
सावनपुरिया — ममता की वो सौगात, जो बेटी के मन को भिगो देती है…
सावनपुरिया एक भावनात्मक परंपरा है, जो मां की ममता और बेटी के मन के रिश्ते को सावन की फुहारों में भीगा देती है। जानिए इस अनमोल रिवाज़ की सांस्कृतिक और भावनात्मक गहराई।

“सावन में भीगती हैं छतें,
पर एक बेटी का मन तो बरसों से भीगा हुआ होता है —
जब वो मायके की देहरी से दूर, सावनपुरिया का इंतज़ार करती है…”
बिहार, झारखंड और पूर्वांचल की बेटियों के लिए सावन सिर्फ मौसम नहीं,
वो एहसास है — जिसमें आकाश बादलों से, धरती हरियाली से,
और बेटियाँ मायके की यादों से भर जाती हैं।
सावन जब आता है, तो हर पत्ता हरा हो या न हो,
बेटियों की आँखें जरूर उम्मीद से चमकने लगती हैं।
वो इंतज़ार करती हैं — उस डिब्बे का, जिसे दुनिया “सावनपुरिया” कहती है,
पर उनके लिए वह मायके की गोद से उतरा एक सपना होता है।
🌿 सावनपुरिया क्या है? — एक संस्कृति, एक संवेदना
“सावनपुरिया” — यह शब्द जितना मधुर है,
उसमें छुपे भाव उतने ही गहरे, मीठे और सजीव हैं।
यह एक लोकपरंपरा है —
जिसमें मायके से विवाहित बेटियों को सावन के महीने में साड़ी, चूड़ियाँ, मिठाई, श्रृंगार-सामग्री, और सबसे बढ़कर — ममता और अपनापन भेजा जाता है।
यह परंपरा नहीं,
रिश्तों की मिट्टी से बनी एक परछाईं है,
जो बेटी के मन को छू जाती है, उसे फिर से “अपना” होने का अहसास कराती है।
💜 एक डिब्बा — जिसमें भरी होती है पूरी ज़िंदगी की खुशबू
जब सावनपुरिया आता है…
- माँ की चुनी साड़ी बेटी के तन से नहीं, आत्मा से लिपटती है
- चूड़ियाँ खनकती नहीं, बचपन के गीत गाती हैं
- मिठाइयों में सिर्फ स्वाद नहीं होता,
माँ के हाथों की ऊष्मा भी होती है
उस डिब्बे को खोलते समय बेटी की आँखें नम हो जाती हैं —
क्योंकि वो जानती है, उस पैकिंग में जितना सामान है, उससे कहीं ज़्यादा भावनाएं लिपटी हैं।
👩👧👦 भाई जब लेकर आता है सौगात…
वो दरवाज़ा खुलता है…
और भाई जब सावनपुरिया लेकर खड़ा होता है,
तो बेटी एक पल के लिए फिर से उस आँगन में लौट जाती है
जहाँ वो गुड्डे-गुड़ियों से खेलती थी,
और भाई उसकी चोटी खींचकर भाग जाया करता था।
वो लिफ़ाफा जो भाई देता है —
वो पैसे नहीं, उसके प्रेम और जिम्मेदारी की पहली किश्त होती है।
🎶 लोकगीतों में सावनपुरिया की तड़प
“बाबुल मोरा सावनवा में ना भेजलें पियरिया…”
या
“माई रे! संझा भईल, भेज दीं ना पुरिया…”
इन गीतों में सावनपुरिया नहीं आने की पीड़ा है,
और आने पर छलकती ख़ुशी की भीनी सी हँसी भी।
📿 आधुनिकता में भी ज़िंदा है ये रस्म
आज मोबाइल है, ऑनलाइन शॉपिंग है, डिजिटल ट्रांसफर है —
लेकिन जो बेटी साड़ी का कोना सूँघकर माँ की रसोई की खुशबू पाना चाहती है,
उसे सावनपुरिया सिर्फ डिजिटल नहीं, दिल से चाहिए।
यह सौगात नहीं, एक जीवनरेखा है
सावनपुरिया कोई उपहार नहीं,
वो वो आख़िरी धागा है जो बेटी को उसके मूल से, उसकी माँ की ममता से, उसके बाबुल के आशिर्वाद से जोड़े रखता है।
जो बेटियाँ ससुराल में अकेली हैं, व्यस्त हैं,
या बस उदास बैठी हैं…
उनके जीवन में यह परंपरा फिर से बचपन, अपनापन और आश्वासन लेकर आती है।
“भेज दीजिए न इस बार भी सावनपुरिया…
शायद सामान ना जुट पाए,
लेकिन एक चिट्ठी ही सही —
जिसमें लिखा हो —
‘बिटिया, इस बार तेरे पापा ने तेरे लिए आम का अचार बनवाया है…'”
यह भी पढ़ें :-
🔗 जुलाई 2025 व्रत और त्योहार: तिथि, महत्व, पूजनविधि जानें इस लेख में पढ़ें पूरी जानकारी
Pingback: 🟩 Sawan Aur Striyan / सावन और स्त्रियाँ : झूले, गीत और सुहाग व्रत की सांस्कृतिक परंपरा » Bihar Lok Geet