दरभंगा: सांस्कृतिक शहर और पर्यटन का केंद्र
मिथिला की संस्कृति में एक कहावत प्रसिद्ध है-
पग-पग पोखर, माछ मखान
सरस बोल, मुस्की मुस्कान / मुख पान
विद्या-वैभव शांति प्रतीक
इ थीक मिथिलाक पहचान।
दरभंगा, जो मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है, अपनी अनूठी संस्कृति और समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। दरभंगा विद्या, वैभव, खान-पान, मधुर मुस्कान और अपनी मीठी बोली के लिए भी दुनियाभर में मशहूर है। इस क्षेत्र का गौरवशाली इतिहास और आसपास के पर्यटक स्थलों की समृद्धता के बावजूद दरभंगा में पर्यटकों की संख्या अपेक्षित रूप से नहीं है।
यह क्षेत्र ध्रुपद गायन, मिथिला पेंटिंग, सिक्की और सुजनी जैसी लोककलाओं का घर है। इसके साथ ही यहां की मछली, मखान, आम, ठेकुआ, अरिकंचन की सब्जी और तिलकौर के तरुआ के स्वाद भी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। मिथिला के पोखर और तालाब की मछली के स्वाद की बात करें तो यह वाकई अद्वितीय है और आपको दुनिया के किसी इलाके में यहाँ की मछली का स्वाद नहीं मिल पाएगा।
दरभंगा के सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे जट-जटिन, नटुआ नाच, छठ, मधुश्रावणी और सामा चकेवा भी यहां के लोक जीवन को समृद्ध करते हैं। हालांकि, इसके बावजूद दरभंगा में पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास किए जा सकते हैं ताकि यहां की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को दुनिया भर में प्रसिद्ध किया जा सके।
दरभंगा के पर्यटन पर नजर डालने से पहले आपको दरभंगा राज के इतिहास और उसकी संपन्नता बारे में कुछ जान लेना जरूरी है।स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजी शासनकाल में जब देश राजा-रजवाड़ों में बंटा था और जमींदारी प्रथा थी, उस समय दरभंगा देश में सबसे अमीर और सबसे सम्पन्न इलाका था। उस समय दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह सभी जमींदारों के अगुवा थे। महारानी विक्टोरिया द्वारा स्थापित अंग्रेजों के सबसे प्रतिष्ठित नाइट ग्रांड कमांडर (GCIE) सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया था। दरभंगा महाराज के पास अपना हवाई अड्डा, हवाई जहाजों का बेड़ा और अपना रेल नेटवर्क था। महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने 1873 में तिरहुत स्टेट रेलवे बनाई थी। उन्होंने अपने लिए एक निजी रेलवे स्टेशन नरगौना में बनाया था। वहाँ उनकी सैलून रुकती थी। इस सैलून से महात्मा गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे स्वतंत्रता सेनानी दरभंगा आते थे इससे यह स्पष्ट है कि यह स्थान उस समय के महत्वपूर्ण लोगों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल था। दरभंगा राज ने क्षेत्र की प्रगति और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे यह क्षेत्र आज भी अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है।
अब आइए एक नज़र डालते हैं दरभंगा के प्रमुख दर्शनीय स्थलों पर-
दरभंगा के राज परिसर की भव्यता और महत्व इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाती है। इस परिसर में स्थित ऐतिहासिक महल और मंदिर क्षेत्र की गौरवशाली विरासत के प्रतीक हैं। यहां के कुछ मुख्य महलों में शामिल हैं:
नरगौना महल।Nargona Palace:
नरगौना महल अपने-आप में एक अद्भुत भवन है। यह महल आज-कल ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अधीन है। इस महल में निर्माण में एक भी ईंट का प्रयोग नहीं किया गया है। यह पूरा महल सीमेंट के दीवारों और खंभों से बना है। यह देश का पहला पूरी तरह से वातानुकुलित महल था। साथ ही देश-दुनिया में शायद अकेला महल था, जिसके परिसर में निजी रेलवे स्टेशन बनाया गया था। इस भव्य नरगौना महल का डिजाइन एक तितली के जैसा है। 1941 में डज वास्तुशैली से तैयार इस महल में 14 महाराजा सूट सहित 89 कमरे हैं। इस पैलेस में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी भी ठहर चुके हैं।
