Shardiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्र में इस दिन करें कन्या पूजन, जानिए शुभ तिथि, मुहूर्त और महत्व, नोट कर लें संपूर्ण पूजन विधि




देशभर में शारदीय नवरात्र की गूंज हर्षोल्लास के साथ सुनाई दे रही है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में पूजा-पाठ, उपवास, कन्या पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और उनके जीवन से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। इस पर्व के आठवें और नौवें दिन यानी कि अष्‍टमी और नवमी को कन्‍या पूजन कर व्रत का पारण किया जाता है।आप अपनी सुविधानुसार अष्‍टमी या नवमी में से कोई भी दिन चुन कर कन्‍या पूजन कर सकते हैं। इस दिन नौ छोटी कन्याओं को घर पर आमंत्रित कर के हलुआ-पूड़ी और चना या खीर-पूड़ी का भोग लगाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। छल और कपट से दूर ये कन्याएं पवित्र बताई जाती हैं और कहा जाता है कि जब नवरात्रों में माता पृथ्वी लोक पर आती हैं तो सबसे पहले कन्याओं में ही विराजित होती है।लेकिन इन सभी कन्याओं के साथ एक बटुक अर्थात छोटे लड़के को भोग लगाना भी जरूरी होता है। बटुक को हम लंगूर बंदर के नाम से भी जानते हैं। बटुक को भैरव बाबा का अवतार माना जाता है।मान्यता है कि भैरव बाबा को भीग लगाए बिना पूजा अधूरी रह जाती है। आइए जानते हैं क्या है इस प्रथा के पीछे कारण और इस दिन किन बातों का रखें ध्यान।

कब करें कन्या पूजन 2022?

नवरात्र के दिनों में कई लोग अष्टमी तो कई लोग नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं। जानिए अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन का मुहूर्त

अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन

अष्टमी तिथि की शुरुआत 02 अक्टूबर 2022 को शाम 06 बजकर 48 मिनट से हो रही जो  03 अक्टूबर 2022 को शाम 04 बजकर 37 मिनट पर समाप्त होगी।

अमृत मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 15 मिनट से 7 बजकर 44 मिनट तक
शुभ मुहूर्त- सुबह 9 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक
चर - दोपहर 1 बजकर 39 मिनट से 3 बजकर 7 मिनट तक
लाभ- दोपहर 3 बजकर 7 मिनट से 4 बजकर 36 मिनट तक
अमृत- शाम 4 बजकर 36 मिनट से शाम 6 बजकर 5 मिनट तक

नवमी तिथि पर कन्या पूजन

नवमी तिथि की शुरुआत 03 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 37 मिनट से शुरू होकर 4 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट तक है।

लाभ- सुबह 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 10 मिनट तक
अमृत- दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक दोपहर 1 बजकर 38 मिनट तक
शुभ-  दोपहर 3 बजकर 7 मिनट से शाम 4 बजकर 35 मिनट तक

नोट : स्थानीय पंचांग के अनुसार तिथियों और मुहूर्त के समय में थोड़ी-बहुत घट-बढ़ होती है।

कैसे करे गोद भराई ?

नवरात्री के इस पावन पर्व में हमारे देश में कई क्षेत्रों में माता की गोद भराई का भी प्रचलन है। इसमें महिलाएं अष्टमी या नवमीं के दिन नवरात्र के पूजा पंडाल या माता के मंदिर में जाकर गोद भरती हैं।किसी कारणवश अगर आप मंदिर नहीं जा पाते तो ऐसी परिस्थिति में आप गोद भरने की परंपरा को घर पर कर सकते हैं। हमारे शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है कि गोद भरने की रस्म घर पर भी कर सकते हैं। इसके लिए माता की मूर्ति या फोटो के सामने एक लाल वस्त्र में चावल, सिंदूर, हल्दी, माता के श्रृंगार का सामान, काजल, बिंदी और पैसे रखकर प्रार्थना करें। आप चाहें तो इसे अपने पास भी रख सकते है या फिर इसे किसी सुहागन स्त्री को भेंट कर दें।

कुमारी पूजन की सामग्री :

