
स्वतंत्रता दिवस और बिहार: बलिदान, संघर्ष और प्रेरणा की अमर गाथा
स्वतंत्रता दिवस और बिहार का गहरा रिश्ता जानिए — वीर कुंवर सिंह, चंपारण सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे संघर्षों की प्रेरक कहानी पढ़ें।
15 अगस्त का सूरज भारत के लिए सिर्फ एक दिन की शुरुआत नहीं, बल्कि आज़ादी के सपने के सच होने का प्रतीक है। 1947 में जब आधी रात को घड़ी ने बारह बजाए, तो भारत की धरती पर आज़ादी की पहली किरण ने दस्तक दी।
लेकिन यह स्वतंत्रता हमें यूं ही नहीं मिली — इसके पीछे अनगिनत बलिदान, वर्षों का संघर्ष और उन वीरों का लहू है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे को ऊँचा किया।
और जब हम इस संघर्ष की बात करते हैं, तो बिहार का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा मिलता है — एक ऐसी भूमि जिसने स्वतंत्रता संग्राम को दिशा, नेतृत्व और अदम्य साहस दिया।
बिहार की भूमिका: आज़ादी की धड़कन
बिहार केवल भौगोलिक रूप से भारत का हृदय नहीं है, यह देशभक्ति की धड़कन भी है। यहां की मिट्टी से उठी क्रांति की लहरें 1857 से लेकर 1942 तक पूरे देश में फैलीं। इस धरती ने ऐसे योद्धा पैदा किए जिनकी कहानियां आज भी लोगों की रगों में जोश भर देती हैं।
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और वीर कुंवर सिंह
1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की पहली बड़ी ललकार थी, और इसके सबसे चमकते नक्षत्र थे — वीर कुंवर सिंह।
- जगदीशपुर (आरा) के जमींदार और योद्धा, उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी।
- जब अधिकांश लोग इस उम्र में आराम करते हैं, कुंवर सिंह ने हाथ में तलवार उठाई और अंग्रेजी फौज को चुनौती दे डाली।
- एक युद्ध में जब उनके हाथ में गोली लगी, तो ज़हर फैलने से रोकने के लिए उन्होंने खुद अपना हाथ काटकर गंगा में प्रवाहित कर दिया।
- उनके अदम्य साहस ने बिहार ही नहीं, पूरे देश में आज़ादी की चिंगारी भड़का दी।
1917 का चंपारण सत्याग्रह: गांधी जी की पहली जीत
बिहार के चंपारण में किसानों की हालत बेहद खराब थी। अंग्रेज़ उन्हें नील की खेती के लिए मजबूर करते थे, जिससे उनकी जमीन बर्बाद हो रही थी और जीवन कठिन बन गया था।
- स्थानीय किसान नेता राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को यहां बुलाया।
- गांधी जी ने गांव-गांव घूमकर किसानों की बात सुनी और अहिंसा का हथियार उठाया।
- परिणाम: अंग्रेजों को नील की जबरन खेती बंद करनी पड़ी और किसानों को राहत मिली।
यह आंदोलन बिहार की मिट्टी से जन्मी वह प्रेरणा था, जिसने पूरे भारत में गांधी जी को ‘महात्मा’ बना दिया।
बिहार के अमर सेनानी
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद – गांधी जी के साथ कई आंदोलनों में नेतृत्व किया, और स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने।
- लोकनायक जयप्रकाश नारायण – भारत छोड़ो आंदोलन के अगुवा, जिन्होंने युवाओं में स्वतंत्रता की ज्वाला भड़काई।
- अनुग्रह नारायण सिंह – किसानों और गरीबों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया।
- खुदीराम बोस – 18 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए; उनकी क्रांतिकारी कार्रवाई बिहार के मुजफ्फरपुर से जुड़ी थी।
1942 का भारत छोड़ो आंदोलन और बिहार की क्रांति
1942 में गांधी जी ने ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। बिहार इस आंदोलन का मजबूत गढ़ बना।
- युवाओं ने सरकारी इमारतों पर कब्जा किया, रेल पटरियां उखाड़ीं और टेलीग्राफ लाइनें काटीं।
- हजारों स्वतंत्रता सेनानी जेल गए और कई शहीद हुए।
- पटना, आरा, चंपारण, भागलपुर — हर जगह यह आंदोलन एक जन-क्रांति बन गया।
स्वतंत्रता दिवस का बिहार में उत्सव

आज भी 15 अगस्त को बिहार में उत्सव का माहौल होता है —
- पटना गांधी मैदान में राज्यपाल और मुख्यमंत्री तिरंगा फहराते हैं।
- स्कूलों और कॉलेजों में देशभक्ति गीत, कविताएं और परेड होती हैं।
- चंपारण और जगदीशपुर में विशेष कार्यक्रम आयोजित कर वीरों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
प्रेरणा और संदेश
बिहार की गाथा हमें यह सिखाती है कि आजादी साहस, एकता और बलिदान का परिणाम है। उम्र, साधन या परिस्थितियां कोई बाधा नहीं — अगर मन में देश के लिए प्रेम हो, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता दिवस केवल एक राष्ट्रीय पर्व नहीं, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी की याद दिलाने वाला दिन है।
बिहार के वीरों का बलिदान हमें प्रेरित करता है कि हम देश की एकता, प्रगति और सम्मान के लिए मिलकर काम करें।
आज का तिरंगा न केवल हवा में लहराता है, बल्कि हर भारतीय के दिल में भी गर्व से फहराता है।
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