अकबर और बीरबल की कहानियाँ | उपहार का बंटवारा – बीरबल ने कैसे किया अकबर के दरबार के बेईमान द्वारपाल को सीधा
उन्हीं दिनों महेशदास नाम का एक युवक अकबर के राज्य में एक छोटे से गांव में रहता था । उसने अपना पूरा जीवन इसी गांव में व्यतीत किया था । अब वह दुनिया की यात्रा करना चाहता था । उसने बादशाह के महल व बड़े नगरों के बारे में बहुत सारी कहानियां सुनी थीं । उसे यहां घूमना रोमांचक लग रहा था । उसने निश्चय किया कि वह बादशाह के दरबार में जाएगा और वहां नौकरी पाने की कोशिश करेगा ।
वह बहुत भीड़ वाले बाजारों व नगरों से होकर गुजरा और अंत में शहर पहुंच गया । महेशदास महल के दरवाजे के पास तक तो पहुंच गया, किंतु अंदर प्रवेश नहीं कर सका । द्वारपाल ने उसे पकड़ लिया । उसने पूछा, “आप कहां जाने की सोच रहे हो ?”
[ads id=”ads1″]
महेशदास ने द्वारपाल से अंदर जाने के लिए आग्रह किया । द्वारपाल ने कहा, “ मैंने तुम्हे कहा न कि मैं तुम्हे अंदर नहीं भेज सकता हूं ।” महेशदास ने कहा, “ परंतु क्यों ?” द्वारपाल ने कहा, “क्योंकि तुम गरीब हो । हर व्यक्ति बादशाह को देखने के लिए मुझे कुछ देता है जैसे एक गाय, एक बकरी या कढ़ाई की हुई चप्पल । तुम मुझे क्या दे सकते हो ?”
महेशदास ने कहा, “मेरे पास अभी तो कुछ भी नहीं हे । किंतु मैं वादा करता हूं कि जो कुछ भी मुझे बादशाह से उपहार के रूप में मिलेगा, उसमें से मैं तुम्हे आधा दे दूंगा ।“ द्वारपाल जानता था कि बादशाह एक उदार व्यक्ति हैं । वह अकसर उन्हें देखने के लिए आने वालों को मंहगे उपहार दिया करते हैं । इसलिए व्दारपाल जल्दी से सहमत हो गया ।
महेशदास ने महल में प्रवेश किया। वह बहुत मंहगे कढ़ाई किए हुए पर्दे व कालीन देखकर हैरान हो गया। पूरा महल लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया था और बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। बादशाह अकबर दरबार के बीच में बैठा था। महेशदास ने अकबर के सामने झुककर अभिवादन किया। अकबर ने कहा, “तुमने मुझे जो सम्मान दिखाया है, उससे मैं बहुत खुश हूं। बताओ बदले में तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?” महेशदास ने कहा, “जहांपनाह! यदि ऐसा है तो मुझे सौ कोड़े मेरी नंगी पीठ पर बरसाने का इनाम दें।”
सम्राट बहुत हैरान हो गया । उसने कहा, “यह तो बहुत अजीब इनाम है । तुम क्यों मुझसे ऐसा इनाम मांग रहे हो ?” महेशदास ने कहा, “महाराज! जब मैं आपसे मिलने के लिए आ रहा था, तो द्वारपाल ने मुझ से कहा कि आपसे जो मुझे प्राप्त होगा, उसका आधा मुझे उसे देना होगा । ”
बादशाह अकबर हंस पड़े और बोले, “यह एक गंभीर विषय है । इसका मतलब है कि द्वारपाल अपना काम करने के लिए रिश्वत लेता है । इसकी सजा उसे मिलनी चाहिए ।”
द्वारपाल को पकड़कर लाया गया ओर उसे रिश्वत लेने के अपराध में सौ कोड़े मारने की सजा दी गाई। फिर अकबर ने महेशदास से कहा, “तुम बहुत ही चतुर व्यक्ति हो। क्यों नहीं तुम मेरे दरबार में मंत्री के रूप में शोभा ढ़ाओ?” महेशदास इस अवसर को पाकर बहुत खुश था। आगे चल कर यही महेशदास बीरबल (Birbal) के नाम से मशहूर हुआ और उस दिन से बीरबल व उसकी बुद्धि की कहानियां दूर-दूर तक व्यापक रूप से फैलनी शुरू हो गयीं।