कन्याओं के बैठने के लिए आसन, पैर पोछने के लिए साफ कपड़ा, कन्याओं के पैर धुलने के लिए साफ जल, कलावा, अक्षत, तिलक लगाने के लिए रोली, फूल और फल, माता की चुन्नी, मिठाई और भोजन सामग्री।

आइये जानते हैं कि कैसे करनी चाहिए इस दिन कन्याओं की पूजा 

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान कर भगवान गणेश और मां महागौरी की पूजा करें। इसके बाद कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। 
  • शास्त्रानुसार नवरात्र में 1, 3, 5, 7, 9 यानि की विषम संख्या में अपनी क्षमता के अनुसार कन्या को घर पर आमंत्रित करना चाहिए।
  • भोजन करने वाली कन्या 2 वर्ष से कम तथा 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा एक छोटे लड़के को भी बुलाएं। 
  • सबसे पहले सभी कन्याओं और बालक के पैरों और हाथों को धोएं। फिर साफ कपड़े से उनके पैरों और हाथों को पोंछे। 
  • अब उन्हें बैठने के लिए आसन दें। 
  • फिर उनके माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं। 
  • फिर कन्याओं के उल्टे हाथ में और लड़के के सीधे हाथ में कलावा बांधें तथा सभी की आरती उतारें।
  • इसके बाद गाय के उपले को जलाकर उसकी अंगार पर लौंग, कर्पूर और घी डालकर अग्नि प्रज्वलित करें। 
  • भगवती दुर्गा को उबले हुए चने,  हलवा,  पूरी,  खीर,  पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है।
  • यही प्रसाद कन्याओं को भी दिया जाता है। कन्याओं को कुछ न कुछ दक्षिणा भी दी जाती है।
  • कन्याओं को लाल चुन्नी और चूडि़यां भी चढ़ाई जाती हैं।
  • जब कन्याएं भोजन कर लें इसके पश्चात उन्हें प्रसाद के रूप में फल, सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अथवा उनके उपयोग की वस्तुएं प्रदान करें।
  • कन्याओं को घर से विदा करते समय सभी कन्याओं के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।जय माता के जयकारा लगाते रहे। 
  •  इस तरह करने पर महामाया भगवती अत्यन्त प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण कर देती है। 
  • अगर कन्या को भोजन के लिए आमंत्रित करना मुश्किल है।तो ऐसे में आप कुछ उपायों को अपनाकर कन्या पूजन भी कर सकते हैं और माता रानी को खुश भी कर सकते हैं। आइए जानते हैं बिना कन्या या सिर्फ 1 कन्या के साथ कैसे किया जा सकता है कन्या पूजन।

बेटी, भतीजी के साथ करें पूजन :-


घर की बाहर की कन्याओं को इस बार की नवरात्रि में आमंत्रित करना संभव नहीं है, ऐसे में आप घर में ही मौजूद 7 वर्ष तक की आयु वाली कन्या : बेटी या भतीजी के साथ कन्या पूजन कर सकते हैं। घर की बेटियों के साथ कन्या का पूजन करने से पहले मंदिर के सामने दीपक जलाएं और हाथों में थोड़ा सा जल लेकर मां दुर्गा के सामने संकल्प लें कि इस नवरात्रि में आप अपनी बेटी को माता का अंश मानकर कन्या पूजन कर रहे हैं। संकल्प के बाद पानी को पूरे घर में छिड़क दें। इसके बाद विधि अनुसार, कन्या को आसन पर बिठाएं, उसके माथे पर तिलक लगाएं और फिर मीठा भोजन जैसे हलवा, पूड़ी और चने खिलाएं।इसके पश्च्यात कन्या को दान, दक्षिणा भेंट करें, माता रानी आप पर कृपा बरसाएंगी।

अगर आपके घर में कोई बालक है तो कन्‍या पूजन में उसे भी बैठाएं।दरअसल, बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है। मान्‍यता है कि भगवान शिव ने हर शक्ति पीठ में माता की सेवा के लिए बटुक भैरव को तैनात किया हुआ है। कहा जाता है कि अगर किसी शक्‍ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं। 

घर में न हो कन्या तब क्या करें ?


