भाईदूज का पर्व भाई-बहन के स्नेह, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन अपने प्यार भरे रिश्ते को और प्रगाढ़ करते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और उनकी समृद्धि की कामना करती है। भाई दूज, जिसे 'भबीज', 'भाई टीका' और 'भाई फोंटा' के नाम से भी जाना जाता है, एक विशेष त्योहार है जिसे भारत में भाई और बहन के बीच बंधन मनाने के लिए मनाया जाता है। इस पर्व को हर साल कार्तिक के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन मनाया जाता है। भाई दूज रक्षा बंधन के समान है जब एक भाई और बहन एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, लंबे जीवन और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। भाई दूज एक ऐसा त्योहार है जो एक भाई और बहन के बीच के बंधन का जश्न मनाता है।यह दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है और इस भाई दूज त्यौहार के साथ, पांच दिवसीय दिवाली उत्सव समाप्त हो जाता है।बिहार में इसकी अनोखी परंपरा है। आइए जानते हैं इस विशेष परंपरा के बारे .....
भाई दूज 2022 तिथि एवं पूजा मुहूर्त
शास्त्रों में बताया गया है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि, जिस दिन दोपहर के समय होती है, उसी दिन भाई दूज का त्योहार मनाना चाहिए। इसी दिन यमराज, यमदूत और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए और इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान भी करना चाहिए। लेकिन अगर दोनों दिन दोपहर में द्वितीया तिथि हो तब पहले दिन ही द्वितीया तिथि में यम द्वितीया भाई दूज का पर्व मनाना चाहिए।
भाई दूज पूजा मुहूर्त - दोपहर 01.18 - दोपहर 03.33 (26 अक्टूबर 2022)
अवधि - 2 घंटे 15 मिनट
26 अक्टूबर को यह है पूजा का शुभ मुहूर्त
इस साल भाई दूज पर यही स्थिति बनी हुई है कि दो दिन यानी 26 और 27 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण द्वितीया तिथि लग रही है। 26 अक्टूबर को दिन में 02 बजकर 43 मिनट से भाई दूज का पर्व मनाना शुभ रहेगा, जो 27 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 18 मिनट से 03 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। ऐसे में 26 अक्टूबर को ही भाई दूज का पर्व मनाना शास्त्र के अनुकूल रहेगा।
27 अक्टूबर को यह है पूजा का शुभ मुहूर्त
बहुत से स्थानों पर लोग उदया तिथि के हिसाब से त्योहार को मनाया जाता है। ऐसे में जहां पर लोग उदया तिथि को मानते हैं, वहां पर 27 अक्टूबर को भी भाई दूज की पूजा कर सकते हैं। 27 अक्टूबर को जो लोग भाई दूज का पर्व मनाएंगे, उनके लिए शुभ मुहूर्त 11 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक ही रहेगा। इस तरह इस साल रक्षा बंधन की तरह भाई दूज का त्योहार भी दो दिन मनाया जाएगा। आप अपनी परंपरा और लोकाचार के अनुसार, 26 और 27 अक्टूबर में से जिस दिन चाहें भाई दूज का पर्व मना सकते हैं।
बिहार में भाई दूज, कहीं बजरी कहीं टीका
भाई दूज के दिन बिहार में बहनें अपनी भाईयों को पारंपरिक तरीके से बजरी खिलाती है। बजरी को खिलाने के पीछे माना जाता है कि भाई खूब मजबूत बनता है। बहनें अपने भाईयों को पहले खूब कोसती हैं फिर अपनी जीभ पर कांटा चुभाती हैं और अपनी गलती के लिए भगवान से माफी मांगती हैं।
इसके बाद भाई अपनी बहन को आशर्वाद देते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें यम (मृत्यु) का भय नहीं रहता।
गोधन कूटने की परंपरा
इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है।सुबह-सुबह, महिलाएं इस त्यौहार को एक सामुदायिक सभा में मनाती हैं। एक क्षेत्र की महिलाएं एक घर के आंगन या खुले स्थान में इकट्ठा होती हैं और एक बड़ी आयत बनाती हैं।सभी महिलाएं इस संरचना के आसपास बैठती हैं।केंद्र में यम की दो मूर्तियाँ बनती हैं, मृत्यु के देवता और उनकी बहन यामी (जिन्हें यमुना नदी के नाम से भी जाना जाता है)। सांप और बिच्छू की कई अन्य मूर्तियाँ भी बनती हैं। फिर गोबर की यम मूर्ति के छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया या रेंगनी के कांटे से दागती है और भाई को श्राप देती हैं। इसके बाद इस त्योहार के पीछे किंवदंतियों और लोक गीतों के गायन का वाचन होता है।इसी बीच अपने जीभ पर भटकैया या रेंगनी के कांटे को चुभती है और अपने भाई को श्राप देने के लिए माफी मांगती है और रुई से राखी बना कर अपने भाई के लिए आयु जोड़ती है। फिर महिलाये मुसल के ऊपर से चल कर भवसागर पार करती है और अपने घर जाती है। दोपहर पर्यन्त यह सब करके बहन भाई पूजा विधान से इस पर्व को प्रसन्नता से मनाते हैं।
भैया दूज के दिन बहनें पहले क्यों देती हैं भाई को श्राप
इसके पीछे एक प्राचीन कहानी है। राजा पृथु के पुत्र की शादी थी। उसने अपनी विवाहिता पुत्री को भी बुलाया। दोनों भाई बहन में खूब स्नेह था। जब बहन भाई की शादी में शामिल होने आ रही थी, तो रास्ते में उसने एक कुम्हार दंपति को बातें सुना। वे कह रहे थे कि राजा कि बेटी ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है। वह बारात के दिन मर जाएगा। यह सुनते ही बहन अपने भाई को कोसते हुए घर गई।
भाई के लिए बहन ने यमराज से मांगा था वरदान
बारात निकलते वक्त रास्ते में सांप, बिच्छू जो भी बाधा आती उसे मारते हुए अपने आंचल में डालते गई। वह घर लौटी तो वहां यमराज पहुंच गए। यमराज भाई के प्रति बहन के स्नेह को देखकर प्रसन्न हुए और कहा कि यम द्वितीया के दिन बहन अपने भाई को गाली व श्राप दे, तो भाई को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। भाई दूज पर उत्तर भारतीयों की यह परंपरा सचमुच अनोखी परंपरा है।
मिथिलांचल में भरदुतिया
बिहार में भैया दूज को अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। मिथिलांचल में इसे भ्रातृ द्वितीया या भरदुतिया कहते हैं। बहन अपने भाई की लंबी आयु की कामना करते हुए भाई को टीका लगाती हैं।
टीका लगाने के बाद उसके हाथ में पान सुपारी डालकर भगवान से प्रार्थना करती हैं कि हे भगवान जैसे यम ने यमुना की प्रार्थना सुनी वैसे ही आप मेरी भी प्रार्थना सुनिए और मेरे भाई पर आने वाले हर संकट को दूर कर दीजिए। मेरे भाई को दीर्घायु कीजिए।
परंपरा कोई भी हो इसमें बसा है सिर्फ भाई बहन का प्यार
कहीं-कहीं बहनें इस दिन बेरी पूजन भी करती हैं और भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगलकामना करके तिलक लगाती हैं और इस दिन सभी भाई अपनी बहन के घर ही भोजन करते हैं। कहा जाता है कि यम ने भी अपनी बहन यमुनी के घर भोजन कर उन्हें शाप मुक्त किया था। परंपरा कोई भी हो इसमें केवल भाई बहन का प्यार बसा है। भाई बहन का प्यार दुनिया का सबसे प्यारा बंधन होता है।
भाई दूज के पीछे ये हैं मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज को कई बार उनकी बहन यमुना ने मिलने बुलाया था। लेकिन यम जा ही नहीं पाए। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि यमराज अपनी बहन से मिलने पहुंच गए। उन्हें देख यमुना बेहद खुश हुईं। यमुना ने यमराज का बड़े ही प्यार से आदर-सत्कार किया। यमराज को उनकी बहन ने तिलक लगाया और उनकी खुशहाली की कामना की। साथ ही उन्हें भोजन भी कराया। यमराज इससे बेहद खुश थे। उन्होंने अपनी बहन को वरदान मांगने को कहा। इस पर यमुना ने मांगा कि हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आप मेरे घर आया करो। वहीं, इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाएगा और तिलक करवाएगा उसे यम व अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा। यमराज ने अपनी बहन का वरदान पूरा किया और तभी से भाई दूज का यह त्यौहार मनाया जाने लगा।माना जाता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में अगर भाई और बहन साथ में यमुना नदी में स्नान करें तो भाई और बहन का रिश्ता हमेशा बना रहता है और भाई की उम्र बढ़ती है। भाई दूज को भाऊ बीज और भातृ द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।
