हिन्दी पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी माता लक्ष्मी के एक नाम रमा के नाम पर है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी का रमा नाम बहुत प्रिय है। इस बार रमा एकादशी 21 अक्टूबर, दिन शुक्रवार को है। रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। आइए जानते हैं रमा एकादशी व्रत का मुहूर्त, पारण का समय तथा इसके महत्व के बारे में....
रमा एकादशी 2022 तिथि
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 20 अक्टूबर दिन गुरुवार को शाम 04 बजकर 04 मिनट से शुरू होगी और यह तिथि अगले दिन 21 अक्टूबर शुक्रवार को शाम 05 बजकर 22 मिट तक मान्य रहेगा। अब उदयातिथि को देखा जाए तो 21 अक्टूबर को प्राप्त हो रही है, इसलिए रमा एकादशी का व्रत 21 अक्टूबर को रखा जाएगा।
रमा एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त
रमा एकादशी के दिन प्रात:काल से ही शुक्ल योग प्रारंभ हो रहा है, जो शाम 05 बजकर 48 मिनट तक है। उसके बाद से ब्रह्म योग प्रारंभ हो जाएगा। ये दोनों ही योग पूजा पाठ के लिए शुभ हैं। रमा एकादशी व्रत की पूजा करने का श्रेष्ठ मुहूर्त प्रात: 07 बजकर 50 मिनट से सुबह 09 बजकर 15 मिनट तक है। यह लाभ उन्नति प्रदान करने वाला मुहूर्त है।
उसके बाद सुबह 09 बजकर 15 मिनट से सुबह 10 बजकर 40 मिनट तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त है। आप इन दोनों ही मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं। आपके लिए लाभकारी होगा।
रमा एकादशी 2022 पारण समय
जो लोग 21 अक्टूबर को रमा एकादशी व्रत रखेंगे, वे व्रत का पारण अलगे दिन 22 अक्टूबर शनिवार को प्रात: 06 बजकर 26 मिनट से कर सकते हैं। पारण समाप्ति का समय उस दिन 08 बजकर 42 मिनट पर है। आपको इस बीच पारण कर लेना चाहिए। इस दिन द्वादशी तिथि का समापन शाम 06 बजकर 02 मिनट पर है।
रमा एकादशी व्रत का महत्व
रमा एकादशी व्रत का महत्व तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है। उन्होंने कहा था कि रमा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के पापों का नाश हो जाता है तथा इसकी कथा का श्रवण करने से उसे जीवन के अंत में बैकुण्ठ प्राप्त होता है। पुराणों में कहा गया है कि रमा एकादशी व्रत करने से कामधेनु और चिंतामणि के समान फल मिलता है। रमा एकादशी के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से परिवार में सुख शांति के साथ समृद्धि का भी वास होता है। इस व्रत से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामना पूरी करती हैं। कई स्थानों पर रमा एकादशी के दिन से ही लक्ष्मी पूजा का प्रारंभ माना जाता है। रमा एकादशी से 3 या 4 दिन बाद ही दिवाली का त्योहार होता है। कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली होती है और इस दिन भी गणेश जी के साथ माता लक्ष्मी की पूजा होती है।
रमा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
- रमा एकादशी पर माता लक्ष्मी के रमा स्वरूप के साथ भगवान विष्णु के पूर्णावतार केशव स्वरुप की पूजा का नियम बताया गया है। यह एकादशी चातुर्मास की अंतिम एकादशी है। इसलिए इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
- रमा एकादशी का व्रत दशमी की संध्या से ही आरंभ हो जाता है। दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले ही भोजन ग्रहण कर लेना चाहिये।
- इसके बाद एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें और व्रत संकल्प लें। प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है।
- इसके बाद भगवान विष्णु की अराधना करें।
- अब भगवान विष्णु के सामने दीप-धूप जलाएं। फिर उन्हें फल, फूल और भोग अर्पित करें।इस दिन भगवान विष्णु का पीले वस्त्र और फूलों से श्रृंगार करना चाहिए।
- शास्त्रों में विष्णुप्रिया तुलसी की महिमा अधिक है इसलिए एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरुरी अर्पित करनी चाहिए। ध्यान रहे कि एकादशी के दिन तुलसी की पत्ती न तोड़े बल्कि पहले से टूटी पत्तियों को अर्पित करें।
- रमा एकादशी के दिन व्रत में तुलसी पूजन करना और तुलसी की परिक्रमा करना अति उत्तम है। ऐसा करने वाले भक्तों पर प्रभु अपार कृपा करते हैं जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूरी हो जाती हैं।
- एकादशी व्रत में एक समय फलाहार या निर्जल करना चाहिए तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु भक्ति एवं हरिनाम संकीर्तन में बिताना चाहिए।इस व्रत में व्रत कथा भी पढ़ी जाती है और इसके अलावा इस दिन घर पर सुंदरकांड, भजन व गीता का पाठ करने से भी पापों का नाश होता है।
- एकादशी व्रत का पारण भी महत्वपूर्ण है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी की तिथि पर करना चाहिए।
- ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए ।
कब समाप्त हो रहें है चातुर्मास
चातुर्मास में भगवान विष्ण पाताल लोक में विश्राम करते है। जब भगवान विष्णु विश्राम करते हैं तो भगवान शिव को पृथ्वी की जिम्मेदारी सौंप देते हैं। एक मान्यता है ये कि भी चातुर्मास में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं। इसलिए चतुर्मास में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी महत्वपूर्ण मानी गई है। चातुर्मास 04 नवंबर 2022 को समाप्त होगा।
रमा एकादशी व्रत कथा
