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शारदीय नवरात्रि 2022 : यूं विधि-विधान से करें दुर्गा सप्तशती का पाठ, प्रसन्न होंगी मां दुर्गा

हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। हर वर्ष शारदीय नवरात्रि के आते ही देवी दुर्गा के भक्तों में उत्साह की लहर सी दौड़ जाती हैं । कई लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं तो कई भक्त देवी जी के 9 दिन के व्रत रखते हैं। देवी जी के यह नौ दिन उनकी भक्ती में डूबे हुए निकल जाते हैं। इन सब के साथ माता रानी के कई भक्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं। आपको बता दें कि दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का संकल्प लिया जाता है। फिर इस संकल्प को पूरी श्रद्धा और भक्ती के साथ पूर्ण किया जाता है।माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती के पाठ से माता रानी प्रसन्न होती है तथा उनकी सभी कामनाएं पूरी कर देती है।तो आइये जानते हैं कि दुर्गा सप्तशती का महत्व क्या है और इसे क्यों और कैसे पढ़ना चाहिए……

क्या है दुर्गा सप्तशती का महत्व 


श्री दुर्गा सप्तशती नारायण वतार श्री व्यासजी द्वारा रचित महापुराणों में मार्कण्डेयपुराण से ली गई है।  इसमें सात सौ पद्यों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती कहा गया है। दुर्गा सप्तशती में 360 शक्तियों का वर्णन है। इसके 700 श्लोकों को तीन भागों में बांटा गया गया है। इसमें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की महिमा का वर्णन है, साथ ही संपूर्ण ग्रंथ में माता की उत्तम महिमा का गान किया गया है।मां जगदम्बे की साधना के लिए किए जाने वाले दुर्गा सप्तशती के 13 पाठों का अपना विशेष महत्व है। 
  • मार्कण्डेय पुराण में स्वंय ब्रह्मा जी ने कहा है कि हर मनुष्य को दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। यह ग्रंथ मनुष्य जाति की रक्षा के लिए है और जो व्यक्ति इसका पाठ करता है वह संसार में सुख भोग कर अन्त समय के लिए बैकुंठ में जाता है।’
  • भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्बा का अवतरण श्रेष्ठ मुनुष्यों की रक्षा के लिए हुआ था। जबकि श्रीमद देवी भागवत के अनुसार वेदों और पुराणों कि रक्षा और दुष्टों के संघार के लिए माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है।’
  • ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही शक्ति का रूप हैं और वही इस संसार को चलाने वाली हैं। इसलिए भक्तों को मां दुर्गा को खुश करने के लिए नवरात्रि के समय उनके नौ रूपों की उपासना के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।’

दुर्गा सप्तशती पाठ से होते हैं ये लाभ

दुर्गा सप्तशती को चंडी पाठ भी कहा जाता है। जब भगवान राम देवी सीता को लंका से वापस लेने जा रहे थे तब उन्होंने पहले चंडी पाठ किया था। यह पाठ उन्होंने शारदीय नवरात्रि के दौरान किया था इसलिए दुर्गा सप्तशती का पाठ आप यदि शारदीय नवरात्रि के दौरान करते हैं तो यह विषेश फल देता है।चंडी पाठ में 700 श्लोक हैं और इन सभी श्लोकों को अलग-अलग जरूरतों के हिसाब से रचा गया है। इसमें 90 श्लोक अंर्गत मारण क्रिया के लिए हैं। 90 श्लोक सम्मोहन क्रिया के लिए हैं। 200 श्लोक उच्चाटन क्रिया के लिए हैं। स्तंभ क्रिया के लिए 200 श्लोक हैं और 60-60 ग्रंथ विद्वेषण क्रिया के लिए हैं।

