हिंदू धर्म में अधिकतर तीज-त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार ही मनाए जाते हैं लेकिन विश्वकर्मा पूजा एक ऐसा पर्व है जिसे भारतवर्ष में हर साल 17 सितंबर को ही मनाया जाता है। विश्वकर्मा पूजा आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन होती है। इस दिवस को भगवान विश्वकर्मा के समर्पण और उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें दिव्य वास्तुकार और देवी-देवताओं के महलों का निर्माता माना जाता है।इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं । वैसे तो यह जंयती पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाई जाती है लेकिन बिहार, पश्चिम बंगाल ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसका अलग महत्व है।इन राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है। बता दें कि देव विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्गलोक, द्वापर की द्वारिका और त्रेतायुग की लंका का निर्माण किया था।
हिंदू धर्म में विश्वकर्मा पूजा का अपना ही एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान ब्रह्मा के सातवें पुत्र भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस दिन विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से देव विश्वकर्मा प्रसन्न हो जाते हैं और व्यवसाय आदि में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है। कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजन का अपना एक विशेष महत्व है। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजन करने पर आपको कष्टों से मुक्ति मिल सकती है। खासतौर पर व्यापार वर्ग की सभी परेशानियां और धन-संपदा से जुड़ी दिक्कतें खत्म हो सकती हैं।
विश्वकर्मा पूजा करने वाले व्यक्ति के घर में भी धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कभी कोई कमी नहीं रहती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। इसलिए फैक्ट्री, कल-कारखानों, हार्डवेयर की दुकानों में मशीनों ,औजारों आदि से अपना काम करने वाले लोग विश्वकर्मा पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाते है।
कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार, वास्तुशास्त्र का देवता, प्रथम इंजीनियर और मशीन का देवता कहा जाता है। विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को 'देव बढ़ई' कहा गया है। पौराणिक काल में विश्वकर्मा ने राक्षसों से देवताओं को बचाने के लिए महर्षि दधीचि की हड्डियों से देवराज इंद्र के लिए वज्र बनाया था जिसकी मदद से उन्होने असुरों का वध किया था। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है ।इसके अलावा सतयुग में लंका से राम, लक्ष्मण और सीता को अयोध्या वापस आने के लिए पुष्पक विमान का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होने वाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है ।इतना ही नहीं उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण भी देव विश्वकर्मा ने ही किया था।
कैसे हुई थी भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति :-
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार संसार की रंचना के आरंभ में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से चतुर्मुखी ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र “धर्म” का विवाह “वस्तु (प्रजापति दक्ष की कन्याओं में से एक)” से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम “वास्तु” रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला से परिपूर्ण थे। “वास्तु” और “अंगिरसी” के विवाह के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया, जो अपने पिता की तरह वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने और उन्हें विश्वकर्मा के नाम से जाना जाने लगा।
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप-
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु, चार बाहु एवं दश बाहु तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख। उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया।
इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ सोने-चांदी से जोड़ा जाता है। भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा भी है। इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। अपने कार्य में निपुण था, परंतु स्थान-स्थान पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्माण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो।
इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
अवतार
हिन्दू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन मिलता है-
विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचयिता ।
धर्मवंशी विश्वकर्मा - महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र।
अंगिरावंशी विश्वकर्मा - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र।
सुधन्वा विश्वकर्म - महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र।
भृंगुवंशी विश्वकर्मा - उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)।
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त | Vishwakarma Puja Shubh Muhurat 2022
पहला मुहूर्त- 17 सितंबर को सुबह 07 बजकर 39 मिनट से सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक
दूसरा शुभ समय- दोपहर 01 बजकर 48 मिनट से दोपहर 03 बजकर 20 मिनट तक
तीसरा शुभ समय- दोपहर 03 बजकर 20 मिनट से शाम 04 बजकर 52 मिनट तक
विश्वकर्मा जयंती पूजन विधि व मंत्र Vishwakarma Puja Vidhi and Mantra / Vishwakarma Day Puja Vidhi and Mantra
