
बलराम जयंती 2025 और हलछठ व्रत – तिथि, महत्व, कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
बलराम जयंती 2025 और हलछठ व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा जानें। भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व।
भाद्रपद मास का कृष्ण पक्ष हिंदू पंचांग में अत्यंत पावन माना जाता है। इस मास की षष्ठी तिथि को दो विशेष पर्व मनाए जाते हैं – बलराम जयंती और हलछठ व्रत।
बलराम जयंती भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जबकि हलछठ व्रत माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। इन दोनों पर्वों का धार्मिक, सांस्कृतिक और लोकजीवन में विशेष महत्व है।
भगवान बलराम कौन हैं?
बलराम जी को बलदाऊ, बलभद्र, हलधर और संकर्षण के नाम से जाना जाता है। वे शक्ति, पराक्रम और कृषि के देवता माने जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी भगवान विष्णु के शेषनाग अवतार हैं और भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज (बड़े भाई) के रूप में धरती पर अवतरित हुए। उनका प्रिय अस्त्र हल था, इसीलिए उन्हें हलधर कहा जाता है।
शक्ति और साहस के प्रतीक बलराम जी न केवल बलवान योद्धा थे, बल्कि उन्हें आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और आदर्श पति भी माना जाता है। श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं के कारण कई बार बलराम जी की महिमा पर कम चर्चा होती है, लेकिन श्रीकृष्ण स्वयं भी अपने अग्रज बलराम का गहरा सम्मान करते थे।
बलराम जी का जन्म प्रसंग
मान्यता के अनुसार, बलराम जी माता देवकी के सातवें गर्भ में उत्पन्न हुए। देवकी और वसुदेव की संतानों को अत्याचारी कंस लगातार मार रहा था, इसलिए उनके जीवित बचने की संभावना नहीं थी। जब देवकी का सातवाँ गर्भ आया, तो भगवान विष्णु की योगमाया ने इसे एक चमत्कारी लीला से देवकी के गर्भ से खींचकर (संकर्षण) वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। यही कारण है कि उनका एक नाम संकर्षण भी है।
चूँकि वसुदेव उस समय कंस की कैद में थे, रोहिणी का गर्भ धारण करना लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था। संभावित लोक निंदा से बचाने और सुरक्षा के लिए, जन्म के तुरंत बाद ही बलराम जी को नंद बाबा और यशोदा के घर भेज दिया गया, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ।
मैया बहुत बुरौ बलदाऊ।
कहन लग्यौ बन बड़ो तमासौ, सब मोड़ा मिलि आऊ।
मोहूँ कौं चुचकारि गयौ लै, जहां सघन वन झाऊ।
भागि चलौ, कहि, गयौ उहां तैं, काटि खाइ रे हाऊ।
हौं डरपौं, कांपौं अरू रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ।
थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ।
मोसौं कहत मोल को लीनौ, आपु कहावत साऊ।
सूरदास बल बडौ चवाई, तैसेहि मिले सखाऊ।।
बलराम जी का व्यक्तित्व और विशेषताएं
बलराम जी का व्यक्तित्व साहस, संयम और धर्मनिष्ठा से परिपूर्ण था। वे न केवल युद्ध में निपुण थे, बल्कि कृषिकर्म में भी विशेष रुचि रखते थे। उन्होंने गदा और हल को अपना मुख्य अस्त्र बनाया, जिससे वे असुरों का वध और भूमि की उर्वरता, दोनों का कार्य करते थे।
उन्होंने दूषण, द्विविद जैसे दैत्यों का वध कर जनता को आतंक से मुक्त कराया। वे सदैव धर्म की रक्षा, परिवार की मर्यादा और न्याय की स्थापना के लिए तत्पर रहते थे।
रेवती और बलराम का विवाह – एक अद्भुत कथा

गर्ग संहिता के अनुसार बलराम जी की पत्नी रेवती पूर्व जन्म में राजा मनु की पुत्री ज्योतिष्मती थीं। एक दिन मनु ने उनसे वर की इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा — “जो पूरी पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली हो, वही मेरा पति बने।”