इसमें अलग-अलग पाठ अलग-अलग बाधाओं के निवारण के लिए किए जाते हैं।यदि आप इसे पूरे नियम और कायदे के साथ संकल्प लेकर करते हैं तो आपको इसका फल निश्चित तौर पर मिलेगा।  आइए जानते हैं कि दुर्गा सप्तशती के पाठ को करने से क्या फल मिलता है……
  • कहा जाता है जो लोग सबकुछ होते हुए भी परिवार में तनाव और कलह से परेशान रहते हैं, जो हमेशा शत्रुओं से दबे रहते हैं, मुकदमों में हार का भय सताता रहता है या जो प्रेत आत्माओं से परेशान रहते हैं उन्हें दुर्गासप्तशती के ‘प्रथम चरित्र’ का पाठ करना या सुनना चाहिए।
  • कहते हैं बेरोजगारी की मार से परेशान, कर्ज में आकंठ डूबे हुए, जो श्री हीन हो चुके हों, जिनका कार्य व्यापार बंद हो चुका हो, जिनके जीवन में स्थिरता नहीं हो, जिनका स्वास्थ्य साथ न दे रहा हो, घर की अशांति से परिवार बिखर रहा हो उन्हें माँ महालक्ष्मी की आराधना और मध्यम चरित्र का पाठ करना या सुनना चाहिए।
  • कहते हैं जिनकी बुद्धि मंद पड़ गयी हो, पढाई में मन न लग रहा हो, स्मरणशक्ति कमजोर हो रही हो, सन्निपात की बीमारी से ग्रसित हों, जो शिक्षा-प्रतियोगिता में असफल रहते हों, जो विद्यार्थी ज्यादा पढ़ाई करते हो और नंबर कम आता हो अथवा जिनको ब्रह्मज्ञान और तत्व की प्राप्ति करनी हो उन्हें माता सरस्वती की आराधना और ‘उतम चरित्र’ का पाठ करना जरुरी है।
  • कहते हैं सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का दशांग या षडांग पाठ संसार के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला है और सप्तशती के पाठ-श्रवण से प्राणी सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है।
आपको बता दें कि इस ग्रंथ को शुद्ध मन से ही पढ़ना चाहिए यदि आप ऐसा नहीं कर पा रहे है तो इसका जाप न करें।

ऐसे पूरे विधि-विधान से करें दुर्गा सप्तशती का पाठ

  • इन 9 दिनों में सबसे पहले, गणेश पूजन, कलश पूजन, नवग्रह पूजन और ज्योति पूजन करना चाहिए और फिर इसके बाद श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक लें और फिर लाल कपड़े का आसन बिछाकर पाठ शुरू करें।
  • माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिये 4 बार आचमन करें।
  • इस प्रकार से सात दिनों में तेरहों अध्यायों का पाठ किया जाता है -!
  1. पहले दिन एक अध्याय
  2. दूसरे दिन दो अध्याय
  3. तीसरे दिन एक अध्याय
  4. चौथे दिन चार अध्याय
  5. पाँचवे दिन दो अध्याय
  6. छठवें दिन एक अध्याय
  7. सातवें दिन दो अध्याय

पाठ कर सात दिनों में श्रीदुर्गा-सप्तशती के तीनो चरितों का पाठ कर सकते हैं। 


  • एक दिन में पूरा पाठ न करने की स्थिति में केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष 2 चरित्र का पाठ कर सकते हैं। वहीं एक दिन में पाठ न कर पाने पर इसे दो-दो-एक और दो अध्यायों को क्रम से सात दिन में पूरा करें।
  • श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का हर दिन पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नवारण मंत्र “ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे” का पाठ करना जरूरी है।
  • दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र, ब्रह्मा, वशिष्ठ, विश्वामित्र ने शापित किया है। शापोद्धार के बिना पाठ का फल नहीं मिलता।
  • संस्कृत में श्रीदुर्गा सप्तशती न पढ़ पायें तो हिंदी में करें पाठ।
  • श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें लेकिन जोर से न पढ़ें।
  • पाठ करते समय हाथों से पैर का स्पर्श नहीं करना चाहिए, अगर पैर को स्पर्श करते हैं तो हाथों को जल से धो लें।
  • पाठ करने के लिए कुश का आसन प्रयोग करना चाहिए। अगर यह उपलब्ध नहीं हो तब ऊनी चादर या ऊनी कंबल का प्रयोग कर सकते हैं।
  • पाठ करते समय बिना सिले हुए वस्त्रों को धारण करना चाहिए, पुरुष इसके लिए धोती और महिलाएं साड़ी पहन सकती हैं।
  • दुर्गा पाठ करते समय जम्हाई नहीं लेनी चाहिए। पाठ करते समय आलस भी नहीं करना चाहिए। मन को पूरी तरह देवी में केन्द्रित करने का प्रयास करना चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती में तीन चरित्र यानी तीन खंड हैं प्रथम चरित्र, मध्य चरित्र, उत्तम चरित्र। प्रथम चरित्र में पहला अध्याय आता है। मध्यम चरित्र में दूसरे से चौथा अध्याय और उत्तम चरित्र में 5 से लेकर 13 अध्याय आता है। पाठ करने वाले को पाठ करते समय कम से कम किसी एक चरित्र का पूरा पाठ करना चाहिए। एक बार में तीनों चरित्र का पाठ उत्तम माना गया है।
  • अगर संपूर्ण पाठ करने के लिए किसी दिन समय नहीं तो कुंजिकास्तोत्र का पाठ करके देवी से प्रार्थना करें कि वह आपकी पूजा स्वीकार करें।
  • सप्तशती के तीनों चरित्र का पाठ करने से पहले कवच, कीलक और अर्गलास्तोत्र, नवार्ण मंत्र, और देवी सूक्त का पाठ करना करना चाहिए। इससे पाठ का पूर्ण फल मिलता है।
  • नित्य पाठ करने के बाद कन्या पूजन करना अनिवार्य है। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ में कवच, अर्गला, कीलक और तीन रहस्यों को भी सम्मिलत करना चाहिये। दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना जरूर करना चाहिये।
नोट :- अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले देवी के आगे इस बात का संकल्प लेना होगा कि आप इस पाठ को कितने दिन करेंगे।अगर आप व्रत रखते हैं तो यह और भी फलदायक होगा। जिस दिन आपका यह पाठ पूरा होता है उस दिन आपको देवी जी से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करनी चाहिए। 

दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति :-

  1. लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें। 
  2. वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें। 
  3. बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें। 
  4. सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें। 
  5. वस्त्र- लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें। 
  6. यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें। 
  7. आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं। 

यह है व्रत की विधि :-

व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है और इसके प्रयोग भी अनुभूत होते हैं :-

नर्वाण मंत्र :-

।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

परेशानियों के अन्त के लिए :-

।। क्लीं ह्रीं ऐं चामुण्डायै विच्चे ।।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए :-

।। ओंम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

शीघ्र विवाह के लिए :-

।। क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे ।।

हवन करने से आपको ये लाभ मिलते हैं :-

  • जायफल से कीर्ति
  • किशमिश से कार्य की सिद्धि
  • आंवले से सुख
  • केले से आभूषण की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें-खांड,घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश, कदंब से हवन करें। 

  • गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 
  • खीर से परिवार वृद्धि। 
  • चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है। 
  • आवंले से कीर्ति। 
  • केले से पुत्र प्राप्ति होती है। 
  • कमल से राज सम्मान। 
  • किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। 
  • खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। 

इसके अतिरिक्त किसी प्रकार कि समस्या निवारण के लिए कितने पाठ करें इसका विवरण निम्न प्रकार है :-

  • ग्रह-शान्ति हेतु 5 बार
  • महा-भय निवारण हेतु 7 बार
  • सम्पत्ति प्राप्ति हेतु 11 बार
  • पुत्र-पौत्र प्राप्ति हेतु 16 बार
  • राज-भय निवारण – 17 या 18 बार
  • शत्रु स्तम्भन हेतु – 17 या 18 बार
  • भीषण संकट – 100 बार
  • असाध्य रोग – 100 बार
  • वंश-नाश – 100 बार
  • मृत्यु – 100 बार
  • धन-नाशादि उपद्रव शान्ति के लिए 100 बार

वैदिक आहुति विधान एवं सामग्री :-

  • प्रथम अध्याय :- एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना ।
  • द्वितीय अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार इसमें गुग्गुल और शामिल कर लें।
  • तृतीय अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 38 के लिए शहद प्रयोग करें।
  • चतुर्थ अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 1 से 11 मिश्री व खीर विशेष रूप से सम्मिलित करें।चतुर्थ अध्याय के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए ऐसा करने से देह नाश होता है – इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर “ॐ नमः चण्डिकायै स्वाहा” बोलकर आहुति दें तथा मंत्रों का केवल पाठ करें इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।
  • पंचम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 9 में कपूर – पुष्प – ऋतुफल की आहुति दें।
  • षष्टम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 23 के लिए भोजपत्र कि आहुति दें।
  • सप्तम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में जौ का प्रयोग करें।
  • अष्टम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
  • नवम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना प्रयोग करें।
  • दशम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग/फेन 31 में कत्था प्रयोग करें।
  • एकादश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मे अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मे फूल और चावल।
  • द्वादश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 10 मे नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल।
  • त्रयोदश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

इष्ट आरती विधान :-

कई बार हम सब लोग जानकारी के अभाव में मन मर्जी के अनुसार आरती उतारते रहते हैं जबकि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारने का विधान होता है –
चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुख पर, सात बार पूरे शरीर पर इस प्रकार चौदह बार आरती की जाती है – जहां तक हो सके विषम संख्या अर्थात १,३,५,७ बत्तियॉं बनाकर ही आरती की जानी चाहिये।

: शुभ नवरात्रि : 


                                               देवी दुर्गा की कृपा आप और आपके परिवार पर सदा बनी रहे।

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