यह है भाईदूज की कथा
एक बुढ़िया थी।उसके सात बेटे और एक बेटी थी।बेटी की शादी हो चुकी थी। जब भी उसके बेटे की शादी होती, फेरों के समय एक नाग आता और उसके बेटे को डस लेता था। बेटा वही खत्म हो जाता और बहू विधवा।इस तरह उसके छह बेटे मर गये।सातवे की शादी होनी बाकी थी। इस तरह अपने बेटों के मर जाने के दुख से बुढ़िया रो-रो के अंधी हो गयी थी। भाई दूज आने को हुई तो भाई ने कहा की मैं बहिन से तिलक कराने जाऊँगा।माँ ने कहा ठीक है।
उधर जब बहिन को पता चला की उसका भाई आ रहा है तो वह खुशी से पागल होकर पड़ोसन के गयी और पूछने लगी की जब बहुत प्यारा भाई घर आए तो क्या बनाना चलिए? पड़ोसन उसकी खुशी को देख कर जलभुन गयी और कह दिया कि," दूध से रसोई लेप, घी में चावल पका।" बहिन ने ऐसा ही किया।
उधर भाई जब बहिन के घर जा रहा था तो उसे रास्ते में साँप मिला । साँप उसे डसने को हुआ।
भाई बोला- तुम मुझे क्यू डस रहे हो?
साँप बोला- मैं तुम्हारा काल हूँ और मुझे तुमको डसना है।
भाई बोला- मेरी बहिन मेरा इंतजार कर रही है । मैं जब तिलक करा के वापस लौटूँगा, तब तुम मुझे डस लेना।
साँप ने कहा- भला आज तक कोई अपनी मौत के लिए लौट के आया है, जो तुम आऔगे ।
भाई ने कहा- अगर तुझे यकीन नही है तो तू मेरे झोले में बैठ जा । जब मैं अपनी बहिन के तिलक कर लू तब तू मुझे डस लेना। साँप ने ऐसा ही किया।
भाई बहिन के घर पहुँच गया । दोनो बड़े खुश हुए।
भाई बोला- बहिन, जल्दी से खाना दे, बड़ी भूख लगी है।
बहिन क्या करे। न तो दूध की रसोई सूखे, न ही घी में चावल पके ।
भाई ने पूछा- बहिन इतनी देर क्यूँ लग रही है? तू क्या पका रही है?
तब बहिन ने बताया कि ऐसे ऐसे किया है ।
भाई बोला- पगली! कहीं घी में भी चावल पके हैं , या दूध से कोई रसोई लीपे है । गोबर से रसोई लीप, दूध में चावल पका।
बहिन ने ऐसा ही किया । खाना खा के भाई को बहुत ज़ोर नींद आने लगी। इतने में बहिन के बच्चे आ गये। बोले-मामा मामा हमारे लिए क्या लाए हो?
भाई बोला- मैं तो कुछ नही लाया।
बच्चो ने वह झोला ले लिया जिसमें साँप था।जैसे ही उसे खोला, उसमे से हीरे का हार निकला।
बहिन ने कहा- भैया तूने बताया नही की तू मेरे लिए इतना सुंदर हार लाए हो।
भाई बोला- बहना तुझे पसंद है तो तू लेले, मुझे हार का क्या करना।
अगले दिन भाई बोला- अब मुझे जाना है, मेरे लिए खाना रख दे। बहिन ने उसके लिए लड्डू बना के एक डब्बे मे रख के दे दिए। भाई कुछ दूर जाकर, थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। उधर बहिन के जब बच्चों को जब भूख लगी तो माँ से कहा की खाना दे दो।
माँ ने कहा- खाना अभी बनने में देर है। तो बच्चे बोले कि मामा को जो रखा है वही दे दो। तो वह बोली की लड्डू बनाने के लिए बाजरा पीसा था, वही बचा पड़ा है चक्की में, जाकर खा लो। बच्चों ने देखा कि चक्की में तो साँप की हड्डियाँ पड़ी है ।
यही बात माँ को आकर बताई तो वह बावड़ी सी हो कर भाई के पीछे भागी । रास्ते भर लोगों से पूछती की किसी ने मेरा गैल बाटोई देखा, किसी ने मेरा बावड़ा सा भाई देखा।तब एक ने बताया की कोई लेटा तो है पेड़ के नीचे, देख ले वही तो नहीं।भागी-भागी पेड़ के नीचे पहुंची अपने भाई को नींद से उठाया।भैया भैया कहीं तूने मेरे लड्डू तो नहीं खाए!!