मनु ने इंद्र से पूछा, इंद्र ने वायु को सबसे शक्तिशाली बताया, लेकिन वायु ने पर्वत को अधिक बलशाली कहा। पर्वत ने धरती को सबसे शक्तिशाली माना और धरती ने शेषनाग का नाम लिया।
इसके बाद ज्योतिष्मती ने शेषनाग को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने आशीर्वाद दिया कि द्वापर युग में उनका विवाह बलराम जी से होगा। द्वापर में वे रेवती के रूप में पाताल लोक के राजा कुडुम्बी की पुत्री बनीं। समस्या यह थी कि पाताल लोक की कद-काठी के कारण रेवती पृथ्वी के मनुष्यों से कहीं अधिक लंबी-चौड़ी थीं। विवाह के समय बलराम जी ने अपने हल से उनका आकार सामान्य कर दिया और फिर दोनों ने सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया।
भगवान बलराम संतान और वत्सला की अनोखी शादी
बलराम और रेवती के दो पुत्र हुए — निष्ट्थ और उल्मुक। एक पुत्री भी हुई, जिसका नाम वत्सला था। वत्सला का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मणसे तय हुआ था, लेकिन वत्सला अभिमन्यु से विवाह करना चाहती थीं। तब घटोत्कच ने अपनी मायावी शक्ति से वत्सला का विवाह अभिमन्यु से करवाया।
बलराम जयंती 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
- तारीख – 14 अगस्त 2025, गुरुवार
- षष्ठी तिथि प्रारंभ – 14 अगस्त 2025, सुबह 04:23 बजे
- षष्ठी तिथि समाप्त – 15 अगस्त 2025, सुबह 02:07 बजे
शुभ मुहूर्त:
- ब्रह्म मुहूर्त – 04:23 AM से 05:07 AM
- अभिजित मुहूर्त – 11:59 AM से 12:52 PM
- विजय मुहूर्त – 02:37 PM से 03:30 PM
- गोधूलि मुहूर्त – 07:01 PM से 07:23 PM
- अमृत काल – 06:50 AM से 08:20 AM
बलराम जयंती का महत्व
- शक्ति का प्रतीक – बलराम जी की पूजा से शारीरिक और मानसिक बल मिलता है।
- कृषि का आशीर्वाद – किसान समुदाय इस दिन हल का पूजन करता है।
- पारिवारिक सुख – बलराम जी परिवार में एकता और समृद्धि के रक्षक माने जाते हैं।
- धर्म की रक्षा – वे सदैव धर्म और सत्य की रक्षा के लिए जाने जाते हैं।
बलराम जयंती पूजा विधि
- सुबह जल्दी स्नान कर संकल्प लें।
- पूजा स्थान पर बलराम जी की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
- रोली, चावल, पुष्प, गंगाजल, दूध, दही, मक्खन, सफेद मिठाई से पूजा करें।
- बलराम जी के मंत्र का जाप करें –
“ॐ बलभद्राय नमः” या “ॐ संकर्षणाय नमः”। - बलराम जी को हल और गदा का प्रतीक अर्पित करें।
- कथा का श्रवण करें और अंत में आरती करें।
बलराम जयंती व्रत कथा
द्वापर युग में बलराम जी ने अनेक असुरों का वध किया। उन्होंने दूषण और द्विविद जैसे दैत्यों को परास्त किया। उनका जीवन साहस, संयम और कृषि प्रेम का अद्भुत उदाहरण है।
कृष्ण के साथ मिलकर उन्होंने कंस के अत्याचार से जनता को मुक्त कराया और धर्म की स्थापना की।
हलछठ व्रत का महत्व
हलछठ व्रत मुख्य रूप से महिलाओं का व्रत है, जो अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन हल से जुड़े कृषि कार्य नहीं किए जाते और भूमि को नहीं जोता जाता।
मान्यता:
माता रोहिणी ने बलराम जी के जन्म के समय इस व्रत का पालन किया था। तभी से यह परंपरा प्रचलित है।
हलछठ व्रत की पूजा विधि
- व्रतधारी सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मिट्टी का चौका बनाकर उस पर बलराम जी का प्रतीक हल रखें।
- सात अनाज (सत्तू, चना, गेहूं, जौ, मक्का, अरहर, मूंग) का भोग लगाएं।
- बच्चों के लिए आशीर्वाद मांगते हुए बलराम जी की आरती करें।
- पूरे दिन अनाज और दूध से परहेज कर व्रत रखें, केवल फलों और पेड़ों पर लगे फल/फूल का सेवन करें।
बलराम जयंती और हलछठ व्रत पर क्या करें और क्या न करें
✅ करें
- बलराम जी की पूजा और कथा श्रवण
- हल और गदा का पूजन
- दान और जरूरतमंदों की सेवा
❌ न करें
- खेत जोतना या जमीन खोदना
- मांसाहार और शराब का सेवन
- झूठ बोलना और अपमान करना
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