आनंदबाग महल:
आनंद बाग पैलेस, जिसे लक्ष्मीविलास पैलेस भी कहा जाता है, दरभंगा में स्थित प्रतिष्ठित इमारतों में से एक है। महल का निर्माण महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के शासनकाल में हुआ था। इस महल की शानदार संरचना और मिथिला संस्कृति की विस्तृत झलक आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस में आज कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय है। 19वीं सदी में यह एशिया के सर्वश्रेष्ठ महलों में एक था। इसकी खूबसूरती और भव्यता के चर्चे 1884 में लंदन टाइम्स में हो चुके हैं। फ्रांसीसी आर्किटेक्ट द्वारा निर्मित इस महल की वास्तुकला देखते ही बनती है। 7 अक्टूबर 1880 में इसके शिलान्यास पर तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर सर आशले हेडन दरभंगा आए थे। उस समय इस महल के बगान में 41 हज़ार पेड़ थे, हालांकि इनमें से ज्यादातर पेड़ अब काटे जा चुके हैं।
बेला पैलेस:
यह महल अपनी विशिष्ट शैली और सुंदरता के लिए जाना जाता है। बेला पैलेस को महाराजा कामेश्वर सिंह के भाई विश्वेश्वर सिंह ने 1934 में आए भूकंप के बाद बनवाया था। अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध 65 एकड़ में फैले इस महल में फिलहाल पोस्टल ट्रेनिंग सेंटर है। इस डाक प्रशिक्षण केंद्र में बिहार, झारखंड, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के डाक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
दरभंगा के राज परिसर में स्थित दो प्रमुख विश्वविद्यालय हैं:
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय:
यह विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और क्षेत्र के विकास में योगदान दे रहा है।
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय:
यह विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा और संस्कृति के अध्ययन के लिए जाना जाता है।यह अद्वितीय है कि दरभंगा के राज परिवार ने अपने महलों को शिक्षा के लिए दान किया, जिससे यह स्थान एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र बन गया है। इस प्रकार की उदारता और दूरदृष्टि ने दरभंगा को एक विशेष स्थान प्रदान किया है।
राज किला / दरभंगा किला :
दरभंगा का किला दरभंगा के समृद्ध इतिहास और अतीत की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह किला दरभंगा महाराजाओं की परंपरा और उनकी शक्ति को दर्शाता है। यह किला दरभंगा शहर के बीच स्थित है और इसकी भव्यता और स्थापत्य कला इसे एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल बनाती है।
दरभंगा किला को खंडावाला वंश के राजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने 18वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था। यह किला लगभग 150 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और सुरक्षा की दृष्टि से किले के भीतर दीवार के चारों पर तालाब बनाया गया था।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह किला दिल्ली के लाल किला से करीब 9 फीट ऊँचा है। किले में कई प्रवेश द्वार हैं, जिनमें मुख्य द्वार, हाथी द्वार और लाहौरिया द्वार शामिल हैं।
किले के अंदर महलों, मंदिरों और प्रशासनिक कार्यालयों सहित कई महत्वपूर्ण इमारतें हैं। राज पुस्तकालय किले का एक प्रमुख आकर्षण है, जिसमें प्राचीन पांडुलिपियों और पुस्तकों का एक विशाल संग्रह है। इस पुस्तकालय की स्थापना 1921 में महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने की थी, और यह एशिया के सबसे बड़े निजी संग्रहों में से एक माना जाता है।
किले में स्थित दो प्रमुख संग्रहालय हैं: महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह संग्रहालय और चंद्रधारी संग्रहालय। ये संग्रहालय दरभंगा राज परिवार के अद्वितीय कला और ऐतिहासिक वस्तुओं के संग्रह के लिए प्रसिद्ध हैं।
महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह संग्रहालय राज परिवार से संबंधित कई महत्वपूर्ण और दुर्लभ कलात्मक वस्तुओं को प्रदर्शित करता है।संग्रहालय में सोने, चांदी, और हाथी दांत से बनी दुर्लभ वस्तुएँ और हथियार प्रदर्शित हैं।यहां आने पर आप दरभंगा के गौरवशाली इतिहास और कला का अवलोकन कर सकते हैं।
चंद्रधारी संग्रहालय भी किले का एक अन्य आकर्षण है, जिसमें क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति से संबंधित कलाकृतियों का संग्रह है। संग्रहालय में मूर्तियों, सिक्कों, चित्रों और पांडुलिपियों का समृद्ध संग्रह है।यह संग्रहालय भी आपको इतिहास के सुनहरे दौर की झलकियाँ देखने का अवसर देता है।
किले की वास्तुकला भी विशेष है, जो मुगल और राजपूत शैलियों का मिश्रण प्रस्तुत करती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस किले को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है और यह भारत की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
किला दरभंगा का एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है और इतिहास, कला, और संस्कृति के प्रति रुचि रखने वालों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
श्यामा माई काली मंदिर:
श्यामा माई काली मंदिर, जिसे रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर भी कहा जाता है, दरभंगा किले के राज परिसर में स्थित है। इस मंदिर की स्थापना 1933 में महाराज कामेश्वर सिंह ने अपने पिता महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर की थी। मंदिर के गर्भगृह में मां काली की विशाल प्रतिमा है, जिसके दाहिनी ओर महाकाल और बाईं ओर गणपति और बटुकभैरव देव की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मां काली के गले में एक विशेष मुंड माला है, जिसमें हिंदी वर्णमाला के अक्षरों के बराबर मुंड हैं। यह मंदिर विशेष रूप से एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और इसकी प्रतिष्ठा पूरे क्षेत्र में है।
यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करते हैं। मंदिर में वैदिक और तांत्रिक दोनों विधियों से मां काली की पूजा की जाती है। शादी-विवाह और मुंडन जैसे मांगलिक कार्य भी मंदिर परिसर में आयोजित किए जाते हैं। शादी के बाद एक साल तक जोड़ा आमतौर पर श्मशान भूमि में नहीं जाता है, लेकिन इस मंदिर में नवविवाहित जोड़े आशीर्वाद लेने आते हैं । यह मंदिर अपनी विशेष पूजा पद्धतियों और धार्मिक मान्यताओं के कारण क्षेत्र के लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, मेला भी लगता है और यहां काफी भीड़ देखी जाती है। इस दौरान दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को घंटों इंतजार करना पड़ सकता है। मंदिर के दर्शन करने पर श्रद्धालुओं को आंतरिक शांति और संतोष की अनुभूति होती है।
श्यामा माई काली मंदिर में मां श्यामा माई के रूप में माता सीता की पूजा होती है, जो इस क्षेत्र की धार्मिक परंपराओं और लोककथाओं के साथ जुड़ी हुई है। राजा रामेश्वर सिंह के सेवक लालदास द्वारा लिखित “रामेश्वर चरित मिथिला रामायण” में इस कथा का वर्णन किया गया है, जिसमें माता सीता के काली रूप का वर्णन किया गया है।
कथा के अनुसार, रावण के वध के बाद माता सीता ने भगवान राम से कहा कि सहस्त्रानंद का वध करने वाला ही असली वीर होगा। इसके बाद भगवान राम सहस्त्रानंद से युद्ध करने जाते हैं, लेकिन सहस्त्रानंद का एक तीर राम को लग जाता है। इससे माता सीता क्रोधित हो जाती हैं और स्वयं सहस्त्रानंद का वध कर देती हैं। इस दौरान उनके क्रोध से उनका रंग काला पड़ जाता है और वे शांत नहीं होती हैं।