1. प्रात: काल स्नान-ध्यान कर फैक्ट्री, ऑफिस या घर में पूजा करने बैठें।
2. विश्वकर्मा भगवान की पूजा के बीच से उठा नहीं जाता, इसलिए सारा इंतजाम करके बैठें।
3. अब भगवान विष्णु का ध्यान करें । फिर भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना करें ।
4. अब हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें-
विश्वकर्मा पूजा मंत्र। Vishwakarma Puja Mantra
श्री विश्वकर्मा प्रार्थना
हे विश्वकर्मा ! परम प्रभु !, इतनी विनय सुन लीजिये । दु:ख दुर्गुणो को दूर कर, सुख सद् गुणों को दीजिये ।।
ऐसी दया हो आप की, सब जन सुखी सम्पन्न हों । कल्याण कारी गुण सभी में, नित नये उत्पन्न हों ।।
प्रभु विघ्न आये पास ना, ऐसी कृपा हो आपकी । निशिदिन सदा निर्मय रहें, सतांप हो नहि ताप की ।।
कल्याण होये विश्व का, अस ज्ञान हमको दीजिये । निशि दिन रहें कर्त्तव्य रल, अस शक्ति हमनें कीजियें ।।
तुम भक्त – वत्सल ईश हो, `भौवन` तुम्हारा नाम है । सत कोटि कोट्न अहर्निशि, सुचि मन सहित प्रणाम है ।।
हो निर्विकार तथा पितुम हो भक्त वत्सल सर्वथा, हो तुम निरिहत तथा पी उदभुत सृष्टी रचते हो सढा ।
आकार हीन तथा पितुम साकार सन्तत सिध्द हो, सर्वेश होकर भी सदातुम प्रेम वस प्रसिध्द हो ।
करता तुही भरता तुही हरता तुही हो शृष्टि के, हे ईश बहुत उपकार तुम ने सर्लदा हम पर किये ।
उपकार प्रति उपकार मे क्या दें तुम्हे इसके लिए, है क्या हमारा शृष्टि में जो दे तुम्हे इसके लिए ।
जय दीन बन्धु सोक सिधी दैव दैव दया निधे, चारो पदार्थ दया निधे फल है तुम्हारे दृष्टि के ।
4. अब हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें-
विश्वकर्मा पूजा मंत्र। Vishwakarma Puja Mantra
ऊं आधार शक्तपे नमः।।
ऊं कूमयि नमः।।
ऊं अनंतम नमः।।
ऊं पृथिव्यै नमः।।
ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः ।।
5. मंत्र पढ़ने के बाद हाथ में रखे अक्षत को चारों तरफ छिड़क दें और इसके बाद पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांध लें।
6. पीली सरसों से सभी दिशाओं को बांधने के बाद अपने हाथ में रक्षा सूत्र (पत्नी हों तो उनके हाथ में भी) बांध लें और हाथ में जो फूल रखा था उसे जल पात्र में रख दें। इसके बाद हृदय में देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए विधिवत पूजा शुरू करें।
7. विश्वकर्मा पूजन के साथ-साथ आप जाप भी कर सकते हैं। अगर किसी बड़े प्रतिष्ठान या कारखाने में पूजा हो रही हो तो इसके लिए ब्राह्मण (पंडित/पुरोहित) की मदद ली जा सकती है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ-साथ आप 1100, 2100, 5100 या 11 हजार जाप करा सकते हैं।
8. पूजा शुरू करने से पहले रक्षा दीप जलाएं और जल के साथ फूल और सुपारी लेकर संकल्प करें। संकल्प के लिए पुरोहित की मदद से मंत्र का जाप कर सकते हैं।
9. इसके बाद पूजा स्थल पर अष्टदल यानी 8 पंखुड़ियों वाला कमल फूल की अल्पना (रंगोली) बनाएं और वहां 7 तरह के अनाज रखें। अष्टदल पर कलश रखें। पंचपल्लव (पांच पेड़ों के पत्ते), सप्त मृन्तिका (7 तरह की मिट्टी), सुपारी और दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करे।चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करे और वरुण देव का आह्वान करे। भगवान विश्वकर्मा जी को पूरे विश्वास के साथ पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए – ‘हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करना होता हैं।
10. भगवान विश्वकर्मा चूंकि निर्माण और सृजन के देवता हैं, इसलिए उनकी पूजा के साथ-साथ इस दिन औजारों, मशीनों और वाहनों की पूजा भी होती है। आप भी भगवान विश्वकर्मा की पूजा के बाद अपनी फैक्ट्री, वर्कशॉप या कारखाने के औजारों, कार्यस्थलों पर मशीनों या कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे अन्य मशीनों ,वाहनों की पूजा करे। यदि संभव हो तो इन औजारों या मशीनों की अच्छी तरह से साफ-सफाई भी करें और पूजन के बाद उनका इस्तेमाल न करें।
श्री विश्वकर्मा कथा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
विश्वकर्मा पूजा के दौरान भूलकर भी न करें ये काम
- विश्वकर्मा पूजा पर भूलकर भी औजारों को इधर-उधर न फेंके नहीं तो आपको विश्वकर्मा भगवान के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
- इस दिन आप न तो स्वंय अपने औजारों का इस्तेमाल करें और न हीं किसी और को करने दें।
- जिन वस्तुओं का आप अपने जीवन में रोज प्रयोग करते हैं उनकी विश्वकर्मा पूजा पर साफ सफाई करना न भूलें।
- अगर आप विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति रखकर उनकी पूजा कर रहे हैं तो अपने औजारों को पूजा में रखना न भूलें।
- अगर आपकी कोई फैक्ट्री है तो विश्वकर्मा पूजा के दिन उनकी पूजा न करना भूलें।
- जिन लोगों की भी फैक्ट्रीयां आदि है या फिर उनका मशीन से जुड़ा कोई काम है तो उन्हें विश्वकर्मा पूजा के दिन अपनी मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- यदि आपके पास कोई वाहन हैं तो आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन उसकी साफ सफाई और पूजा करना नहीं भूलना चाहिए।
- विश्वकर्मा पूजा के दिन किसी भी पुराने औजार को अपने घर, फैक्ट्री या दुकान से बाहर न फेंके. ऐसा करना विश्वकर्मा जी का अपमान जाता है।
- आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन भूलकर भी मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
- अपने व्यापार की वृद्धि के लिए आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन निर्धन व्यक्ति और ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।
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