और वरद मुद्रा में रखती है।
मुद्रा: सबसे हिंसक रूप
ग्रह: गुरु
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध लिए तब माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। कालरात्रि देवी पार्वती का उग्र और अति-उग्र रूप है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। अपने क्रूर रूप में शुभ या मंगलकारी शक्ति के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।
सवारी: गधा
अत्र-शस्त्र: चार हाथ - दाहिने हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं, और बाएं हाथों में तलवार और घातक लोहे का हुक धारण किए हैं।
मुद्रा: देवी पार्वती का सबसे क्रूर रूप
ग्रह: शनि
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।
सवारी: वृष
अत्र-शस्त्र: चार हाथ - माँ दाहिने हाथ में त्रिशूल और अभय मुद्रा में रखती हैं। वह एक बाएं हाथ में डमरू और वरदा मुद्रा में रखती हैं।
ग्रह: राहू
मंदिर: हरिद्वार के कनखल में माँ महागौरी को समर्पित मंदिर है।
शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को र्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।
सवारी: शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ - बाएं हाथ में शंख व गदा, दाहिने हाथ में चक्र तथा कमल का फूल शोभायमान है।
ग्रह: केतु
ग्रह: केतु
जिन लोगों ने माता दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की होगी, वे विधि विधान से माता का विसर्जन करेंगे। इस दिन विजयादशमी या दशहरा मनाया जाएगा।।
नवरात्रि पूजन विधि | Navratri Puja Vidhi
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (26 सितंबर 2022, दिन सोमवार ) को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
- घर के ही किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं।
- वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं।
- वेदी पर या समीप के ही पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर वहां सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें।इसके बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें।इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें।इसके बाद 'ॐ भूम्यै नमः' कहते हुए कलश को 7 अनाज के साथ रेत के ऊपर स्थापित कर दें। कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलते रहें।
- कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें। इसके बाद वेदी के किनारे पर देवी की पीतल, स्वर्ण, चांदी, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति विधि-विधान से विराजमान करें।
- तत्पश्चात मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्ध, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें।
- इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गास्तुति करें।
- पाठ स्तुति के बाद देवी दुर्गा मां की आरती कर प्रसाद वितरित करें।
- इसके बाद कन्या भोजन कराएं, फिर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
- प्रतिपदा के दिन घर के ही जवारे बोने का भी विधान है।
- नवमी के दिन इन्हीं जवारों का किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए। अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं।
- इन दोनों दिनों पारायण के बाद हवन करें फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
दुर्गा पूजा से जुड़ी मान्यताएं | Beliefs related to durga puja
दुर्गा पूजा के दौरान उत्तर भारत में नवरात्र के साथ ही दशमी के दिन रावण पर भगवान श्री राम की विजय का उत्सव विजयदशमी मनाया जाता है।उत्तर भारत में इन दिनों में रामलीला के मंचन किये जाते हैं।तो वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का दृश्य अलग होता है।दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में ही मनाया जाता है।मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जो कुछ इस प्रकार है-
हिन्दू पुराणों के अनुसार - एक समय में राक्षस राज महिषासुर हुआ करता था, जो बहुत ही शक्तिशाली था।स्वर्ग पर आधिपत्य जमाने के लिए उसने ब्रह्म देव की घोर तपस्या की | जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और महिषासुर से वर मांगने को कहा | राक्षस राज ने अमरता का वर माँगा परंतु ब्रह्मा ने इसे देने से इंकार कर इसके बदले महिषासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्ति का वरदान दिया।महिषासुर प्रसन्न होकर सोचा मुझ जैसे बलशाली को भला कोई साधारण स्त्री कैसे मार पायेगी?, अब मैं अमर हो गया हूँ । कुछ समय बाद वह स्वर्ग पर आक्रमण कर देता है।देवलोक में हाहाकार मच उठता है। सभी देव त्रिदेव के पास पहुंचते हैं और इस विपत्ति से बाहर निकालने का आग्रह करते हैं। तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया। यह शक्ति एक स्त्री रूप में प्रकट हुई। जिन्हें दुर्गा कहा गया। महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
एक दूसरी कथा के अनुसार, भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था।श्री राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण का संहार किया, तब से उस दिन को विजयादशमी कहा जाने लगा।
इस पर्व से जुड़ी एक और मान्यता है कि, कहा जाता है कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर दैत्यों ने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और वर मांगा कि उन्हें कोई पुरुष, जानवर और उनके शस्त्र न मार सकें। वरदान मिलते ही असुर अत्याचार करने लगे, तब देवताओं की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने वरदान का भेद बताते हुए बताया कि असुरों का नाश अब स्त्री शक्ति ही कर सकती है। ब्रह्माजी के निर्देश पर देवों ने 9 दिनों तक मां पार्वती को प्रसन्न किया और उनसे असुरों के संहार का वचन लिया। असुरों के संहार के लिए देवी ने रौद्र रूप धारण किया था इसीलिए शारदीय नवरात्र शक्ति-पर्व के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि में क्या करें, क्या न करें ? What to do or not to do during Navratri?
