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हिंदू नव वर्ष 2081: जानें कब शुरू हो रहा है नव संवत्सर, व ऐतहासिक महत्व

 

वैसे तो दुनिया भर में नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार नया साल 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसे “नव संवत्सर” भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्सर मार्च-अप्रैल के महीने से आरंभ होता है। ज्योतिषाचार्य का कहना है कि भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचांग का विकास हुआ। इतना ही नहीं 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर युनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।

सप्तर्षि संवत है सबसे प्राचीन

माना जाता है कि विक्रमी संवत से भी पहले लगभग सड़सठ सौ ई.पू. हिंदूओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चुका था। हालांकि इसकी विधिवत शुरूआत लगभग इक्कतीस सौ ई. पू. मानी जाती है। इसके अलावा इसी दौर में भगवान श्री कृष्ण के जन्म से कृष्ण कैलेंडर की शुरुआत भी बतायी जाती है। तत्पश्चात कलियुगी संवत की शुरुआत भी हुई।हिंदू परंपरा में नव संवत्सर को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं हिंदू नववर्ष  की प्रमुख बातें….
  • सभी तरह के नववर्ष में सिर्फ भारतीय नव संवत्सर ही है जिसकी गणना ग्रहों, नक्षत्रों, चांद, सूरज आदि की गति का अध्ययन कर 6 ऋतुओं और 12 महीनों का एक साल होता है।
  • सूर्य-चंद्र और ग्रह-नक्षत्रों पर आधारित हिंदू महीनों का नाम रखा गया है। जैसे- चित्रा नक्षत्र के आधार पर चैत्र, विशाखा के आधार पर बैसाख, ज्येष्ठा के आधार पर ज्येष्ठ, उत्तराषाढ़ा पर आषाढ़, श्रवण के आधार पर श्रावण आदि।
  • हिंदू पंचांग की गणना के आधार पर यह हजारों साल पहले बता दिया था कि अमुक दिन, अमुक समय पर सूर्यग्रहण होगा। युगों बाद भी यह गणना सही और सटीक साबित हो रही है।
  • तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चंद्रग्रहण पूर्णिमा को ही होगा। इस आधार पर दिन-रात, सप्ताह, पखवाड़ा, महीने, साल और ऋतुओं का निर्धारण हुआ।
  • वैदिक परंपरा में 12 महीनों और 6 ऋतुओं के चक्र यानी पूरे वर्ष की अवधि को संवत्सर नाम दिया गया। 
  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तिथि माना गया है। चैत्र मासि जगत ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेऽहनि,

      शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदय सति।। ब्रह्मपुराण में उल्लेख है कि चैत्र प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। जिस दिन दुनिया अस्तित्व में आई, उसी दिन प्रतिपदा मानी गई।

    • वैदिक गणना का आधार सूर्य के स्थान पर चंद्रमा को बनाया गया। आज भी ग्रामीण इलाकों में लोग रात के चंद्रमा की गति देखकर समय व तिथि का अनुमान सहज ही लेते हैं। 
    • विक्रम संवत् भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू किया था।
    • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के जिस दिन (वार) से विक्रमी संवत शुरू होता है, वही इस संवत का राजा होता है। सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है, तो वह संवत का मंत्री होता है। विक्रम संवत समस्त संस्कारों, पर्वों एवं त्योहारों की रीढ़ माना जाता है। समस्त शुभ कार्य इसी पंचांग की तिथि से ही किए जाते हैं। हिंदू धर्म में प्रत्येक नवसंवत्सर का नाम क्रमशः अलग-अलग होता है। पिछले संवत्सर का नाम “पिंगल” था। इस हिसाब से संवत्सर 2081 का नाम “क्रोधी” रहेगा। पंचांग भेद से इसका नाम “कालयुक्त” है। नवसंवत्सर के राजा चंद्र यानी चंद्रमा होंगे और मंत्री शनि होंगे। जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है, उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है। इस बार मंगलवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है। इसलिए संवत्सर के राजा चंद्रमा होंगे।मंगल की वजह से हिंदू नव वर्ष काफी आक्रामक होने वाला है क्योंकि मंगल साहस, पराक्रम, सेना, प्रशासन, सिद्धांत आदि के कारक ग्रह हैं। राजा मंगल और शनि मंत्री होने की वजह से यह वर्ष काफी उथल-पुथल वाला रहेगा और शासन में कड़ा अनुशासन देखने को मिलेगा। साथ ही देश दुनिया में ऐसी कई घटनाएं हो सकती है, जिससे सभी हैरान हो सकते हैं। साथ ही संवत्सर का निवास कुम्हार का घर होगा, जिससे आग लगने की घटनाएं ज्यादा होंगी एवं समय का वाहन नौका होगा, जिससे जनता भ्रमित रहेगी।।

    हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2081 कब शुरू होगा?

    चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर कैलेंडर आरंभ होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल 2024 को है। 
    नव संवत्सर विक्रम संवत – 2081
    नव संवत्सर आरंभ – 9 अप्रैल 2024
    प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ : अप्रैल 08, 2024 को  रात 11 बजकर 50 से शुरू 
    प्रतिपदा तिथि समाप्त : अप्रैल 02, 2022 को  रात 08 बजकर 30 पर समाप्त

    हिन्दू कलेंडर 2081 के अनुसार मास 

    1. चैत्र मास, 2. वैशाख मास, 3. ज्येष्ठ मास, 4. आषाढ़ मास, 5. श्रावण मास, 6. भाद्रपद मास, 7.आश्विन मास, 8. कार्तिक मास, 9. मार्गशीर्ष मास, 10. पौष मास, 11. माघ मास, 12.फाल्गुन मास। 

    नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों?Why start the new year from Pratipada?:-



    हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।
    आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
    इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2054 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2054 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।
    कुछ रोचक तत्थ्य- सन 78 में हूण वंश (संभवत: आज के गुज्जर ,जाट, मराठा ) के सम्राट कनिष्क (जो एक उदारमतवादी बौद्ध सम्राट थे ) ने अपने राज्यारोहन के समय चैत्र शु. प्रतिपदा के दिन शक संवत शुरू किया था । इस दिन प्रजा ने उत्सव मनाया था । इसी दिन को गुढीपाडवा उत्सव का जन्म हुआ था ऐसा प्रतित होता है ।

    चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व | Historical significance of Chaitra Shukla Pratipada:-

    •  इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
    • सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
    • प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
    • शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
    • सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।
    • स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया।
    • सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
    • राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।
    •  युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
    • संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।
    • महर्षि गौतम जयंती।

    भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व | The Natural Importance of the Hindu New Year:-

    • वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
    • फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
    • नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

    हिन्दू नववर्ष कैसे मनाएँ | How to celebrate Hindu New Year:-

    • हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें , झंडे, बैनर….आदि लगावे ।
    • आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
    • इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।
    • आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।
    • घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।
    • इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
    • प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें।
    • इस दिन के महत्वपूर्ण देवताओं, महापुरुषों से सम्बंधित प्रश्न मंच के आयोजन करें।
    • वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या , महाआरती आदि का आयोजन करें।
    • चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम।

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