दीपावली या दिवाली हिन्दू धर्मं का सबसे महान पर्व माना जाता हैं, जिसे हर भारतवासी प्रति वर्ष हर्षोल्लास से मानते हैं।दिपावली शब्द दीप एवं आवली की संधि से बना है। दीप का अर्थ दीपक और आवली का अर्थ पंक्ति से है। इस प्रकार दिपावली का मतलब हुआ दीपों की पंक्ति। दीपों का यह त्योहार अमावस्या के दिन मनाया जाता है। जिस दिन आसमान में अंधेरा छाया रहता है और दीपों की इस रोशनी से पूरा संसार जगमगा उठता है। दीपावली मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। जो इसके महत्व के बारे में बताती हैं…
दिवाली तिथि एवं पूजन मुहूर्त | Diwali Puja Muhurat 2024 :-
वैदिक पंचांग के मुताबिक इस वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि 31 तारीख को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट से शुरू हो रही है और यह तिथि 01 नवंबर को शाम 5 बजकर 23 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। माता लक्ष्मी अमावस्या तिथि में प्रदोष काल और निशिथ काल में भ्रमण करती हैं इसके कारण माता की पूजा प्रदोष काल और निशीथ काल में करने का विधान होता है। पंचांग के मुताबिक 31 अक्तूबर, गुरुवार के दिन पूरी रात्रि अमावस्या तिथि के साथ प्रदोष काल और निशीथ मूहूर्त काल भी है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार 31 अक्टूबर के दिन दीवाली का पर्व और लक्ष्मी पूजन करना सबसे अधिक फलदाई होगा क्योंकि दिवाली का पर्व तभी मनाना उत्तम रहता है जब प्रदोष से लेकर निशिथा काल तक अमावस्या तिथि रहे।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त : शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 06 बजकर 16 मिनट तक
अवधि : 1 घण्टा 08 मिनट
प्रदोष काल : शाम 05 बजकर 08 मिनट से रात 07 बजकर 42 मिनट तक
वृषभ काल : शाम 05 बजकर 53 मिनट से रात 07 बजकर 50 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 02 मिनट तक
संध्या पूजा- शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 54 मिनट तक
निशिथ काल पूजा- रात्रि 11 बजकर 39 मिनट से रात्रि 12 बजकर 31 मिनट तक
दिपावली के पूजा की तैयारी ऐसे करें :-
पूजन शुरू करने से पहले गणेश लक्ष्मी के विराजने के स्थान पर रंगोली बनाएं। जिस चौकी पर पूजन कर रहे हैं उसके चारों कोने पर एक-एक दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा स्थापित करने वाले स्थान पर कच्चे चावल रखें फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। इस दिन लक्ष्मी, गणेश के साथ कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की पूजा का भी विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा के बिना देवी लक्ष्मी की पूजा अधूरी रहती है। इसलिए भगवान विष्ण के बांयी ओर रखकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
दिवाली पूजन सामग्री | Diwali Pujan Samagri :-
दीपावली पूजन के लिए जरूरी सामग्री लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा ,कलावा, रोली, चावल, सिंदूर, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, पांच सुपारी, लौंग, इलायची, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे की माला, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, शंख,पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई,कपूर, आरती की थाली, कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन,चांदी का सिक्का।
विस्तृत दीपावली पूजन विधि | Detailed Diwali Worship Method :-
दीवाली के दिन अमावस्या तिथि पर भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की नवीन प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। लक्ष्मी-गणेश पूजा के अतिरिक्त इस दिन कुबेर पूजा तथा बही-खाता पूजा भी की जाती है।
दीवाली पूजा के दिन एक दिवसीय उपवास का पालन किया जाना चाहिये। स्वयं की क्षमता एवं इच्छा-शक्ति के अनुरूप आप इस दिन निर्जल (बिना जल पिये) या फलाहार (मात्र फल ग्रहण करके) या दूध मात्र से उपवास कर सकते हैं।
दीवाली पूजा उचित दीवाली पूजा मुहूर्त में ही की जानी चाहिये। दीवाली पूजा मुहूर्त निर्धारित करनें में स्थिर लग्न, प्रदोषकाल एवं अमावस्या तिथि पर विचार किया जाता है। सम्पूर्ण दीवाली पूजा में निम्नलिखित पूजा सम्म्लित होती हैं:-
- दीवाली की पूजा में सबसे पहले एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा को विराजमान करें। इसके बाद हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें। बाद में इसी तरह से स्वयं को तथा अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
- इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करके निम्न मंत्र बोलें तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर विराजमान हों
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः॥
- इसके बाद
"ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः" कहते हुए गंगाजल का आचमन करें।
- इस पूरी प्रक्रिया के बाद मन को शांत कर आंखें बंद करें तथा मां को मन ही मन प्रणाम करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल ले लीजिए। साथ में एक रूपए (या यथासंभव धन) का सिक्का भी ले लें। इन सब को हाथ में लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर मां लक्ष्मी, सरस्वती तथा गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।
- इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। तत्पश्चात कलश पूजन करें फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं को गंध, अक्षत व पुष्प प्रदान करते हुए पूजन करें। पूरी प्रक्रिया मौलि लेकर गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर और स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें। अब सभी देवी-देवताओं के तिलक लगाकर स्वयं को भी तिलक लगवाएं। इसके बाद मां महालक्ष्मी की पूजा आरंभ करें।
मां को रिझाने के लिए करें श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ
सबसे पहले भगवान गणेशजी, लक्ष्मीजी का पूजन करें। उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 अथवा 21 दीपक जलाएं तथा मां को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें। मां को भोग लगा कर उनकी आरती करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।
क्षमा-प्रार्थना करें
पूजा पूर्ण होने के बाद मां से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें-
मां न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
दिवाली पूजा के दौरान सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें -ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें। मंत्र के उच्चारण के बाद गणेश जी को मिठाई अर्पित करें।
किसी भी पूजा विधि में कलश की महत्ता काफी मानी जाती है। जिस प्रकार दवियों-देवताओं की पूजा का एक विधान होता है वैसे ही कलश की भी होती है। कलश पूजा के लिए सबसे पहले कलश पर मोली बांधें इसके बाद उसपर आम का पल्लव रखें। पल्लव रखने से पहले कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखना ना भूलें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आवाहन करें। और इस मंत्र का उच्चारण करें- ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥
ऐसे करें भगवान गणेश की पूजा :-
दिवाली पूजा के दौरान सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें -ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें। मंत्र के उच्चारण के बाद गणेश जी को मिठाई अर्पित करें।
ऐसे करें माँ लक्ष्मी की पूजा :-
मां लक्ष्मी की जब आप पूजा करें - पूजा शुरू करने के दौरान सबसे पहले हाथ में अक्षत लें। हाथ में अक्षत लेने के बाद बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ इस मंत्रोंच्चारण के बाद प्रतिमा पर पुष्प और फिर मालाल्यार्पण करें। इसके बाद देवी लक्ष्मी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।लक्ष्मी पूजन के दौरान भगवान विष्णु की भी तस्वीर साथ में रखें क्योंकि बिना अपने पति विष्णु के मां लक्ष्मी कहीं नहीं रहती। इसलिए लक्ष्मी की पूजा के दौरान भगवान विष्णु की भी तस्वीर बगल में स्थापित करना ना भूलें।
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है। प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
कलश पूजा विधि :-
किसी भी पूजा विधि में कलश की महत्ता काफी मानी जाती है। जिस प्रकार दवियों-देवताओं की पूजा का एक विधान होता है वैसे ही कलश की भी होती है। कलश पूजा के लिए सबसे पहले कलश पर मोली बांधें इसके बाद उसपर आम का पल्लव रखें। पल्लव रखने से पहले कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखना ना भूलें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आवाहन करें। और इस मंत्र का उच्चारण करें- ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥
बही खाता पूजन:-
धनतेरस वाले दिन लाए गए नए बही खातों की दिवाली पर पूजा करनी चाहिए। इसके लिए शुभ मुहूर्त जरूर देख लें। नवीन खाता पुस्तकों में लाल चंदन या कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए। इसके बाद स्वास्तिक के ऊपर श्री गणेशाय नमः लिखना चाहिए। इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए।नोट :- यह स्मरण रहे कि दीवाली पूजा में प्रज्वलित किया गया दीप रात्रि पर्यन्त निर्विघ्न प्रज्वलित रहना चाहिये। पूजनोपरान्त श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त तथा देवी लक्ष्मी की अन्य स्तुतियों का पाठ करना चाहिये। यदि सम्भव हो तो देवी लक्ष्मी की स्तुति हेतु जागरण करना चाहिये।
दीपावली या दिवाली क्यों मनाई जाती है, इसके क्या कारण है? ( Reasons To Celebrate Diwali) –
ये त्योहार हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या के दिन आने वाला हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों का त्योहार है और हर धर्म का इस दिन के साथ खास महत्व जुड़ा हुआ है। साथ में ही दीपावली को मनाने के पीछे कई सारी कथाएं भी हैं:-
- लक्ष्मी मां का जन्मदिन- इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था और उनका विवाह भी भगवान विष्णु से इसी दिन हुआ था। कहाँ जाता है कि हर साल इन दोनों की शादी का जश्न हर कोई अपने घरों को रोशन करके मनाता है।
- लक्ष्मी मां को करवाया था रिहा- भगवान विष्णु के पांचवें अवतार ने कार्तिक अमावस्या के दिन मां लक्ष्मी को राजा बाली की जेल से छुड़वाया था और इसके चलते ही इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- जैन धर्म के लोगों के लिए विशेष दिन- जैन धर्म में पूजनीय और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक जिन्होने दीपावली के दिवस पर ही निर्वाण प्राप्त किया था और अपने धर्म के लिए इस दिन को महत्वपूर्ण बनाया।
- सिक्खों के लिए विशेष दिन- इस दिन को सिक्ख धर्म के गुरु अमर दास ने रेड-लेटर डे के रूप में संस्थागत किया था, जिसके बाद से सभी सिख्क, अपने गुरु का आशीर्वाद इस दिन प्राप्त करते हैं। सन् 1577 में दीपावली के दिन ही अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की आधारशिला भी रखी गई थी।
