घुमौर होली: बिहार की एक अनूठी होली परंपरा
भारत में होली का त्यौहार उत्साह, रंग और मेल-मिलाप का प्रतीक है, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में इसे मनाने की अपनी-अपनी अनूठी परंपराएँ हैं। बिहार में कई पारंपरिक रूपों में होली मनाई जाती है, जिनमें “घुमौर होली” विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह होली मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मनाई जाती है और इसे सामाजिक समरसता, संगीत, और पारंपरिक लोकगीतों के संगम के रूप में देखा जाता है।
क्या है घुमौर होली ?
घुमौर होली बिहार के लोकसंस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें लोग समूहों में इकट्ठा होकर ढोल-मंजीरे और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ होली के लोकगीत गाते हैं और नृत्य करते हैं।इस दौरान फाग और चैता जैसे लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें प्रेम, भक्ति और मस्ती का अनूठा संगम देखने को मिलता है।यह होली सामान्य रंगों की होली से अलग होती है क्योंकि इसमें मुख्य रूप से गायन और नृत्य पर जोर दिया जाता है।
घुमौर होली की विशेषताएँ
- होली के विशेष लोकगीत: इस परंपरा में भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषा में पारंपरिक होली गीत गाए जाते हैं।
- संगीत और वाद्ययंत्रों का संगम: ढोलक, मंजीरा, झाल और हारमोनियम के साथ समूह में गाया जाता है।जिससे होली के गीतों को एक अनूठी मिठास मिलती है।
- सामूहिक नृत्य: लोग गोल घेरा बनाकर या समूहों में नृत्य करते हैं, जिससे माहौल और भी आनंदमय हो जाता है।
- सामाजिक समरसता: यह पर्व जाति-धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर लोगों को एक मंच पर लाता है। गाँवों में घर-घर जाकर होली गीत गाने और आशीर्वाद लेने की परंपरा होती है।
प्रमुख लोकगीत जोकि घुमौर होली में गाए जाते हैं
होली के दौरान गाए जाने वाले गीत मुख्य रूप से भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में होते हैं, जिनमे प्रमुख रूप से फगुआ, चैता और रसिया शामिल होते हैं। कुछ लोकप्रिय गीत इस प्रकार हैं:
🎵”रंग संग में राम खेलत होली रंग संग में”
🎵“मैया के मंदिर में उड़ेला गुलाल लाल रंग प्यारा लगे”
🎵“कन्हैया घर चलू गुइयाँ आज खेलें होरी”
🎵”फागुन के दिनवा बलम मोरा रंग लगईबे हो”
🎵”होरी खेलन सखिया संग सैयां”
🎵”कन्हैया खेले होरी गोकुल में”
🎵”आज ब्रज में होरी रे रसिया”

बिहार की सांस्कृतिक विरासत और घुमौर होली
घुमौर होली केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि यह संस्कृति, संगीत और सामूहिक सौहार्द्र का भी प्रतीक है। यह परंपरा बिहार के ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में आज भी उतनी ही उत्साह से मनाई जाती है, जितनी वर्षों पहले मनाई जाती थी।
कैसे बनाएँ घुमौर होली को और लोकप्रिय?
- सोशल मीडिया और ब्लॉग्स पर घुमौर होली की परंपरा को बढ़ावा दें।
- होली के लोकगीतों को रिकॉर्ड कर यूट्यूब, स्पॉटिफाई और लोकगीत बिहारलोकगीत इंस्टाग्राम,वेबसाइट्स पर शेयर करें।
- गाँवों और कस्बों में उत्सवों का आयोजन कर इसे नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ।
- बिहार सरकार और सांस्कृतिक संस्थाएँ इसे बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम करें।

घुमौर होली बिहार की एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। यह सिर्फ रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि संगीत, नृत्य, और परंपराओं का संगम है, जो लोगों को जोड़ता है और खुशियों से भर देता है। बदलते समय के साथ, इस परंपरा को संरक्षित करना और नई पीढ़ी तक पहुँचाना बेहद जरूरी है, ताकि हमारी लोकसंस्कृति जीवंत बनी रहे।
फागुन के रंग में सराबोर हो जाइए और घुमौर होली का आनंद लीजिए! होली है!🎨🎶
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