भगवान शिव उन्हें रोकने के लिए आते हैं, लेकिन इस दौरान मां सीता का पैर भगवान शिव के वक्षस्थल पर पड़ जाता है। इस घटना से माता सीता को लज्जा का अनुभव होता है और उनके मुंह से जीभ बाहर आ जाती है। यह माता सीता के इस विशेष रूप का वर्णन है, जिसकी पूजा श्यामा माई काली मंदिर में की जाती है।
यह कथा मंदिर और उसकी पूजा-पद्धतियों को एक विशेष धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती है, जो भक्तों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।
दरभंगा में संकटमोचन मनोकामना मंदिर, मखदूम शाह दरगाह, और टावर चौक के पास बनी मस्जिद और सूफी संत मकदूम बाबा की मज़ार ये सभी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं जो शहर की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाते हैं।
संकटमोचन मनोकामना मंदिर:
यह मंदिर एक छोटा लेकिन प्रतिष्ठित स्थान है।यहां पूजा करने से मनोवांछित फल मिलने की मान्यता है।हर मंगलवार और शनिवार को मंदिर में भारी भीड़ होती है।भक्त लोग मंदिर में लड्डू चढ़ाते हैं।
मखदूम शाह दरगाह:
मखदूम शाह दरगाह, हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह का मजार है, जो दिग्घी पोखर के पास स्थित है।यह मजार लगभग 400 साल पुराना है और बकरीद के दौरान यहां काफी जायरीन आते हैं।मजार पर धार्मिक आयोजनों के दौरान यहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।
टावर चौक के पास बनी मस्जिद और सूफी संत मकदूम बाबा की मज़ार:
ये धार्मिक स्थल दरभंगा की धार्मिक विविधता का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लोग यहां इबादत करने और श्रद्धा व्यक्त करने आते हैं।सूफी संत मकदूम बाबा की मज़ार की भी लोकप्रियता है।
इन सभी धार्मिक स्थलों की विविधता दरभंगा की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाती है, और स्थानीय निवासियों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।
दिग्घी-हराही पोखर:
दरभंगा शहर ही नहीं पूरा मिथिला पोखर-तालाब के लिए मशहूर है। दरभंगा शहर में ही कई बड़े-बड़े तालाब हैं जो देखरेख के अभाव में और अतिक्रमण के कारण अपनी सुंदरता खो रहे हैं। दिग्घी पोखर- हराही पोखर आपको किसी झील सा अनुभव कराएँगे। मिथिला के लोग माछ (मछली) प्रेमी होने के कारण पोखर बनवाते थे। इससे मछली तो मिलता ही है, जल संरक्षण भी होता है। लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है।
दरभंगा के आसपास के अन्य पर्यटन स्थल-
कुशेश्वरस्थान, दरभंगा से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित है और यह अपने प्रसिद्ध शिव मंदिर और पक्षी विहार के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
कुशेश्वरस्थान मंदिर:
यह मंदिर रामायण काल का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है और इसे मिथिला का बाबाधाम माना जाता है।श्रावण मास में कांवड़ के दौरान और शिवरात्रि के समय मंदिर में भारी भीड़ होती है, जिससे यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन जाता है।
पक्षी विहार:
कुशेश्वरस्थान में एक वेटलैंड क्षेत्र भी है, जो लगभग 10 हजार एकड़ में फैला हुआ है। यह क्षेत्र वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया है।यह पक्षी विहार के रूप में प्रसिद्ध है और यहां कई देशों से प्रवासी पक्षी आते हैं।सर्दियों के मौसम में आप यहां दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का दर्शन कर सकते हैं, जो इस क्षेत्र को पक्षी प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाता है।कुशेश्वरस्थान में प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक महत्त्व, और विविध पक्षी प्रजातियों के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।यह क्षेत्र वन्यजीव और पक्षी संरक्षण के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
अहिल्या स्थान :