- पांडवों का वनवास हुआ था पूरा – महाभारत के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन ही पांडवों का वनवास पूरा हुआ था और इनका बाराह साल का वनवास पूरा होने की खुशी में इनसे प्रेम करने वाले लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए थे।
- विक्रमादित्य का राज तिलक हुआ था- हमारे देश के महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य पर राज किया था, उनका राज तिलक भी इसी दिन किया गया था।
- कृष्ण जी ने नरकासुर को मारा था- देवकी नंदन श्री कृष्ण ने नरकासूर राक्षस का वध भी दीपावली से एक दिन पूर्व किया था। जिसके बाद इस त्योहार को धूमधाम से मनाया गया था।
- राम भगवान की घर वापसी की खुशी में – इस दिन भगवान राम जी अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपना 14 साल का वनवास सफलता पूर्वक करके, अपने जन्म स्थान अयोध्या में लौटे थे। और इनके आने की खुशी में अयोध्या के निवासियों ने दीपावली अपने राज्य में मनाई थी। वहीं जब से लेकर अब तक हमारे देश में इस त्योहार को हर वर्ष मनाया जाता है।
- फसलों का त्योहार – खरीफ फसल के समय ही ये त्योहार आता है और किसानों के लिए ये त्योहार समृद्धी का संकेत होता है और इस त्योहार को किसान उत्साह के साथ मनाते हैं।
- हिंदू नव वर्ष का दिन – दीपावली के साथ ही हिंदू व्यवसायी का नया साल शुरू हो जाता है और व्यवसायी इस दिन अपने खातों की नई किताबें शुरू करते हैं, और नए साल को शुरू करने के पहले अपने सभी ऋणों का भुगतान करते हैं।
ऐसा करने से होंगी लक्ष्मी जी प्रसन्न:-
लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करने के बाद सारी चीजें खत्म नहीं हो जातीं। लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना है तो पूजा के बाद सभी कमरों में शंख और घंटी बजाएं ताकि घर की सारी नकारात्मकता दूर हो जाएं इसके बाद पूजा में पीली कौड़ियां रखें। पीली कौड़ी रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। वहीं शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। साथ में हल्दी की गांठ जरूरी रखें और पूजा के बाद इसे अपनी तिजोरी में रखें। इस दिन पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं इससे शनि का दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाते हैं।
दिवाली को कहीं जुआ खेलना तो कहीं काजल लगाना है परंपरा:-
दीपावली को लेकर देश के कई जगहों पर अलग अलग परंपराएं सुनने या देखने को मिलती हैं। ग्रामीण अंचल में कहीं कच्ची मिट्टी से तैयार काजल लगाने की परंपरा है तो कहीं इस रात सूप पीटने का भी चलन है। एक और परंपरा अलाय-बलाय निकालने की है। शाम के समय तारा देखकर अलाय-बलाय (जलती हुईं सन की टहनियां) घर से निकाली जाती हैं। कुछ जगहों पर कम उम्र के बच्चों को दिवाली रात जादू की माला भी पहनाई जाती है। सबसे ज्यादा जो परंपरा है वह दिवाली रात को जुआ खेलने की है।
॥ श्री गणेशजी की आरती ॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥ x2॥
एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे,मूसे की सवारी॥ x2॥
पान चढ़े ,फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।(हार चढ़े, फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।)
लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥ x2॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥ x2॥
अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥ x2॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥ x2॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥ x2॥
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥ x2॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥ x2॥
॥ आरती श्री लक्ष्मी जी ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती,जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दीपावली का महत्व | Significance of Diwali:-
- दीपावली त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और ये दिन लोगों को याद दिलाता है कि सच्चाई और भलाई की हमेशा ही जीत होती है।
- धारणाओं के मुताबिक, इस दिन पटाखे फोड़ना शुभ होता है और इनकी आवाज पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की खुशी को दर्शाती है, जिससे की देवताओं को उनकी भरपूर स्थिति के बारे में पता चलता है।
- इस दिन लक्ष्मी मां की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण होता है और ऐसा माना जाता है कि अगर सच्चे मन से इस दिन मां की पूजा की जाए तो घर में पैसों की कमी नहीं होती है।
- इस अवसर पर लोग उपहारों का आदान प्रदान करते हैं और मिठाई से एक दूसरे का मुंह मीठा करवाते हैं और ऐसा करने से उनके बीच में प्यार बना रहता है। ये त्योहार लोगों को आपस में जोड़कर रखने का भी कार्य करता है।
दिवाली के दिन क्या करें?
- दीपावली के दिन अर्थात कार्तिक अमावस्या पर सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से धन हानि नहीं होती है।
- दिवाली के दिन वृद्ध लोगों और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन करने से बचना चाहिए। शाम को लक्ष्मी पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
दीपावली का यह त्यौहार आपके लिये धन-धान्य से परिपूर्ण और स्वास्थ्य वर्धन करने वाला हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ बिहारलोकगीत कॉम की ओर से आप सबको दीपावली की हार्दिक बधाई।
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