मां दुर्गा के 9 दिवसीय नवरात्रि व्रत संयम और अनुशासन की मांग करते हैं।
कलश स्थापना से जुड़े खास नियम :-
- कलश की स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करें।
- कभी भी कलश का मुंह खुला न रखें। अगर आप कलश को किसी ढक्कन से ढक रहे हैं, तो उस ढक्कन को भी चावलों से भर दें। इसके बाद उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें।
- पूजा करने के बाद मां को दोनों समय लौंग और बताशे का भोग लगाएं।
- मां को लाल फूल बेहद प्रिय है। लेकिन भूलकर भी माता रानी को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं।
व्रत से जुड़े खास नियम:-
क्या करें:-
- व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। नारियल, नींबू, अनार, केला, मौसमी और कटहल आदि फल तथा अन्न का भोग लगाना चाहिए। व्रती को संकल्प लेना चाहिए कि वह हमेशा क्षमा, दया व उदारता का भाव रखेगा।
- नौ दिन मातारानी का ध्यान अवश्य करना चाहिए !
- अपने प्रतिकूल ग्रह वाले दिन, उपवास अवश्य करना चाहिए!
- मंदिर में माता के अथवा मंदिर के बाहर ध्वज के दर्शन अवश्य करना चाहिए!
- आसन पर बैठकर ही पूजा करें।जूट या ऊन का आसन होना चाहिए।
क्या न करें:-
- इन दिनों व्रती को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। देवी का आह्वान, पूजन, विसर्जन, पाठ आदि सब प्रात:काल में शुभ होते हैं, अत: इन्हें इसी दौरान पूरा करना चाहिए। यदि घटस्थापना करने के बाद सूतक हो जाए, तो कोई दोष नहीं होता, लेकिन अगर पहले हो जाए, तो पूजा आदि न करें।
- नवरात्रि में देवी मां को तुलसी पत्ती न चढ़ाएं।
- नवरात्रि में माता रानी की तस्वीर या मूर्ति में शेर दहाड़ता हुआ नहीं होना चाहिए।
- देवी पर दूर्वा नहीं चढ़ाएं।
- नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने वालों को दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाने चाहिए। इस दौरान बच्चों का मुंडन करवाना शुभ होता है।
- नौ दिनों तक नाखून नहीं काटने चाहिए।
- अगर आप नवरात्रि में कलश स्थापना कर रहे हैं, माता की चौकी का आयोजन कर रहे हैं या अखंड ज्योति जला रहे हैं तो इन दिनों घर खाली छोड़कर नहीं जाएं।
- नौ दिन का व्रत रखने वालों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।नौ दिन का व्रत रखने वालों को गंदे और बिना धुले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
- व्रत रखने वाले लोगों को बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग जैसी चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- व्रत रखने वालों को नौ दिन तक नींबू नहीं काटना चाहिए।
- खाने में प्याज, लहसुन और नॉन वेज न खाएं।
- व्रत में नौ दिनों तक खाने में अनाज और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। खाने में कुट्टू का आटा, समारी के चावल, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली खा सकते हैं।
- फलाहार एक ही जगह पर बैठकर ग्रहण करें।
- विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है।आप भजन करें या माता के गाने सुने।
- चालीसा, मंत्र या सप्तशती पढ़ रहे हैं तो पढ़ते हुए बीच में दूसरी बात बोलने या उठने की गलती कतई ना करें। इससे पाठ का फल नकारात्मक शक्तियां ले जाती हैं।
- कई लोग भूख मिटाने के लिए तम्बाकू चबाते हैं यह गलती व्रत के दौरान बिलकुल ना करें। व्यसन से व्रत खंडित होता है।
- (नोट- इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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