भाई बोला- ये ले तेरे लड्डू, नहीं खाए मैंने । ले दे के लड्डू ही तो दिए थे, उसके भी पीछे पीछे आ गयी ।
बहिन बोली- नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, जरूर तूने खाया है। अब तो मैं तेरे साथ चलूंगी।
भाई बोला- तू न मान रही है तो चल फिर।
चलते चलते बहिन को प्यास लगती है, वह भाई को कहती है की मुझे पानी पीना है।
भाई बोला- अब मैं यहाँ तेरे लिए पानी कहाँ से लाऊ देख ! दूर कहीं चील उड़ रहीं हैं,चली जा वहाँ शायद तुझे पानी मिल जाए ।
तब बहिन वहाँ गयी, और पानी पी कर जब लौट रही थी तो रास्ते में देखती है कि एक जगह जमीन में 6 शिलाए गढ़ी हैं, और एक बिना गढ़े रखी हुई थी । उसने एक बुढ़िया से पूछा कि ये शिलाएँ कैसी हैं?
उस बुढ़िया ने बताया कि- एक बुढ़िया है।उसके सात बेटे थे।6 बेटे तो शादी के मंडप में ही मर चुके हैं, तो उनके नाम की ये शिलाएँ जमीन में गढ़ी हैं, अभी सातवें की शादी होनी बाकी है| जब उसकी शादी होगी तो वह भी मंडप में ही मर जाएगा, तब यह सातवी सिला भी ज़मीन में गड़ जाएगी।
यह सुनकर बहिन समझ गयी ये सिलाएँ किसी और की नहीं बल्कि उसके भाइयों के नाम की हैं।उसने उस बुढ़िया से अपने सातवें भाई को बचाने का उपाय पूछा।बुढ़िया ने उसे बतला दिया कि वह अपने सातवें भाई को कैसे बचा सकती है।सब जान कर वह वहाँ से अपने बाल खुले कर के पागलों की तरह अपने भाई को गालियाँ देती हुई चली ।
भाई के पास आकर बोलने लगी- तू तो जलेगा, कुटेगा, मरेगा।
भाई उसके ऐसे व्यवहार को देखकर चौक गया पर उसे कुछ समझ नही आया। इसी तरह दोनों भाई बहिन माँ के घर पहुँच गये। थोड़े समय के बाद भाई के लिए सगाई आने लगी। उसकी शादी तय हो गयी।
जब भाई को सहरा पहनाने लगे तो वह बोली- इसको क्यों सेहरा बँधेगा, सेहरा तो मैं पहनूँगी। ये तो जलेगा, मरेगा।
सब लोगों ने परेशान होकर सेहरा बहिन को दे दिया।बहिन ने देखा उसमें कलंगी की जगह साँप का बच्चा था। बहिन ने उसे निकाल के फेंक दिया।
अब जब भाई घोड़ी चढ़ने लगा तो बहिन फिर बोली- ये घोड़ी पर क्यू चढ़ेगा?, घोड़ी पर तो मैं बैठूँगी, ये तो जलेगा, मरेगा, इसकी लाश को चील कौवे खाएँगे। सब लोग बहुत परेशान। सब ने उसे घोड़ी पर भी चढ़ने दिया।
अब जब बारात चलने को हुई तब बहिन बोली- ये क्यों दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से जाएगा, दरवाजे से तो मैं निकलूंगी। जब वह दरवाजे के नीचे से जा रही थी तो दरवाजा अचानक गिरने लगा।बहिन ने एक ईंट उठा कर अपनी चुनरी में रख ली, दरवाजा वही की वहीँ रुक गया|। सब लोगों को बड़ा अचंभा हुआ।
रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो भाई को पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया।
बहिन कहने लगी- ये क्यू छाँव में खड़ा होगा, ये तो धूप में खड़ा होगा। छाँव में तो मैं खड़ी होऊँगी।
जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा।बहिन ने एक पत्ता तोड़ कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वही का वहीँ रुक गया। अब तो सबको विश्वास हो गया की ये बावली कोई जादू टोना सिख कर आई है, जो बार बार अपने भाई की रक्षा कर रही है। ऐसे करते-करते फेरों का समय आ गया।