दरभंगा से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है और यह स्थान देवी अहिल्या को समर्पित है। यह स्थल रामायण की प्रसिद्ध कथा से जुड़ा हुआ है, जहां गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या का जिक्र है। रामायण के अनुसार, गौतम ऋषि ने देवी अहिल्या को श्राप देकर पत्थर बना दिया था। भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान देवी अहिल्या का उद्धार किया और उन्हें फिर से जीवन प्रदान किया। इस ऐतिहासिक और धार्मिक घटना के कारण, अहिल्या स्थान को एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है।यहां देवी अहिल्या को समर्पित एक मंदिर है, जहां श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। इसके अलावा, यहां एक गौतम कुंड भी है, जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां पूजा करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है।अहिल्या स्थान अब रामायण सर्किट का एक हिस्सा बन गया है, जिससे इसे धार्मिक पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्व मिला है। यह स्थल रामायण कथा के प्रेमियों और श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा स्थल है।
राजनगर -बिहार का इतालवी लुटियन्स :
जो दरभंगा से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है, मधुबनी जिले का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ का राज कैंपस “इंक्रीडेबल इंडिया” का एक बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। राजनगर में महल और मंदिर स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।राजनगर के राज कैंपस में बने महल और मंदिर भव्यता और खूबसूरती के अद्भुत उदाहरण हैं। इनकी दीवारों पर की गई नक्काशी, कलाकारी और कलाकृति देखने लायक हैं। यहां के शिल्प और कलाकृति में आपको मिथिला पेंटिंग के साथ देशी-विदेशी दोनों शैलियों का अनुपम समागम देखने को मिलेगा।महलों और मंदिरों की भव्यता, वैभव, और अद्वितीय स्थापत्य कला पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। दीवारों, मेहराबों, गुंबदों और मूर्तियों में कलाकृति के विभिन्न पहलुओं की झलक देखने को मिलती है।राजनगर के राज कैंपस का यह समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व क्षेत्र की समृद्धि और गौरव का प्रतीक है। यह स्थल कला और इतिहास के प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य है और यहां की भव्यता और सुंदरता देखने लायक है।
कैसे पहुँचें दरभंगा

दरभंगा तक पहुंचने के लिए कई परिवहन विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें रेल, सड़क और हवाई यात्रा शामिल हैं।
रेल से:
- दरभंगा रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पटना, लखनऊ, और अन्य महत्वपूर्ण शहरों से नियमित रेल सेवाएं उपलब्ध हैं।
- दरभंगा जंक्शन एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जहां से आपको विभिन्न गंतव्यों के लिए ट्रेनें मिल जाएंगी।
सड़क से:
- दरभंगा देश के अन्य शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
- यहां बस सेवाएं उपलब्ध हैं, जो आसपास के शहरों और अन्य राज्यों के लिए चलती हैं।
- राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के माध्यम से आप दरभंगा तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
हवाई यात्रा से:
- मोदी सरकार की उड़ान योजना के तहत दरभंगा से दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु के लिए नियमित यात्री उड़ानें शुरू हो चुकी है।
- हवाई पट्टी के हिसाब से यह पटना सहित देश के कई बड़े सिविल एयरपोर्ट से भी बड़ा है।
- दरभंगा का हवाई अड्डा शुरू होने के बाद से दरभंगा और उसके आसपास के क्षेत्रों की यात्रा अधिक सुविधाजनक हो गई है। इससे यात्रियों को तेज और सहज यात्रा का अनुभव मिलता है, और क्षेत्र की पहुंच में सुधार हुआ है।
इन सभी विकल्पों के माध्यम से दरभंगा तक पहुंचना आसान है और यात्रियों के लिए उपलब्ध सुविधाएं इसे एक सुलभ गंतव्य बनाती हैं।