एक समय मुचुकुंद नाम का राजा सत्यवादी तथा विष्णुभक्त था। उसने अपनी बेटी चंद्रभागा का विवाह उसने राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से किया था। मुचुकुंद एकादशी का व्रत विधि विधान से करता था और प्रजा भी व्रत के नियमों का पालन करती थी। कार्तिक मास में सोभन एक बार ससुराल आया। रमा एकादशी का व्रत था। राजा ने घोषणा कर दी कि सभी लोग रमा एकादशी का व्रत नियम पूर्वक करें। चंद्रभागा को लगा कि उसके पति को इससे पीड़ा होगी क्योंकि वह कमजोर हृदय का है।
जब सोभन ने राजा का आदेश सुना तो पत्नी के पास आया और इस व्रत से बचने का उपाय पूछा। उसने कहा कि यह व्रत करने से वह मर जाएगा। इस पर चंद्रभागा ने कहा कि इस राज्य में रमा एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करता है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते हैं तो दूसरी जगह चले जाएं। इस पर सोभन ने कहा कि वह मर जाएगा लेकिन दूसरी जगह नहीं जाएगा, वह व्रत करेगा। उसने रमा एकादशी व्रत किया, लेकिन भूख से उसकर बूरा हाल था। रात्रि के समय जागरण था, वह रात्रि सोभन के लिए असहनीय थी। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व ही भूखे सोभन की मौत हो गए।
इस पर राजा ने उसके शव को जल प्रवाह करा दिया तथा बेटी को सती न होने का आदेश दिया। उसने बेटी से भगवान विष्णु पर आस्था रखने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर बेटी ने व्रत को पूरा किया। उधर रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से सोभन जीवित हो गया और उसे विष्णु कृपा से मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक उत्तम नगर मिला। राजा सोभन के राज्य में स्वर्ण, मणियों, आभूषण की कोई कमी न थी। एक दिन राजा मुचुकुंद के नगर का एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए सोभन के नगर में पहुंचा।
उसने राजा सोभन से मुलाकात की। राजा ने अपनी पत्नी चंद्रभागा तथा ससुर मुचुकुंद के बारे में पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वे सभी कुशल हैं। आप बताएं, रमा एकादशी का व्रत करने के कारण आपकी मृत्यु हो गई थी। अपने बारे में बताएं। फिर आपको इतना सुंदर नगर कैसे प्राप्त हुआ? तब सोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत का फल है, लेकिन यह अस्थिर है क्योंकि वह व्रत विवशता में किया था। जिस कारण अस्थिर नगर मिला, लेकिन चंद्रभागा इसे स्थिर कर सकती है।
उस ब्राह्मण ने सारी बातें चंद्रभागा से कही। तब चंद्रभागा ने कहा कि यह स्वप्न तो नहीं है। ब्राह्मण ने कहा कि नहीं, वह प्रत्यक्ष तौर पर देखकर आया है। उसने चंद्रभागा से कहा कि तुम कुछ ऐसा उपाय करो, जिससे वह नगर स्थिर हो जाए। तब चंद्रभागा ने उस देव नगर में जाने को कहा। उसने कहा कि वह अपने पति को देखेगी तथा अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर कर देगी। तब ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत पर वामदेव के पास ले गया। वामदेव ने उसकी कथा सुनकर उसे मंत्रों से अभिषेक किया। फिर चंद्रभागा ने व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण किया और सोभन के पास गई। सोभन ने उसे सिंहासन पर अपने पास बैठाया।
फिर चंद्रभागा ने पति को अपने पुण्य के बारे में सुनाया। उसने कहा कि वह अपने मायके में 8 वर्ष की आयु से ही नियम से एकादशी व्रत कर रही है। उस व्रत के प्रभाव से यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा यह प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। दिव्य देह धारण किए चंद्रभागा अपने पति सोभन के साथ उस नगर में सुख पूर्वक रहने लगी।
रमा एकादशी व्रत कथा का महत्व
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो लोग रमा एकादशी का माहात्म्य सुनते हैं, वे अंत में विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं।
रमा एकादशी के दिन भूल से भी ना करें ये काम
- चावल खाना वर्जित है : हर एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित बताया गया है। ऐसे में रमा एकादशी के दिन भी चावल खाने से परहेज करना चाहिए। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एकादशी में चावल का सेवन करने से मन में चंचलता आती है जिसके कारण इंसान का मन इधर-उधर भटक सकता है, इसलिए एकादशी के दिन और उससे एक दिन पहले चावल ना खाया जाए तो ज्यादा बेहतर होता है।
- नशीली चीजों का सेवन भी है वर्जित : रमा एकादशी के दिन किसी भी तरह की नशीले पदार्थों का भी सेवन वर्जित बताया गया है।
- इस दिन ना करें क्रोध और ना ही लें तनाव : रमा एकादशी के दिन इंसान को किसी भी बात पर गुस्सा और तनाव करने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि क्रोध और तनाव से इंसान के मन में नकारात्मक विचार आते हैं जिसके कारण पूजा में सही ढंग से मन नहीं लग पाता है।
- इस दिन दातुन करना भी मना है : रमा एकादशी के दिन दातुन से दांत नहीं साफ़ करने चाहिए। आमतौर पर देखा जाता है किसी व्रत-त्यौहार के दिन लोग दातून से दांत साफ करते हैं लेकिन रमा एकादशी के दिन ऐसा करने से बचना चाहिए। अन्यथा टहनी तोड़ने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी नाराज हो सकते हैं।
- बिस्तर पर सोना भी है वर्जित : रमा एकादशी के दिन रात में बिस्तर पर सोने से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का अगर पूरा लाभ चाहिए हो तो हमें इस दिन बिस्तर के बजाय ज़मीन पर ही सोना चाहिए।
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