जब दुल्हन आई तो उसने दुल्हन के कान में कहा- अब तक तो मैने तेरे पति को बचा लिया, अब तू ही अपने पति को और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को बचा सकती है।
फेरों के समय एक नाग आया, वो जैसे ही दूल्हे को डसने को हुआ , दुल्हन ने उसे एक लोटे में भर के उपर से प्लेट से बंद कर दिया थोड़ी देर बाद नागिन लहर लहर करती आई।
दुल्हन से बोली- तू मेरा पति छोड़।
दुल्हन बोली- पहले तू मेरा पति छोड़।
नागिन ने कहा- ठीक है मैने तेरा पति छोड़ा।
दुल्हन- ऐसे नहीं, पहले तीन बार बोल।
नागिन ने 3 बार बोला, फिर बोली की अब मेरे पति को छोड़।
दुल्हन बोली- एक मेरे पति से क्या होगा, हसने बोलने क लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़।
नागिन ने जेठ के भी प्राण दे दिए।
फिर दुल्हन ने कहा- एक जेठ से लड़ाई हो गयी तो एक और जेठ छोड़। वो विदेश चला गया तो तीसरा जेठ भी छोड़।
इस तरह एक एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ जीवित करा लिए।
उधर रो-रो के बुढ़िया का बुरा हाल था।कि अब तो मेरा सातवाँ बेटा भी बाकी बेटों की तरह मर जाएगा। गाँव वालों ने उसे बताया कि उसके सात बेटा और बहुएँ आ रही है।
तो बुढ़िया बोली- अगर यह बात सच हो तो मेरी आँखो की रोशनी वापस आ जाए और मेरे सीने से दूध की धार बहने लगे। ऐसा ही हुआ। अपने सारे बहू बेटों को देख कर वह बहुत खुश हुई बोली- यह सब तो मेरी बावली का किया है।कहाँ है मेरी बेटी? सब बहिन को ढूँढने लगे।देखा तो वह भूसे की कोठरी में सो रही थी। जब उसे पता चला कि उसका भाई सही सलामत है तो वह अपने घर को चली। उसके पीछे-पीछे सारी लक्ष्मी भी जाने लगी।
बुढ़िया ने कहा- बेटी, पीछे मूड के देख! तू सारी लक्ष्मी ले जाएगी तो तेरे भाई भाभी क्या खाएँगे।
तब बहिन ने पीछे मूड के देखा और कहा- जो माँ ने अपने हाथों से दिया वह मेरे साथ चल, बाद बाकी का भाई भाभी के पास रह।
इस तरह एक बहिन ने अपने भाई की रक्षा की।
भाई दूज पर यमराज की पूजा से चमकेगी किस्मत, इन चीजों को करना न भूलें
- किसी-किसी जगह पर इस दिन बहनें अपने भाइयों की आरती भी उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए भाइयों को मिश्री या मिठाइयां खिलाना चाहिए और यह मंत्र बोलना चाहिए - “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े”।
- शाम के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर दीये का मुख दक्षिण दिशा की ओर करके रखें।
भाई दूज पर क्या करें और क्या न करें?
- भैया दूज के दिन बहन को भाई से झूठ नहीं बोलना चाहिए, अन्यथा भाई को अप्रिय घटना का सामना करना पड़ सकता है।
- इस दिन भाई को तिलक करते समय बहन का काले वस्त्र धारण करना वर्जित होता है।
- भाईदूज के अवसर पर भाई-बहन को आपस में किसी भी मुद्दे या विवाद पर बहस या झगड़ा करने से बचना चाहिए। आपके मन की दुर्भावना भाई या बहन को नुकसान पहुंचा सकती है।
- भाई द्वारा दिए गए उपहार का बहन को कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए और न ही भाई को बहन द्वारा बनाए गए भोजन पर कोई टिप्पणी करनी चाहिए।
- भाईदूज का तिलक करने के बाद ही भाई-बहन को भोजन करना चाहिए। निर्जला व्रत का पालन करते हुए भाई को तिलक करें और मीठा अवश्य खिलाएं।
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