अगर आप के घर में कोई छोटी उम्र की कन्या मौजूद न हो तो ऐसी स्थिति में घबराएं नहीं। माता को प्रसन्न करने के लिए घर के मंदिर में मौजूद माता की विधि विधान से पूजन करें और माता को विभिन्न प्रकार के भोग समर्पित करें। इसके पश्च्यात माता को भेंट सामग्री अर्पित करें। प्रसाद का कुछ हिस्सा माता का ध्यान करते हुए गाय को खिला दें।ध्यान रहे कि माता को वही प्रसाद अर्पित करें जो लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं। ऐसे में आप प्रसाद के तौर पर सूखे मेवे, मखाना, मिसरी को अर्पित कर सकते हैं। माता को प्रसाद अर्पित करके उसे रख लें।अब सूखे भोग के 10 अलग-अलग पैकेट (9 पैकेट कन्‍याओं के और 1 बटुक भैरव रूपी बालक के लिए) बनाकर रख लें।इन पैकेट के साथ यथाशक्ति भेंट भी रखें। बाद में आपको जब भी मौका मिलें इस प्रसाद को कन्या एवं बालक में बांट दें ।इसके अलावा कन्याओं के भोजन स्वरूप राशन सामग्री भी किसी गरीब और असहाय व्यक्ति में वितरित की जा सकती है। ध्यान रहे राशन में सभी उपयोग की वस्तुएं हों और कन्याओं को भेंट की जाने वाली चीजें भी।ऐसे में व्रत का पूरा फल मिलता हैं, विषम परिस्थिति में जो व्यक्ति अन्य व्यक्ति के काम आता है उस पर भगवान हमेशा कृपा करते हैं! 

कन्या पूजन की कथा : भोजन करने आई थी मां वैष्णो देवी

कन्या पूजन को लेकर यूं तो अलग-अलग मान्यताएं व पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन इनमें भक्त श्रीधर की कथा सबसे प्रसिद्ध है, बहुत समय पहले जम्मू कश्मीर के कटरा जिले के पास एक हंसाली गांव में श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह एक पंडित था जो मां दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था और अक्सर उनकी पूजा में लीन रहा करता था। श्रीधर की एक भी संतान नहीं थी जिसकी वजह से वह काफी दुखी रहा करता था। एक दिन उसने नवरात्रि का व्रत किया और कन्या पूजन के लिए कन्याओं को आमंत्रित किया। इन्हीं कन्याओं में एक प्यारी कन्या का रूप धारण करके मां वैष्णो उसके घर पधारीं।श्रीधर ने सच्चे दिल से सभी कन्याओं का आदर-सम्मान किया और भोजन करवाया। भोजन ग्रहण करने के बाद सभी कन्या वहां से चली गईं लेकिन माता वैष्णो वहीं श्रीधर के पास रुक गईं। उस छोटी कन्या ने श्रीधर को भंडारा रखावने का और पूरे गांव को आमंत्रित करने का आदेश दिया। कन्या की बात मानकर पंडित श्रीधर ने ठीक वैसा ही किया। श्रीधर द्वारा आयोजित किए गए भंडारे में भैरवनाथ भी आया था। कहा जाता है कि यहीं से भैरवनाथ के अंत का आरंभ हुआ था। यह भंडारा रखवा कर श्रीधर को संतान प्राप्ति हुई। तब से लेकर अब तक नवरात्रि में कन्या पूजन किया जाता है।


किस कन्या के पूजन का क्या मिलेगा फल?


हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व माना गया है। खास तौर पर अ‍ष्टमी तथा नवमी तिथि को 3 से 9 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन करने की परंपरा है। यह कन्याएं साक्षात मां दुर्गा का स्वरूप मानी जाती है।

जानिए नवरात्रि में इन कन्याओं के पूजन से क्या लाभ प्राप्त होता है :-

  • दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
  • तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
  • चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
  • पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी की पूजन से व्यक्ति रोग मुक्त होता है।
  •  छह वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
  • आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
  •  नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।

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